नील विद्रोह

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
बंगाल में नील का एक कारखाना
बंगाल में नील के एक कारखाने का दृष्य (१८६७)
उत्तर चौबीस परगना जिले के मङ्गलगञ्ज की नीलकुठि (नील का कारखाना)
बंगलादेश के भाटपाड़ा की नीलकुठी

नील विद्रोह किसानों द्वारा किया गया एक आन्दोलन था जो बंगाल के किसानों द्वारा सन् 1859 में किया गया था। किन्तु इस विद्रोह की जड़ें आधी शताब्दी पुरानी थीं, अर्थात् नील कृषि अधिनियम (indigo plantation act) का पारित होना। इस विद्रोह के आरम्भ में नदिया जिले के किसानों ने 1859 के फरवरी-मार्च में नील का एक भी बीज बोने से मना कर दिया। यह आन्दोलन पूरी तरह से अहिंसक था तथा इसमें भारत के हिन्दू और मुसलमान दोनो ने बराबर का हिस्सा लिया। सन् 1860 तक बंगाल में नील की खेती लगभग ठप पड़ गई। सन् 1860 में इसके लिए एक आयोग गठित किया गया।

बीसवीं शताब्दी में

बिहार के बेतिया और मोतिहारी में 19०5-०8 तक उग्र विद्रोह हुआ। ब्लूम्सफिल्ड नामक अंग्रेज की हत्या कर दी गई जो कारखाने का प्रबन्धक था। अन्ततः 1917-18 में गांधीजी के नेतृत्व में चम्पारन सत्याग्रह हुआ जिसके फलस्वरूप 'तिनकठिया' नामक जबरन नील की खेती कराने की प्रथा समाप्त हुई। 'तिनकठिया' के अन्तर्गत किसानोंसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link] को 3/2० (बीस कट्ठा में तीन कट्ठा) भूभाग पर नील की खेती करनी पड़ती थी जो जमींदारों द्वारा जबरदस्ती थोपी गई थी।

'नील विद्रोह (चंपारन विद्रोह)— सर्वप्रथम यह विद्रोह बंगाल 1859—61 में शुरू हुआ था, पूर्व में भी इस विद्रोह को भारतीयों द्वारा कुचल दिया गया था। जब गांधी जी ने चंपारन विद्रोह किया तो पाया कि वहां के किसानोंसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link] को ब्रिटिश सरकार जबरन 15 प्रतिशत भूभाग पर नील की खेती करने के लिए बाघ्य कर रही थी, तथा 20 में से 3 कट्टे किसानों द्वारा यूरोपीयन निलहों को देना होता था जिसे आज हम तिनकठिया प्रथा के रूप में भी जानते हैं। भारतीय किसान, जिसकी दशा पहले से ही बहुत खराब थी, एैसी विषम परिस्थितियों में ब्रिटिश सरकार की यह हुकुमत उनके लिए परेशानी का सबब बन गयी। जब 1917 में गांधी जी एैसी विषम परिस्थितियों से अवगत हुए तो उन्होने बिहार जाने का फैसला कर दिया। गांधी जी मजरूल हक, नरहरि पारीख, राजेन्द्र प्रसाद एवं जे0 बी0 कृपलानी के साथ बिहार गये और ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ अपना पहला सत्याग्रह प्रदर्शन कर दिया। ब्रिटिश सरकार ने उनके खिलाफ उन्हे वहां से निकालने का फरमान जारी किया किन्तु गांधी जी और उनके सहयोगी वहीं जुटे रहे और अन्तत: ब्रिटिश हुकुमत ने अपना आदेश वापिस लिया और गांधी जी द्वारा निर्मित समिति से बात करने के लिए सहमत हो गयी। फलत: गांधी जी ने बिहार (चंपारन) के किसानों की दयनीय परिस्थितियों से इस प्रकार शासन को अवगत करवाया की वह मजबूरन इस प्रकार के कृत्य को रोकने के लिए मजबूर हो गये।

सन्दर्भ

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

साँचा:navbox

साँचा:asbox