कंठ-रोग
Croup वर्गीकरण व बाहरी संसाधन | |
The steeple sign as seen on an AP neck X-ray of a child with croup | |
आईसीडी-१० | J05.0 |
आईसीडी-९ | 464.4 |
रोग डाटाबेस | 13233 |
मेडलाइन+ | 000959 |
ई-मेडिसिन | ped/510 साँचा:eMedicine2 साँचा:eMedicine2 |
एमईएसएच | D003440 |
कंठ-रोग (या लैरियेंगोट्राकियोब्रॉन्काइटिस) एक प्रकार का श्वसन संबंधी संक्रमण है जो ऊपरी वायु मार्ग (श्वसन तंत्र के) के वायरल संक्रमण द्वारा होता है। संक्रमण के चलते गले के भीतर सूजन हो जाती है। सूजन के कारण सामान्य श्वसन में बाधा उत्पन्न होती है; "भौंकने वाली"खांसी, स्ट्रिडोर (तेज़ घरघराहट की ध्वनि), तथा स्वर बैठना/गला बैठना कंठ-रोग के मुख्य लक्षण हैं। कंठ-रोग के लक्षण हल्के, मध्यम या गंभीर हो सकते हैं तथा रात के समय ये बदतर हो जाते हैं। मौखिक स्टीरॉयड की एक खुराक स्थिति का उपचार कर सकती है। कभी-कभार, एपाइनफ्राइन अधिक गंभीर मामलों के लिये उपयोग की जाती है। अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता बेहद कम पड़ती है।
एक बार जब लक्षणों के अधिक गंभीर कारण (उदाहरण के लिये उपकंठ की सूजन या श्वसन मार्ग में बाहरी वस्तु) निकाल दिये जाते हैं तो कंठ-रोग का निदान चिह्नो तथा लक्षणों के आधार पर किया जाता है। अधिकतर मामलों में अन्य जांच जैसे रक्त परीक्षण, एक्स-रेतथा कल्चर आदि की आवश्यकता नहीं पड़ती है। कंठ-रोग एक आम अवस्था है और लगभग 15 प्रतिशत बच्चों में दिखती है जो आम तौर पर 6 माह से 5-6 वर्ष की उम्र के होते हैं। किशोरों तथा वयस्कों में कंठ-रोग कम ही होता है।
चिह्न तथा लक्षण
साँचा:listen कंठ-रोग में लक्षणों में "भौंकने वाली" खांसी, स्ट्रिडोर(सांस अंदर लेते समय एक तेज घरघराहट की ध्वनि), स्वर बैठना/गला बैठना तथा कठिन श्वसन शामिल हैं जो आम तौर पर रात के समय बदतर हो जाते हैं।[१] "भौकने" जैसी खांसी अक्सर एकसील या समुद्री शेरकी आवाज़ से काफी मिलती है।[२] चिल्लाना घरघराहट को बदतर कर सकता है;घरघराहट का अर्थ है कि श्वसन मार्ग संकरे हो गये हैं। जैसे-जैसे कंठ-रोग बदतर होता जाता है घरघराहट कम भी हो सकती है।[१]
अन्य लक्षणों में बुखार, नज़ला (आम सर्दी-ज़ुकामके विशिष्ट लक्षण) तथा पसलियों के बीच की त्वचा का धंसना शामिल है।[१][३] राल टपकना या बीमार दिखना अन्य चिकित्सीय परिस्थितियों में शामिल हैं।[३]
कारण
कंठ-रोग आम तौर पर वायरस संक्रमण के कारण उत्पन्न हुआ बताया जाता है।[१][४] कुछ लोग इस शब्द को गंभीर लैरिंगोट्रेकाइटिस(गले व श्वसननली की सूजन), जकड़न वाला कंठ-रोग (स्पैस्मोडिक क्रुप), स्वरयंत्रज डिप्थारिया (लैरेन्जियल डिफ्थीरिया), बैक्टीरियल ट्रैन्काइटिस(बैक्टीरिया-जनित श्वासनली शोथ), लैरियेंगोट्राकियोब्रॉन्काइटिस तथा लैरियेंगोट्रैकोब्रॉन्कोन्यूमोनाइटिस को शामिल करते हुये भी प्रयोग करते हैं। पहली दो परिस्थितियां वायरस से संबंधित (विषाणु-जनित) है तथा मामूली लक्षणों वाली हैं;अंतिम चार बैक्टीरिया से संबंधित (बैक्टीरिया-जनित) हैं तथा आम तौर पर अधिक गंभीर होती है।[२]
वायरल (विषाणु-जनित)
75 प्रतिशत मामलों में पैराइन्फ्लूएंज़ा वायरस, प्राथमिक रूप से 1 व 2 प्रकारों में वायरस कंठ-रोग के लिये जिम्मेदार है।[५] कभी-कभार अन्य वायरस भी कंठ-रोग पैदा करते हैं जिनमें इन्फ्लूएंज़ा ए तथा बी, खसरा, एडेनोवायरस तथा रेस्पिरेटरी सिन्काइटल वायरस(RSV)(श्वसन संकोश विषाणु) शामिल हैं।[२] जकड़न वाला कंठ-रोग (स्पैस्मोडिक क्रुप) (भौंकने जैसी खासी वाला कंठ-रोग) उसी समूह के वायरस से होता है जिससे कि गंभीर लैरिंगोट्रेकाइटिस (गले व श्वसननली की सूजन) होता है, लेकिन इसमें संक्रमण के आम लक्षण (जैसे बुखार, गले में खराश तथा बढ़ी हुई श्वेत रक्त कणिकाओं की संख्या) नहीं होते हैं।[२] उपचार तथा उपचार की प्रतिक्रिया समान हैं।[५]
बैक्टीरियल (बैक्टीरिया-जनित)
बैक्टीरिया-जनित कंठ-रोग को निम्न रूपों में बांटा जा सकता है:स्वरयंत्रज डिप्थारिया (लायरेंजियल डिप्थीरिया), बैक्टीरिया-जनित श्वासनली शोथ (बैक्टीरियल ट्रैन्काइटिस), लैरियेंगोट्राकियोब्रॉन्काइटिस तथा लैरियेंगोट्रैकोब्रॉन्कोन्यूमोनाइटिस।[२] स्वरयंत्रज डिप्थारिया (लायरेंजियल डिप्थीरिया) का कारक कोराइनेबैक्टीरियम डिप्थीरिया है जबकि बैक्टीरिया-जनित श्वासनली शोथ (बैक्टीरियल ट्रैन्काइटिस), लैरियेंगोट्राकियोब्रॉन्काइटिस तथा लैरियेंगोट्रैकोब्रॉन्कोन्यूमोनाइटिस का कारक एक आरंभिक वायरस है जिसमें बाद में बैक्टीरिया संक्रमण हो जाता है। सबसे आम शामिल बैक्टीरिया स्टैफाइलोकॉकस ऑरेनियस, स्ट्रैप्टोकॉकस न्यूमोनिया, हेमोफाइलस इन्फ्लूएंज़ा तथा मोराक्सेला कैटरहैरिस हैं।[२]
पैथोफिज़ियोलॉजी (रोग के कारण पैदा हुए क्रियात्मक परिवर्तन)
वायरस संक्रमण के कारण गले, श्वासनलीतथा श्वेतरक्त कणिकाओं के साथ बड़े वायु मार्गों में सूजन होती है।[४] सूजन के कारण सांस लेने में कठिनाई हो सकती है।[४]
निदान
गुण | इस गुण के लिये निर्धारित अंक | |||||
---|---|---|---|---|---|---|
0 | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | |
छाती की दीवार का आंकुचन |
कुछ नहीं | हल्का | औसत | गंभीर | ||
स्ट्रिडोर | कुछ नहीं | उत्तेजना के साथ |
आराम के समय | |||
साइनॉसिस | कुछ नहीं | उत्तेजना के साथ |
आराम के समय | |||
चेतना का स्तर |
सामान्य | आत्मविस्मृत | ||||
वायु प्रवेश | सामान्य | घटा हुआ | स्पष्ट रूप से कम |
कंठ-रोग का निदान चिह्नों तथा लक्षणों के आधार पर किया जाता है।[४] ऊपरी वायु मार्ग को अवरोधित करने वाली परिस्थितियों, विशेष रूप से ऊपरीकंठ की सूजन, वायुमार्ग में कोई चीज़, सबग्लॉटिक स्टेनोसिस, एंजियोडेमा, रेटरोफॉरेन्जियल एब्सेस तथा बैक्टीरियल ट्रैन्काइटिस (बैक्टीरिया-जनित श्वासनली शोथ) को निष्कासित करना पहला चरण है।[२][४]
गले का एक्स-रे नियमित रूप से नहीं किया जाता है,[४] लेकिन यदि इसे किया जाय तो यह श्वासनली के संकुचन को दर्शा सकता है, जिसे स्टीपल चिह्न (घंटाघर के आकार का चिह्न) कहते हैं, क्योंकि यह संकुचन चर्च के घंटाघर जैसा दिखता है। स्टीपल चिह्न आधे मामलों में भी नहीं दिखता है।[३]
रक्त परीक्षण तथा वायरल कल्चर (वायरस के लिये परीक्षण) वायुमार्ग में अनावश्यक तकलीफ पैदा करता है।[४] जबकि नैसोफॉरेन्जियल चूषण (नाक से नलिका डाल कर बलगम खीचने की प्रक्रिया) द्वारा प्राप्त वायरल कल्चर का उपयोग, निश्चित कारण जानने के लिये किया जा सकता है। ये कल्चर आम तौर पर शोध कार्य तक सीमित हैं।[१] यदि कोई व्यक्ति मानक उपचार द्वारा बेहतर नहीं होता है तो बैक्टीरिया की जांच के लिये अतिरिक्त परीक्षण किये जा सकते हैं।[२]
- तीव्रता
कंठ-रोग की तीव्रता को वर्गीकृत करने की सबसे आम प्रणाली वेस्ले स्कोर है। इस परीक्षण को नैदानिक परीक्षणों से अधिक शोध कार्यों के लिये उपयोग किया जाता है।[२] यह पांच कारकों के आधार पर दिये जाने वाले अंकों का योग है, ये कारक: चेतना का स्तर, साइनॉसिस, स्ट्रिडोर, वायु प्रवेश तथा आंकुचन हैं।[२] प्रत्येक कारक को दिये गये अंक तालिका में दाहिनी ओर सूचीबद्ध किया जाता है तथा अंतिम स्कोर 0 से 17 के बीच होता है।[६]
- ≤ 2 का स्कोर "हल्के" कंठ-रोग का संकेत देता है। व्यक्ति को भौंकने जैसी खांसी हो सकती है लेकिन आराम करते समय कोई घरघराहट नहीं होगी।[५]
- 3 से 5 का कुल स्कोर "मध्यम" कंठ-रोग के रूप में वर्गीकृत है, व्यक्ति को घरघराहट के साथ कुछ अन्य चिह्न होंगे।[५]
- 3 से 5 का कुल स्कोर "गंभीर" कंठ-रोग है। इसमें स्वाभाविक रूप से घरघराहट की शिकायत होगी तथा साथ ही छाती की दीवार का भीतर की ओर आंकुचन होगा।[५]
- ≥ 12 का अर्थ है, श्वसन विफलतासंभव है। भौंकने जैसी खांसी तथा घरघराहट इस चरण में नहीं भी हो सकती है।[५]
आकस्मिक विभाग में जाने वाले 85 प्रतिशत बच्चों को हल्के स्तर का रोग होता है;गंभीर कंठ-रोग बेहद कम (<1 प्रतिशत) है।[५]
रोकथाम
इन्फ्लूएंज़ा तथा डिप्थीरिया का टीकाकरण(वैक्सीन) कंठ-रोग की रोकथाम कर सकता है।[२]
उपचार
कंठ-रोग से पीड़ित बच्चों को जितना संभव हो, शांत रखा जाना चाहिये।[४] स्टेरॉयड नियमित तौर पर दिये जाते हैं, जबकि गंभीर मामलों में एपीनेफ्राइन दिया जाता है।[४] 92 प्रतिशत तक ऑक्सीजन संतृप्ति (रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा) से पीड़ित बच्चों को ऑक्सीजन दी जानी चाहिये[२] तथा गंभीर कंठ-रोग से पीड़ित लोगों को निगरानी के लिये अस्पताल में भर्ती किया जाना चाहिये।[३] यदि ऑक्सीजन की आवश्यकता हो तो, "ब्लो-बाई" दिये जाने (बच्चे के चेहरे के पास ऑक्सीजन स्रोत रखना) की अनुशंसा की जाती है, क्योंकि यह ऑक्सीजन मास्क के उपयोग से कम समस्या पैदा करता है।[२] उपचार के साथ 0.2 प्रतिशत से कम लोगों को अंतःश्वासनली इंट्यूबेशन(वायु मार्ग में नलिका का रखा जाना) की आवश्यकता पड़ती है।[६]
स्टेरॉयड
कार्टिकॉस्टिरॉयड जैसे डेक्सामीथासोन तथा बुडासोनाइड को कंठ-रोग के उपचार के लिये उपयोग किया जा सकता है।[७] इसे दिये जाने के 6 घंटों के भीतर महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त होते हैं।[७] जबकि ये दवायें मौखिक रूप से (मुंह) से, आंत्रेतर (इंजेक्शन द्वारा अथवा आहार नाल मार्ग के अतिरिक्त) या नसिका (नाक) द्वारा दिये जाने पर कार्य करती हैं, तथापि मौखिक मार्ग (मुंह से) दिया जाना अधिक मान्य है।[४] आम तौर पर एक मात्र खुराक की ही आवश्यकता होती है तथा इसे काफी सुरक्षित माना जाता है।[४] डेक्सामीथासोन की 0.15, 0.3 तथा 0.6 मिग्रा/किग्रा समान रूप से अच्छी रहती है।[८]
एपीनेफ्राइन
औसत से गंभीर कंठ-रोग में नेब्युलाइज़्ड एपीनेफ्राइन(नाक के माध्यम से लिया जाने वाला तरल जो वायुमार्ग को चौड़ा करता है) सहायक होता है।[४] जबकि एपीनेफ्राइन आम तौर पर 10-30 मिनट में कंठ-रोग की तीव्रता को कम करता है तथापि लाभ केवल लगभग 2 घंटों तक ही रहता है।[१][४] यदि उपचार के बाद बेहतर स्थिति 2–4 घंटों तक बनी रहती है तथा कोई अन्य जटिलता नहीं उत्पन्न नहीं होती है तो बच्चा आम तौर पर अस्पताल छोड़ सकता है।[१][४]
अन्य
कंठ-रोग के अन्य उपचारों पर अध्ययन किये गये हैं लेकिन उनके उपयोग के समर्थन पर अधिक साक्ष्य नहीं मिले हैं। गर्म भाप या वाष्पीकृत हवा का श्वसन पारंपरिक स्व-देखभाल उपचार है लेकिन नैदानिक अध्ययन इनकी प्रभावशीलता दिखाने में असफल रहे हैं[२][४] तथा आजकल इसे कम ही उपयोग किया जाता है।[९] खांसी की दवाओं का उपयोग, जिनमें आम तौर पर डेक्सट्रोमेथार्फेन और/या ग्वाएफेन्सिनशामिल होते हैं, हतोत्साहित किया जाता हैं।[१] श्वसन के समय, श्वसन के कार्य को कम करने के लिये हीलियॉक्स (हीलियम और ऑक्सीजन का मिश्रण) पहले उपयोग किया जाता था, इस उपयोग के समर्थन में काफी कम प्रमाण मिलते हैं।[१०] चूंकि कंठ-रोग एक वायरस-जनित रोग है, ऐन्टीबायोटिक्स तब तक उपयोग नहीं की जाती हैं जब तक कि बैक्टीरिया की उपस्थिति का संदेह न हो।[१] ऐन्टीबायोटिक्स वैंकोमाइसिन तथा सेफोटाक्साइम को बैक्टीरिया-जनित संक्रमण के लिये अनुशंसित किया जाता है।[२] इन्फ्लूएंज़ा ए या बी से संबंधित गंभीर मामलों में, वायरस विरोधी न्यूरामिनिडेज़ इन्हिबिटर्स दिये जा सकते हैं।[२]
रोगनिदान
वायरस जनित कंठ-रोग एक लघु अवधि रोग है; कंठ-रोग द्वारा श्वसन विफलता तथा/या हृदय गति रुकनेके कारण मृत्यु की संभावना अत्यंत कम होती है।[१] लक्षण आमतौर पर दो दिनों के भीतर बेहतर हो जाते है लेकिन सात दिनों तक बने रह सकते हैं।[५] अन्य असामान्य जटिलताओं में बैक्टीरिया-जनित श्वासनली शोथ, निमोनिया तथा फुफ्फुसीय शोथ(पल्मोनरी एडेमा) शामिल हैं।[५]
महामारी विज्ञान
आमतौर पर 6 माह से 5-6 वर्ष के 15 प्रतिशत बच्चों को कंठ-रोग होगा।[२][४] इस उम्र समूह के लिये अस्पताल में भर्ती होने के कारणों में से कंठ-रोग का योगदान लगभग 5 प्रतिशत है।[५] बेहद कम मामलों में 3 माह के या 15 वर्ष के बच्चों को कंठ-रोग होने की संभावना होती है।[५] लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में इस रोग की संभावना 50 प्रतिशत अधिक होती है;शरद ऋतु (पतझड़) में कंठ-रोग अधिक आम होता है।[२]
इतिहास
शब्द क्रुप शुरुआती आधुनिक अंग्रेजी क्रिया क्रुप से आया है जिसका अर्थ है "भर्राई हुयी आवाज़ में रोना"; इस रोग के लिये यह नाम सबसे पहले स्कॉटलैंड उपयोग किया गया था तथा 18 वीं शताब्दी में लोकप्रिय हो गया।[११] डिप्थीरिया संबंधी क्रुप (डिप्थीरिटिक क्रुप) को होमर के प्राचीन ग्रीसके समय से जाना जाता रहा है। 1826 में बोटोनोव ने वायरस-जनित कंठ-रोग तथा डिप्थीरियाके कारण होने वाले कंठ-रोग के अंतर को स्पष्ट किया।[१२] इस फ्रांसीसी नें वायरस-जनित कंठ-रोग को "अशुद्ध-क्रुप" कहा तथा "क्रुप" शब्द को डिप्थीरिया के कारण होने वाले रोग के लिये उपयोग किया।[९] डिप्थीरिया से होने वाला क्रुप (कंठ-रोग) मुख्य रूप से प्रभावी टीकाकरणके आगमन के कारण लगभग समाप्त हो गया है।[१२]
सन्दर्भ
- ↑ अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ साँचा:cite journal
- ↑ अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ क ख ग घ ङ च छ ज साँचा:cite journal
- ↑ अ आ इ ई साँचा:cite web
- ↑ अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ क ख ग घ ङ च साँचा:cite journal
- ↑ अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ क ख साँचा:cite journal
- ↑ अ आ इ साँचा:cite journal
- ↑ अ आ साँचा:cite journal
- ↑ साँचा:cite journal
- ↑ अ आ साँचा:cite journal
- ↑ साँचा:cite journal
- ↑ Online Etymological Dictionary, croup स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।. Accessed 13 सितंबर 2010.
- ↑ अ आ साँचा:cite book