छत्तीसगढ़ी साहित्य
छत्तीसगढ़ी पूर्वी हिंदी की तीन विभाषाओं में से एक है। यह रायगढ़, सरगुजा, बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग, जगदलपुर तथा बस्तर आदि में बोली जाती है। संभलपुर में तथा उसके आसपास छत्तीसगढ़ी लरिया कहलाती है। छत्तीसगढ़ी भाषा मराठी तथा उड़िया भाषाओं से प्रभावित हुई है।
छत्तीसगढ़ी साहित्य में भारतीय संस्कृति के तत्त्व वर्तमान हैं। इस साहित्य में अनेक लोककथाएँ हैं जिनके मूल भाव भारत की अन्य भाषाओं में भी सामान्य रूप से पाए जाते हैं। कहीं कहीं स्थानीय तथा सामयिक ढंग से इन कथाओं की रोचकता बढ़ गई है। छत्तीसगढ़ी पँवाड़ों के प्रबन्धगीत किसी न किसी कहानी पर आधारित हैं। पँवाड़ों के केंद्रविन्दु बहुधा ऐतिहासिक है। वीरगाथाओं में राजा वीरसिंह की गाथा प्रसिद्ध है। इसमें मध्यकालीन विश्वासों की प्रचुरता है। कुछ गीतों में देवता के पराक्रम का वर्णन है। श्रवणकुमार संबंधी "सरवन" के गीत तथा "सरवन" की गाथा प्रसिद्ध है। छत्तीसगढ़ी में ऋतुगीत, नृत्यगीत, संस्कारगीत, धार्मिक गीत, बालकगीत तथा अन्य प्रकार के विविध गीत पाए जाते हैं। लोकोक्तियों तथा पहेलियों की भी कमी नहीं है।
कबीर दास के शिष्य और उनके समकालीन (संवत 1520) धनी धर्मदास को छत्तीसगढ़ी के आदि कवि का दर्जा प्राप्त है, जिनके पदों का संकलन व प्रकाशन हरि ठाकुर जी ने किया है। बाबू रेवाराम के भजनों ने छत्तीसगढ़ी की इस शुरुआत को बल दिया।
पद्य साहित्य
छत्तीसगढ़ी के उत्कर्ष को नया आयाम दिया – पं. सुन्दरलाल शर्मा, लोचन प्रसाद पांडेय, मुकुटधर पांडेय, नरसिंह दास वैष्णव, बंशीधर पांडेय, शुकलाल पांडेय ने। कुंजबिहारी चौबे, गिरिवरदास वैष्णव ने राष्ट्रीय आंदोलन के दौर में अपनी कवितीओं की अग्नि को साबित कर दिखाया। इस क्रम में पुरुषोत्तम दास एवं कपिलनाथ मिश्र का उल्लेख भी आवश्यक होगा। 70 के दशक में पं॰ द्वारिका प्रसाद तिवारी, बाबू प्यारेलाल गुप्त, कोदूराम दलित, हरि ठाकुर, श्यामलाल चतुर्वेदी, कपिलनाथ कश्यप, बद्रीविशाल परमानंद, नरेन्द्र देव वर्मा, हेमनाथ यदु, भगवती सेन, नारायणलाल परमार, डॉ॰ विमल कुमार पाठक, लाला जगदलपुरी, केयूर भूषण, डॉ. सुरेश तिवारी, बृजलाल शुक्ल आदि ने छत्तीसगढ़ी साहित्य की विषय विविधता को सिद्ध कर दिखाया। छत्तसीगढ़ी भाषा और रचनाओं को लोकप्रिय बनाने में दानेश्वर शर्मा, पवन दीवान, लक्ष्मण मस्तुरिहा, रामेश्वर वैष्णव और विमल पाठक ने न केवल कवि सम्मेलनों के मंचों में अपना लोहा मनवाया अपितु उन्होंने सार्थक एवं अकादमिक लेखन भी किया है, जो इस प्रदेश के जन-जन के मन में रमे हैं। इधर डॉ॰ सुरेन्द्र दुबे ने देश-विदेश के मंचों में कविता पढ़कर छत्तीसगढ़ी का मान बढ़ाया है। छत्तीसगढ़ी के विकास में विद्याभूषण मिश्र, मुकुन्द कौशल, हेमनाथ वर्मा विकल, मन्नीलाल कटकवार, बिसंभर यादव, माखनलाल तंबोली, रघुवर अग्रवाल पथिक, डॉ. सुरेश तिवारी, ललित मोहन श्रीवास्तव, डॉ॰ पालेश्वर शर्मा, श्री राम कुमार वर्मा बाबूलाल सीरिया, नंदकिशोर तिवारी, मुरली चंद्राकर, प्रभंजन शास्त्री, रामकैलाश तिवारी, एमन दास मानिकपुरी का विशेष योगदान रहा है। डॉ॰ हीरालाल शुक्ल, डॉ॰ बलदेव, डॉ॰ मन्नूलाल यदु, डॉ॰ बिहारीलाल साहू, डॉ॰ चितरंजन कर, डॉ॰ सुधीर शर्मा, डॉ॰ व्यासनारायण दुबे, डॉ॰ केशरीलाल वर्मा, डॉ॰ निरुपमा शर्मा,उर्मिला शुक्ल इनका छत्तीसगढ़ कविता के क्षेत्र में एक अलग स्थान है। मृणालिका ओझा, डॉ॰ विनय पाठक ने भाषा एवं शोध के क्षेत्र में जो कार्य किया है वह मील का पत्थर है।
गद्य साहित्य
छत्तीसगढ़ी का गद्य साहित्य भी निरन्तर पुष्ट हो रहा है। इसके प्रमाण में हम हीरू के कहिनी, (पं. वंशीधर शर्मा), दियना के अंजोर (शिवशंकर शुक्ला), चंदा अमरित बगराईस (लखनलाल गुप्त), कुल के मरजाद (केयूर भूषण), छेरछेरा (कृष्णकुमार शर्मा), प्रस्थान (परदेशीराम वर्मा), को प्रस्तुत कर सकते हैं जो उपन्यास कृतियाँ हैं। खूबचंद बघेल, टिकेन्द्र टिकरिहा, रामगोपाल कश्यप, नरेन्द्रदेव वर्मा, विश्वेन्द्र ठाकुर सुकलाल पांडेय, कपिलनाथ कश्यप, नन्दकिशोर तिवारी के नाटक, शायमलाल चतुर्वेदी, नारायणलाल परमार, डॉ॰ पालेश्वर शर्मा,श्री राम कुमार वर्मा , परदेशीराम वर्मा, डॉ. सुरेश तिवारी, उर्मिला शुक्ल छत्तीसगढ़ की महिला कहानीकारों में बहु चर्चित नाम डॉ॰ बिहारी लाल साहू की कहानियों, जी.एस. रामपल्लीवार, परमानंद वर्मा, जयप्रकाश मानस, सुशील यदु एवं राजेन्द्र सोनी के गद्य व्यंग्यों को भी इसी शृंखला में रखा जा सकता है। जयप्रकाश मानस द्वारा लिखित कलादास के कलाकारी को प्रसिद्ध विद्वान स्व. हरि ठाकुर ने छत्तीसगढी भाषा का प्रथम व्यंग्य संग्रह माना है। स्व. रवीन्द्र कंचन की छत्तीसगढ़ी रचनाएं देश की विभिन्न पत्रिकाओं में साग्रह छापी जाती रही हैं। यह छत्तीसगढ़ी की संप्रेषणीयता एवं प्रभाव का ही प्रतीक है। समर्थ गंवइहा, रामलाल निषाद, जीवन यदु, गौरव रेणु नाविक, डॉ॰ पी.सी. लाल यादव, नारायण बरेठ, राम प्रसाद कोसरिया, हफीज कुरैशी, ठाकुर जीवन सिंह, शिवकुमार यदु, एमन दास मानिकपुरी, चेतन भारती, पंचराम सोनी, शत्रुहनसिंह राजपूत, मिथलेश चौहान, रमेश विश्वहार, परमेश्वर वैष्णव, डॉ. सुरेश तिवारी, देवधर महंत, डॉ॰ सीताराम साहू, डुमनलाल ध्रुव, पुनुराम साहू, भरतलाल नायक, राजेश तिवारी, रुपेश तिवारी, तीरथराम गढ़ेवाल, राजेश चौहान आदि छत्तीसगढ़ी के समर्थ रचनाकार हैं। यहाँ प्रदीप कुमार दाश "दीपक" जी के छत्तीसगढ़ी का प्रथम हाइकु संग्रह ("मइनसे के पीरा"-2000) तथा डॉ॰ राजेन्द्र सोनी के बहुआयामी लेखन का जिक्र करना उचित होगा, जिन्हें छत्तीसगढ़ी में प्रथम लघुकथा संग्रह (खोरबहरा तोला गांधी बनाबो), प्रथम क्षणिका संग्रह (दूब्बर ला दू असाढ़), हाइकू संग्रह (चोर ले जादा मोटरा उतिअइल 2001) रचने का गौरव प्राप्त है।इस अवधि के उपरांत गद्य लेखन में विविधता दिखने लगी और लेखकों ने सभी विधाओं में प्रचुर मात्रा में सृजनात्मक लेखन लिखा।इस अनुक्रम में रामनाथ साहू के उपन्यास -कका के घर,भुइँया, माटी के बरतन और जानकी प्रकाशित हुए।प्रथम तीन उपन्यास तो छत्तीसगढ़ी के मुखपत्र' छत्तीसगढ़ी लोकक्षर'में किश्तों में लगातार छपते रहे थे । रामनाथ साहू के दो नाटक-जागे जागे सुतिहा गो! और हरदी पींयर झांगा पागा भी प्रकाशित हैं। कहानी संग्रह -गति मुक्ति भी चर्चित रही है। एवं महिला में मुख्य कई लेखिका ने अपना गद्य साहित्य का योगदान दिया है , श्यामा कुर्रे निराला (शशि कुर्रे) भी है ।
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- छत्तीसगढ़ी की नियिमत वेब पत्रिका - गुरतुर गोठ
- छत्तीसगढ़ी ब्लॉग 'चारीचुगली' (जयंत साहू)
- छत्तीसगढ़ी साहित्य
- छत्तीसगढ़ी प्रेम गीत
छत्तीसगढ़ के पत्रकार माधव राव सप्रे ,मधुकर खेर , गोविंद लाल वोरा , बबन प्रसाद मिश्र , रमेश नैयर , आसिफ़ इक़बाल , कौशल तिवारी , सनत चतुर्वेदी , शंकर पाण्डे, जैसे नामी लोग है जिनका पत्रकारीता में योगदान को भुलाया नहीं जा सकता