नौसेना
नौसेना (Navy) किसी देश की संगठित समुद्री सेना को कहते हैं। इसके अंतर्गत रणपोत, क्रूज़र (cruiser), वायुयानवाहक, ध्वंसक, सुरंगें बिछाने तथा उन्हें नष्ट करने आदि के साधन एवं सैनिकों के अतिरिक्त, समुद्रतट पर निर्माण, देखभाल, पूर्ति तथा प्रशासन, कमान, आयोजन और अनुसंधान संस्थान भी सम्मिलित हैं। इस प्रकार नौसेना सरकार के सीधे नियंत्रण में स्थित सैनिक संगठन है, जिसके प्रशासन के लिए सरकार पृथक् विभागों की स्थापना करती है।
नौशक्ति का उद्देश्य सैनिक और वाणिज्य की दृष्टि से समुद्री मार्ग का नियंत्रण करना है। नौसेना ऐसा साधन है जिससे राष्ट्र समुद्र के उपयोग पर अपना अधिकार तो रखते हैं, परंतु शत्रु को इस उपयोग से वंचित रखते हैं। नौसेना में अब वायुयान और नियंत्रित प्रक्षेप्यास्त्रों (guided missiles) का समावेश हो गया है, जिनसे शत्रु के देश के सुदूर आंतरिक भूभाग पर भी प्रहार किया जा सकता है।
इतिहास
प्राचीन समय में नौसेना किसी जाति या नगर के सशस्त्र लोगों के झुंड के रूप में थी, जो बड़ी-बड़ी नौकाओं या जहाजों में समुद्र मार्ग से दूसरे की भूमि पर आक्रमण करती थी। इन्हीं जहाजों से व्यापार, मछली पकड़ना, युद्ध और समुद्री लूटपाट तक की जाती थी। युद्ध के निमित्त विशेष प्रकार के जहाजों का निर्माण अपवाद के रूप में ही होता था।
आधुनिक नौसेना का जन्मस्थान भूमध्यसागरीय देश हैं। क्रीट (Crete) के राजाओं ने इतिहास के प्रभात काल में ही समुद्री सेना संगठित कर ली थी और फलस्वरूप भूमध्यसागर उनके नियंत्रण में था। ऐतिहासिक प्रमाणों से ज्ञात होता है कि सरकार द्वारा समर्थित नौसेना सबसे पहले एथेंस (Athens) में थी। बाद में विस्तारवादी राष्ट्रों में एथेंस की समुद्री शक्ति नष्ट कर दी, जिससे कुछ वर्षों बाद जेनोआ, हॉलैंड और जर्मनी में समुद्री शक्ति के प्रभावशाली प्रयोग के लिए अड्डे बने।
उत्तरी अफ्रीका में फीनीशियनों के उपनिवेश कार्थेज (Carthage) का अड्डा समकालीन शक्तिशाली रोम के लिए भी अजेय था। युद्धों में रोम ने अपने शत्रु कार्थेज से नौसैनिक चातुरी सीख ली और इस प्रकार रोमन नौसेना का जन्म हुआ। उन दिनों का एकमात्र नौसैनिक अस्र लकड़ी का दुरमुस (ram) था, जिसमें लोहा जड़ा होता था और जिसे पानी के अंदर अंदर चलाकर शत्रु के जहाज को नष्ट किया जाता था। जब दुरमुस चलाने की स्थिति नहीं होती थी तब जहाज के डेक पर से सशस्त्र सैनिक लड़ते थे।
17वीं, 18वीं और 19वीं शताब्दियों में नौसेना का विकास मंद गति से होता रहा। जहाजों को अधिक से अधिक बड़ा बनाने का प्रयास किया गया। 17वीं शताब्दी के मध्यकाल में जहाजों पर 50-60 तोपें होती थीं। 18वीं शताब्दी बीतते बीतते यह संख्या लगभग दूनी हो गई और इंग्लैंड, फ्रांस, अमरीका, स्पेन तथा कुछ अन्य देशों में नौसेना विभाग की स्थापना हो गई।
19वीं शताब्दी में नौसैनिक शक्ति की दृष्टि से ब्रिटेन सबसे प्रबल था। इसकी नौसैनिक शक्ति फ्रांस और रूस की सम्मिलित शक्ति के बराबर थी। गृहयुद्ध के समय अमरीका ने कवचित जहाजों का निर्माण कर लिया, जिससे कुछ समय तक वह सबसे प्रबल नौसेनावाला राष्ट्र रहा।
20वीं शताब्दी में अनेक देशों ने अपनी नौसैनिक शक्ति बढ़ाई, जिनमें जर्मनी, जापान और अमरीका प्रमुख थे। प्रथम विश्वयुद्ध (1914-1918) में जर्मनी और ब्रिटेन में अनेक नौसैनिक संघर्ष हुए। ब्रिटेन की शक्ति ने जर्मनी को बाइट ऑव हेगोलोलैंड (Bight of Helogoland) तक सीमित रखा, किंतु जर्मनी ने पनडुब्बी का इतना सफल प्रयोग किया कि मित्र राष्ट्रों की सम्मिलित शक्ति भी लगभग व्यर्थ सी हो गई। युद्ध की समाप्ति तक जर्मनी के बेड़े ने आत्मसमर्पण कर दिया और कुछ समय के लिए जर्मन नौशक्ति निष्क्रिय हो गई।
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 20 वर्षों तक ब्रिटेन की नौशक्ति सबसे प्रबल रही। इन वर्षों में जापान, अमरीका और जर्मनी ने भी अनी शक्तियों का विकास किया। द्वितीय विश्वयुद्ध में जहाजों से युद्ध कम हुआ। नौसैनिक युद्ध अधिकांश वायुयानों और पनडुब्बियों से लड़ा गया। जर्मनी ने पनडुब्बियों के धुआँधार प्रयोग से ब्रिटेन को नीचा दिखाने की कोशिश की, परंतु मित्र राष्ट्रों के पनडुब्बीमार साधनों के कारण ऐसा नहीं हो सका। युद्ध के अंत में जर्मनी, इटली और जापान नौशक्तिविहीन हो गए। फ्रांस भी बहुत दुर्बल हो गया और अमरीका की शक्ति ब्रिटेन से द्विगुणित हो गई।
भारतीय नौसेना
सन् 1613 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी की युद्धकारिणी सेना के रूप में इंडियन मेरीन संगठित की गई। 1685 ई. में इसका नामकरण "बंबई मेरीन" हुआ, जो 1830 ई. तक चला। 8 सितंबर 1934 ई. को भारतीय विधानपरिषद् ने भारतीय नौसेना अनुशासन अधिनियम पारित किया और रॉयल इंडियन नेवी का प्रादुर्भाव हुआ। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय नौसेना का विस्तार हुआ और अधिकारी तथा सैनिकों की संख्या 2,000 से बढ़कर 30,000 हो गई एवं बेड़े में आधुनिक जहाजों की संख्या बढ़ने लगी।
स्वतंत्रताप्राप्ति के समय भारत की नौसेना नाम मात्र की थी। विभाजन की शर्तों के अनुसार लगभग एक तिहाई सेना पाकिस्तान को चली गई। कुछ अतिशय महत्व के नौसैनिक संस्थान भी पाकिस्तान के हो गए।
भारत सरकार ने नौसेना के विस्तार की तत्काल योजना बनाई और एक वर्ष बीतने के पहले ही ग्रेट ब्रिटेन से 7, 030 टन का क्रूजर "दिल्ली" खरीदा। इसके बाद ध्वंसक "राजपूत", "राणा", "रणजीत", "गोदावरी", "गंगा" और "गोमती" खरीदे गए। इसके बाद आठ हजार टन का क्रूजर खरीदा गया। इसका नामकरण "मैसूर" हुआ।
1964 ई. तक भारीय बेड़े में वायुयानवाहक, "विक्रांत" (नौसेना का ध्वजपोत), क्रूजर "दिल्ली" एवं "मैसूर" दो ध्वंसक स्क्वाड्रन तथा अनेक फ्रिगेट स्कवाड्रन थे, जिनमें कुछ अति आधुनिक पनडुब्बीनाशक तथा वायुयाननाशक फ्रिगेट सम्मिलित किए जा चुके थे। "ब्रह्मपुत्र", "व्यास", "बेतवा", "खुखरी," "कृपाण", "तलवार" तथा "त्रिशूल" नए फ्रिगेट हैं, जिनका निर्माण विशेष रीति से हुआ है। "कावेरी", "कृष्ण" और "तीर" पुराने फ्रिगेट हैं जिनका उपयोग प्रशिक्षण देने में होता है। "कोंकण", "कारवार", "काकीनाडा" "कणानूर", "कडलूर", "बसीन" तथा "बिमलीपट्टम" से सुंरग हटानेवाले तीन स्क्वाड्रन तैयार किए गए हैं।
छोटे नौसैनिक जहाजों के नवनिर्माण का कार्य प्रारंभ हो चुका है और तीन सागरमुख प्रतिरक्षा नौकाएँ, "अजय", "अक्षय" तथा "अभय" और एक नौबंध "ध्रुवक" तैयार हो चुके हैं। कोचीन, लोणावला, तथा जामनगर में भारतीय नौसेना के प्रशिक्षण संस्थान हैं।
बाहरी कड़ियाँ
- सामान्य
- A Cooperative Strategy for 21st Century Seapower
- NavyCS.com Navy benefits - clip art
- Military.com
- Military Search
- Naval & Maritime page of the World Wide Web Virtual Library
- NOSI (Naval Open Source Intelligence) - a digital library of world naval operational news, curated from
open source intelligence, and intended to serve as a source of continuing education on naval and military affairs
- Haze Gray & Underway
- Historical Handbook of World Navies (under construction)