गुलाल

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गुलाल लाल रंग का सूखा चूर्ण जो होली में गालों पर या माथे पर टीक लगाने के काम आता है।
गुलाल से होली खेलती बालिका

गुलाल रंगीन सूखा चूर्ण होता है, जो होली के त्यौहार में गालों पर या माथे पर टीक लगाने के काम आता है। इसके अलावा इसका प्रयोग रंगोली बनाने में भी किया जाता है। बिना गुलाल के होली के रंग फीके ही रह जाते हैं। यह कहना उचित ही होगा कि जहां गीली होली के लिये पानी के रंग होते हैं, वहीं सूखी होली भी गुलालों के संग कुछ कम नहीं जमती है। यह रसायनों द्वारा व हर्बल, दोनों ही प्रकार से बनाया जाता है। लगभग २०-२५ वर्ष पूर्व तक वनस्पतियों से प्राप्त रंगों या उत्पादों से ही इसका निर्माण हुआ करता था, किन्तु तबसे रसयनों के रंग आने लगे व उन्हें अरारोट में मिलाकर तीखे व चटक रंग के गुलाल बनने लगे। इधर कुछ वर्षों से लोग दोबारा हर्बल गुलाल की ओर आकर्षित हुए हैं, व कई तरह के हर्बल व जैविक गुलाल बाजारों में उपलब्ध होने लगे हैं।[१] हर्बल गुलाल के कई लाभ होते हैं। इनमें रसायनों का प्रयोग नहीं होने से न तो एलर्जी होती है न आंखों में जलन होती है। ये पर्यावरण अनुकूल होते हैं। इसके अलावा ये खास मंहगे भी नहीं होते, लगभग ८० रु का एक किलोग्राम होता है।[२]

रासायनिक गुलाल

गुलाल बनाने के लिए कई रसायनों का प्रयोग होता है। इनमें से कुछ रंग, उनमें प्रयुक्त रसायन व उनका स्वास्थ्य पर प्रभाव इस प्रकार से है। काला रंग लेड ऑक्साइड से बनता है, जिससे गुर्दे को हानि व लर्निंग डिसेबिलिटी हो सकती है।हरा रंग कॉपर सल्फेट से बनता है, जिससे आंखों में एलर्जी व अस्थायी अंधता हो सकती है। पर्पल रंग क्रोमियम आयोडाइड से बनता है जिससे ब्रोंकियल दमा व एलर्जी हो सकते हैं। रूपहला रंग एल्युमिनियम ब्रोमाइड से बनता है, जो कैंसर का कारक बन सकता है। नीला रंग प्रशियन ब्लू नामक रसायन से बनता है जिससे त्वचा की एलर्जी हो सकती है। लाल रंग मर्करी सल्फेट से बनता है, जिससे त्वचा का कैंसर व मेंटल रिटार्डेशन संभव है। सूखे गुलाल में एस्बेस्टस या सिलिका मिलाई जाती है जिससे अस्थमा, त्वचा में सक्रंमण और आंखों में जलन की शिकायत हो सकती है।[३][४] इनके अलावा मिलावटी व रासायनिक घटिया रंगों में डीजल, क्रोमियम, आयोडिन, इंजन ऑयल और सीसे का पाउडर भी हो सकता है जिनसे सेहत को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है।[५]

चित्र:gulals.jpg
विभिन्न रंगों के गुलाल

गुलाल के रंग स्वयं भी बनाये जा सकते हैं। इनमें लाल सूखा रंग बनाने के लिये लाल चंदन की लकड़ी के पाउडर में सूखे लाल गुड़हल के फूल को पीस कर मिलाए। गीला लाल रंग बनाने के लिये चार चम्मच लाल चंदन पाउडर को पांच लीटर पानी में डालकर उबालें और इसे २० लीटर पानी में मिलाकर डाइल्यूट करें। अनार के दानों को पानी में उबालने से भी गाढ़ा लाल रंग आता है। हरा सूखा रंग बनाने के लिए हिना पाउडर प्रयोग कर सकते हैं। इससे चेहरे पर कोई निशान नहीं आएगा। गुलमोहर की पत्तियों को सुखाकर भी चमकदार हरा गुलाल तैयार किया जा सकता है। गीला हरा रंग दो चम्मच मेंहदी चूर्ण को एक लीटर पानी में घोलकर हरा रंग तैयार कर सकते हैं। पीला सूखा रंग बनाने के लिये दो चम्मच हल्दी पाउडर को पांच चम्मच बेसन में मिलाएं। हल्दी और बेसन उबटन के रूप में भी प्रयोग किया जाता है, यह त्वचा के लिए काफी फायदेमंद होता है। इसके अलावा गेंदे के फूल को सुखाकर उसके पाउडर से भी पीला रंग तैयार कर सकते हैं।

जैविक गुलाल

गुलाल से पुता होली खेलने वाला चेहरा

बहुराष्ट्रीय कम्पनी ऑर्गेनिक इंडिया ने हर्बल गुलाल से एक कदम आगे बढ़ते हुए बाजार में २००९ से जैविक गुलाल को निकाला है। जैविक गुलाल अभी हरे और पीले, दो रंगों में बनाए गए हैं। हरा गुलाल तुलसी की पत्तियों से और पीला गुलाल हल्दी से बनाया बनाया गया है। यह गुलाल कई खुदरा दुकानों में उपलब्ध हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय के जैवरासायनिकी विभाग में प्राध्यापक यू.एन.द्विवेदी के अनुसार ये गुलाल न सिर्फ त्वचा के लिए कंडीशनर का काम करता है, बल्कि इसके प्रयोग से त्वचा पर दाने भी नहीं निकलते। राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के वैज्ञानिक सी.वी.राव ने आईएएनएस को बताया कि आदिकाल से भारत में तुलसी और हल्दी का औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। इस गुलाल की विशेषता यह होगी कि एक तो यह हानिकारक नहीं होगा, दूसरे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी होगा। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हर्बल मेडिसीन में प्राध्यापक एन.सिंह के अनुसार जैविक गुलाल बनाने के लिए जिन औषधीय पौधों का प्रयोग किया गया है, उन्हें जैविक उर्वरकों के द्वारा उगाया गया है। इस वजह से त्वचा पर इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता।[६] एनबीआरआई के रासायनिक वानस्पतिक विभाग के डॉ॰ वीरेन्द्र लाल कपूर ने आठ वर्ष पहले होली के लिए विशेष रूप से हर्बल गुलाल तैयार किया था। संस्थान ने इसका भारतीय पेटेंट भी प्राप्त कर लिया था। यहां के वैज्ञानिकों के अनुसार इसके लिए इमली के बीज, बेल और अनार के छिलके, यूकेलिप्टस की छाल, अमलतास की फली का गूदा, प्याज का उपरी छिलका, चुकन्दर, हल्दी आदि वानस्पतिक पदार्थों से रंग तैयार करके उनको एक निश्चित अनुपात में बन्धकों एवं पाउडर के साथ मिलाकर पीला, लाल, गुलाबी, हरा, भूरा, नीले आदि रंगों में हर्बल गुलाल तैयार किया गया।[७]

सन्दर्भ

  1. ोली के रंग : हर्बल गुलाल के संग । ३ मार्च २००७
  2. चढने लगा हर्बल गुलाल का रंगसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]। राजस्थान पत्रिका। १७ फ़रवरी २०१०
  3. होली: कैसे बनाएं हर्बल रंग-गुलाल स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।। आयुष्यमान
  4. होली के रंग दे सकते हैं गंभीर बीमारी साँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]|लोकतेज।
  5. मिलावटी रंग से बदरंग होती होलीसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]। एनडीटीवी। बुधवार, फरवरी 24, 2010
  6. होली खेलने आया ‘जैविक गुलाल’साँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]। ७ मार्च २००९
  7. फागुन के रंग हर्बल गुलाल के संग साँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]। जागरण

बाहरी कड़ियाँ

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