कन्नदासन

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"कविअरासु" कन्नदासन
colspan="2" style="text-align:center;" साँचा:image class | चित्र:Kannadasan.gif
जन्म ए एल मुथैया
24 June 1927
सिरुकुदाल्पत्ति, तमिलनाडु, भारत
मृत्यु October 17, 1981(1981-10-17) (उम्र साँचा:age)
शिकागो, इलिनोइस, संयुक्त राज्य अमेरिका
उपनाम Karaimuthu Pulavar, Vanangamudi, Kamakappriya, Parvathi Nathan, Arokkiya Saamy
व्यवसाय कवि, उपन्यासकार, गीतकार, राजनेता, फिल्म निर्माता, संपादक
राष्ट्रीयता भारतीय
नागरिकता भारतीय
उल्लेखनीय सम्मान सर्वश्रेष्ठ गीतकार के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार
1961 कुज्हंथैक्कागा

साहित्य अकादमी पुरस्कार
1980 चेरमन कदली
जीवनसाथी Ponnazhagi
Parvathi
Valliyammai
संतान 15

कन्नदासन (साँचा:lang-ta ; 24 जून1927-17 अक्टूबर 1981) तमिल कवि और गीतकार थे, जिन्हें तमिल भाषा के आधुनिक युग के सबसे महान और सबसे महत्वपूर्ण प्रारम्भिक लेखक के रूप में मान्यता प्राप्त है।वे प्रायः 'कविअरासु' (कविराज) नाम से प्रसिद्ध अधिक प्रसिद्ध थे। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास चेरमान कादली के लिये उन्हें सन् १९८० में साहित्य अकादमी पुरस्कार (तमिल) से सम्मानित किया गया।[१]

कन्नदासन तमिल फिल्मों में अपने गीतों के लिए सर्वाधिक लोकप्रिय थे। इन्होने ५००० से अधिक गीतों के अलावा, ६००० कविताओं और महाकाव्य, नाटकों, निबंध, उपन्यास, सहित लगभग २३२ से अधिक पुस्तकों की रचना की, जिसमें से दस भागों में अर्थमुल्ल इन्धुमथम (सार्थक हिन्दू धर्म) शीर्षक से हिंदू धर्म पर आधारित उनके सबसे लोकप्रिय (10) धार्मिक निबंध हैं।[२] उन्हें वर्ष 1980 में अपने उपन्यास चेरमन कदली के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। 1969 में, कुज्हंथैक्कागा फिल्म में सर्वश्रेष्ठ गीतकार के रूप में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार पाने वाले पहले गीतकार थे।

जीवन परिचय

कन्नदासन का जन्म तमिलनाडु के कराइकुडी के पास सिरुकुदाल्पत्ति में हुआ था। उनका मूल नाम 'मुथैया' था। लेकिन जब 16 अक्टूबर 1981 को 54 वर्ष की उम्र में जब उनका निधन हुआ तो लाखों तमिलों ने उन्हें 'कन्नदासन' के नाम से ही याद किया। दुनिया भर के तमिलों के लिए वे अपनी काव्य शैली के प्रतीक थे। यहां तक कि जो कंबन की कविता या वल्लुवन की सूक्तियां नहीं पढ़ सकते, वे भी कवि कन्नदासन की रचनाएं गुनगुना सकते हैं।

चित्र:P3kanna3R.jpg
कवियारसु कन्नादसन का पार्थिव शरीर ....स्वर्गीय डॉ॰ एमजीआर (MGR) परिवार के सदस्यों को दिलासा देते हुए

इसमें कोई शक नहीं है कि उनकी दृष्टि तीक्ष्ण और उत्सुक मर्मज्ञ अवलोकन शक्ति थी। उन्होंने कोकून की तरह सुरक्षा-कवच के अन्दर बंद जीवन नहीं जिया. शराब, महिलाएं, दवाएं, राजनीति, नास्तिकता, बहस की कला और धार्मिक अभयारण्य.तमिलनाडु उन्हें जो कुछ भी पेशकश कर सकता था उन्होंने वह सब कुछ में अपने को डूबा दिया। सब कुछ आनंद उपभोग कर लेने के बाद, उन्होंने जो किया वह उल्लेखनीय था - उन्होंने अपने अनुभवों के बारे में काव्य-संसार रचा जिनमे उन्होंने अपने को अवमानित करती हुई पश्चाताप को प्रतिबिंबित करने वाले हास्य-व्यंग्य और चुभने वाली व्यंग्यपूर्ण रचनाएं थीं। इन कविताओं ने जीवन के सभी क्षेत्रों के तमिलों के ह्रदय के तारों को सहानुभूति से छुआ - स्कूल के लड़के, पूर्वस्नातक, गृहिणियों, किसानों, श्रमिक मजदूरों, बागान श्रमिकों, मध्यम वर्ग के प्रतिनिधियों और उच्च वर्ग के कुलीनों के मर्म को भी छुआ.

नास्तिकता से हिंदू धर्म में

मुथैया एक कट्टर नास्तिक और नास्तिक द्रविड़ आंदोलन के अनुयायी थे। उन्हें तमिल भाषा और संस्कृति के लिए बहुत प्यार था और तमिल गद्य साहित्य और कविता में उन्होंने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। उन्होंने एक बार आण्डाल द्वारा रचित तिरुप्पवाई पढ़ा और पढ़कर चकित हो गए। इसका उनपर सदा के लिए एक गहरा प्रभाव पड़ा।अत्यन्त आत्मनिरीक्षण के बाद, उन्होंने हिंदू धर्म में पुनः प्रवर्तित होने का फैसला किया, अपना नाम 'कन्नदासन' रखा, हिंदू धर्म के गहन ज्ञान-सागर में डूब गए और हिंदू धर्म पर अपनी श्रृंखला "अर्थमूल हिन्दु मतम्" नाम से पुस्तकों की रचना की।

राज्य कवि

अपने अन्तिम दिनों में कन्नदासन तमिलनाडु सरकार के राज्य कवि थे। उनकी आत्मकथा "वनवासम" को वनाठी प्रकाशकों ने प्रकाशित किया। उन्होने दो उल्लेखनीय आत्मकाथाएँ लिखीं। पहली आत्मकथा का नाम 'वनवासम' है जिसमें उनके उस जीवन के बारे में है जब वे डी एम के के साथ थे तथा नास्तिक थे। दूसरी पुस्तक का नाम 'मानवासम' है जिसमें उनके डी एम के छोड़ने के बाद के जीवन का वर्णन है।

देहान्त

17 अक्टूबर 1981 को शिकागो, संयुक्त राज्य अमेरिका, में कन्नदासन की मृत्यु हो गई, जहां वे तमिल संघ शिकागो द्वारा आयोजित एक तमिल सम्मेलन में भाग लेने भारत से गए थे। सिरुकूटाल्पत्ति में उनका एक आवास अब तमिल फ़िल्म की सदाबहार पसंदीदा संगीत का एक स्मारक है। 25 जून को कन्नदासन स्मारक संग्रहालय का उद्घाटन किया गया।

कृतियाँ

  • इयेचु कावियम्
  • अर्त्तमुळ्ळ इन्तु मतम् (10 भागों में)
  • तिरैप्पटप् पाटल्कळ्
  • मांकऩि

काव्य

  • पॊऩ्मऴै
  • कण्णताचऩ् कवितैकळ्
  • चुरुति चेरात राकंकळ्
  • मुऱ्ऱुप्पॆऱात कावियंकळ्
  • पजकोविन्तम्
  • किरुष्ण अन्ताति, किरुष्ण काऩम्

उपन्यास

  • अवळुक्काक ऒरु पाटल्
  • अवळ् ऒरु इन्तुप् पॆण्
  • चिवप्पुक्कल् मूक्कुत्ति
  • रत्त पुष्पंकळ्
  • चुवर्णा चरस्वति
  • नटन्त कतै
  • मिचा
  • चुरुति चेरात राकंकळ्
  • मुप्पतु नाळुम् पवुर्णमि
  • अरंकमुम् अन्तरंकमुम्
  • आयिरम् तीवु अंकयर्कण्णि
  • तॆय्वत् तिरुमणंकळ्
  • आयिरंकाल् मण्टपम्
  • कातल् कॊण्ट तॆऩ्ऩाटु
  • अतैविट रकचियम्
  • ऒरु कविञऩिऩ् कतै
  • चिंकारि पार्त्त चॆऩ्ऩै
  • वेलंकाट्टियूर् विऴा
  • विळक्कु मट्टुमा चिवप्पु
  • वऩवाचम्
  • पिरुन्तावऩम्

आत्मकथा

  • ऎऩतु वचन्त कालंकळ्
  • वऩवाचम् (वनवासम्)
  • ऎऩतु चुयचरितम्
  • मऩवाचम् (मनवासम्)

निबन्ध

  • कटैचिप्पक्कम्
  • पोय् वरुकिऱेऩ्
  • अन्ति, चन्ति, अर्त्तजामम्
  • नाऩ् पार्त्त अरचियल्
  • ऎण्णंकळ्
  • वाऴ्क्कै ऎऩ्ऩुम् चोलैयिले
  • कुटुम्पचुकम्
  • ञाऩाम्पिका
  • राकमालिका
  • इलक्कियत्तिल् कातल्
  • तोट्टत्तु मलर्कळ्
  • इलक्किय युत्तंकळ्

नाटक

  • अऩार्कलि
  • चिवकंकैच्चीमै
  • राज तण्टऩै

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite web
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बाहरी कड़ियाँ