आँसू (काव्य)

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आँसू जयशंकर प्रसाद लिखित प्रदीर्घ गीतात्मक काव्य है, जिसका प्रकाशन १९२५ ई॰ में साहित्य सदन, चिरगाँव (झाँसी) से हुआ था।

परिचय

'आँसू' के प्रथम संस्करण में १२६ छंद थे। इसका द्वितीय संस्करण उत्तम साज-सज्जा के साथ सन् १९३३ में भारती-भण्डार, रामघाट, बनारस सिटी से प्रकाशित हुआ। इस संस्करण में प्रसाद जी ने ६७ नये छन्द जोड़ दिये और पहले संस्करण के ३ छन्द निकाल दिये। इस तरह इस संस्करण में छन्दों कि कुल संख्या १९० हो गयी।[१] यह भी ध्यातव्य है कि द्वितीय संस्करण में न केवल छन्दों की संख्या को घटाया-बढ़ाया गया बल्कि छन्दों के स्थान में परिवर्तन तथा कुछ छंदों के पाठ में अर्थात् शब्दों में परिवर्तन और कई जगह वाक्यों में परिवर्तन भी किया गया।[२][३]

'आँसू' में किसी प्रकार का खण्ड-विभाजन नहीं है तथा आंतरिक कथा-सूत्र भी क्षीण है, फिर भी उसे खंड काव्य भी माना जाता रहा है। अपने समय में 'आँसू' की इतनी प्रसिद्धि हुई थी कि इसके छन्द को ही 'आँसू छन्द' कहा जाने लगा था।

कथात्मक आधार का विवाद एवं समाधान

'आँसू' वेदना-प्रधान काव्य है। इसके प्रकाशन के बाद लोगों ने यह अनुमान लगाया कि प्रसाद जी ने अपनी किसी प्रेमिका के विरह में इसकी रचना की है। चर्चा के रूप में यह बात बहुत हुई, परंतु बहुत हद तक सब अनुमान ही रहा। कुछ निकटस्थ लोगों ने 'श्यामा' नाम की एक गायिका, जिसकी असामयिक मृत्यु हो गयी थी, को इस काव्य का आधार-पात्रा माना। इस संबंध में जब स्वयं प्रसाद जी से पूछा गया तो उन्होंने लिखित रूप में कविता में ही उत्तर देते हुए इस विवाद को पूरी तरह निरर्थक करार दिया। उन्होंने 'आँसू' काव्य का आधार-पात्र किसी नायिका को न मानकर 'प्रेम' तत्त्व को माना जो न तो स्त्री है न पुरुष। उनका छन्द इस प्रकार है :

ओ मेरे मेरे प्रेम विहँसते, तू स्त्री है या कि पुरुष है!
दोनों ही पूछ रहे हैं कोमल है या कि परुष है ?
उनको कैसे समझाऊँ तेरे रहस्य की बातें,
जो तुझको समझ चुके हैं अपने विलास की घातें ![४]

समीक्षा

'आँसू' के प्रथम संस्करण की अपेक्षा द्वितीय संस्करण में रचनात्मक विधान सम्बन्धी जागरुकता, मधुमयी प्रतिभा और जागरूक भावुकता की दृष्टि से भी काफी अन्तर है।[५] मूल के प्रति जिज्ञासा तथा तुलनात्मक उपयोग के लिए अब 'आँसू' का प्रथम संस्करण भी 'जयशंकर प्रसाद ग्रन्थावली' (संपादक- ओमप्रकाश सिंह) के खण्ड-७ में संकलित होकर पुनः उपलब्ध हो गया है।[६] 'आँसू' के बाह्य विधान एवं वैचारिक स्वरूप पर विचार करते हुए डॉ॰ रामस्वरूप चतुर्वेदी ने लिखा है : साँचा:quote

'आँसू' आधारभूत रूप से वेदना का काव्य है, लेकिन व्यष्टि का दुःख कैसे समष्टि के कल्याण में परिणत अथवा उस ओर प्रेरित करने वाला हो सकता है, इसकी सर्जनात्मक उपलब्धि है यह काव्य। इस सन्दर्भ में डॉ॰ सत्यप्रकाश मिश्र ने लिखा है : साँचा:quote

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. नागरीप्रचारिणी पत्रिका, 'जयशंकर प्रसाद विशेषांक', वर्ष-९२-९४, संवत्-२०४४-४६ सं॰ शिवनंदनलाल दर एवं अन्य, पृष्ठ-७२.
  2. नागरीप्रचारिणी पत्रिका, 'जयशंकर प्रसाद विशेषांक', वर्ष-९२-९४, संवत्-२०४४-४६ सं॰ शिवनंदनलाल दर एवं अन्य, पृष्ठ-७७.
  3. जयशंकर प्रसाद ग्रन्थावली, भाग-१, संपादक- ओमप्रकाश सिंह, प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण-२०१४, पृष्ठ-xxi.
  4. यज्ञ प्रसाद तिवारी, कादम्बिनी, सितंबर १९९६, संपादक- राजेन्द्र अवस्थी, पृष्ठ-१४२-१४३.
  5. प्रसाद का सम्पूर्ण काव्य, संपादन एवं भूमिका- डॉ॰ सत्यप्रकाश मिश्र, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, तृतीय संस्करण-२००८, पृष्ठ-३२.
  6. जयशंकर प्रसाद ग्रन्थावली, भाग-७, संपादक- ओमप्रकाश सिंह, प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण-२०१४, पृष्ठ-१५३-१८४.

बाहरी कड़ियाँ