बढ़ई

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बढ़ई
काष्ठकारी से सम्बन्धित औजार

बढ़ई या काष्ठकार(Carpenter) लकड़ी का काम करने वाले लोगों को कहते हैं। ये प्राचीन काल से समाज के प्रमुख अंग रहे हैं। घर व मंदिरो की आवश्यक काष्ठ की वस्तुएँ बढ़ई द्वारा बनाई जाती हैं। [१]

परिचय

वैदिक काल में इनका कर्म यज्ञ पात्र बनाना, मंदिरो को बनाना, मंदिरो में मूर्ति बनाना, । भारत में वर्णव्यवस्था बहुत प्राचीन काल से चल रही है। कार्य के अनुसार ही जातियों की उत्पत्ति हुई है। जैसे लकड़ी के काम करने वाले 'बढ़ई' कहलाए। प्राचीन व्यवस्था के अनुसार बढ़ई जीवन निर्वाह के लिए वार्षिक वृत्ति पाते थे। इनको मजदूरी के रूप में विभिन्न त्योहारों पर भोजन, फसल कटने पर अनाज तथा विशेष अवसरों पर कपड़े तथा अन्य सहायता दी जाती थी। इनका परिवार काम करानेवाले घराने से आजन्म संबंधित रहता था। आवश्यकता पड़ने पर इनके अतिरिक्त कोई और व्यक्ति काम नहीं कर सकता था। पर अब नकद मजदूरी देकर कार्य कराने की प्रथा चल hi bro the is fack

इनके ईस्ट देव भगवन विष्णुविश्वकर्मा है। विश्वकर्मा पूजा के शुभ अवसर पर ये अपने सभी यंत्र, औजार तथा मशीन साफ करके रखते हैं। घर की सफाई करते हैं। हवन इत्यादि करते हैं। कहते हैं, ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तथा विश्वकर्मा ने शिल्पों की। प्राचीन काल में उड़न खटोला, पुष्पक विमान, उड़नेवाला घोड़ा, बाण तथा तरकस और विभिन्न प्रकार के रथ इत्यादि का विवरण मिलता है जिससे पता चलता है कि काष्ठ के कार्य करनेवाले अत्यंत निपुण थे।

इनकी कार्यकुशलता वर्तमान समय के शिल्पियों से ऊँची थी। पटना के निकट बुलंदी बाग में मौर्य काल के बने खंभे और दरवाजे अच्छी हालत में मिले है, जिनसे पता चलता है कि प्राचीन काल में काष्ठ शुष्कन तथा काष्ठ परिरक्षण निपुणता से किया जाता था। भारत के विभिन्न स्थानों पर जैसे वाराणसी में लकड़ी की खरीदी हुई वस्तुएँ, बरेली में लकड़ी के घरेलू सामान तथा मेज, कुर्सी, आलमारी इत्यादि सहारनपुर में चित्रकारीयुक्त वस्तुएँ, मेरठ तथा देहरादून में खेल के सामान, श्रीनगर में क्रिकेट के बल्ले तथा अन्य खेल के सामान, मैनपुरी में तारकशी का काम, नगीना तथा धामपुर में नक्काशी का काम, रुड़की में ज्यामितीय यंत्र, लखनऊ में विभिन्न खिलौने बनते तथा हाथीदाँत का काम होता है।

वर्तमान समय में बढ़ईगीरी की शिक्षा आधुनिक ढंग से देने के लिए बरेली तथा इलाहाबाद में बड़े बड़े विद्यालय हैं, जहाँ इससे संबंधित विभिन्न शिल्पों की शिक्षा दी जाती हैं। बढ़ई आधुनिक यंत्रों के उपयोग से लाभ उठा सकें, इसके लिए गाँव गाँव में सचल विद्यालय भी खोले गए हैं।

इन्हें भी देखें

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