कृष्णा साबले
नाईक कृष्णाजी राव साबले भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी थे। इनका जन्म महाराष्ट्र मे साबला गांव के एक कोली परिवार मे हुआ था।[१] साबले ने तांत्या माकाजी के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ आजादी का विगुल फूंक दिया साथ ही साबले का बेटा मारुति साबले ने भी भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन आंदोलन मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।[२][३][४]
नाईक कृष्णाजी राव साबले | |
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विकल्पीय नाम: | वंडकरी |
जन्म - स्थान: | साबले गांव, महाराष्ट्र |
मृत्यु - तिथि: | दिसंबर १८७९ |
मृत्यु - स्थान: | अहमदनगर सेंट्रल जेल |
आंदोलन: | भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन |
धर्म: | हिन्दू कोली |
कृष्णा साबले अहमदनगर पुलिस फोर्स मे उच्च पद पर कार्यरत अफ़सर थे लेकिन महाराष्ट्र मे जगह-जगह आदिवासी विद्रोह के दौरान साबले ने भी अंग्रेजी पुलिस फोर्स छोड़कर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठा लिए।[५]
क्रांतिकारी गतिविधियों
विद्रोह को आग देने का काम वासुदेव बलवन्त फड़के ने किया था जो कुछ दिनों के लिए पूणे मे कोलीयों की शरण मे था।[६] फडके के उकसाने पर मार्च १८७९ मे साबले ने अहमदनगर पुलिस फोर्स छोड़कर छोड़कर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया और उसके जवान बेटे मारूति साबले ने भी पिताजी के साथ मिलकर सरकार को चुनौती दी।[७] साबले ने कुछ क्रांतिकारी कोली एकीकृत किए और ब्रिटिश शासित पूणे पर हमला बोल दिया पूणे मे सरकारी दफ्तर पर और सरकारी अड्डों पर आक्रमण किया जिसके चलते साबले के साथ काफी बड़ी संख्या में क्रांतिकारी लोग मिल गये। साबले ने अपने साथियों के साथ मिलकर पूणे मे लगातार सात महीने मे २८ वार सरकारी दफ्तर और खजाने पर हमला किया।[८][५]
जून के महीने साबले का विद्रोह काफी मजबूत दिखाई दिया और साबले ने ब्रिटिश आधिन भोर और कोंकण मे सरकारी को चुनौती दी। ब्रिटिश सरकार ने मेज़र वाईज के नेतृत्व में साबले को पकड़ने के लिए पुरंदर और ससवाढ से ब्रिटिश सेना भेजी लेकिन सेना मुठभेड़ के बाद सेना को नाकामी हाथ लगी। मानसून के समय साबले सांत रहा और इसी दौरान साबले के साथ तांत्या माकाजी जो लंबे समय से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ था वो भी एक हो गया।[९][५]
१७ अक्टूबर १८७९ को साबले का एक साथी जो रमोसी जाती से था और तांत्या माकाजी के समुह का था गद्दार निकला वह क्रांतिकारीयों की सारी गतिविधियों की अंग्रेजों की मुखबिरी कर रहा था जिस कारण गद्दारी के इल्ज़ाम मे गोलीयों से भुन दिया। दिसंबर १८७९ मे मेजर वाईज ने साबले के समूह पर हमला कर दिया जिसके फलस्वरूप मुठभेड़ के दौरान काफी साथी मारे गए और साबले को बंदी बना कर अहमदनगर ले जाया गया जहां उसे देश से गद्दार करार देकर फांसी दे दी गई।[५][१]
संदर्भ
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