वायुयान

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शिवकर बापूजी तलपदे (१८६४ - १७ सितम्बर १९१७) एक भारतीय विद्वान थे। माना जाता है कि १८९५ में उन्होने मानवरहित विमान का निर्माण किया था। के निर्माता होना माना जाता है। वे मुम्बई के निवासी थे तथा संस्कृत साहित्य एवं चित्रकला के अध्येता थे।

शिवकर बापूजी तलपदे Shivkar Talpade.jpg शिवकर बापूजी तलपदे जन्म 1864 मुम्बई मृत्यु 1916 राष्ट्रीयता भारतीय शिक्षा सर जे जे कला विद्यालय, मुम्बई शिवकर ने ई. 1922 में एक प्रयोगशाला स्थापित किया और वेदमन्त्रों के आधार पर आधुनिक काल में पहला वैदिक मॉडल निर्माण किया जिसे बिमान बता कर उड़ा दिया गया। [4] इसका परीक्षण सन् 1922ई. में मुंबई के चौपाटी समुद्र तट पर किया गया था । [5] परन्तु उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार विमान उड़ाने के पहला प्रयास सन् १९१५ से सन् 1934 ई। के मध्य में हुआ था। [6] शिवकर ने ई. १९१६ में पं. सुब्रह्मण्ययम शास्त्री से महर्षि भरद्वाज की यन्त्रसर्वस्व - वैमानिक प्रकरण ग्रन्थ का अध्ययन कर ‘मरुत्सखा’ विमान का निर्माण आरंभ किया। किन्तु लम्बी समय से चल रही अस्वस्थता के कारण दि. १७ सितम्बर १९१७ को उनका स्वर्गवास हुआ एवं ‘मरुत्सखा’ विमान निर्माण का कार्य अधूरा रह गया। [7]

इतिहास

संग्रहालय में रखे पुराने विमान (नेशनल म्युजियम ऑफ एयर ऐण्ड स्पेस, वाशिंगटन डीसी)

आधुनिक वायुयान को सबसे पहले राइट बंधुओं ने बनाया था। विल्वर और ओरविल में केवल चार साल का अंतर था। जिस समय उन्हें हवाई जहाज बनाने का ख्याल आया, उस समय विल्वर सिर्फ 11 साल का था और ओरविल की उम्र थी 7 साल। हुआ यूं कि एक दिन उनके पिता उन दोनों के लिए एक उड़ने वाला खिलौना लाए। यह खिलौना बांस, कार्क, कागज और रबर के छल्लों का बना था। इस खिलौने को उड़ता देख विल्वर और ओरविल के मन में भी आकाश में उड़ने का विचार आया। उन्होंने निश्चय किया कि वे भी एक ऐसा खिलौना बनाएंगे।

इसके बाद वे दोनों एक के बाद एक कई मॉडल बनाने में जुट गए। अंतत: उन्होंने जो मॉडल बनाया, उसका आकार एक बड़ी पतंग सा था। इसमें ऊपर तख्ते लगे हुए थे और उन्हीं के सामने छोटे-छोटे दो पंखे भी लगे थे, जिन्हें तार से झुकाकर अपनी मर्जी से ऊपर या नीचे ले जाया जा सकता था। बाद में इसी यान में एक सीधी खड़ी पतवार भी लगायी गयी। इसके बाद राइट भाइयों ने अपने विमान के लिए 12 हॉर्सपावर का एक diesel इंजन बनाया और इसे वायुयान की निचली लाइन के दाहिने और निचले पंख पर फिट किया और बाईं ओर पायलट के बैठने की सीट बनाई।

राइट बंधुओं के प्रयोग काफी लंबे समय तक चले। तब तक वे काफी बड़े हो गये थे और अपने विमानों की तरह उनमें भी परिपक्वता आ गयी थी। आखिर में 1903 में 17 दिसम्बर को उन्होंने अपने वायुयान का परीक्षण किया। पहली उड़ान ओरविल ने की। उसने अपना वायुयान 36 मीटर की ऊंचाई तक उड़ाया। इसी यान से दूसरी उड़ान विल्वर ने की। उसने हवा में लगभग 200 फुट की दूरी तय की। तीसरी उड़ान फिर ओरविल ने और चौथी और अन्तिम उड़ान फिर विल्वर ने की। उसने 850 फुट की दूरी लगभग 1 मिनट में तय की। यह इंजन वाले जहाज की पहली उड़ान थी। उसके बाद नये-नये किस्म के वायुयान बनने लगे। पर सबके उड़ने का सिद्धांत एक ही है।

वायुयान के विभिन्न प्रकार

Airfoil having extended by a few degrees flaps

मुख्य रूप से वायुयानों को दो वर्गों में बांटा जा सकता है:

  • हवा से हल्के (एरोस्टैट्स)
  • हवा से भारी (एरोडाइन्स)

एरोस्टैट्स

एरोस्टैट्स, हवा में उडने के लिये उत्प्लावन बल (bouancy) का सहारा लेते हैं। (ठीक उसी तरह जैसे पानी में लोहे का बना जलयान (शिप) तैरता है)

एरोडाइन्स

हवा से भारी वायुयान, किसी ऐसी युक्ति का प्रयोग करते हैं जिससे हवा या गैस को नीचे की तरफ दबाकर वे अपने भार के बावजूद हवा में तैरते रह सकते हैं।

एरोडाइन्स के भी अनेक प्रकार होते हैं:

एरोप्लेन (विमान)

तकनीकी रूप से इन्हें fixed-wing aircraft कहा जाता है।

रोटोक्राफ्ट

रोटोक्राफ्ट या रोटोरक्राफ्ट में घूर्णन करने वाले पंखे (रोटर) लगे होते हैं। इन पंखों के ब्लेड एरोफ्वायल सेक्शन वाले होते हैं। हेलिकाप्टर, आटोगाइरो आदि इसके उदाहरण हैं। it flying with deasel engine

वायुयान का घूर्णन मुख्यतः तीन अक्षों के परितः हो सकता है, जिन्हें रोल, पिच तथा 'या' कहते हैं।

उपयोग के आधार पर वायुयानों का वर्गीकरण

  • सैन्य वायुयान
  • नागरिक वायुयान

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

इतिहास

सूचना और ज्ञान