रामजियावन दास

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बावला की हस्तलिपि।

रामजियावन दास "बावला" (1 जून 1922 साँचा:ndash 1 मई 2012) भोजपुरी भाषा के कवि थे।[१][२] भोजपुरी साहित्य में उन्हें तुलसीदास सरीखा सम्मान मिला। भोजपुरी के जिन कवियों ने अपनी काव्य प्रतिभा से सबसे अधिक लोक प्रसिद्धि पायी है उनमें रामजियावन दास प्रमुख हैं। बावला जी ने रामचरितमानस को भोजपुरी में लिखने का प्रयास भी किया है और उसे काफी हद तक लिखा भी । अरण्य काण्ड, किष्किन्धा काण्ड ,राम केवट प्रसंग , कौशिल्या विरह इत्यादि प्रत्येक बिंदुओं पर बावला जी ने गीतों के माध्यम से आम जन तक भोजपुरी का रामायण पहुंचा दिया ।

जीवन परिचय

रामजियावन दास बावला का जन्म 01 जून, 1922 ई. को उत्तर प्रदेश के चंदौली जनपद[३] (तब वाराणसी के चकिया तहसील) के भीषमपुर गांव के एक अति सामान्य लोहार परिवार में हुआ। पिता रामदेव विश्वकर्मा जातीय व्यवसाय से जुड़े थे। माता सुदेश्वरी देवी घर का काम संभालती थीं। रामदेव के चार पुत्रों और दो पुत्रियों में बावला जी सबसे बड़े थे। परिवार में शिक्षा की कोई परंपरा नहीं थी, फिर भी बावला जी का नामांकन गांव के ही प्राथमिक पाठशाला में हुआ। इन्होंने दर्जा तीन तो पास कर लिया, मगर चार में फेल हो गए। कक्षा चार में फिर नाम लिखाया गया। नकल के सहारे इन्होंने दर्जा चार तो पास कर लिया, मगर इसके बाद पढ़ाई-लिखाई को सदा के लिए अलविदा करते हुए कहा कि संतन को कहां सीकरी सो काम। प्राथमिक शिक्षा के समय से ही इनका झुकाव कविता व संगीत की तरफ था। कहते हैं कि सोहबत का असर व्यक्ति पर पड़ता है। बावला जी के बड़े पिता रामस्वरूप विश्वंकर्मा संगीत व रामायण के मर्मज्ञ थे। बावला जी ने पुश्तैंनी पेशे को भी बड़ी आसानी से अपनाया। वह स्वयं कहते हैं, हम बंसुला लेके बाबू जी के साथ चल देहीं आउर रंदा भी खूब मरले हुईं।

इसी बीच रामजियावन दास का विवाह मात्र 16 वर्ष की उम्र में मनराजी देवी के साथ संपन्न हुआ। अभी तक तो यह अकेले थे, मगर शादी के बाद पारिवारिक जिम्मेदारियां भी लद गईं। घर की माली हालत ठीक न थी, सो भैंस पालने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। युवक रामजियावन सुबह भैंस लेकर जंगल की ओर मुखातिब हो जाते और घूमते-घूमते काफी दूर निकल जाते। यहीं धुसूरियां नामक स्थान पर बावला जी की मुलाकात स्थानीय कोल-भीलों और मुसहरों से हुई।

यहीं से राम पर आधारित गीतों की रचना शुरू हुई। बावला उपनाम के पीछे भी एक रोचक किस्सा है। शुरू में उन्होंने कुछ भजनों की रचना की थी, जिसके प्रकाशन के लिए वे गांव के ही एक मित्र के साथ वाराणसी आए। छह वर्णों का रामजियावन नाम बैठता ही नहीं था। प्रकाशक ने कोई छोटा नाम रखने की सलाह दी। वह रात भर मानसिक उहापोह में रहे। सुबह होने पर दशाश्वमेघ घाट पर स्नान करने गए। वहीं पर एक व्यक्ति से टकरा गए। उसने झल्ला कर रामजियावन को कुछ कहा। उसकी बुदबुदाहट में उन्हें बावला शब्द सुनाई दिया। तुरंत ही बावला उपनाम अपना लिया। प्रथम बार रामजियावन बावला को सन् 1957-58 ई में कवि के रूप में आकाशवाणी वाराणसी में काव्य पाठ का अवसर प्राप्त हुआ। वहीं पर आकाशवाणी के हरिराम द्विवेदी ने इनके नाम के साथ दास शब्द जोड़ दिया, तब से यह रामजियावन दास बावला हो गए। इसी समय इन्हें भोजपुरी गौरव सम्मान से नवाजा गया।

बावला जी की रचनाओं में ग्रामीण समाज व किसान जीवन का अत्यंत जीवंत चित्रण मिलता है। गांव, समाज की दीन-दशा तथा सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ी समस्याओं का इन्होंने बड़ी सहजता से चित्रण किया है।

1 मई 2012 को रामजियावन दास कानब्बे वर्ष की आयु में निधन हो गया।[४]

रचनायें

रामजियावन दास के रचना गीतालोक
  • गीतालोक

समीक्षा और मूल्यांकन

भोजपुरी गायक अभिनेता और राजनेता मनोज तिवारी मृदुल अपने एक इंटरव्यू में कहते हैं कि बावला जी जब राम केवट प्रसंग वाली अपना गीत गाते थे तो न केवल उनकी बल्कि श्रोताओं-दर्शकों की आंखों से आंसू गिरने लगते थे।साँचा:cn

सम्मान

  1. सेतु सम्मान, (2002) में कोलकाता के विश्व भोजपुरी सम्मेलन में)
  2. काशी रत्न अलंकरण, (2004)
  3. पुरबिया गौरव सम्मान, एकता मंच (2009)
  4. भोजपुरी तुलसी रत्न, (2009 में अखिल भारतीय पूर्वा लोकरत्न संगीत महोत्सव में)
  5. भोजपुरी लोक रस सम्मान, (गाजीपुर में 2011 में)

सन्दर्भ