गुरुदास सैनी
जमुदिया सूर्यवंश में जन्में वीर योद्धा *गुरुदास सैनी* का जन्म 1245 ईस्वी में हुआ। इनके पिता का नाम *लक्ष्मण दास* था और माता का नाम *सुमंदा* था। लक्ष्मणदास सैनी का गोत्र जमुदिया सूर्यवंशी था जो प्राचीन सूर्यवंश की एक शाखा है। लक्ष्मण दास सैनी रणथंभौर के *महाराजा जैत्रसिंह* के सेनापति थे। इन्होंने अपने पुत्र गुरुदास सैनी को बचपन से ही सैन्य कौशल में निपुण कर दिया। गुरुदास को वीरता शौर्य जैसे उज्जवल गुण प्रदान करने का कार्य माता सुमंदा ने किया। महाराजा जैत्रसिंह बालक गुरुदास की सैन्य कुशलता से काफी प्रभावित थे। गुरुदास सैनी अपनी मां सुमंदा के साथ प्रायः अपने गांव *भूरी पहाड़ी* में रहते थे। पिता के सेनापति होने से उनका दबदबा अपने सभी संगी साथियों पर सदैव बना रहता था। बालक गुरुदास कभी-कभी अपने पिता के साथ में रणथंभौर दुर्ग में भी जाया करते थे। सन् 1264 तक गुरुदास एक कुशल सेनानायक में तब्दील हो चुके थे। इनकी लंबाई 6 फीट और वजन 120 किलो था। यह एक लंबे-तगड़े, वीर और पराक्रमी थे। महाराजा जैत्रसिंह ने गुरुदास को अपना सेनापति बनाने का निश्चय कर लिया था। सन 1265 में गुरुदास सैनी का विवाह गीता देवी से हुआ। कालांतर में इनके दो पुत्र- गोविंद और श्याम हुए तथा एक पुत्री ताराबाई हुई। सन् 1270 में इनके पिता लक्ष्मण दास सैनी एक युद्ध में लड़ते हुए मारे गए। इस युद्ध में महाराजा जैत्रसिंह की विजय तो हुई लेकिन सेनापति लक्ष्मण दास की वीरगति से उन्हे काफी दुख भी हुआ। फिर महाराजा ने गुरुदास सैनी को उनके पिता के स्थान पर सेनापति नियुक्त किया। सैनी के सहयोग से जैत्रसिंह ने कई युद्ध जीते लेकिन दिल्ली सल्तनत को अभी भी वह कर दे रहे थे। गुरुदास ने ऐसा न करने का सुझाव दिया लेकिन जैत्रसिंह बेवजह मुसीबत मोल नहीं लेना चाहते थे। फिर रणथंभौर में एक युग प्रवर्तक दिन आया। 7 जुलाई 1272 को रणथंभौर में एक नए सूर्य का उदय हुआ। इनका नाम था - *हम्मीर देव चौहान* । इनके जन्म पर ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की कि जैत्रसिंह का यह पुत्र रणथंभौर को राज्य से साम्राज्य में परिवर्तित कर देगा। तभी से जैत्रसिंह ने अपने तीसरे पुत्र हम्मीर को रणथंभौर का शासक बनाने का निश्चय कर लिया। हम्मीर बाल्यकाल से ही चतुर, वीर और निडर थे। वे शीघ्र युद्ध कला में पारंगत हो गए। उनके बड़े भाई भी उनसे ईर्ष्या न कर उसे शासक बनाने के लिए राजी हो गए थे। सन् 1282 में जैत्रसिंह का निधन हो गया। फिर 16 दिसंबर 1282 को हम्मीर देव चौहान रणथंभौर के शासक बने। इस समय उनकी आयु मात्र 10 वर्ष थी लेकिन उनका लक्ष्य बहुत बड़ा था। उनका लक्ष्य था - *दिग्विजय* । इस कार्य में उनका सहयोग मुख्य रूप से बड़े भाई वीरमदेव चौहान और सेनापति गुरुदास सैनी ने किया। *दिग्विजय अभियान* में हम्मीर ने सर्वप्रथम भामरस के राजा अर्जुन को हराया। फिर मांडलगढ़ के दुर्ग पर अधिकार कर लिया। फिर परमार शासक भीम द्वितीय को हराया। इसी प्रकार चित्तौड़, आबू, वर्धनपुर, पुष्कर, खंडेला, चंपा, कंकरीला, शिवपुरी, मालवा, मथुरा, भरतपुर, कोटा, शाकंभरी पर विजय प्राप्त करके वापस रणथंभौर लौट आया। वहां पर उन्होंने नौ कोटि के यज्ञ करवाए। अधीनस्थ राजाओं से कर लिया जाता था। गुरुदास की सलाह पर हम्मीर देव चौहान ने दिल्ली सल्तनत को कर देना बंद कर दिया था। हम्मीर ने गुरुदास को *"वीरश्रेष्ठ"* की उपाधि प्रदान की। सन् 1290 में दिल्ली का सुल्तान *जलालुद्दीन खिलजी* बना। यह महत्वाकांक्षी शासक था जिस कारण उसने रणथंभौर पर आक्रमण का मन बना लिया। उसने रणथंभौर की कुंजी *झाइन दुर्ग (छाणगढ़)* पर कब्जा कर लिया। हम्मीर को जब यह सूचना मिली तो उसने गुरुदास सैनी को भेजा। गुरुदास 10, 000 सैनिकों के साथ था और जलालुद्दीन 80,000 सैनिकों के साथ था। फिर भी राजपूती सेना ने वीरतापूर्वक मुकाबला किया लेकिन जलालुद्दीन ने छल का प्रयोग किया और एक अन्य सेनापति धर्मसिंह को अपने धन के लालच में ले लिया और गुरुदास सैनी लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। जब हम्मीर को इस बात का पता चला तो धोखा करने वाले सेनापति धर्मसिंह को हम्मीर ने अंधा करवा दिया। गुरुदास सैनी, हम्मीर देव चौहान के प्रिय और विश्वासपात्र सेनापति थे।
" *आज हमने एक अनमोल रत्न खो दिया।* " - यह कथन महाराजा हम्मीर ने गुरुदास सैनी की मृत्यु पर कहा था।
गुरुदास सैनी के वंशज
गुरुदास सैनी के बाद उनके पुत्र गोविंदराम सैनी को महाराजा हम्मीर ने अपना सेनापति बनाया जो सन् 1301 में अलाउद्दीन खिलजी के साथ युद्ध में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ। इसके बाद इनके वंशज भूरी पहाड़ी में और आसपास के अन्य गांव में चले गए। गुरुदास के इन्हीं वंशजों में एक *रामजी सैनी* हुए। जिन्होंने मध्यप्रदेश में राजस्थान की सीमा के पास में एक गांव बसाया जिसका नाम *दांतरदा* रखा। कालांतर में अन्य जातियां भी वहां पर बस गई लेकिन सर्वाधिक जनसंख्या सैनियों की थी जिससे गांव का मुखिया भी सैनी ही होता था जिसे *पटेल* कहा जाता था। मराठों के शासनकाल में दांतरदा के ये पटेल ही आस-पास के गांवों में कर उगाया करते थे। दांतरदा के अंतिम पटेल *खेमासिंह सैनी* थे। इनका घर दांतरदा कलां ग्राम के बिल्कुल केंद्र में स्थित था। इनके आंगन में एक कुआं भी था। खेमासिंह पटेल के पुत्र का नाम रघुनाथ था। राजस्थान और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में आज भी इनके वंशज निवास करते हैं।
स्रोत
1.सूर्यवंश
बाहरी कड़िया
[१] hammir dev chouhan
Hammir Raso