मलेरिया की रोकथाम तथा नियंत्रण
मलेरिया का प्रसार इन कारकों पर निर्भर करता है- मानव जनसंख्या का घनत्व, मच्छरों की जनसंख्या का घनत्व, मच्छरों से मनुष्यों तक प्रसार और मनुष्यों से मच्छरों तक प्रसार। इन कारकों में से किसी एक को भी बहुत कम कर दिया जाए तो उस क्षेत्र से मलेरिया को मिटाया जा सकता है। इसीलिये मलेरिया प्रभावित क्षेत्रों में रोग का प्रसार रोकने हेतु दवाओं के साथ-साथ मच्छरों का उन्मूलन या उनसे काटने से बचने के उपाय किये जाते हैं। अनेक अनुसंधान कर्ता दावा करते हैं कि मलेरिया के उपचार की तुलना में उस से बचाव का व्यय दीर्घ काल में कम रहेगा, हालांकि विश्व के कुछ सर्वाधिक निर्धन देशों में इसका तात्कालिक व्यय उठाने की क्षमता भी नहीं है। आर्थिक सलाहकार जैफ़री सैक्स के अनुसार प्रतिवर्ष 3 अरब अमेरिकी डालर की सहायता देकर मलेरिया का प्रसार रोका जा सकता है। साथ ही यह तर्क दिया जाता है कि सहस्राब्दी विकास लक्ष्य (अंग्रेजी: Millennium Development Goal, मिलेनियम डेवलपमेंट गोल) पूरा करने हेतु धन को एड्स उपचार से हटा कर मलेरिया रोकथाम में लगाया जाए तो अफ्रीकी देशों को अधिक लाभ होगा।
1956-1960 के दशक में विश्व स्तर पर मलेरिया उन्मूलन के व्यापक प्रयास किये गये (वैसे ही जैसे चेचक उन्मूलन हेतु किये गये थे)। किंतु उनमे सफलता नहीं मिल सकी और मलेरिया आज भी अफ्रीका में उसी स्तर पर मौजूद है। जबकि ब्राजील, इरीट्रिया, भारत और वियतनाम जैसे कुछ विकासशील देश है जिन्होंने इस रोग पर काफी हद तक काबू पा लिया है। इसके पीछे निम्न कारण माने गये हैं- प्रभावी उपकरणों का प्रयोग, सरकार का बेहतर नेतृत्व, सामुदायिक भागीदारी, विकेन्द्रीकृत क्रियान्वयन, कुशल तकनीकी-प्रबंधक कामगार मिलना, भागीदार संस्थाओं द्वारा सही तकनीकी सहयोग देना तथा पर्याप्त कोष मिलना।[१]
मच्छरों के प्रजनन पर नियंत्रण
मच्छरों के प्रजनन स्थलों को नष्ट करके मलेरिया पर बहुत नियंत्रण पाया जा सकता है। खड़े पानी में मच्छर अपना प्रजनन करते हैं, ऐसे खड़े पानी की जगहों को ढक कर रखना, सुखा देना या बहा देना चाहिये या पानी की सतह पर तेल डाल देना चाहिये, जिससे मच्छरों के लारवा सांस न ले पाएं। मलेरिया उन्मूलन के जो प्रयास पूर्णतः सफल रहे हैं उनमें मच्छरों के उन्मूलन का प्रमुख स्थान था। कभी यह रोग संयुक्त राज्य अमेरिका तथा दक्षिण यूरोप में आम हुआ करता था, किंतु बेहतर जल निकास द्वारा मच्छरों के प्रजनन स्थल दलदली क्षेत्रों को सुखा कर, मरीजों पर कड़ी निगरानी रख कर और उनका तुरंत उपचार करके इसे इन क्षेत्रों से मिटा दिया गया। वर्ष 2002 में अमेरिका से सिर्फ 1059 मामले सामने आये जिनसे 8 लोग मरे।
इनके अतिरिक्त आनुवांशिक तकनीकों से परिवर्तित मच्छर बनाए जा रहे हैं जो मलेरिया परजीवी को पलने नहीं देंगे।[२] ऐसे मच्छरों को खुला छोड़ देने पर धीरे-धीरे इनकी प्रतिरक्षा की जीन मच्छरों की सारी आबादी में फैल जाएगी।
घरों मे दवा का छिडकाव
मलेरिया-प्रभावित क्षेत्रों में अकसर घरों की दीवारों पर कीटनाशक दवाओं का छिड़काव किया जाता है। अनेक प्रजातियों के मच्छर मनुष्य का खून चूसने के बाद दीवार पर बैठ कर इसे हजम करते हैं। ऐसे में अगर दीवारों पर कीटनाशकों का छिड़काव कर दिया जाए तो दीवार पर बैठते ही मच्छर मर जाएगा, किसी और मनुष्य को काटने के पहले ही।
डीडीटी पहला आधुनिक कीटनाशक था जो मलेरिया के विरूद्ध प्रयोग किया गया था, किंतु बाद में यानि 1950 के बाद इसे कृषि कीटनाशी रूप में प्रयोग करने लगे थे। खेतों में इसके भारी प्रयोग से अनेक क्षेत्रों में मच्छर इसके प्रति प्रतिरोधी हो गए। 1960 के दशक में इसके हानिकारक प्रभाव नजर आने लगे और 1970 के दशक में अनेक देशों में इसके प्रयोग पर रोक लगा दी गयी। इस दवा के प्रयोग पर रोक लगाने को काफी विवादास्पद माना गया है। वैसे इसे मलेरिया नियंत्रण हेतु कभी प्रतिबंधित नहीं किया गया, किंतु आलोचक कहते है कि अनावश्यक लगी रोक से लाखों लोगों के प्राण गए हैं। फिर समस्या डीडीटी के कृषि क्षेत्र में व्यापक प्रयोग से हुई थी ना कि इसका प्रयोग जन स्वास्थय क्षेत्र में करने से।[३]
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मलेरिया प्रभावित क्षेत्रों में छिडकाव के लिए लगभग 12 दवाओं को मान्यता दी है। इनमें डीडीटी के अलावा परमैथ्रिन और डेल्टामैथ्रिन जैसी दवाएँ शामिल हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ मच्छर डीडीटी के प्रति रोधक क्षमता विकसित कर चुके है।[४] स्टॉकहोम कन्वेंशन डीडीटी के स्वास्थ्य-संबंधी सीमित प्रयोग की छूट देता है किंतु इसें खुले में कृषि कार्य हेतु प्रयोग लाना प्रतिबंधित है।[५]
हाल ही में एक कवक की खोज की गई है जो मच्छरों में एक जानलेवा बीमारी करती है और जिसके दीवारों पर छिड़काव से मच्छरों से छुटकारा मिल सकता है। अभी तक मच्छरों में इस फफूंद के प्रति प्रतिरोध क्षमता नहीं देखी गई है।[६]
मच्छरदानियाँ व अन्य उपाय
मच्छरदानियाँ मच्छरों को लोगों से दूर रखने में सफल रहती हैं तथा मलेरिया संक्रमण को काफी हद तक रोकती हैं। एनोफिलीज़ मच्छर चूंकि रात को काटता है इसलिए बड़ी मच्छरदानी को चारपाई/बिस्तर पे लटका देने तथा इसके द्वारा बिस्तर को चारों तरफ से पूर्णतः घेर देने से सुरक्षा पूरी हो जाती है। मच्छरदानियाँ अपने आप में बहुत प्रभावी उपाय नहीं हैं किंतु यदि उन्हें रासायनिक रूप से उपचारित कर दें तो वे बहुत उपयोगी हो जाती हैं। इस रसायन के संपर्क में आते ही मच्छर मर जाते है। उपचारित मच्छरदानियाँ अनोपचारित मच्छरदानियों से दोगुणी प्रभावी होती हैं और बिना मच्छरदानी के सोने के बजाय उनका प्रयोग करने से 70% ज्यादा सुरक्षा मिलती है।[७][८] कीटनाशी उपचारित मच्छरदानी के वितरण को मलेरिया नियंत्रण का बेहद सस्ता तथा प्रभावी उपाय माना जाता है इस प्रकार की एक सामान्य मच्छर दानी का मूल्य 2.50 डालर से 3.50 डालर रहता है। प्रभावित इलाकों में प्रायः संयुक्त राष्ट्र एंजेसी या कोई अन्य संस्था उनका वितरण करती है। अधिकतम सुरक्षा हेतु आवश्यक है कि हर छह महीनों में इन पर फिर से रसायन का लेप किया जाये, किंतु ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसा करना अकसर मुश्किल होता है। आजकल नवीन प्रौद्योगिकी से इस प्रकार की मच्छरदानी बन रही है जो पांच वर्ष तक कीटनाशी प्रभाव रखती है। इन मच्छरदानी के अन्दर सोने पर तो सुरक्षा मिलती ही है जो मच्छर इनके संपर्क में आते है वे भी तुरंत मर जाते है जिससे आस-पास सोए अन्य लोगों को भी कुछ सुरक्षा मिल जाती है। हाल ही के प्रयोगों से पता लगा है कि बिस्तर पर बिछी और ओढ़ने वाली चादरों को दवाओं से उपचारित करने पर भी मच्छरदानी जितनी सुरक्षा मिल जाती है।[९]
निरोधी दवाएँ
अनेक दवाएँ आमतौर पर जिनका उपयोग उपचार में होता है उनका प्रयोग निरोधक प्रभाव हेतु भी किया जा सकता है। निरोधी प्रभाव के लिए दवाओं की मात्रा उपचार से कम ही होती है। किंतु इनके दीर्घ काल प्रयोग से हानि होती है, इसलिए महामारी क्षेत्रों में ये कम ही प्रयोग में लाई जाती हैं या मिलती ही नहीं हैं। हाँ यदि आप किसी ज्वर ग्रस्त क्षेत्र में अस्थाई रूप से जा रहे हैं तो इनका प्रयोग कर सकते हैं। कुनैन को बहुत पहले से इस कार्य के लिए प्रयोग किया जाता रहा है, हालांकि आजकल इसका प्रयोग उपचार हेतु ज्यादा होता है। 18वीं शताब्दी में सैमुएल हैनीमेन ने होम्योपैथी के सिद्धांत का आविष्कार कुनैन के प्रभाव को देख कर ही किया था। आज कल मेफ्लोक्वीन, डॉक्सीसाइक्लीन, एटोवाक्वोन और प्रोग्वानिल हाइड्रोक्लोराइड नामक औषधियाँ इस प्रयोग में आ रही है। दवा चुनने से पूर्व क्षेत्र में सक्रिय परजीवी की दवा के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का ज्ञान होना चाहिए। हर दवा के दुष्प्रभाव भिन्न भिन्न होते हैं। ये प्रयोग करते ही प्रभाव डालना शुरू नहीं कर देती है कम से कम 1 -2 सप्ताह का समय लेती हैं, तथा इन्हें मलेरिया-ग्रस्त क्षेत्र छोड़ देने कुछ समय बाद तक लेते रहना पड़ता है।
टीकाकरण
मलेरिया के विरूद्ध टीके विकसित किये जा रहे है यद्यपि अभी तक सफलता नहीं मिली है। पहली बार प्रयास 1967 में चूहे पे किया गया था जिसे जीवित किंतु विकिरण से उपचारित बीजाणुओं का टीका दिया गया। इसकी सफलता दर 60% थी।[१०] उसके बाद से ही मानवों पर ऐसे प्रयोग करने के प्रयास चल रहे हैं। वैज्ञानिकों ने यह निर्धारण करने में सफलता प्राप्त की कि यदि किसी मनुष्य को 1000 विकिरण-उपचारित संक्रमित मच्छर काट लें तो वह सदैव के लिए मलेरिया के प्रति प्रतिरक्षा विकसित कर लेगा।[११] इस धारणा पर वर्तमान में काम चल रहा है और अनेक प्रकार के टीके परीक्षण के भिन्न दौर में हैं। एक अन्य सोच इस दिशा में है कि शरीर का प्रतिरोधी तंत्र किसी प्रकार मलेरिया परजीवी के बीजाणु पर मौजूद सीएसपी (सर्कमस्पोरोज़ॉइट प्रोटीन, circumsporozoite protein) के विरूद्ध एंटीबॉडी बनाने लगे।[१२] इस सोच पर अब तक सबसे ज्यादा टीके बने तथा परीक्षित किये गये हैं। एसपीएफ66 (अंग्रेजी: SPf66) पहला टीका था जिसका क्षेत्र परीक्षण हुआ, यह शुरू में सफल रहा किंतु बाद में सफलता दर 30% से नीचे जाने से असफल मान लिया गया। आज आरटीएस, एसएएस02ए (अंग्रेजी: RTS,S/AS02A) टीका परीक्षणों में सबसे आगे के स्तर पर है।[१३] आशा की जाती है कि पी. फैल्सीपरम के जीनोम की पूरी कोडिंग मिल जाने से नयी दवाओं का तथा टीकों का विकास एवं परीक्षण करने में आसानी होगी।[१४]
अन्य उपाय
मलेरिया-प्रभावित क्षेत्रों में मलेरिया के प्रति जागरूकता फैलाने से मलेरिया में 20 प्रतिशत तक की कमी देखी गई है। साथ ही मलेरिया का निदान और इलाज जल्द से जल्द करने से भी इसके प्रसार में कमी होती है। अन्य प्रयासों में शामिल है- मलेरिया संबंधी जानकारी इकट्ठी करके उसका बड़े पैमाने पर विश्लेषण करना और मलेरिया नियंत्रण के तरीके कितने प्रभावी हैं इसकी जांच करना। ऐसे एक विश्लेषण में पता लगा कि लक्षण-विहीन संक्रमण वाले लोगों का इलाज करना बहुत आवश्यक होता है, क्योंकि इनमें बहुत मात्रा में मलेरिया संचित रहता है।[१५]
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:cite journal
- ↑ साँचा:cite journal
- ↑ साँचा:cite journal
- ↑ Indoor Residual Spraying: Use of Indoor Residual Spraying for Scaling Up Global Malaria Control and Elimination. स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। World Health Organization, 2006.
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ "Fungus 'may help malaria fight' स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।", BBC News, 2005-06-09
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ साँचा:cite journal
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