नरभक्षी बाघ
बाघ एक वन्य जीव है और सामान्यतौर पर मानवों पर हमला नहीं करता है। बाघ द्वारा मानव भक्षण की घटनाये आम तौर पर उसी हालात में होती है जब बाघ वन्य प्राणियो का शिकार करने में असमर्थ हो जाय इस परिस्थिति में भी आम तौर पर बाघ पालतू पशुओ के शिकार तक ही सीमित रहता है लेकिन इस दौरान उसे यदि मनुष्य के शिकार का आसान अवसर प्राप्त हो जाय तो फ़िर बाघ अक्सर केवल मनुष्य के शिकार का आदी हो जाता है। ऐसी दशा में बाघों को नरभक्षी या आदमखोर की संज्ञा देते हैं।
बाघ और मानव में संबंध
बाघ को आरंभ से ही एक विशिष्ट सामाजिक स्थिति प्राप्त रही है। विशेषतौर पर इसके निडर स्वभाव और राजसी डील-डौल के कारण इसे शीर्ष वनचरों में गिना जाता है। जहां एक ओर मनुष्य ने सदा से बाघ को वीरता और देवत्व के भाव से देखा है वही बाघों ने भी मनुष्य को सदैव अपनी प्राकृतिक भोजन श्रृंखला से परे एक जीव के तौर पर रखा है। ऐसा नहीं है कि मनुष्य और बाघों के बीच टकराव नहीं होता आया है पर यह टकराव विशेष परिस्थितियों में ही होता है। अमूमन यह टकराव दोनों के अचानक सामने आ जाने पर ही होता है और इस टकराव का घातक परिणाम सामने आने पर भी अधिकांश घटनाओं में बाघ मनुष्य को घायल या उसके शरीर को क्षतविक्षत करके छोड़ देता है।
बाघों के बारे में प्रचलित मिथक
लोकमानस में बाघों के बारे में अनेक किवंदंतियां प्रसिद्ध हैं। बाघ के शरीर के विभिन्न अंगो, अस्थियों, दातों और खाल से संबंधित विभिन्न भ्रांतियां भी प्रचलित हैं। विभिन्न लोक साहित्यों और जनजातियों में बाघ को देवता के रूप में निरूपित किया गया है और इसकी पूजा भी होती है।
नरभक्षी बाघों का व्यवहार
आदमखोर बाघों का व्यवहार बहुत कुछ उनके स्वभाव पर निर्भर करता है पर हर एक सीरियल किलर की तरह वे भी एक निश्चित पैटर्न में ही हत्याएं करते हैं। विशेषज्ञों और वन विभाग के रेकार्ड के अनुसार कभी कभी नरभक्षी बाघों के व्यवहारों में एक विशेषता देखने को मिलती है। बांदीपुर जंगल का नरभक्षी बाघ अधिकांशतः बैलगाड़ी चालको को ही अपना निशाना बनाता था इसी तरह डाक रनरो पर भी उनकी घंटी की विशेष आवाज के कारण आदमखोर बाघ अपना शिकार बना लेते थे। कोडरमा का नरभक्षी बाघ लकड़ी काटने की आवाज से आकर्षित होकर लकड़्हारों पर हमला कर देते था। नरभक्षी बाघ आमतौर पर बगल से या पीछे से हमला करते है और शिकार के पास पलटवार करने का कोई मौका नहीं होता है।
बाघों के नरभक्षी बनने के कारण
बाघों के नरभक्षी व्यवहार उनका सामान्य व्यवहार नहीं है। इसके लिए मुख्य रूप से वन्य स्थानों में अनुचित और अंधाधुंध मानवीय दखल जिम्मेदार है। जंगल का प्रतिशत तेजी से कम हो रहा है और बाघों के प्राकृतिक आवास पर मानव दखलअंदाजी की बढती जा रही है। ऐसी स्थिति में बाघ अपने भोजन और निवास के लिए अपने प्राकृतिक निवास और स्वभाव का परित्याग कर के मानवीय सीमा में चले आते हैं। मानव रक्त का स्वाद चखने के बाद सामान्य तौर पर बाघ इसे पसंद करने लगते हैं और अपने आदत में शुमार कर लेते हैं। इसके अलावा किसी बिमारी से पीड़ित होने पर या बूढा और अशक्त होने पर जब बाघ तेजी से भाग कर शिकार नहीं कर पाते तब उनके नरभक्षी बनने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। जब कोई बाघ नरभक्षी घोषित कर दिया जाता है तो मानवों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उसे मार दिया जाता है या बेहोश कर के पकड़ लिया जाता है और फिर उसे किसी चिड़ियाघर में रखते हैं।