नरहरि परीख

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
नरहरि परीख
स्थानीय नामનરહરિ દ્રારકાદાસ પરીખ
जन्मसाँचा:br separated entries
मृत्युसाँचा:br separated entries
मृत्यु स्थान/समाधिसाँचा:br separated entries
व्यवसायलेखक, कार्यकर्ता एवं समाज सुधारक
भाषागुजराती
राष्ट्रीयताभारतीय
शिक्षा
  • कला स्नातक
  • विधि स्नातक
साहित्यिक आन्दोलनभारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन
उल्लेखनीय कार्यs
  • मानव अर्थशास्त्र (1945)
  • महादेवभाईनु पूर्वचरित (1950)
जीवनसाथीमनिबेन
सन्तानवनमाला (पुत्री)
मोहन (पुत्र)

साँचा:template otherसाँचा:main other

नरहरि द्वारकादास परीख (साँचा:lang-gu ; जन्म- 7 अक्टूबर, 1891, अहमदाबाद, गुजरात; मृत्यु- 1957) भारत के एक लेखक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और समाजसुधारक थे।[१] गांधीजी के कार्यों और व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन्होने अपना सारा जीवन गांधीजी से जुड़े संस्थानों के साथ बिताया। गाँधीजी ने अपनी वसीयत में महादेव देसाई और नरहरि परीख को अपना ट्रस्टी नियुक्त किया था। वर्ष 1937 में प्रथम कांग्रेस मंत्रिमंडल बनने पर नरहरि परीख को बुनियादी शिक्षा बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त बनाया गया। नरहरि परीख को एक अच्छे लेखक के रूप में भी जाना जाता था। उन्होंने कई जीवनियाँ भी लिखी थीं। उन्होंने आत्मकथाएँ लिखीं, अपने सहयोगियों की रचनाएँ संपादित कीं और कुछ कृतियों का अनुवाद किया। उनका लेखन गांधीवाद को प्रतिबिंबित करता है।

जन्म तथा शिक्षा

नरहरि परीख का जन्म 7 अक्टूबर, 1891 ई. को गुजरात के अहमदाबाद में हुआ था। उनका परिवार कथलाल (अब खेड़ा जिले में) से था। उन्होंने अहमदाबाद में अध्ययन किया और 1906 में मैट्रिक उतीर्ण किया। 1911 में उन्होंने 'गुजरात कॉलेज' से इतिहास और अर्थशास्त्र में बीए किया तथा कला स्नातक और फिर मुम्बई से क़ानून की डिग्री प्राप्त की।

1913 में उन्होंने अपने मित्र महादेव देसाई के साथ वकालत आरम्भ की। वर्ष 1915 में जब महात्मा गाँधी के दक्षिण अफ़्रीका से लौटकर भारत आये, तब महादेव देसाई तथा नरहरि पारिख उनसे मिलने पहुँचे और सदा के लिए उनके अनुयायी हो गए। 1916 में, उन्होंने अपना अभ्यास छोड़ दिया और महात्मा गांधी के साथ सामाजिक सुधार आंदोलनों और बाद में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए।

उन्होंने अस्पृश्यता, शराब और अशिक्षा के खिलाफ अभियान चलाया। उन्होंने महिलाओं के लिए स्वतंत्रता, स्वच्छता, स्वास्थ्य देखभाल और भारतीयों द्वारा संचालित स्कूलों के लिए भी काम किया। वे 1917 में जेल से छूटने पर नरहरि परीख 'साबरमती आश्रम' में काका कालेलकर, किशोरी लाल मशरूवाला आदि के साथ राष्ट्रीय शाला में अध्यापक का काम करने लगे। कुछ दिन तक आश्रम में रहने के बाद नरहरि चम्पारन पहुंचे, जहाँ गाँधीजी 'सत्याग्रह' करने वाले थे।

वर्ष 1920 में जब 'गुजरात विद्यापीठ' की स्थापना हुई तो इन्हें आश्रम से वहाँ भेज दिया गया। वे बाद में वहाँ के उपकुलपति बनाये गए। इस बीच नरहरि परीख ने प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में नए प्रयोग किए। उन्होंने हरिजन आश्रम का प्रबंधन भी किया।

1928 ई. में उन्होंने सरदार पटेल के साथ 'बारदोली सत्याग्रह' में भाग लिया। घरसाना के 'नमक सत्याग्रह' में सम्मिलित होने पर नरहरि परीख को लाठियों से पीटा गया और तीन वर्ष की कैद की सज़ा हुई।

1937 में प्रथम कांग्रेस मंत्रिमंडल बनने पर पारिख को 'बुनियादी शिक्षा बोर्ड' का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। 1940 में वे 'सेवाग्राम' के 'ग्राम सेवक विद्यालय' के प्राचार्य भी बनाये गए थे। वे कुछ वर्षों तक गांधी के सचिव रहे। उन्होंने नवजीवन ट्रस्ट के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया था।

महात्मा गाँधी के आगा ख़ाँ महल से छूटने के बाद नरहरि पारिख कुछ दिन तक उनके निजी सचिव भी रहे। गांधी की मृत्यु के बाद, उनकी अस्थियों को साबरमती नदी में विसर्जित करने से पहले अहमदाबाद में उनकी हवेली में रखा गया था।

उन्हें 1947 में पक्षाघात का दौरा पड़ा लेकिन वे बच गए। 15 जुलाई 1957 को पक्षाघात और हृदयगति रुकने के बाद बारदोली के स्वराज आश्रम में उनका निधन हो गया।

कृतियाँ

नरहरि परीख एक अच्छे लेखक के रूप में भी जाने जाते थे। उन्होंने किशोरी लाल मशरूवाला, महादेव देसाई और सरदार पटेल की जीवनियाँ लिखी थीं। 'महादेव भाई की डायरी' के संपादन का श्रेय भी उनको ही जाता है।

उन्होंने अपने सहयोगियों पर कुछ आत्मकथाएँ लिखीं; महादेव देसाई पर महादेव देसाई (1950), वल्लभभाई पटेल पर सरदार वल्लभभाई भाग 1-2 (1950, 1952) और किशोरीलाल मशरूवाला पर श्रेयरथिनी साधना (1953)। 'मानव अर्थशास्त्र' (1945) मानव अर्थशास्त्र पर उनकी कृति है। शिक्षा, राजनीति और गांधीवादी विचार पर उनकी रचनाओं में सामवेद और सर्वोदय (1934), वर्धा केल्वीनो प्रयाग (1939), यन्तरानी मेरीदा (1940) शामिल हैं।

उन्होंने 'नामवर गोखलेना भाषानो' (1918), गोविन्दगमन' (1923, रामनारायण वी पाठक), करंदियो (1928), नवलग्रंथावली (1937), महादेवभनी डायरी भाग 1-7 (1948-50), सरदार वल्लभभान भासो, 1949 का सम्पादन किया। । बी0 ए0 अम्बालाल सकरालना भाषानो (1949), गांधीजिनु गीतशिक्षण (1956)।

उन्होंने महादेव देसाई के साथ रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कुछ कृतियों का अनुवाद किया जैसे चित्रांगदा (1916), विदेह अभिषाप (1920), प्राची साहित्य (1922)। उन्होंने लेव तालस्तॉय की कुछ कृतियों का अनुवाद भी किया; जट माजुरी कर्णारोन (1924) और टायरारे करिशु शू? (1925-1926)।

उन्होंने मनीबेन से विवाह किया और उनकी बेटी वनमाला और बेटा मोहन (जन्म 24 अगस्त 1922) था। वनमाला परीख ने सुशीला नय्यर के साथ कस्तूरबा गांधी, अमारा बा (1945) की जीवनी लिखी।

सन्दर्भ