जमुदी का सूर्यवंश
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जमुदी का सूर्यवंश को जमुदिया सूर्यवंश या Jamudi's Suryavanshi के नाम से भी जाना जाता है। यह वंश प्राचीन सूर्य वंश की एक शाखा है। इस वंश के मूल संस्थापक महाराजा मनु है और इस वंश में कई प्रतापी राजा हुए हैं। इनकी प्रारंभिक राजधानी अयोध्या थी। इसमें प्रतापी राजा इक्ष्वाकु हुए इस कारण इसे इक्ष्वाकु वंश भी कहते हैं। सूर्यवंश मे महान राजा रघु हुए,जिस कारण इसे रघुवंश भी कहा जाता है। सूर्यवंश की 63 वीं पीढ़ी में भगवान श्रीराम हुए। भगवान श्री राम के पुत्र कुश हुए। सूर्यवंश की 138 वीं पीढ़ी में गौतम बुद्ध हुए जिन्होंने बौद्ध धर्म की स्थापना की थी। सूर्यवंश की 146 वीं पीढ़ी में चंद्रगुप्त मौर्य हुए। चंद्रगुप्त मौर्य के पौत्र चक्रवर्ती सम्राट अशोक हुए जिनका साम्राज्य ईरान इराक तक फैला हुआ था। सूर्यवंश की 217 वीं पीढ़ी में चित्रांगद मौर्य हुए जिन्होंने चित्तौड़गढ़ दुर्ग बनाया। चित्रांगद मौर्य के पौत्र महाराजा जमुद्वीप मौर्य हुए जिनसे जमुदिया सूर्यवंश प्रारंभ होता है। इस वंश में कई प्रतापी राजा और शूरवीर योद्धा हुए। महाराजा जमुद्वीप की राजधानी जमुदी नगरी थी जो कि चंबल नदी के किनारे बसी हुई थी। इनका साम्राज्य मध्य प्रदेश के बड़े भूभाग पर फैला हुआ था। कालांतर में प्रतिहार राजवंश के उदय होने पर यह महाराष्ट्र चले गए और राष्ट्रकूटों के सामंत बन गए। सामंत राजा ध्रुव द्वितीय ने प्रतिहार राजा मिहिर भोज को हराकर दक्षिण में जाने से रोका था। कालांतर में यह मध्य प्रदेश में आ गए राजस्थान और मध्य प्रदेश की सीमा के आसपास के क्षेत्रों में रहने लगे। इसी वंश में गुरुदास सैनी हुए जो कि रणथंभौर के राजा हम्मीर के सेनापति थे। यह जलालुद्दीन खिलजी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे। वर्तमान मैं इनके वंशज राजस्थान और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
सन्दर्भ
1.सूर्यवंश
- ↑ साँचा:cite book
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जमुदी का साम्राज्य
जमुदी का सूर्यवंश को जमुदिया सूर्यवंश या Jamudi's Suryavanshi के नाम से भी जाना जाता है। यह वंश प्राचीन सूर्य वंश की एक शाखा है। सूर्यवंश की 217 वीं पीढ़ी में चित्रांगद मौर्य हुए जिन्होंने चित्तौड़गढ़ दुर्ग बनाया। चित्रांगद मौर्य के पौत्र महाराजा जमुद्वीप मौर्य हुए जिनसे जमुदिया सूर्यवंश प्रारंभ होता है।
1.महाराजा जमुद्वीप मौर्य
इनका शासनकाल 744 से 753 ईसवी तक रहा। इन की राजधानी जमुदी नगरी थी और इन का साम्राज्य विस्तार वर्तमान मध्यप्रदेश के श्योपुर और मुरैना जिला में था।
2. महाराजा शीलवर्धन मौर्य या ध्रुव प्रथम
इनका शासनकाल 753 ईस्वी से 770 ईसवी तक रहा। इनकी भी राजधानी जमुदी नगरी थी और इनका साम्राज्य विस्तार वर्तमान मध्यप्रदेश के श्योपुर, मुरैना और शिवपुरी जिले में विस्तृत था।
3. महाराजा आदित्य वर्धन मौर्य
इनका शासनकाल 770 स्कूल से 800 ईसवी तक रहा यह जमुदिया सूर्य वंश के सबसे प्रतापी शासक थे। इनकी राजधानी भी जमुदी नगरी थी। इन का साम्राज्य विस्तार वर्तमान मध्यप्रदेश के श्योपुर, मुरैना शिवपुरी मंदसौर रतलाम आदि जिलों में विस्तृत था।
4. महाराजा कनक मौर्य
इनका शासनकाल 800 से 805 ईसवी तक रहा इनकी भी राजधानी जमुदी नगरी थी और इन का साम्राज्य विस्तार वर्तमान मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले में था। इन्होंने प्रतिहार नागभट्ट से युद्ध किया था। तथा यह वीरगति को प्राप्त हुए थे।
5. सामंत राजा शूरसेन मौर्य
प्रतिहारों से बदला लेने के लिए तथा जमुदी नगरी नष्ट होने के कारण उन्होंने राष्ट्रकूटों से मित्रता की। इन्होंने मालखंडे (महाराष्ट्र) को अपनी राजधानी बनाया और राष्ट्रकूट के सामंत के रूप में शासन किया। इनका शासनकाल 805 से 850 ईसवी था। इन्होंने राष्ट्रकूट नरेश गोविंद तृतीय के सहयोग से प्रतिहार नागभट्ट पर विजय प्राप्त की।
6. सामंत राजा ध्रुव द्वितीय
इनकी राजधानी भी मालखंडे थी और इनका शासनकाल 850 ईस्वी से 875 ईसवी था। यह जमुदिया सूर्यवंश के बहुत शक्तिशाली राजा हुए। यह राष्ट्रकूट नरेश अमोघ वर्ष के सामंत थे। इन्होंने प्रतिहार राजा मिहिर भोज को हराकर दक्षिण में आने से रोका था। यह ठीक उसी प्रकार से था जिस प्रकार से पुलकेशिन द्वितीय ने सम्राट हर्षवर्धन की दक्षिण विजय पर प्रतिबंध लगाया था।
इसके बाद सामंत राजा कर्ण ने 875 से 891 ईसवी तक, सामंत राजा शीलसार ने 891 से 910 ईसवी तक, सामंत राजा अर्जुन ने 910 से 950 ईसवी तक और सामंत राजा भोज ने 950 से 973 ईसवी तक शासन किया।
जमुदिया सूर्यवंश के अंतिम शासक सामंत राजा भोज हुए जो चालुक्य तैलप द्वितीय के विरुद्ध युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।
इस युद्ध के बाद सामंत राजा भोज के पुत्र भागीरथ मौर्य मध्य प्रदेश में आ गए और उनके वंशज राजस्थान और मध्य प्रदेश की सीमा के आसपास के क्षेत्रों में रहने लगे। इसी वंश में गुरुदास सैनी हुए जो कि रणथंभौर के राजा हम्मीर के सेनापति थे। यह जलालुद्दीन खिलजी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे। वर्तमान में इनके वंशज राजस्थान और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में पाए जाते है।
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:cite book
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