लुई पास्चर

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लुई पाश्चर
Louis Pasteur.jpg
फ्रेंच सूक्ष्मजैविक तथा रसाययनज्ञ
जन्म साँचा:birth date
डोले, फ़्रांश-कोम्ते, फ्रांस
मृत्यु साँचा:death date and age
Marnes-la-Coquette, Hauts-de-Seine, France
हस्ताक्षर
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कर्म-क्षेत्र: रसायन शास्त्र, सूक्ष्म जीव शास्त्र

शिक्षा: École Normale Supérieure

विशेष खोज: रैबीज वैक्सिन

कार्य : स्ट्रासबर्ग विश्वविद्यालय, लील्ले विज्ञान तथा तकनिकी विश्वविद्यालय ,École Normale Supérieure ,पास्चर इंस्टीट्युट

पुरस्कार-उपाधि: लीवेनहोएक मेडल, मान्ट्यान पुरस्कार ,कापली मेडल ,रमफ़र्ड मेडल, अलबर्ट मेडल

सम्मान: लुई पास्चर के सम्मान मे ही दूध को 60 डीग्री सेल्सीयस तक गर्म कर कीटाणु रहित करने की प्रक्रिया को ’पास्चराइजेशन’ कहते है।|128px]]

लुई पाश्चर, (Louis Pasteur) एक फ़्रांसिसी चिकित्साविद और वैज्ञानिक थे जिन्होंने अपनी वैज्ञानिकों खोजो के द्वारा बीमारी के दौरान घाव उत्पन्न होने की स्थिति में जो असहनीय पीड़ा होती है उससे मुक्ति दिलाकर एक बड़ी मानव सेवा ही की थी। 19वी शताब्दी के जिन विशिष्ठ वैज्ञानिकों में उन्हें गिना जाता है।


बचपन तथा शिक्षा

लुई पाश्चर का जन्म 27 दिसम्बर 1822 को फ्रांस के डोल नामक स्थान नैपोलियन बोनापार्ट के एक व्यवसायी सैनिक के यहां हुआ था। उनके पिता की इच्छा थी कि उनका पुत्र पढ़ लिखकर कोई महान आदमी बने। वे उसकी पढाई के लिए कर्ज का बोझ भी उठाना चाहते थे। पिता के साथ काम में हाथ बंटाते हुए लुई पाश्चर ने अपने पिता की इच्छा पुरी करने के लिए अरबोय की एक पाठशाला में प्रवेश लिया किन्तु वहा के अध्यापको द्वारा पढाई गयी विद्या उनकी समझ के बाहर थी। उन्हें मंदबुद्धि और बुद्धू कहकर चिढाया जाता था।

अध्यापको की उपेक्षा से दुखी होकर लुई पाश्चर ने विद्यालयीन पढाई तो छोड़ दी किन्तु उन्होंने कुछ ऐसा करने की सोची जिससे सारा संसार उन्हें बुद्धू नही कुशाग्र बुद्धि मानकर सम्मानित करे। पिता द्वारा जोर जबरदस्ती करने पर वे उच्च शिक्षा हेतु पेरिस गये और वही पर वेसाको के एक कॉलेज में अध्ययन करने लगे। उनकी विशेष रूचि रसायनशास्त्र में थी। वे रसायन शास्त्र के विद्वान डा.ड्यूमा से विशेष प्रभावित थे। इकोलनारमेल कॉलेज से उपाधि ग्रहण कर लुई पाश्चर ने 26 वर्ष की उम्र में रसायन की बजाय भौतिक विज्ञान पढना आरम्भ किया।

बाधाओं को पार करते हुए वे विज्ञान विभाग के अध्यक्ष बन गये। इस पद को स्वीकारने के बाद उन्होंने अनुसन्धान कार्य आरम्भ कर दिया। सबसे पहले अनुसन्धान करते हुए उन्होंने इमली के अम्ल से अंगूर अम्ल बनाया किन्तु उनकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण खोज “विषैले जन्तुओ द्वारा काटे जाने पर उनके विष से मानव के जीवन की रक्षा करनी थी। ” चाहे कुत्ते के काटने के बाद रेबीज का टीका बनाना हो या फिर किसी जख्म के सड़ने और उसमे कीड़े पड़ने पर अपने उपचार की विधि द्वारा उसकी सफल चिकित्सा करने का कार्य हो लुई पाश्चर ने उन्ही कार्यो में अपने प्रयोगों द्वारा सफलता पायी।

लुई बचपन से ही दयालु प्रकृति के थे। अपने शैशवकाल में आपने गांव के आठ व्यक्तियों को पागल भेड़िए के काटने से मरते हुए देखा था। वे उनकी दर्दभरी चीखों को लुई पास्चर भूल नहीं सके थे। युवावस्था में भी जब यह अतीत की घटना स्मृति पटल पर छा जाती, तो लुई बेचैन हो उठते थे। पर वे पढ़ने-लिखने में विशेष तेज नहीं थे। इस पर भी आप में दो गुण मौजूद थे, जो विज्ञान में सफलता के लिए आवश्यक होते हैं – उत्सुकता एवं धीरज। युवावस्था में आपने लिखा था कि शब्दकोश में तीन शब्द अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं: इच्छाशक्ति, काम तथा सफलता।

कॉलेज की पढ़ाई समाप्त कर, अपनी लक्ष्य प्राप्ति के लिए एक रसायन शाला में कार्य करना आरम्भ कर दिया। यहाँ पर उन्होने क्रिस्टलों का अध्ययन किया तथा कुछ महत्त्वपूर्ण अनुसंधान भी किए। इनसे रसायन के रूप में उन्हे अच्छा यश मिलने लग गया।

पाश्चराइजेशन

लुई पास्चर ने अपने सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा मदिरा की परीक्षा करने में घण्टों बिता दिए। अंत में पास्चर ने पाया कि जीवाणु नामक अत्यन्त नन्हें जीव मदिरा को खट्टी कर देते हैं। अब पास्चर ने पता लगाया कि यदि मदिरा को 20-30 मिनट तक 60 सेंटीग्रेड पर गरम किया जाता है तो ये जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। ताप उबलने के ताप से नीचा है। इससे मदिरा के स्वाद पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। बाद में उन्होंने दूध को मीठा एवं शुद्ध बनाए रखने के लिए भी इसी सिद्धान्त का उपयोग किया। यही दूध ‘पास्चरित दूध’ कहलाता है।

एक दिन लुई पास्चर को सूझा कि यदि ये नन्हें जीवाणु खाद्यों एवं द्रव्यों में होते हैं तो ये जीवित जंतुओं तथा लोगों के रक्त में भी हो सकते हैं। वे बीमारी पैदा कर सकते हैं। उन्हीं दिनों फ्रांस की मुर्गियों में ‘चूजों का हैजा’ नामक एक भयंकर महामारी फैली थी। लाखों चूजे मर रहे थे। मुर्गी पालने वालों ने पास्चर से प्रार्थना की कि हमारी सहायता कीजिए। फिर पास्चरने उस जीवाणु की खोज शुरू कर दी जो चूजों में हैजा फैला रहा था। पास्चरको वे जीवाणु मरे हुए चूजों के शरीर में रक्त में इधर-उधर तैरते दिखाई दिए। उन्होंने इस जीवाणु को दुर्बल बनाया और इंजेक्शन के माध्यम से स्वस्थ चूजों की देह में पहुँचाया। इससे वैक्सीन लगे हुए चूजों को हैजा नहीं हुआ। पाश्चरने टीका लगाने की विधि का आविष्कार नहीं किया पर चूजों के हैजे के जीवाणुओं का पता लगा लिया।

इसके बाद लुई पाश्चर ने गायों और भेड़ों के ऐन्थ्रैक्स नामक रोग के लिए वैक्सीन बनायी: पर उनमें रोग हो जाने के बाद वे उन्हें अच्छा नहीं कर सके: किन्तु रोग को होने से रोकने में लुइको सफलता मिल गई। पास्चरने भेड़ों के दुर्बल किए हुए ऐन्थ्रैक्स जीवाणुओं की सुई लगाई। इससे होता यह था कि भेड़ को बहुत हल्का ऐन्थ्रैक्स हो जाता था; पर वह इतना हल्का होता था कि वे कभी बीमार नहीं पड़ती थीं और उसके बाद कभी वह घातक रोग उन्हें नही होता था। पास्चर और उनके सहयोगियों ने महीनों फ्रांस में घूमकर सहस्रों भेड़ों को यह सुई लगाई। इससे फ्रांस के गौ एवं भेड़ उद्योग की रक्षा हुई। अंगूठाकार|303x303पिक्सेल|लुइ पास्चेर अपनी प्रयोगशाला में एक पेंटिंग १८८५

रेबीज टीका

पाश्चरने तरह-तरह के सहस्रों प्रयोग कर डाले। इनमें बहुत से खतरनाक भी थे। वे विषैले वाइरस वाले भयानक कुत्तों पर काम कर रहे थे। अत में पाश्चरने इस समस्या का हल निकाल लिया। उन्होंने थोड़े से विषैले वाइरस को दुर्बल बनाया। फिर उससे इस वाइरस का टीका तैयार किया। इस टीके को उन्होंने एक स्वस्थ कुत्ते की देह में पहुँचाया। टीके की चौदह सुइयाँ लगाने के बाद रैबीज के प्रति रक्षित हो गया। पाश्चरकी यह खोज बड़ी महत्त्वपूर्ण थी; पर पाश्चरने अभी मानव पर इसका प्रयोग नहीं किया था। सन् १८८५ ई० की बात है। लुई पाश्चर अपनी प्रयोगशाला में बैठे हुए थे। एक फ्रांसीसी महिला अपने नौ वर्षीय पुत्र जोजेफ को लेकर उनके पास पहुँची। उस बच्चे को दो दिन पहले एक पागल कुत्ते ने काटा था। पागल कुत्ते की लार में नन्हे जीवाणु होते हैं जो रैबीज वाइरस कहलाते हैं। यदि कुछ नहीं किया जाता, तो नौ वर्षीय जोजेफ धीरे-धीरे जलसंत्रास(hydrofobia) से तड़प कर जान दे देता।

लुई पाश्चरने बालक जोजेफ का परीक्षण किया। बहुत वर्षों से वे इस बात का पता लगाने का प्रयास कर रहे थे कि जलसंत्रास को कैसे रोका जाए? लुई इस रोग से विशेष रूप से घृणा करते थे। अब प्रश्न था कि बालक जोजेफ के रैबीज वैक्सिन की सुईयाँ लगाने की हिम्मत करें अथवा नहीं। बालक की मृत्यु की सम्भावना थी। पर सुइयां न लगने पर भी उसकी मृत्यु निश्चित् थी। इस दुविधा में लुईने तत्काल निर्णय लिया और बालक जोजेफ का उपचार करना शुरू कर दिया। लुई दस दिन तक बालक जोजेफ के वैक्सीन की बढ़ती मात्रा की सुइयाँ लगाते रहे और तब महान आश्चर्य की बात हुई। बालक जोजेफ को जलसंत्रास नही हुआ। इसके विपरीत वह अच्छा होने लग गया। इतिहास में प्रथम बार मानव को जलसंत्रास से बचाने के लिए सुई लगाई गई। पास्चरने वास्तव में मानव जाति को यह अनोखा उपहार दिया। पाश्चरके देशवासियों ने उन्हें सब सम्मान एवं सब पदक प्रदान किए। उन्होंने लुईके सम्मान में पास्चर इंस्टीट्यूट का निर्माण किया: किन्तु कीर्ति एव ऐश्वर्य से पास्चर मे कोई परिवर्तन नहीं आया। वे जीवनपर्यन्त तक सदैव रोगों को रोक कर पीड़ा हरण के उपायों की खोज में लगे रहे।

रेशम के कीड़ो के रोग की रोकथाम के लिए उन्होंने 6 वर्षो तक इतने प्रयास किये कि वे अस्वस्थ हो गये। पागल कुत्तो के काटे जाने पर मनुष्य के इलाज का टीका, हैजा, प्लेग आदि संक्रामक रोगों के रोकथाम के लिए उन्होंने विशेषत: कार्य किया। यह सचमुच एक महान कार्य था।

सन् 1895 ई। में उनकी निद्रावस्था में ही मृत्यु हो गई।

बाहरी कड़ीयाँ

चिकित्सा जगत में महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाने जाते हैं ‘लुई पाश्चर’