पदावली
पदावली विद्यापति द्वारा चौदहवीं सदी में रचा गया काव्य है। यह भक्ति और शृंगार का अनूठा संगम है। निराला ने पदावली की मादकता को नागिन की लहर कहा है। इसमें राधा और कृष्ण के प्रेम तथा उनके अपूर्व सौंदर्य चित्रों की भरमार है।
कुछ महत्वपूर्ण पदसमूह
१
ए सखि हामारि दुखेर नाहि ओर।
ए भरा बादर माह भादर शून्य मन्दिर मोर ॥३॥
झञझा घन गरजन्ति सन्तति भुबन भरि बरिखिन्तिया।
कान्त पाहुन काम दारुण सघने खर शर हन्तिया ॥७॥
कुशिल शत शत पात-मोदित मूर नाचत मातिया।
मत्त दादुरी डाके डाहुकी फाटि याओत छातिया ॥११॥
तिमिर भरि भरि घोर यामिनी थिर बिजुरि पाँतिया।
बिद्यापति कह कैछे गोङायबि हरि बिने दिन रातिया ॥१५॥
२
कि कहब रे सखि आनन्द ओर ।
चिरदिने माधब मन्दिरे मोर ॥
पाप सुधाकर यत दुख देल ।
पियमुख दरशने तत सुख भेल ॥
निर्धन बलिया पियार ना कैलु यतन ।
अब हाम जानलु पिया बड़ धन ॥
आँचल भरिया यदि महानिधि पाङ ।
तब हाम दूर देशे पिया ना पाठाङ ॥
शीतेर ओड़नि पिया गिरिसेर बाओ ।
बरिसार छत्र पिया दरियर नाओ ॥
भनये बिद्यापति शन बरनारी ।
सुजनक दुख दिबस दुइ चारि ॥
३
हाथक दरपण माथक फुल ।
नयनक अञ्जन मुखक ताम्बुल ॥
हृदयक मृगमद गीमक हार ।
देहक सरबस गेहक सार ॥
पाखीक पाख मीनक पानि ।
जीबक जीबन हाम ऐछे जानि ॥
तुहु कैछे माधब कह तुहुँ मोय ।
बिद्यापति कह दुहु दोहाँ होय ॥