राजगौड़ वंश
इस शासन की स्थापना से जिले में नये व्यवस्थित शांतिपूर्ण एवं खुशहाली का दौर प्रारंभ होता है । इस राजवंश के उदय का श्रेय यादव राव (यदुराव) को दिया जाता है । जिनने चौदहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षो में गढ़ा कटंगा में स्थापित किया और एक महत्वपूर्ण शासन क्रम की नींव डाली । इसी राजवंश के प्रसिद्ध शासक संग्राम शाह (1400-1541) ने 52 गढ़ स्थापित कर अपने साम्राज्य को सुदृढ़ बनाया । नरसिंहपुर जिले में चौरागढ़ (चौगान) किले का निर्माण भी उसने ही कराया था जो रानी दुर्गावती के पुत्र वीरनारायण की वीरता का मूक साक्षी है।
संग्राम शाह के उत्तराधिकारियों में दलपति शाह ने सात वर्ष शांति पूर्वक शासन किया । उसके पश्चात उसकी वीरांगना रानी दुर्गावती ने राज्य संभाला और अदम्य साहस एवं वीरता पूर्वक 16 वर्ष (1540-1564) शासन किया । सन् 1564 में अकबर के सिपहसलार आतफ खां से युद्ध करते हुये रानी ने वीरगति पाई। नरसिंहपुर जिले में स्थित चौरागढ़ एक सुदृढ़ पहाड़ी किले के रूप में था जहां पहुंच कर आतफ खां ने राजकुमार वीरनारायण को घेर लिया और अंततः कुटिल चालों से उसका बध कर दिया। गढ़ा कटंगा राज्य पर 1564 में मुगलों का अधिकार हो गया गौंड़, मुगल, और इनके पश्चात यह क्षेत्र मराठों के शासन काल में प्रशासनिक और सैनिक अधिकारियों तथा अनुवांशिक सरदारों में बंटा हुआ रहा । जिनके प्रभाव और शक्ति के अनुसार क्षेत्रों की सीमायें समय समय पर बदलती रहती थीं । जिले के चांवरपाठा, बारहा, सांईंखेड़ा, शाहपुर, सिंहपुर, श्रीनगर और तेन्दूखेड़ा इस समूचे काल में परगानों के मुख्यालय के रूप में प्रसिद्ध रहे ।
गौड़ राजा की सूची
- (1) संग्राम शाह = 1482 - 1532
- (2) दलपत शाह = 1532 - 1550
- (3) वीर नारायण(रानी दुर्गावती) = 1550 - 1565
- (4) चन्द्र शाह = 1565 - 1576
- (5) मधुकर शाह = 1576 - 1590
- (6) प्रेमनारायण शाह = 1590 - 1634
- (7) हृदय शाह = 1634 - 1678
- (8) छत्र शाह = 1678 - 1685
- (9) केशरी शाह = 1685 - 1688
- (10) नरेंद्र शाह = 1688 - 1732
- (11) महाराज शाह = 1732 - 1742
- (12) शिवराज शाह = 1742 - 1749
- (13) दुर्जन शाह = 1749 - 1749
- (14) निज़ाम शाह = 1749 - 1776
- (15) नरहरी शाह = 1776 - 1780
- (16) सुमेद शाह = 1780 - 1818
- (17) शंकर शाह = 1818 - 1825 (स्वतंत्रता सेनानी) 1857 मे सहीद
- (18) कूवर रघुनाथ शाह = 1825 - 1857 (स्वतंत्रता सेनानी) 1857 मे सहिद
राजा शंकर शाह तथा उनके पुत्र कुवर रघुनाथ शाह को 18 सितंबर 1857 को अंग्रेजो द्वारा तोप से उड़ा दिया गया.