चौरागढ़
चौरागढ़ एक दुर्ग है जिसे जबलपुर के राजगौड़ वंश के शासक संग्राम शाह ने १६वीं शताब्दी में बनवाया था। यह नरसिंहपुर जिले की करेली तहसील में स्थित चौगान में स्थित है। इसलिए इसे चौगान का किला भी कहते हैं। अब यह बहुत सीमा तक खंडहर में बदल चुका है।
१६वीं शताब्दी में निर्मित यह किला गोंडकालीन वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। गढ़ा-कटंगा साम्राज्य की रानी वीरांगना दुर्गावती के पुत्र वीरनारायण की वीरता और उनकी वीरगति का यह किला एकमात्र जीवन्त गवाह है।
दुर्ग के भीतर विशाल जलकुण्ड है। इसमें अभी भी खासा पानी रहता है। यहां कई भूमिगत कक्ष व भंडारगृह बने हुए हैं। किले की दीवारों पर बेमिशाल कलाकृतियां बनाई गईं थीं। इनके रंग धूमिल हो चुके हैं, लेकिन ये अभी भी सुंदर दिखती हैं। बहुत ऊंचाई में स्थित होने के कारण किले की प्राचीर से मीलों दूर तक देखा जा सकता है। किले के समीप बनाया गया तालाब आज भी क्षेत्र के लोगों के लिए जल का एक प्रमुख स्रोत है।
इतिहास
इतिहासकारों के अनुसार जबलपुर के गढ़ा गोंडवाना साम्राज्य के शासक अर्जुन सिंह के बाद महत्वाकांक्षी संग्राम सिंह (सन्1400-1540 ईस्वी) ने गद्दी सम्हाली। उन्होंने अपने साम्राज्य में विस्तार करते हुए आसपास के 52 गढ़ों पर विजयश्री प्राप्त की। इसकी याद में व इतने बड़े साम्राज्य की निगरानी करने के लिए उन्होंने यह किला बनवाया था।
सन् 1564 में दिल्ली के मुगल शासक अकबर के सिपहसालार आसफ खान ने गढ़ा साम्राज्य पर हमला कर दिया। रानी दुर्गावती (सन्1540-1564ईस्वी) वीरगति को प्राप्त हुईं। उसके बाद उनके पुत्र वीरनारायण को आसफ खान ने अपनी कुटिल चाल में फंसा कर बंदी बना लिया और मार डाला।
बाद में अंग्रेजों ने मराठा पेशवाओं से यह किला छीन लिया। लेकिन छीनने के बाद इस डर से इसे तोप से उड़ा दिया कि पेशवा फिर से न वापस आ जाएं। तोप से ध्वस्त किला खंडहर के रूप में आज भी जीर्णोद्धार को तरस रहा है।
पहुँच मार्ग
किले तक जाने के लिए करेली या गाडरवारा स्टेशन पर उतरा जा सकता है। करपगांव, शाहपुर, आमगांव बड़ा, करेली और गाडरवारा से यहां जाने के लिए सीधा मार्ग है। करेली से यह 22 व गाडरवारा से 19 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां तक जाने के लिए पक्के रास्ते के साथ पगडंडी से भी चलना पड़ता है।