कैफ़ी आज़मी

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प्रारंभिक जीवन

कैफी आज़मी का असली नाम अख्तर हुसैन रिजवी था। उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ जिले के छोटे से गांव मिजवां में 14 जनवरी 1919 में जन्मे।[१] गांव के भोलेभाले माहौल में कविताएं पढ़ने का शौक लगा। भाइयों ने प्रोत्साहित किया तो खुद भी लिखने लगे। 11 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पहली गज़ल लिखी।[१]

शायरी

किशोर होते-होते मुशायरे में शामिल होने लगे। वर्ष 1936 में साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित हुए और सदस्यता ग्रहण कर ली। धार्मिक रूढ़िवादिता से परेशान कैफी को इस विचारधारा में जैसे सारी समस्याओं का हल मिल गया। उन्होंने निश्चय किया कि सामाजिक संदेश के लिए ही लेखनी का उपयोग करेंगे।

1943 में साम्यवादी दल ने मुंबई कार्यालय शुरू किया और ‍उन्हें जिम्मेदारी देकर भेजा। यहां आकर कैफी ने उर्दू जर्नल ‘मजदूर मोहल्ला’ का संपादन किया।

जीवनसंगिनी शौकत से मुलाकात हुई। आर्थिक रूप से संपन्न और साहित्यिक संस्कारों वाली शौकत को कैफी के लेखन ने प्रभावित किया। मई 1947 में दो संवेदनशील कलाकार विवाह बंधन में बंध गए। शादी के बाद शौकत ने रिश्ते की गरिमा इस हद तक निभाई कि खेतवाड़ी में पति के साथ ऐसी जगह रहीं जहां टॉयलेट/बाथरूम कॉमन थे। यहीं पर शबाना और बाबा का जन्म हुआ।

बाद में जुहू स्थित बंगले में आए। फिल्मों में मौका बुजदिल (1951) से मिला। स्वतंत्र रूप से लेखन चलता रहा। कैफी की भावुक, रोमांटिक शायरी स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। और प्रभावी लेखनी से प्रगति के रास्ते खुलते गए और वे सिर्फ गीतकार ही नहीं बल्कि पटकथाकार के रूप में भी स्थापित हो गए। ‘हीर-रांझा’ कैफी की सिनेमाई कविता कही जा सकती है। सादगीपूर्ण व्यक्तित्व वाले कैफी बेहद हंसमुख थे, यह बहुत कम लोग जानते हैं।

वर्ष 1973 में ब्रेनहैमरेज से लड़ते हुए जीवन को एक नया दर्शन मिला - बस दूसरों के लिए जीना है। अपने गांव मिजवान में कैफी ने स्कूल, अस्पताल, पोस्ट ऑफिस और सड़क बनवाने में मदद की।

उत्तरप्रदेश सरकार ने सुल्तानपुर से फूलपुर सड़क को कैफी मार्ग घोषित किया है। दस मई 2002 को कैफी यह गुनगुनाते हुए इस दुनिया से चल दिए : ये दुनिया, ये महफिल मेरे काम की नहीं। ..।

व्यक्तिगत जीवन

मई 1947 में इनका विवाह शौकत से हुआ। आर्थिक रूप से संपन्न और साहित्यिक संस्कारों वाली शौकत को कैफी के लेखन ने प्रभावित थीं। उनके यहां एक बेटी और एक बेटे का जन्म हुआ, जिनका नाम शबाना और बाबा है। शबाना आज़मी हिंदी फिल्मों की एक अज़ीम अदाकारा बनीं।

प्रमुख रचनाएं

उनकी रचनाओं में आवारा सज़दे, इंकार, आख़िरे-शब आदि प्रमुख हैं।[१]

पुरस्कार एवं सम्मान

क़ैफ़ी आज़मी को राष्ट्रीय पुरस्कार के अलावा कई बार फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला।[१] 1974 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया।

कैफी के कुछ प्रमुख फिल्मी गीत

  • मैं ये सोच के उसके दर से उठा था।..(हकीकत)
  • है कली-कली के रुख पर तेरे हुस्न का फसाना...(लालारूख)
  • वक्त ने किया क्या हसीं सितम... (कागज के फूल)
  • इक जुर्म करके हमने चाहा था मुस्कुराना... (शमा)
  • जीत ही लेंगे बाजी हम तुम... (शोला और शबनम)
  • तुम पूछते हो इश्क भला है कि नहीं है।.. (नकली नवाब)
  • राह बनी खुद मंजिल... (कोहरा)
  • सारा मोरा कजरा चुराया तूने... (दो दिल)
  • बहारों...मेरा जीवन भी संवारो... (आखिरी ख़त)
  • धीरे-धीरे मचल ए दिल-ए-बेकरार... (अनुपमा)
  • या दिल की सुनो दुनिया वालों... (अनुपमा)
  • मिलो न तुम तो हम घबराए... (हीर-रांझा)
  • ये दुनिया ये महफिल... (हीर-रांझा)
  • जरा सी आहट होती है तो दिल पूछता है।.. (हकीकत)

क़ैफ़ी की शायरी कुछ पंक्तियां

इतना तो ज़िंदगी में किसी की ख़लल पड़े
हंसने से हो सुकून ना रोने से कल पड़े
जिस तरह हंस रहा हूं मैं पी-पी के अश्क-ए-ग़म
यूं दूसरा हंसे तो कलेजा निकल पड़े
कोई ये कैसे बताये के वो तन्हा क्यों हैं
वो जो अपना था वो ही और किसी का क्यों हैं
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो
तेरी उम्मीद पे ठुकरा रहा हूँ दुनिया को
तुझे भी अपने पे ये ऐतबार है कि नहीं

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियां