प्रभाकर
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प्रभाकर (७वीं शताब्दी) भारत के दार्शनिक एवं वैयाकरण थे। वे मीमांसा से सम्बन्धित हैं। उनके गुरु कुमारिल भट्ट थे। एक बार उनसे इनका शास्त्रार्थ हुआ था। इन्होंने गुरु के अभिहितान्वयवाद के विरुद्ध अन्विताभिधानवाद का सिद्धांत रखा। इससे प्रसन्न हो कर गुरु ने इनको भी गुरु की उपाधि दी।[१][२][३][४][५][६][७]
शाबरभाष्य पर प्रभाकर ने लघ्वी और बृहती नामक दो ग्रन्थों की रचना की। शालिकनाथ ने ८वीं शताब्दी में प्रभाकर के ग्रन्थों का भाष्य लिखा।