राष्ट्रकूट राजवंश
मान्यखेत के राष्ट्रकूट राजवंश ರಾಷ್ಟ್ರಕೂಟ | |||||
साम्राज्य | |||||
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राजधानी | मान्यखेत | ||||
भाषाएँ | [कन्नड़]] संस्कृत | ||||
धार्मिक समूह | हिन्दू जैन धर्म बौद्ध धर्म | ||||
शासन | राजतन्त्रसाँचा:ns0 | ||||
महाराजा | |||||
- | 735–756 | दन्तिदुर्ग (प्रथम) | |||
- | 973–982 | इंद्र चतुर्थ (अन्तिम) | |||
इतिहास | |||||
- | प्रारंभिक राष्ट्रकूट रिकॉर्ड | 735 | |||
- | स्थापित | 735 | |||
- | अंत | 982 |
राष्ट्रकूट (साँचा:lang-kn) दक्षिण भारत, मध्य भारत और उत्तरी भारत के बड़े भूभाग पर राज्य (735-982) करने वाला राजवंश था।
इतिहास
इनका शासनकाल लगभग छठी से तेरहवीं शताब्दी के मध्य था। इस काल में उन्होंने परस्पर घनिष्ठ परन्तु स्वतंत्र जातियों के रूप में राज्य किया, उनके ज्ञात प्राचीनतम शिलालेखों में सातवीं शताब्दी का 'राष्ट्रकूट' ताम्रपत्र मुख्य है, जिसमे उल्लिखित है की, 'मालवा प्रान्त' के मानपुर में उनका साम्राज्य था (जोकि आज मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है), इसी काल की अन्य 'राष्ट्रकूट' जातियों में 'अचलपुर'(जो आधुनिक समय में महारास्ट्र में स्थित एलिच्पुर है), के शासक तथा 'कन्नौज' के शासक भी शामिल थे। इनके मूलस्थान तथा मूल के बारे में कई भ्रांतियां प्रचलित है। एलिच्पुर में शासन करने वाले 'राष्ट्रकूट' 'बादामी चालुक्यों' के उपनिवेश के रूप में स्थापित हुए थे लेकिन 'दान्तिदुर्ग' के नेतृत्व में उन्होंने चालुक्य शासक 'कीर्तिवर्मन द्वितीय' को वहाँ से उखाड़ फेंका तथा आधुनिक 'कर्णाटक' प्रान्त के 'गुलबर्ग' को अपना मुख्य स्थान बनाया। यह जाति बाद में 'मान्यखेत के राष्ट्रकूटों ' के नाम से विख्यात हो गई, जो 'दक्षिण भारत' में ७५३ ईसवी में सत्ता में आई, इसी समय पर बंगाल का 'पाल साम्राज्य' एवं 'गुजरात के प्रतिहार साम्राज्य' 'भारतीय उपमहाद्वीप' के पूर्व और उत्तरपश्चिम भूभाग पर तेजी से सत्ता में आ रहे थे।[१][२][३]
आठवीं से दसवीं शताब्दी के मध्य के काल में गंगा के उपजाऊ मैदानी भाग पर स्थित 'कन्नौज राज्य' पर नियंत्रण हेतु एक त्रिदलीय संघर्ष चल रहा था, उस वक्त 'कन्नौज' 'उत्तर भारत' की मुख्य सत्ता के रूप में स्थापित था। प्रत्येक साम्राज्य उस पर नियंत्रण करना चाह रहा था। 'मान्यखेत के राष्ट्रकूटों' की सत्ता के उच्चतम शिखर पर उनका साम्राज्य उत्तरदिशा में 'गंगा' और 'यमुना नदी' पर स्थित दोआब से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक था। यह उनके राजनीतिक विस्तार, वास्तुकला उपलब्धियों और साहित्यिक योगदान का काल था। इस राजवंश के प्रारंभिक शासक हिंदू धर्म के अनुयायी थे, परन्तु बाद में यह राजवंश जैन धर्म के प्रभाव में आ गया था।[४][५][६][७][८][९][१०][११][१२]
उत्पति
दक्षिण भारत एवं गुजरात में मिले 75 शिलालेख 8 शिलालेख पे इनके वंश के बारे प्रकाश डालता है कि राष्ट्रकूट अपने आपको सात्यकी जो यदुवंशी था महाभारत में नारायणी सेना के प्रमुख सात सेनापतियों में से एक था उसी के वंश का राष्ट्रकुट है विद्वान एवं इतिहासकार समर्थन करते हैं कि राष्ट्रकूट यदुवंशी क्षत्रिय है 860 ई. में उत्कीर्ण एक शिलालेख में बताया गया है कि राष्ट्रकुट शासक दन्तिदुर्ग का जन्म यदुवंशी सात्यकी के वंश में हुआ था गोविंद तृतीय 880 ई में उत्कीर्ण एक शिलालेख में लिखा है कि राष्ट्रकुट शासक वैसे ही अजय हो गए जैसे भगवाण श्री कृष्ण यदुवंशी में जन्म लेकर अजय हो गए थे हलायुद्ध द्वारा लिखी गई किताब कविरहस्य में भी राष्ट्रकुट राजाओं को यदुवंशी सात्यकी का वंशज लिखा गया है अमोघवर्ष प्रथम द्वारा 950 में लिखित एक ताम्रपत्र में अपने आपको यदुवंशी लिखा है 914 ई० में एक ताम्रपत्र में दन्तिदुर्ग को यदुवंशी लिखा गया है 860 ई० के पूर्व हमें राष्ट्रकूट राजाओं के वंश के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं था। इसके बाद दक्षिण भारत एवं गुजरात से मिले 75 शिलालेखों में से कुछ इनके वंश के बारे में प्रकाश डालते हैं၊ इनमें से 8 शिलालेख बताते हैं कि राष्ट्रकूट राजा यादववंश के थे၊ 860 ई० में उत्कीर्ण एक शिलालेख में बताया गया है कि २ाष्ट्रकूट शासक दंतिदुर्ग का जन्म यदुवंशी सात्यकी के वंश में हुआ था ၊ इसप्रकार राष्ट्रकूट वंश भगवान कृष्ण के सेनापति सात्यिकी यादव का वंश है । ये यदुवंशी क्षत्रिय थे। गोविन्द तृतीय (880 ई०) द्वारा उत्कीर्ण एक शिलालेख में लिखा है कि "इस महान राजा के जन्म से राष्ट्रकूट वंश वैसे ही अजेय हो गया जैसे भगवान कृष्ण के जन्म से यादव वंश हो गया था"। यह शिलालेख इस ओर स्पष्ट रूप से इशारा करते है कि राष्ट्रकूट यादव थे। हलायुध द्वारा लिखी गई किताब 'कविरहस्य' में भी राष्ट्रकूट राजाओं को यदुवंशी सात्यकी का वंशज लिखा गया है। अमोघवर्ष प्रथम द्वारा 950 ई० में लिखित एक ताम्र-पत्र में भी उन्होंने अपने आप को यादव बताया है। 914 ई० के ताम्र-पत्र में भी राष्ट्रकूट राजा'दन्तिदुर्ग' को यादव सात्यकी का वंशज लिखा गया है। इन बातों से सिद्ध होता है कि राष्ट्रकूट राजा यादव थे। ये कन्नड भाषा बोलते थे,लेकिन उन्हें उत्तर-ढक्कनी भाषा की जानकारी भी थी। अपने शत्रु चालुक्य वंश को पराजित करने वाले राष्ट्रकूट वंश के शासन काल में ही ढक्कन साम्राज्य भारत की दूसरी बड़ी राजनीतिक इकाई बन गया,जो मालवा से कांची तक फैला हुआ था । इस काल में राष्ट्रकूटों के महत्व का इस तथ्य से पता चलता है कि एक मुस्लिम यात्री ने यहाँ के राजा को दुनिया के चार महान शासकों में से एक बताया (अन्य शासक खलीफा तथा बाइजंतिया और चीन के सम्राट थे।
प्रशासन
ये संभवत: मूल रूप से द्रविड़ किसान थे, जो लाततापुर (लातूर, उसमानवाद के निकट) के शाही परिवार के थे। ये कन्नड भाषा बोलते थे, लेकिन उन्हें उत्तर-डाककनी भाषा की जानकारी भी थी। अपने शत्रु चालुक्य वंश को पराजित करने वाले राष्ट्रकूट वंश के शासन काल में ही दक्कन साम्राज्य भारत की दूसरी बड़ी राजनीतिक इकाई बन गया, जो मालवा से कांची तक फैला हुआ था। इस काल में राष्ट्रकूटों के महत्व का इस तथ्य से पता चलता है कि एक मुस्लिम यात्री ने यहाँ के राजा को दुनिया के चार महान शासकों में से एक बताया (अन्य शासक खलीफा तथा बाइजंतीया और चीन के सम्राट थे)।[१३][१४]
कला और संस्कृति
कई राष्ट्रकूट राजा अध्ययन और कला के प्रति समर्पित थे। दूसरे राजा, कृष्ण प्रथम (लगभग 756 से 773) ने एलोरा में चट्टान को काटकर कैलाश मंदिर बनवाया। इस राजवंश का प्रसिद्ध शासक अमोघवर्ष प्रथम ने, जिनहोने लगभग 814 से 878 तक शासन किया, सबसे पुरानी ज्ञात कन्नड कविता कविराजमार्ग के कुछ खंडों की रचना की थी। उनके शासन काल में जैन गणितज्ञों और विद्वानों ने 'कन्नड' व 'संस्कृत' भाषाओं के साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनी वास्तुकला 'द्रविणन शैली' में आज भी मील का पत्थर मानी जाती है, जिसका एक प्रसिद्ध उदाहरण 'एल्लोरा' का 'कैलाशनाथ मन्दिर' है। अन्य महत्वपूर्ण योगदानों में 'महाराष्ट्र' में स्थित 'एलीफेंटा गुफाओं' की मूर्तिकला तथा 'कर्णाटक' के 'पताद्क्कल' में स्थित 'काशी विश्वनाथ' और 'जैन मन्दिर' आदि आते हैं, यही नहीं यह सभी 'यूनेस्को' की वर्ल्ड हेरिटेज साईट में भी शामिल हैं।[१५]
आर्थिक परिदृश्य
इस वंश के कई राजा युद्ध कला में पारंगत थे। ध्रुव प्रथम ने गंगवादी (मैसूर) के गंगवंश के राजाओं को पराजित किया, कांची (कांचीपुरम) के पल्लवों से लोहा लिया और बंगाल के राजा तथा काननोज पर दावा करने वाले प्रतिहार शासक को पराजित किया। कृष्ण द्वितीय ने, जो 878 में सिंहासन पर बैठे, फिर से गुजरात पर कब्जा कर लिया, जो अमोघवर्ष प्रथम के हाथों से छिन गया था। लेकिन वे वेंगी पर फिर से अधिकार करने में असफल रहे। उनके पौत्र इंद्र तृतीय ने, जो 914 में सत्तारूढ़ हुये। कन्नौज पर कब्जा करके राष्ट्रकूट शक्ति को अपने चरम पर पहुंचा दिया। कृष्ण तृतीय ने उत्तर के अपने अभियानों (लगभग 940) से इसका और विस्तार किया तथा कांची और तमिल अधिकार वाले मैदानी क्षेत्र (948-966/967) पर कब्जा कर लिया।[१६][१७]
शासकों की सूची
(735-756) जिसे दन्तिवर्मन या दन्तिदुर्ग १ के नाम से भी जाना जाता है, राष्ट्रकूट साम्राज्य के संस्थापक थे।
(756–774) दन्तिदुर्ग १ के चाचा, []कृष्ण १]] ने बद्री कीर्तिवर्मन १ को परास्त करके (757 ई.) में नवोदित राष्ट्रकूट साम्राज्य का अधिकार ग्रहण किया।
(774-780) कृष्ण १ के बाद गोविंद १ सिंहासन पर बैठे।
(780-793) राष्ट्रकूट वंश के सबसे प्रवीण शासक ध्रुव अपने बड़े भाई गोविंदा २ के बाद सिंहासन पर काबिज हुए।
(793–814) वह एक प्रसिद्ध राष्ट्रकूट राजा थे।
(800-878) अमोघवर्ष १ राष्ट्रकूट वंश के सबसे बड़े राजाओं में से एक थे।
(878–914) अमोघवर्ष १ के निधन के बाद कृष्ण २ राजा बने।
(914–929) कृष्ण १ के पोते और चेदि राजकुमारी लक्ष्मी के पुत्र, अपने पिता जगत्तुंगा के समय से पहले निधन के कारण राज्य के सम्राट बने।
(930–935) अमोघवर्ष द्वितीय के छोटे भाई चिकमगलूर के कालसा अभिलेख में वर्णित (930 ई.) में राष्ट्रकूट राजा बने।
(934–939) इंद्र ३ के छोटे भाई, जिन्हें बद्दीगा के नाम से भी जाना जाता है। उन्होने आंध्र में वेमुलावाड़ा के राजा अरिकेसरी और उनके खिलाफ विद्रोह करने वाले अन्य सामंतों की सहायता से सम्राट ने वर्चस्व प्राप्त किया।
(939–967) अत्यंत वीर और कुशल सम्राट थे। एक सूक्ष्म पर्यवेक्षक और निपुण सैन्य प्रचारक, उन्होंने कई युद्ध लड़े और फिर से जीत हासिल करने में अहम भूमिका निभाई और राष्ट्रकूट साम्राज्य के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उन्होने परमार राजा सियाका १ ने मान्याखेत को तबाह कर दिया और खोट्टिम अमोघवर्ष ४ का निधन हो गया।
(967-973) कर्क १ ने खोट्टिम अमोघवर्ष ४ अमोघवर्ष को राष्ट्रकूट सिंहासन पर बैठाया। उसने चोलों, गुर्जरस, हूणों और पंड्यों के विरोध में सैन्य विजय का समावेश किया और उसके सामंती, पश्चिमी गंग राजवंश राजा मरासिम्हा २ ने पल्लवों पर अधिकार कर लिया।
(973–982) पश्चिमी गंग राजवंश के सम्राट का भतीजा और राष्ट्रकूट वंश का अंतिम राजा था।
राजवंश का पतन
खोट्टिम अमोघवर्ष चतुर्थ (968-972) अपनी राजधानी की रक्षा में विफल रहे और उनके पाटन ने इस वंश पर से लोगों का विश्वास उठा दिया। सम्राट भागकर पश्चिमी घाटों में चले गए, जहां उनका वंश साहसी गंग और कदंब वंशों के सहयोग से तब तक गुमनाम जीवन व्यतीत करता रहा, जबतक तैलप प्रथम चालुक्य ने लगभग 975 में सत्ता संघर्ष में विजय नहीं प्राप्त कर ली।[१८][१९][२०]
सन्दर्भ
- ↑ Altekar (1934), pp1–32
- ↑ रेऊ (1933), pp6–9, pp47–53
- ↑ Kamath (2001), p72
- ↑ A Kannada dynasty was created in Berar under the rule of Badami Chalukyas (Altekar 1934, p21–26)
- ↑ Kamath 2001, p72–3
- ↑ A.C. Burnell in Pandit Reu (1933), p4
- ↑ Hultzsch and Reu in Reu (1933), p2, p4
- ↑ Kamath (2001), p73
- ↑ Pollock 2006, p332
- ↑ Houben(1996), p215
- ↑ Altekar (1934), p411–3
- ↑ Dalby (1998), p300
- ↑ whose main responsibility was to draft and maintain inscriptions or Shasanas as would an archivist. (Altekar in Kamath (2001), p85
- ↑ Kamath (2001), p86
- ↑ Altekar (1934), p242
- ↑ Altekar (1934), p356
- ↑ From notes of Periplus, Al Idrisi and Alberuni (Altekar 1934, p357)
- ↑ Altekar (1934), p370–371
- ↑ From the Davangere inscription of Santivarma of Banavasi-12000 province (Altekar 1934, p234
- ↑ Altekar (1934), p222
अन्य संदर्भ
पुस्तकें
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अंतर्जालीय संदर्भ