खाद्य शृंखला
खाद्य शृंखला में पारिस्थितिकी तन्त्र के विभिन्न जीवों की परस्पर भोज्य निर्भरता को प्रदर्शित करते हैं। किसी भी पारिस्थितिकी तन्त्र में कोई भी जीव भोजन के लिए सदैव किसी दूसरे जीव पर निर्भर होता है। भोजन के लिए सभी जीव वनस्पतियों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर होते हैं। वनस्पतियां अपना भोजन प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा बनाती हैं। इस भोज्य क्रम में पहले स्तर पर शाकाहारी जीव आते हैं जो कि पौधों पर प्रत्यक्ष रूप से निर्भर होते हैं। इसलिए पौधों को उत्पादक या स्वपोषी और जन्तुओं को 'उपभोक्ता' की संज्ञा देते हैं।
उत्पादक
सभी प्रकाश संश्लेषण करने वाले पौधे उत्पादक की श्रेणी में आते हैं। ऐसे पौधे प्रकाश, कार्बन डाइ-ऑक्साइड और जल की सहायता से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा भोजन का निर्माण करते हैं। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया हेतु पौधों का क्लोरोफिल (हरित लवक) पाया जाता है। क्लोरोफिल पौधों के हरे रंग के लिए भी उत्तरदायी होता है।
उपभोक्ता
सभी जन्तु उपभोक्ता की श्रेणी में आते हैं। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वनस्पतियों पर निर्भर होने के कारण इन्हें उपभोक्ता कहा जाता है। भोज्य निर्भरता के आधार पर इन्हें आगे श्रेणियों में बाँटा गया है।
प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता
सभी शाकाहारी जन्तु प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता होते हैं। शाकाहारी जन्तु वनस्पतियों का भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं। उदाहरण के लिए - खरगोश, गाय, भैस, बकरी, हिरण, चूहा, बन्दर, हाथी, जिराफ, नीलगाय आदि।
द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता
वे सभी जन्तु जो भोजन के लिए प्रथम श्रेणी के उपभोक्ताओं पर निर्भर होते हैं उन्हें द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ताओं के वर्ग में रखते हैं। ये मांसाहारी होते हैं। उदारण के लिए - मेढक, मछलियाँ, कीट पतंगों को खाने वाले पक्षी और जन्तु, छिपकली इत्यादि।
जैसे शेर चीता भेड़िया आदि बकरी,हिरण,खरगोश का शिकार करते हैं।
तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता
वे सभी जन्तु जो भोजन के लिए द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ताओं पर निर्भर होते हैं उन्हें शीर्ष श्रेणी के उपभोक्ता कहते हैं। जैसे - बाज, गिद्ध, शेर, भालू इत्यादि।
अपघटक
अपघटक सूक्ष्म जीव होते हैं जो कि सभी मृत जीवों (वनस्पतियों और जन्तुओं) को उनके पार्थिव अवयवों में तोड़ देते हैं। अपघटन की प्रक्रिया मृत्यु के बाद शुरू हो जाती है जिसे सामान्य तौर पर सड़ने के तौर पर देखा जाता है।