त्रिपुटिप्रत्यक्षवाद
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त्रिपुटिप्रत्यक्षवाद, प्रभाकर द्वारा प्रतिपादित दार्शनिक सिद्धान्त है। ज्ञाता, ज्ञान और ज्येय के समूह को 'त्रिपुटि' कहा जाता है। प्रभाकर के अनुसार, प्रत्येक ज्ञान की अभिव्यक्ति में इस त्रुपुटी का प्रत्यक्ष होता है। प्रभाकर के अनुसार ज्ञान स्वप्रकाश है। उसे अपनी अभिव्यक्ति के लिये किसी अन्य ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। अतः स्पष्ट है कि ज्ञान की उत्पत्ति और उसकी प्रामाणिकता के विषय में प्रभाकर स्वतःप्रामाण्यवाद को स्वीकार करते हैं, परतःप्रामाण्यवाद को नहीं। इनकी मान्यता है कि ज्ञान के प्रामाण्य को सिद्ध करने के लिये अन्य ज्ञान की कल्पना से अनावस्था दोष उत्पन्न होता है। ज्ञान स्वप्रकाश तो है किन्तु नित्य नहीं है क्योंकि ज्ञान आत्मा का आगन्तुक गुण है। अतः यह उत्पत्ति-विनाश-धर्मी है।