hiwiki:चौपाल/पुरालेख 17
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अंग्रेज़ी अंकों का प्रयोग
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मुखपृष्ठ शीर्षकों में विभक्त क्यों नहीं
मुखपृष्ठ संपादन अधिकार प्राप्त लोगों से मैं सचमुच जानना चाहता हूँ कि उस पर पहले से ही बने हुए लिंक
- प्रमुख आलेख
- समाचार
- क्या आप जानते हैं?
आदि को शीर्षक (हेडिंग) के रूप में क्यों नहीं बदला जा सकता है? अनिरुद्ध वार्ता २१:३७, ७ नवंबर २००९ (UTC)
अनुक्रमणिका
शब्दों के बहाने भटकाव
हर जीवित भाषा में नए नए शब्द बनते रहते हैं परन्तु प्रचलन में वही शब्द स्वीकार्य होते हैं जिन्हे जन मानस या लोकमानस स्वीकारता है। बीस बिसवां भी ऐसा ही शब्द है। लेकिन ट्वेंटी-ट्वेंटी का स्थानापन्न नहीं हो सकता। "बिसवा" जैसे शब्द का प्रयोग लोक जीवन में दो रूप में होता है- एक तो भूमि की माप (एक बीघे में बीस बिसवा होते हैं, और दूसरा ब्राह्मणौं की उपजाति जैसे बीस बिसवा, आठ बिसवा का ब्राह्मण आदि......) इसलिए इस शब्द का प्रयोग क्रिकेट के लिए करना नितान्त बेमानी है। इसे कोई स्वीकार नहीं करेगा। दूसरी बात यह कि शब्द निर्माण सामूहिक रूप से होता है..... कोई व्यक्ति इसका निर्माता नहीं होता है पूरा समाज निर्माता होता है...... यही नए शब्दों के बनने व स्वीकार होने की प्रक्रिया होती है। आप लोग जिस तरह के तर्क और कुतर्क विकि पर लिख कर समय खराब कर रहे हैं वह ठीक नहीं है और भाषा विषयक अनुभव का अभाव इसके मूल में झलकता है। देबाशीष और अनुनाद दोनों विद्वान हैं पर अभी धैर्य की दोनों में कमी है, आप किसी शब्द को जोर देकर लोक जीवन में स्वीकृत नहीं करवा सकते हैं....... क्योंकि लोक मानव भाषा का डिक्टेटर होता है उसे जो शब्द ठीक लगता है उसी को स्वीकारता है और जो ठीक नहीं लगता है उसे एक झटके में अस्वीकार कर देता है। भाषा की पहचान उसके परसर्ग चिह्नों से होती है। यदि हिन्दी का विभक्ति चिह्न लगा है तो माना जाएगा कि उस शब्द विशेष का हिन्दीकरण कर लिया गया है। चाहे वह- रेल, स्टेशन, कालेज, तौलिया, चाकू जैसे विदेशी शब्द ही क्यों न हों प्रयोग के अनुसार ये सब हिन्दी के शब्द मान लिए गए हैं। अंग्रेजी शब्दों के लिए हिन्दी शब्द खोजना बहुत ही अच्छी बात है किन्तु किसी शब्द को स्वीकार कराने के लिए जोर देना वह भी इसलिए कि "अमुक शब्द मैंने गढ़ा है" उतनी ही बुरी बात है। इसलिए मेरी राय है कि शब्द गढ़ो और विकि पर लिख दो, किसने लिखा है, किसने गढ़ा है यह नाम मत दो ..... स्वीकार हो जाए तो बहुत अच्छा अन्यथा भूल जाइए उसे। कई बार जब किसी नए शब्द के साथ किसी का नाम आ जाता है तो उस व्यक्ति विशेष के प्रति दुराग्रह रखने वाले लोग विरोध करना शुरू कर देते हैं ...... इसीलिए लोकसाहित्य, लोकगीत, लोकशब्द अमर हैं क्योंकि उनका कोई ज्ञात रचयिता नहीं होता। विकि पर काम करने वाले बड़े हृदय के ही हो सकते हैं जैसे कि आप लोग हैं...... नहीं तो तमाम हिन्दी प्रेम का दम्भ भरने वाले अपनी जेबें भरने के चक्कर में दिन रात लगे हुए हैं..... विकि के लिए वे अपना समय खराब करना मूर्खता मानते हैं....... हाँ हिन्दी के लिए जो काम हो रहा है उसे अपने स्वार्थ में प्रचारित करके लाभ जरूर उठा रहे हें..... चाहे वे अशोक चक्रधर हों या अन्य कोई. ..... इसलिए आप जो कर रहे हैं वह बहुत त्याग का हिन्दी प्रेम है...... इसका वक्त मूल्यांकन करेगा।--आलोचक ०४:०४, ८ नवंबर २००९ (UTC)
- आलोचक जी, आपकी अधिकांश बातें कमोबेश मानते हुए आपसे निम्नम्लिखित बिन्दुओं पर और प्रकाश डालने की प्रार्थना करता हूँ-
१) "शब्द निर्माण सामूहिक रूप से होता है..... कोई व्यक्ति इसका निर्माता नहीं होता है पूरा समाज निर्माता होता है" - कृपया इसकी व्याख्या कीजिये। मेरा मत इससे बहुत भिन्न है।
२) इतिहास में बहुत से शब्द गढ़े गये हैं। कभी इसके लिये कोई 'संगीति', 'महासभा' या 'कानफरेंस' बुलायी गयी हो तो कृपया बतायें
३) क्या व्यक्ति समाज से बाहर है? मेरा तो खयाल यह है कि एक-एक व्यक्ति मिलकर ही समाज बनता है। बड़े-बड़े काम समाज नहीं करता (गतानुगतिको लोक:) एक व्यक्ति या बहुत थोड़े व्यक्ति ही अच्छे-अच्छे कामों के मूल में होते हैं। मानव बोली का ही उदाहरण लें - क्या आपको लगता है कि एक दिन उस समय जीवित सारे स्त्री-पुरुषों ने 'एक-साथ' (समवेत) बोलना शुरू कर दिया होगा? ऐसा नहीं हुआ है जी। यही तो क्रमिक विकास (इवोलूशन) का सारांश है कि सब कुछ धीरे-धीरे, एक-एक करके, क्रमिक, सरल-से-जटिल, जड़-से-चेतन, एक-कोशिकीय से बहुकोशिकीय आदि करके हुआ है। -- अनुनाद सिंहवार्ता ०६:४७, ८ नवंबर २००९ (UTC)
- आलोचक जी, आपकी अधिकांश बातें कमोबेश मानते हुए आपसे निम्नम्लिखित बिन्दुओं पर और प्रकाश डालने की प्रार्थना करता हूँ-
- लोक जीवन में शब्द निर्माण सामूहिक रूप में होता है, इसका आशय यह है कि लोक में किसी श्बद का रचना कोई व्यक्ति करता है परन्तु वह अपना नाम की चर्चा नहीं करता है कि अमुक शब्द या अमुक गीत उस व्यक्ति विशेष ने रचा है। अर्थात वह शब्द रचकर लोक के बीच उछाल देता है........ पूरा लोक समाज उस शब्द को जाँचता-परखता है (कहीं एक जगह या निश्चित तिथि पर नहीं..... धीरे-धीरे...... बहुत समय तक....) और जब लोक जनता उसे चलता सिक्का कर देती है अर्थात उसे स्वीकार कर लेती है तो वह प्रचलन में आ जाता है........ यह एक सामान्य प्रक्रिया है। लोक में कुछ भी व्यक्तिगत नहीं होता ...... जो कुछ है वह सभी का है...... पूरे लोक समाज का है....... इसीलिए लोकगीत अमर हैं........ किसी लोकगीत को या किसी लोक-शब्द को किसने रचा कोई नहीं बता सकता। --आलोचक ०४:०१, ९ नवंबर २००९ (UTC)
- जब आप भी मानते हैं कि शब्द हो या लोकगीत सब किसी व्यक्ति की रचना है (समाज/समूह की नहीं) और धीरे-धीरे समाज उसे स्वीकारता है/नकारता है तो अब बताइये कि आपको आपत्ति/मतभेद किस बात पर है? -- अनुनाद सिंहवार्ता ०४:१९, ९ नवंबर २००९ (UTC)
Harihar Natu का अनुवाद
मैं अंग्रेजी विकिपीडिया से एक प्रयोक्ता हूँ| मुझे मिल गया है एक पृष्ठ नाम Harihar Natu है और मैं यहाँ उपयोगकर्ताओं के किसी भी अनुरोध करता हूं कि यह अंग्रेजी में अनुवाद करेगा| मुझे माफ कर के रूप में मैं ज्यादा हिंदी नहीं जानते हूँ| अंग्रेजी विकिपीडिया पर मेरा प्रयोक्ता नाम Srinivas है|
(English:I am a user on English Wikipedia and I have found a page on it named Harihar Natu and I would request any of the users on this wikipedia to translate that page into English. My username on English Wikipedia is Srinivas. Thank you,) Srinivas ०६:३०, ८ नवंबर २००९ (UTC)
अक्टूबर की समस्या जारी है
कृपया ध्यान दें। १९२२ पृष्ठ पर बने हुए लिंक अभी भी अक्टूबर का पृष्ठ खोलने के बजाय नया पृष्ठ खोल रहे हैं। क्या पहले से बने हुए पृष्ठ को छोड़कर उसी पर काम करुँ? क्या इसका कोइ समाधान नहीं है? सिघ्र मार्ग दर्शन करें वरना यदि कोइ गलती हो रही है तो वह तेजी से बढ़ती जाएगी और फिर सुधारने में अधिक श्रम की आवश्यकता पड़ेगी। अनिरुद्ध वार्ता ११:००, ८ नवंबर २००९ (UTC)
- जी मैं आज ही जितना हो सके इसपर काम करने का प्रयास करती हूँ।--Munita Prasadवार्ता ११:३२, ८ नवंबर २००९ (UTC)
- काम हो गया है अनिरूद्ध जी।--Munita Prasadवार्ता १३:०४, ८ नवंबर २००९ (UTC)
इन्फोबोक्स कोड में कुछ त्रुटि
नमस्कार,
आप का ध्यान इस लेख अमेरिकी सामोआ पर दिलाना चाहूंगा. इस के इन्फोबोक्स कोड में कुछ त्रुटी है, व यह पूरे पन्ने को ही बिगाड़ रहा है. क्या आप में से कोई उपयुक्त जन इस जाचेंगे?धन्यवाद --सिद्धार्थ गौड़ १६:१६, ८ नवंबर २००९ (UTC)
- ज्ञानसन्दूक सुधार दिया गया है।--आशीष भटनागर वार्ता १७:५३, ८ नवंबर २००९ (UTC)
- आपका शीघ्रता से कार्य करने के लिए धन्यवाद --सिद्धार्थ गौड़ वार्ता २३:०६, ९ नवंबर २००९ (UTC)
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प्रबंधक
विकिपीडिया प्रबंधकों की सूची में एक नाम " श्री " का है। यह महोदय दीर्घकाल से सुसुप्त हैं। इन्हें प्रबंधक के रूप में बनाए रखने का कोई औचित्य नहीं है। इस पर प्रबंधकगण विचार करें तो अच्छा रहेगा। --आलोचक १५:५१, ११ नवंबर २००९ (UTC)
- इनका आखिरी योगदान ७ सितंबर २००८ को हुआ था।--Munita Prasadवार्ता १६:१३, ११ नवंबर २००९ (UTC)
- इसी प्रकार एक दूसरे प्रबंधक हैं- " मैजिकल साउमी "--आलोचक १६:५०, ११ नवंबर २००९ (UTC)
- लम्बे समय से सुषुप्त प्रबंधको के स्थान पर लम्बे समय से सक्रिय सदस्यों को स्थान देना चाहिए, मेरा इस प्रस्ताव के लिए समर्थन है। -- सौरभ भारती (वार्ता) १८:३८, ११ नवंबर २००९ (UTC)
- लम्बे समय तक सुसुप्त रहने वाले प्रबन्धकों के बारे में एक घोषित नीति रहने से दो-तीन लाभ होंगे। एक तो लोग इसके कारण समय-समय पर योगदान करते रहेंगे। और यदि योगदान करने की स्थिति में नहीं होंगे तो स्वत: निकाल दिये जायेंगे जिससे अन्य उत्साही लोगों को प्रबन्धक के रूप में योगदान करने का अवसर मिलेगा। तीसरा लाभ यह होगा कि घोषित नीति होने से किसी को हटाने पर उसे या किसी दूसरे को आपत्ति नहीं होगी कि इस बारे में उन्हें पहले पता नहीं था।-- अनुनाद सिंहवार्ता ०३:५८, १२ नवंबर २००९ (UTC)
- नमस्कार
हर वो व्यक्ति जिसने की यहाँ एक सक्रिय भुमिका निभायी है वो इस समाज का एक अभिनय अंग है. व उसके द्वारा किये कामो के फल स्वरुप ही उसे प्रभ्न्दक के पद से नवाजा जाता है व यहाँ पे एक मुख्य जिम्मेदारी निभाने के लिए चुना जाता है.
पर मेरी सोच है की प्रभ्न्दक का पद सिर्फ एक तमगा न होकर सक्रिय तोर पर निभाए जाने वाली जम्मेदारी का पद है. विकिपीडिया पर लगभग हर बारे में लिखित नियम व रूपरेखा है. प्रभ्न्दक मसले पर भी बनायी जा सकती है. जैसे की ३ महीने तक कोई भी योगदान न करने पे या ६ महीने में १० लेखो से भी कम में योगदान देने पे उन्हें प्रभ्न्दक पद से हटाया जा सकता है. ऐसा ही कुछ. इसमे कुछ बुरा या अशोभनीय नहीं क्यों की आजादी के साथ जब चाहे कार्य करने के लिए तो आम सदस्य का पद है ही पर सक्रिय होकर भागीदारी के लिए प्रभ्न्दक और प्रशाशक पद है.
फिर भी, मै यहाँ नया हूँ व यह एक घम्भीर मसला है, आप सभी पुराने व अनुभवी प्रभ्न्दक इस बारे में निर्णय ले. मैंने तो सिर्फ अपने विचार प्रकट किये.
धन्यवाद. --सिद्धार्थ गौड़ वार्ता ११:४३, १२ नवंबर २००९ (UTC)
- नमस्कार
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- यदि कोई प्रबंधक २ महीने तक विकि पर कोई संपादन न करे (शून्य संपादन होने पर) एक नोटिस दिया जाना चाहिए और ६ माह तक शून्य संपादन होने पर अन्तिम नोटिस दिया जाना चाहिए फिर भी यदि सक्रिय नहीं होते हैं तो इसके २ माह बाद अर्थात (६+२=८) प्रबंधक पद से हटा दिया जाना चाहिए। ---डा० जगदीश व्योम १५:३८, १२ नवंबर २००९ (UTC)
- आशीष जी वैस तो अपनी सब की राय यहाँ है, जैसा की आपने कहा के इंग्लिश विकिपीडिया के प्रबंधक लेख को हिंदी में करे, यह कार्य में कल कर दूंगा. आगे बताना चाहूंगा की वहा पर किसी प्रबंधक को हटाने के बारे में लिखा है की एक चर्चा में फैसला हुआ की किसी भी प्रबंधक को तब तक नहीं हटाया जा सकता जब तक की वोह खुद इस्तीफा ना दे दे (या कोई विकी कानून न तोड़े). इसे पड़े:
Retirement
Administrators may become inactive for a period of time, or may retire altogether. In these instances, as noted on the Perennial Proposals page, consensus has been that they will retain their rights unless they specifically request to have them removed. TAKEN FROM http://en.wikipedia.org/wiki/Wikipedia:Administrators#Retirement
पर जरूरी नहीं की हम भी वैसा ही करे और हर चीज़ इंग्लिश विकी की माने, आप सभी प्रबंधकगण भी मत से कोई फैसला ले सकते है व नए नियम को बना सकते है. --सिद्धार्थ गौड़ वार्ता १६:०४, १२ नवंबर २००९ (UTC)
- आशीष जी वैस तो अपनी सब की राय यहाँ है, जैसा की आपने कहा के इंग्लिश विकिपीडिया के प्रबंधक लेख को हिंदी में करे, यह कार्य में कल कर दूंगा. आगे बताना चाहूंगा की वहा पर किसी प्रबंधक को हटाने के बारे में लिखा है की एक चर्चा में फैसला हुआ की किसी भी प्रबंधक को तब तक नहीं हटाया जा सकता जब तक की वोह खुद इस्तीफा ना दे दे (या कोई विकी कानून न तोड़े). इसे पड़े:
- विकिपीडिया:प्रबंधक नियम व दायित्व लेख आशीष जी के कहे अनुसार बना रहा हूँ. कुर्प्या देख लेवे. --सिद्धार्थ गौड़ वार्ता २३:५२, १२ नवंबर २००९ (UTC)
- विकिपीडिया पर वर्तमान प्रबंधकों की यह सूची है। क्या कोई प्रबंधक महाशय यह लिख सकते हैं कि किस प्रबंधक ने अन्तिम योगदान कब किया है ? इससे सक्रियता की सूची सामने आ जाएगी ..... हो सकता है कि इससे कुछ सोये हुए प्रबंधक योगदान शुरू कर दें..... जो कहीं अन्यत्र व्यस्त होने के कारण विकि पर योगदान नहीं कर पा रहे होंगे।--आलोचक ०४:१२, १३ नवंबर २००९ (UTC)
प्रबन्धक
ये सदस्य हिन्दी विकिपीडिया के प्रबन्धकों की अंग्रेज़ी वर्णक्रमानुसार सूची हैं, जिनके सामने उनके अभी तक के अंतिम संपादन दिये हुए हैं।
प्रबंधक | अंतिम संपादन |
---|---|
मितुल वरिष्ठ | १९ अक्तूबर २००९ |
वुल्फ वरिष्ठ | १९ जनवरी, २००९ |
हिमांशु वरिष्ठ | २८ फरवरी, २००९ |
अमित प्रभाकर | २६ अक्तूबर २००९ |
आशीष भटनागर | |
किंगरैम | २३ अगस्त, २००९ |
टैक्सवाला | ६ जुलाई २००९ |
पूर्णिमा वर्मन | |
डा० जगदीश व्योम | |
बर्नार्ड एम | २ मार्च २००९ |
मनीष वशिष्ठ | 10 अगस्त २००९ |
मुनिता प्रसाद | |
मैजिकल साउमी | ११ दिसंबर, २००६ |
यन्न | ९ अप्रैल २००९ |
युकेश | १० अक्तूबर २००९ |
राजीवमास | ९ नवंबर २००९ |
विजय ठाकुर | १२ जनवरी, २००९ |
सौरभ भारती | |
श्री | ७ सितंबर २००८ |
डॉ.जगदीश | |
सर निकोलस द मिम्सी-पोर्पिंगटन | १९ जनवरी २००८ |
सुमित सिन्हा | २० अक्तूबर २००९ |
स्पंदन | ५ फ़रवरी २००८ |
ये नाम और संपादन मैंने दे दिए हैं। आगे जो भी निर्णय लिया जाये।--प्र:आशीष भटनागर वार्ता ०९:२२, १४ नवंबर २००९ (UTC)
लखनऊ
बॉट
क्या हिन्दी विकि पर ऐसा कोई बॉट है की कोई नया लेख बनाने पर वो हिन्दी के लेख की कड़ी अन्य भाषाओं के उसी विषय पर बने लेख पर डाल दे? यदि है तो कौनसा है और बॉट को कैसे बताया जाता यह भी कोई सदस्य मुझे बताने का कष्ट करे। धन्यवाद। रोहित रावत १२:४१, १२ नवंबर २००९ (UTC)
- नहीं रोहित जी हिन्दी विकि पर ऐसा तो कोई बॉट नहीं है।--Munita Prasadवार्ता १२:५२, १२ नवंबर २००९ (UTC)
- रोहित जी नमस्कार, मुनिता जी ने आपको बताया ही, आगे जोड़ना चाहूँगा की अगर आप किसी लेख में सिर्फ इंग्लिश के उस लेख के जुड़वा लेख का लिंक देते है तो एक बोट अपने आप उसमे सभी भाषाओ पर बने वैसे ही लेखो (अगर है तो) के लिंक डाल देता है. उदहारण के तोर पे, अगर आपने नोकिया नाम से हिंदी में लेख बनाया और उसमे टैग जोड़ा तो एक बोट उसे पड़कर इंग्लिश विकी पे जितने भी इस लेख के अन्य भाषाओ में बने लेखो के लिंकों है को जोड़ देगा. जैसे की,,
मेरे दिए टैग उदहारण देखने के लिए इस वार्ता का कोड देखे. धन्यवाद --सिद्धार्थ गौड़ वार्ता १४:१७, १२ नवंबर २००९ (UTC)
- सिद्धार्थ जी की बात एकदम सही है। ऐसा मेरा व्यक्तिगत अनुभव भी रहा है। इसलिए लेखों में कम से कम अंग्रेज़ी के लिंक और अंग्रेज़ी के समानांतर लेख में हिन्दी लिंक जोड़ने भर से भी काम चल जाता है।--प्र:आशीष भटनागर वार्ता १७:५६, १२ नवंबर २००९ (UTC)
सत्य वचन भई, इससे एक फायदा तो ये भी होता है कि बॉट द्वारा संपादन होने की वजह से गहराई को भी बढ़ने का मौका मिलता है, संपादनों की संख्या भी बढ़ती है। मैं तो नए लेख बनाने पर उसमें सिर्फ एक अंग्रेजी विकि का लिंक जोड़ती हूँ तथा उसके अंग्रेजी वाले में इस नए हिन्दी लेख की कड़ी जोड़ देती हूँ बाकी भाषाओं के लिंक जोड़ने का कार्य अंग्रेजों का कोई बॉट कर देता है।--Munita Prasadवार्ता १६:४६, १३ नवंबर २००९ (UTC)
फ्रांस
इस लेख का वर्तमान नाम गलत है। सही नाम फ़्रांस है जो पहले रखा हुआ था। फ पर नुफ़्ता (़) लगाने पर उसकी ध्वनी बदल जाती है और इस देश के नाम में वही ध्वनि उच्चारित होती है। इसलिर इसे बदलकर सही किया जाए। धन्यवाद। रोहित रावत १२:४६, १२ नवंबर २००९ (UTC)
- रोहित जी काम हो गया जी।--Munita Prasadवार्ता १२:५४, १२ नवंबर २००९ (UTC)
- फ़्रांस को फ्रांस मैने ही किया था, जिसे फिर से बदलकर फ़्रांस कर दिया गया, इस पर मुझे आपत्ति है। पहले तो मै रोहित रावत जी से पूछना चाहूँगा कि उन्होने हिन्दी के किस अखबार, पत्रिका या किताब मे फ़्रांस लिखा देखा है अगर वो मुझे साक्ष्य दें तो मै उनकी बात मान जाऊंगा, पर यदि वो ऐसा ना कर पायें तो क्या वो इसे फिर से फ्रांस करने की संस्तुति करेंगे? कई बार हम जो सोचते हैं वो होता नहीं है, इसलिए किसी भी लेख का नाम रखने और बदलने से पहले हमें अच्छी तरह से सोच विचार कर लेना चाहिए। दिनेश १५:४६, १३ नवंबर २००९ (UTC)
- ये तो गड़बड़ हो गई मैंने रोहित जी के अनुरोध के अनुसार नाम बदल दिया अब दिनेश जी का विरोध आ गया। मैं खुद ही कहती फिरती हूँ कि नाम बदलना है तो चर्चा कीजिए इसलिए अब इस पर चर्चा कर लीजिए फिर नाम बदलकर नाम बदलने का अधिकार सुरक्षित कर दूंगी क्योंकि पता नहीं फिर कौन सा नया सदस्य आए और नाम बदल दे।--Munita Prasadवार्ता १६:५२, १३ नवंबर २००९ (UTC)
- पहले मेर भी सोचना यही था, कि हिन्दी भाषा में अधिकतम फ का ही प्रयोग किया जाये, जैसा कि मुनिता जी, और गुंजन ने अफ्रीका लेख के दौरान देखा भी होगा। किंतु एक बात बिल्कुल सही लगी, कि फ को अंग्रेज़ी में Ph के स्थान पर प्रयोग कर सकते हैं, जबकि फ़ को अंग्रेज़ी में F के स्थान पर प्रयोग कर सकते हैं। असल में शुद्ध हिन्दी में फ़, ग़, ख़, क़ आदि जैसा कोई अक्षर नहीं होता है, इन्हें उर्दु के व्यंजनों को स्थान देने हेतु बाद में नुक्ता रूप में जोड़ा गया है। (यहां हिन्दी की महानता और उदारता का गुणगान नहीं कर रहा हूं)। अतएव असल में जब हमारे पास नुक्ते आधिकारिक रूप से स्वीकार्य हैं, तब फ्रांस के स्थान पर फ़्रांस क्यों न प्रयोग किया जाये। हां सूचनार्थ ये भी बता देना चाहूंगा, कि गूगल सर्च पर फ़्रांस के २८४,००० मात्र जबकि फ्रांस के १,१४४,४०० परिणाम मिले हैं। किन्तु ये शायद कोई क्राइटेरिया न हो निर्णय लेने क, कि अधिकांश लोग गलती करें तो क्या हम भी।--प्र:आशीष भटनागर वार्ता ०८:५०, १४ नवंबर २००९ (UTC)
- मेरा इस बारे में विचार है कि नुक्ते का प्रयोग किया ही न जाय। नुक्ते का प्रयोग इसलिये किया जाता है कि शायरी आदि में वही उच्चारण बोधित हो जो उर्दू में होता है। इसलिये कहीं कोई शेर लिखना पड़े और उसमें उर्दू का कोई नुक्ते वाला शब्द हो तो ही नुक्ते का प्रयोग करना चाहिये। दुनिया की कोई भी लिपि किसी एक भाषा के कुछ शब्दों के 'सही' उच्चारण के लिये अपने को इतनी आसानी से बदल नहीं लेती। स्वयं उर्दू लिपि भारतीय शब्दों को सही-सही लिखने में इतनी असमर्थ है पर क्या उन्होने देवनागरी का कोई वर्न अपनाया है? -- अनुनाद सिंहवार्ता १०:२४, १४ नवंबर २००९ (UTC)
- पहले मेर भी सोचना यही था, कि हिन्दी भाषा में अधिकतम फ का ही प्रयोग किया जाये, जैसा कि मुनिता जी, और गुंजन ने अफ्रीका लेख के दौरान देखा भी होगा। किंतु एक बात बिल्कुल सही लगी, कि फ को अंग्रेज़ी में Ph के स्थान पर प्रयोग कर सकते हैं, जबकि फ़ को अंग्रेज़ी में F के स्थान पर प्रयोग कर सकते हैं। असल में शुद्ध हिन्दी में फ़, ग़, ख़, क़ आदि जैसा कोई अक्षर नहीं होता है, इन्हें उर्दु के व्यंजनों को स्थान देने हेतु बाद में नुक्ता रूप में जोड़ा गया है। (यहां हिन्दी की महानता और उदारता का गुणगान नहीं कर रहा हूं)। अतएव असल में जब हमारे पास नुक्ते आधिकारिक रूप से स्वीकार्य हैं, तब फ्रांस के स्थान पर फ़्रांस क्यों न प्रयोग किया जाये। हां सूचनार्थ ये भी बता देना चाहूंगा, कि गूगल सर्च पर फ़्रांस के २८४,००० मात्र जबकि फ्रांस के १,१४४,४०० परिणाम मिले हैं। किन्तु ये शायद कोई क्राइटेरिया न हो निर्णय लेने क, कि अधिकांश लोग गलती करें तो क्या हम भी।--प्र:आशीष भटनागर वार्ता ०८:५०, १४ नवंबर २००९ (UTC)
- ये तो गड़बड़ हो गई मैंने रोहित जी के अनुरोध के अनुसार नाम बदल दिया अब दिनेश जी का विरोध आ गया। मैं खुद ही कहती फिरती हूँ कि नाम बदलना है तो चर्चा कीजिए इसलिए अब इस पर चर्चा कर लीजिए फिर नाम बदलकर नाम बदलने का अधिकार सुरक्षित कर दूंगी क्योंकि पता नहीं फिर कौन सा नया सदस्य आए और नाम बदल दे।--Munita Prasadवार्ता १६:५२, १३ नवंबर २००९ (UTC)
- फ़्रांस को फ्रांस मैने ही किया था, जिसे फिर से बदलकर फ़्रांस कर दिया गया, इस पर मुझे आपत्ति है। पहले तो मै रोहित रावत जी से पूछना चाहूँगा कि उन्होने हिन्दी के किस अखबार, पत्रिका या किताब मे फ़्रांस लिखा देखा है अगर वो मुझे साक्ष्य दें तो मै उनकी बात मान जाऊंगा, पर यदि वो ऐसा ना कर पायें तो क्या वो इसे फिर से फ्रांस करने की संस्तुति करेंगे? कई बार हम जो सोचते हैं वो होता नहीं है, इसलिए किसी भी लेख का नाम रखने और बदलने से पहले हमें अच्छी तरह से सोच विचार कर लेना चाहिए। दिनेश १५:४६, १३ नवंबर २००९ (UTC)
भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय की समिति द्वारा 1962 में वर्तनी संबंधी लिए गए उपयोगी और सर्वमान्य निर्णय में नुक्ता संबंधी निर्णय-
अरबी फारसी के वे शब्द जो हिंदी का अंग बन चुके हैं और जिनकी विदेशी ध्वनियों का हिंदी ध्वनियों में रूपांतर हो चुका है उन्हें हिंदी रूप में ही स्वीकार किया जाय। जैसे- जरूर, कागज आदि। जहाँ उनका विदेसी रूप प्रकट करना अभीष्ट हो वहाँ नुक्ता लगाया जाय।
दरअसल नागरी लिपि की खासियत उच्चारण अनुरुप भाषा लिखने की रही है। इसिलिए नुक्ता का आविष्कार किया गया। ड और ढ के नीचे तो एक भिन्न ध्वनी को व्यक्त करने के लिए यह बहुत पहले से लग ही रहा था। लेकिन भाषा के मानकीकरण में लोकतांत्रीक समाज में तानाशाही नहीं चल सकती। इसलिए हिंदी के बड़े विद्वानों पं किशोरीदास वाजपेयी, पराड़कर जी, टंडन जी, रामविलास शर्मा और प्रतिनिधी संस्थाओं काशी नागरी प्रचारिणी सभा और हिंदी साहित्य सम्मेलन को नुक्ता का प्रयोग अमान्य होने पर भी नुक्ता का प्रचलन बढ़ा है। अपनी स्नातक तक की पढ़ाई मैने बिना नुक्ते के की है किंतु अभी मैं अनीवार्य रूप से उसका उपयोग करता हूँ, और यह समझता हूं की मेरे कहने से फ़्रांस या फ्रांस गलत या सही नहीं हो जाता है। हमें बस इतना ध्यान रखना चाहिए कि दोनों नामों में से किसी के भी लिंक से या खोज बक्से में टाइप कर उक्त लेख पर पहुँचा जा सके। और खुशी की बात यह है कि विकिया में ऐसा संभव है।
अनिरुद्ध वार्ता १४:०२, १४ नवंबर २००९ (UTC)
- नुक्ता को लेकर बहस बहुत अधिक हो गई लगती है। दरसल मैंने तो फ़्रांस लिखने का सुझाव इसलिए दिया था क्योंकि इस देश के उच्चारण में फ़ की ध्वनि आती है नाकि फ की। अफ़्रीका में भी यही बात लागू होती है। आप लोग स्वयं ही उच्चारण करके देखिए। और जहाँ तक प्रश्न सरकारी दस्तावेजो का है तो उनपर भरोसा करना अब ठीक नहीं। आजकल दिल्ली में बस स्टॉपों पर लोगों को यातायात के नियमों के प्रति सजग करने के लिए दिल्ली सरकार के विज्ञापन छपे हुए हैं लेकिन उन विज्ञापनों में वाक्य का समापन बिन्दू (फ़ुल स्टॉप) से किया जा रहा है नाकि हिन्दी के पूर्ण विराम से। और अनुनाद जी यदि उर्दू ने नहीं अपनाया तो यह उस भाषा को बोलने वालो की कमी है। आज जो यह IPA प्रचलित है उसका कारण भी यही है की रोमन लिपि को अपनाने वाली भाषाएं भी हिन्दी और अन्य बहुत सी भाषाओं के शब्दों को लिख पाने में असमर्थ हैं और ऐसा भी नहीं है की नुक्ता लगाए बिना हम भी अन्य भाषाओं के शब्दों का ठीक से उच्चारण कर लेंगे। मेरे विचार में तो वही भाषा बची रहती है जो अधिक से अधिक और अच्छे से अच्छे ढंग से अपने आप को व्यक्त कर सकती है। और कुछ नहीं बल्कि ऐसे बहुत से शब्द हैं, बल्कि अधिकतर शब्द ऐसे हैं जिनपर नुक्ता प्रयुक्त होता है। हाँ यह बात अलग है की हम हिन्दी भाषी लिखने पर इतना ध्यान नहीं देते क्योंकि उच्चारण सभी को पता होता है। और अनिरुद्ध जी की बात बिल्कुल सही है की हिन्दी में उच्चारण के अनुसार ही शब्दों को लिखने की विशेषता रही है। और आप किसी भी अच्छी हिन्दी जानने वाले व्यक्ति से पूछ लीजिए आपको फ़्रांस और फ्रांस के अलग-२ उच्चारण सुनाई देंगे। बाकि जैसी आप लोगों की इच्छा। रोहित रावत १०:५३, १५ नवंबर २००९ (UTC)
- रोहित जी, अंग्रेजी के शब्दों के उच्चारण का कोई नियम नहीं है। इसलिये यह कहना कि F का उच्चारण यह होता है और Ph का यह , सही नहीं है। दूसरी बात यह कि "फ़्रांस और फ्रांस के अलग-२ उच्चारण सुनाई देंगे" इस पर भी कोई विवाद नहीं है। तीसरी बात यह है कि मुझे या किसी और को "France" का क्या उच्चारण सही लगता है इसका अधिक महत्व नहीं है - इस बात का महत्व है कि दुनिया (और मुख्यत: अंग्रेज) इस शब्द का उच्चारण कैसे करते हैं। (मुझे खुद पता नहीं है) । चौथी बात यह है कि आप देवनागरी वर्णमाला में सौ अक्षर कर देंगे तो भी गारंटी नहीं है कि संसार के सभी शब्दों का "सही" उच्चारण लिख पायें। (आई पी ए भी दुनिया के सभी वर्णों की 'पूर्णत: शुद्ध' उच्चारण की गारंटी नहीं देता।) पांचवी बात यह कि "वही भाषा बची रहती है जो अधिक से अधिक और अच्छे से अच्छे ढंग से अपने आप को व्यक्त कर सकती है" - यह भी तथ्यों पर खरा नहीं उतरेगा। (अंग्रेजी इसका जीता-जागता उदाहरण है)
जहाँ तक अनिरुद्ध जी की बात है, उन्होने बहुत सही बातें कही हैं लेकिन उनके "लोकतंत्र" शब्द का हड़बड़ी में कोई गलत अर्थ निकाल सकता है। लोकतंत्र से प्राय: बहुमत का बोध होता है; इसलिये यहाँ लग रहा है कि नागरी प्रचारिणी सभा आदि जो नुक्तों के प्रयोग के विरुद्ध थे वे अल्पमत में थे। किन्तु मेरा खयाल है कि शायद ऐसा नहीं था। यह अधिकांशत: एक 'राजनैतिक' निर्णय था जो स्वतंत्रता आन्दोलन के समय 'उर्दूवालों' को खुश या तुष्ट करने के लिये किया गया था। -- अनुनाद सिंहवार्ता ११:३६, १५ नवंबर २००९ (UTC)
- रोहित जी, अंग्रेजी के शब्दों के उच्चारण का कोई नियम नहीं है। इसलिये यह कहना कि F का उच्चारण यह होता है और Ph का यह , सही नहीं है। दूसरी बात यह कि "फ़्रांस और फ्रांस के अलग-२ उच्चारण सुनाई देंगे" इस पर भी कोई विवाद नहीं है। तीसरी बात यह है कि मुझे या किसी और को "France" का क्या उच्चारण सही लगता है इसका अधिक महत्व नहीं है - इस बात का महत्व है कि दुनिया (और मुख्यत: अंग्रेज) इस शब्द का उच्चारण कैसे करते हैं। (मुझे खुद पता नहीं है) । चौथी बात यह है कि आप देवनागरी वर्णमाला में सौ अक्षर कर देंगे तो भी गारंटी नहीं है कि संसार के सभी शब्दों का "सही" उच्चारण लिख पायें। (आई पी ए भी दुनिया के सभी वर्णों की 'पूर्णत: शुद्ध' उच्चारण की गारंटी नहीं देता।) पांचवी बात यह कि "वही भाषा बची रहती है जो अधिक से अधिक और अच्छे से अच्छे ढंग से अपने आप को व्यक्त कर सकती है" - यह भी तथ्यों पर खरा नहीं उतरेगा। (अंग्रेजी इसका जीता-जागता उदाहरण है)
- इस बात का कोई महत्व नहीं कि अंग्रेज किसी शब्द का उच्चारण कैसे करते हैं पर महत्व इस बात का है कि हमने उसे हिन्दी में कैसे अपनाया है। जैसे मिस्र को अंग्रेज इजिप्ट कहते हैं पर हिन्दी में इसे मिस्र ही लिखा जाता है। आज इंटरनेट के युग में हिन्दी के मानकीकरण की बहुत आवश्यकता है नहीं तो विभिन्न लोग विभिन्न वर्तनियां टाइप करते रहेंगे और नतीजा कुछ नहीं निकलेगा। आज विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं का मानकीकरण हो चुका है और इन भाषाओं से संबंधित संस्थायें बाकायदा इनकी मानका वर्तनी प्रकाशित करती हैं और पूरे विश्व में इनकी वर्तनियों को लेकर कोई मतभेद नहीं रहता। हिन्दी अभी भी उस मानकीकरण जिसकी एक विकसित भाषा को आवश्यकता होती है से दूर है, हम सभी को इस दिशा में प्रयास करना चाहिए। आज अगर किसी को France के बारे में कोई खोज करनी है तो उसे बस France टाइप करना है पर हिन्दी में यह फ्रांस, फ्राँस, फ्रान्स, फिरांस, फ़्रास फ़्रान्स, फ़िराँस, फ़िरांस, और पंजाबी लोग तो गुरुमुखी के प्रभाव के चलते फिरानस भी टाइप कर सकते हैं, ऐसी सूरत में सही शब्द क्या है कोई नहीं जान पायेगा। रीडायरेक्ट खोज की परेशानी तो कम कर सकते हैं पर सही शब्द क्या है यह तो पता नहीं चलेगा। फ्रांस जो एक बहुत प्रसिद्ध देश है उसके नाम को लेकर हम भ्रमित हैं तो Sprska को क्या लिखेंगे मैं तो यह सोच कर ही हैरान हूँ। दिनेश १७:३१, १५ नवंबर २००९ (UTC)
- दिनेश जी, आपकी यह बात "महत्व इस बात का है कि हमने उसे हिन्दी में कैसे अपनाया है।" सचमुच इस पर भारी है कि अंग्रेज उसे कैसे उच्चारित करते हैं। मैं भी मानता हूँ कि अन्तत: किसी विदेशी शब्द का लिखने का ढंग और उच्चारण हमारी भाषा और लिपि एवं भारतीयों की उच्चारण करने की क्षमता को ध्यान में रखते हुए तय किया जाना चाहिये न कि रूढ़ तरीके से (यानि कि अंग्रेज, इरानी, अरबी आदि लोग उसे कैसे बोलते हैं)। हाँ, यदि उच्चारण, उस शब्द के 'मूल भाषा' के निकटतम् हो जाय तो सोने पर सुहागा। -- अनुनाद सिंहवार्ता १२:३१, १५ नवंबर २००९ (UTC)
एक बात और कहना चाहता था कि वर्तनी में विभिन्नताओं के दर्शन अंग्रेजी में भी (अमेरिकन/ब्रिटिश/आस्ट्रेलियायी अंग्रेजी आदि) होता है। हिन्दी में वर्तनी का अन्तर अनुस्वार और वर्गान्तीय वर्णों के परस्पर घालमेल से (और अस्पष्त नीति के चलते) होती है। -- अनुनाद सिंहवार्ता १२:४६, १५ नवंबर २००९ (UTC)
- दिनेश जी, आपकी यह बात "महत्व इस बात का है कि हमने उसे हिन्दी में कैसे अपनाया है।" सचमुच इस पर भारी है कि अंग्रेज उसे कैसे उच्चारित करते हैं। मैं भी मानता हूँ कि अन्तत: किसी विदेशी शब्द का लिखने का ढंग और उच्चारण हमारी भाषा और लिपि एवं भारतीयों की उच्चारण करने की क्षमता को ध्यान में रखते हुए तय किया जाना चाहिये न कि रूढ़ तरीके से (यानि कि अंग्रेज, इरानी, अरबी आदि लोग उसे कैसे बोलते हैं)। हाँ, यदि उच्चारण, उस शब्द के 'मूल भाषा' के निकटतम् हो जाय तो सोने पर सुहागा। -- अनुनाद सिंहवार्ता १२:३१, १५ नवंबर २००९ (UTC)
- अपनी बात कहने से पहले मैं एक-दॊ छोटी बाँतें यह कहना चाहूंगा कि हम फ़ और फ के भेद पर लड़ रहे हैं जबकि आज फ, नुक्ते के साथ या बिना नुक्ते के, फ़ की तरह ही उच्चारित हो रहा है । फल, फ़ल की तरह, विस्फोट, विस्फ़ोट की तरह इत्यादि । (और ऐसा केवल हिन्दी में नहीं बल्कि गुजराती से लेकर बंगाली तक और पंजाबी से लेकर द्रविड़ भाषाओं में भी हो रहा है ।) इसलिये इस विशेष स्थिति में वर्तनी का कोई ख़ास तात्पर्य नहीं है । और दूसरी बात- अगर बात सही उच्चारण की है तो फिर तो ’फ़्रांस’ से भी अच्छी वर्तनी ’फ़्रान्स’ है ।
- खैर यहाँ पर मुद्दा कमोबेश यही है कि जगहों के नामों को कैसे अनुवादित और/या लिप्यान्तरित किया जाए । इस बारे में हर भाषा में बहस होती है- हिन्दी अपवाद नहीं है । आम तौर पर यही माना जाता है कि न तो पूरी तरह आम प्रयोग के पीछे जाया जा सकता है और न ही मशीन की तरह सबसे नज़दीकी वर्तनी लिखी जा सकती है । किसी भी नाम के अनुवाद या लिप्यांतरण में सबसे पहले तो हमें ये देखना होगा कि कोई परम्परागत वर्तनी है कि नहीं । अगर है तो फिर उसी को अपनाना चाहिये न कि किसी नई, गढ़ी-हुई वर्तनी को, भले ही वो भाषाई तौर पर सही हो । अगर नहीं है, तो फिर सबसे नज़दीकी वर्तनी या सबसे नज़दीकी अनुवाद को ले लेना चाहिये । वैसे मैं यहाँ ये भी कहूंगा कि अगर किन्हीं जगहों के नाम नहीं हैं, तो फिर एक बार ये भी देख लेना चाहिये कि उर्दू में फ़ारसी या अरबी से आये हुए कोई शब्द तो नहीं प्रयुक्त हो रहे । ज़ाहिर-सी बात है कि कई सभ्यताओं/भाषाओं इत्यादि से भारत परिचित नहीं था और वे हमें अरबी के शब्दों और व्याख्यानों से ही पता चलीं, जैसे मिस्र, यहूदी, ईसा, मसीहा/मसीह, तुर्क इत्यादि । बाइबल के हिन्दी अनुवाद में भी पैगम्बरों के अरबी नाम प्रयुक्त होते हैं- दाऊद, ईसा, इब्राहिम इत्यादि । इसके अलावा चूँकि उर्दू भाषाई रूप से हिन्दी के सबसे नज़दीक है इसलिये अगर उर्दू में भी कोई परम्परागत नाम इस्तेमाल हो रहे हैं तो उन्हें ले लेना चाहिये, और अगर उस में भी नहीं हैं तब उसके बाद ही नए गढ़े जाने चाहियें । Maquahuitl ०६:२५, १९ नवंबर २००९ (UTC)
आज का आलेख
१३ नवम्बर हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म दिन है। आज का आलेख में १३ नवम्बर को यह लेख होना चाहिए।--अनुनाद सिह १४:३२, १२ नवंबर २००९ (UTC)
- आप महाशय हमारे चिरपरिचित अनुभवी विकिपीडियन अनुनाद जी तो हैं नहीं। फिर आप उनके नाम का इस प्रकार एक विंदु के हेर फेर से उपयोग कर रहे हैं कि वाकई कन्फ्यूजन हो रहा है। खैर कोई भी व्यक्ति किसी भी नाम का खाता खोल सकता है पर चूंकी आपने आज का आलेख से सम्बंधित सुझाव दिया है तो उसका जवाब यह है कि आपके द्वारा प्रस्तावित लेख समय पर तैयार नहीं किया जा सका। १३ को प्रकाशित होने के लिए लेख यदि १२ की रात को प्रस्तावित कीजिएगा तो उसको चयनित करना संभव नहीं होगा। धन्यवाद।--Munita Prasadवार्ता १६:५८, १३ नवंबर २००९ (UTC)
वीडियो ग्राफिक्स ऐरे
वीडियो ग्राफिक्स ऐरे का नाम बदलकर वीडियो ग्राफिक्स अरे कर दिया गया है जो सही नहीं है, Array अंग्रेजी का शब्द है और अंग्रेजी में स्वतंत्र रूप से 'अ' लिखने का चलन नहीं है, इसलिए A से शुरु होने वाले अंग्रेजी शब्दों का उच्चारण ए या ऐ से शुरु होता है। मैने अपना विचार रख दिया आगे जैसा प्रबंधक सही समझें। --दिनेश १५:५४, १३ नवंबर २००९ (UTC)
- आपके उत्तम विचारों का स्वागत है दिनेश जी। नाम मैंने बदल दिया है।--Munita Prasadवार्ता १६:५९, १३ नवंबर २००९ (UTC)
- मुनीता मेरे बदलाव को हटाने का मतलब नहीं समझ पाया। पिछले १० साल से सॉफ्टवेयर की दुनिया में हूं, Array का उच्चारण अरे किया जाता है ऐरे नहीं --देबाशीष १५:४२, १५ नवंबर २००९ (UTC)
- देवाशीष का कहना एकदम ठीक हॅ Array का उच्चारण "अरे" होता है "ऐरे" नहीं....... (अंग्रेजी हिन्दी कोश, फादर कामिल बुल्के, पृ०- ४१ पर इसे देख सकते हें)---आलोचक १६:४८, १५ नवंबर २००९ (UTC)
- देबाशीश जी आपके इस कथन से कि इसे "अरे" कहते हैं से मैं बिल्कुल सहमत नहीं हँ, इसे एरे या ऐरे कहकर ही पुकारा जाता है, जहां तक आलोचक जी का कहना है कि फादर कामिल बुल्के के कोश में इसे अरे कहा गया है तो मैं उनसे आग्रह करूँगा कि उच्चारण को ध्यान से देखें वहां अ कि ऊपर ऍ की मात्रा है जिसकी सबसे निकटतम ध्वनि ऐ ही होती है ना कि अ। --दिनेश १३:३३, १६ नवंबर २००९ (UTC)
- अ के ऊपर जो चिह्न लगा हुआ है उसका उच्चारण ऐ की तरह नहीं होता है। वह औकारात्मक ध्वनि है जैसे- कॉलेज ..... यह ध्वनि भी हिन्दी में अंग्रेजी से ही आई है। एरे या ऐरे गलत उच्चारण हॅ, कोई शब्दकोश देख लीजिए और विवृत तथा अर्द्धविवृत के उच्चारण को समझ लीजिए फिर आपका भ्रम दूर हो जाएगा। ।--आलोचक १४:२३, १६ नवंबर २००९ (UTC)
- इस बारे में कुछ कहना चाहूंगा। एक अंग्रेज़ी होता है: alien, जिसे अधिकांश लोग एलियन कहते हैं, किन्तु हमारे पूर्व प्रधान मंत्री श्री.राजीव गांधी जी इसे एलायन कहा करते थे। ये एक बहुप्रचलित उदाहरण है अंग्रेज़ी के बहु-उच्चारित शब्दों का। इसी प्रकार अरे या ऐरे दोनों ही सही उच्चारण हैं। जैसे जीव-विज्ञान के लिए बायोलॉजी, या बायॉल्जी, या फ़िज़ियोलॉजी या फ़िज़ियॉल्जी आदि। इस प्रकार ही अरे या ऐरे भी दोनों ही सही उच्चारण हैं। हां इस बारे में हम किसी बहुमत प्राप्त उच्चारण को लेख शीर्षक में डलकर आगे बहु-उच्चारण के रूप में अन्य उच्चारण लिख सकते हैं, व उन उच्चारणों को मुख्य लेख पर पुनर्निर्देशित कर सकते हैं। स्वयं दिनेश जी ने इस शब्द के दो उच्चारण दिये हैं: एरे और ऐरे, जिनमें से एरे को तो एकदम ही रद्द किया जा सकता है।(कृपया अन्यथा न लें) कुछ शब्दों के यूरोपीय या ब्रिटिश उच्चारणों के साथ अमरीकी उच्चारण भी उपलब्ध हैं। मेरे द्वारा दिये गए लॉजी उदाहरणों में यही अंतर है। ऐसे ही classes के लिए क्लासेज़ और क्लैसेज़, terrific के लिए टैरेफ़िक और टेर्रफ़िक और ढेरों अन्य उदाहरण हैं। इन सभी का शब्दकोषों में संदर्भ नहीं मिलेगा, बस बहुराष्ट्री बोलचाल व उच्चारण पद्धति से पता चलता है।--प्र:आशीष भटनागर वार्ता १४:०२, १६ नवंबर २००९ (UTC)
ट्राई बीटा
मेरी सभी हिन्दी विकीपीडिया प्रबंधकों से विनती है कि जब भी कोई विशेष पृष्ठ लिखा जाता है या विकीपीडिया द्वारा कुछ नया किया जाता है तो हिन्दी विकीपीडिया पर अंग्रेजी का ही लेख डाल दिया जाता है चाहे वो ट्राई बीटा हो या विकीपीडिया फॉरएवर हो जबकि सभी प्रमुख भाषाओं मे यह लेख उन्हीं भाषाओं मे मिलते हैं, यहां तक कि अविकसित समझी जाने वाली इन्डोनेशियाई और थाई भाषाओं मे भी यह लेख उनकी अपनी भाषाओं मे होते हैं, मराठी और बांग्ला विकीपीडिया पर ट्राई बीटा पहले दिन से उपलब्ध है पर हिन्दी में किसी का ध्यान इस ओर नहीं जा रहा जो दयनीय है। --दिनेश १६:०४, १३ नवंबर २००९ (UTC)
- दिनेश जी की बात सही है की इस प्रकार के सन्देश हिंदी विकिपीडिआ में हिंदी में होने चाहिए. मेटा विकी पर इस बारे में बहुत समय से चर्चा हो रही है की इन संदेशो को लोग अपनी भाषा में ट्रांसलेट करने में मदद करे. शायद यह हिंदी में नहीं हो पाया होगा, इसलिए यहाँ यह इंग्लिश में ही देखाए जा रहे है. --सिद्धार्थ गौड़ वार्ता १०:०९, १६ नवंबर २००९ (UTC)
क्या मैं जान सकता हूँ?
क्या मैं यह जान सकता हूँ की मेरे द्वारा प्रस्तावित लेख हरिद्वार, क्यों प्रस्तावित लेखों की सूची से हटा दिया गया है? रोहित रावत १०:५०, १७ नवंबर २००९ (UTC)
- रोहित जी इसका जवाब मैं पहले ही आपकी वार्ता पर दे चुकी हूँ पर जब आप चौपाल पर आ ही गएँ हैं तो वो वार्ता यहाँ चिपका देती हूँ।--Munita Prasadवार्ता १०:५४, १७ नवंबर २००९ (UTC)
- रोहित जी,
एक बार बहुत सारे लेख एक साथ निर्वाचित लेख उम्मीदवार पर प्रस्तावित हुए थे तो उसके बाद एक चर्चा के बाद यह निर्णय लिया गया है कि लेख को निर्वाचित बनाने के लिए पहले उसे पहले परख पर परखा जाए उसके बाद ही उम्मीदवार पर प्रस्तावित किया जाए। आपके प्रस्तावित लेख हरिद्वार को मैंने परख पर डाल दिया है, कुछ समर्थन एवं सुधारों के बाद उसे उम्मीदवार पर डाला जाएगा।--Munita Prasadवार्ता १०:५२, १७ नवंबर २००९ (UTC)
- रोहित जी,
प्रबंधक राजीव जी के बारे में बन रहे लेख
नमस्कार,
मैंने आज मेरी वार्ता पृष्ठ पर एक सदस्य द्वारा झोडा गया सन्देश देखा, यह प्रबंधक राजीव जी के बारे में था. खेर मैंने उस लेख को काट दिया पर अब में देख पा रहा हूँ की इस प्रकार के लेख पूरे विकी पर इधर उधर बनाये जा रहे है. देखे: विकिपीडिया वार्ता:प्रबंधक नियम व दायित्व, सदस्य वार्ता:कोअस्त्नेवर, विकिपीडिया वार्ता:प्रबंधक आदि. में सभी प्रबंधकगणों से निवेदन करना चाहूंगा की साझा प्रयास करके इस प्रकार के हिन् भावना से ग्रस्त संदेशो को तुरंत मिटाया जावे व इसे बनाने वाले सदस्य के खाते पर सुरक्षात्मक करवाई की जावे व उनकी आईपी भी प्रतिबंधित हो. उन सदस्य से मेरा निवेदन है की अगर उन्हें कोई हानि पहूची है तो इस प्रकार से आपकी अपनी हिंदी विकी को दूषित करने की जगह यहाँ चोपाल पर आये, व खुल कर वार्ता करे. सभी प्रबंधक आपका सहयोग करेंगे.
धन्यवाद --सिद्धार्थ गौड़ वार्ता १६:५८, १९ नवंबर २००९ (UTC)
- दरअसल यह एक पागल व्यक्ति है जो एक लम्बे समय से विकी पर अनर्गल लिख रहा है। ऐसे व्यक्ति मानसिक रोगी होते हैं। जो अनर्गल कुछ न कुछ लिखते रहते हैं।--अनुनाद सिह १०:४७, २० नवंबर २००९ (UTC)
चोर समर्थक चोर
आपने सहि काहा वास्तब में मॅ मानसिक रोगी हूँ इसीलीए यह लीख रहा हू कि चोर प्रबंधक राजीव मास कुकर्म करके हीन्दी वीकीपीडीयाका पुरा नाम खराब कर रहा था ओर पुरा तथ्य मालुम हो जाने के बाद कुकर्मी चोर प्रबंधक राजीव मासको सहयोग देना जारी रखा, अब एक भी प्रबंधक ईस कुकर्म से बच नहीं सकते।
नये प्रबंधक
विगत कुछ महीनो मे निर्वाचित प्रबंधको से मेरा निवेदन है की अगर वह लोग इस संदेश को पड़ रहे तो कृपया विकि पर लौट आइये। कही ऐसा तो नही की प्रबंधक बनने की खुशी ने आपके हिंदी विकि के प्रति उत्साह को दबा दिया है। डाक्टर साहब तो यदा कदा दिख जाते है, लेकिन सौरभ बाबू तो पिछले दो महीने से लुप्तप्राय ही है। सदस्यो ने पुराने सभी प्रचलित रितियों के विपरित जा कर सौरभ जी को केवल इसलिये प्रबंधक बनाया था की उनका software का ज्ञान हिंदी विकि जल्द से जल्द नयी उंचाईयो तक ले कर जायेगा। पर दु:ख की बात है की ऐसा हो ना सका। मेरी किसी से वयक्तीगत द्वेष नही है। पर अगर आप को दायित्व मिला है तो उसे ठीक से निभाइये। कार्यालिन/व्यक्तिगत कार्य से हो सकता है की आप व्यस्त हो पर आप को अन्य सदस्यो को सुचित करना चाहिय और जल्द से जल्द अपने दायित्व का पालन करना शुरु कर देना चाहिये। सौरभ जी से निवेदन है की अपनी प्राथमीकता सूँची मे साँचा:tl और साँचा:tl इन दोनो साँचे को लगाने वाले बॉट के निर्माण को प्रथम स्थान दे। हमे आप से बहुत आशाएं है। धन्यवाद --गुंजन वर्मासंदेश ०६:३८, २२ नवंबर २००९ (UTC)
- धन्यवाद विकि के प्रति आपकी अतिरिक्त चिन्ता के लिए, पर सबकी अपनी व्यक्तिगत व्यस्तता भी होती है। आप अपना कार्य करते रहिए। भाषा की अशुद्धियों को थोड़ा सुधार सकें तो विकि पर कृपा होगी।--डा० जगदीश व्योम ०८:००, २२ नवंबर २००९ (UTC)
- डाक्टर जगदीश बाबू, गुजंन जी ने अपने चिन्ता को यहाँ व्यक्त किया इसलिए आपको जवाब देना का मौका मिला दोनो को ही धन्यवाद। आप अवश्य व्यस्त व्यक्ति हैं पर थोड़ा सा यदि ध्यान रखें कि आप हिन्दी विकिपीडिया के प्रबंधक भी हैं तो शायद थोड़ा सा वक्त इसके लिए निकल ही आएगा। भाषा की अशुद्धियाँ तो हमलोगों से होती है सीखने की प्रयास भी कर रही हूँ पर जहाँ तक मुझे याद है आपको प्रबंधक बनाएँ जाने के पीछे यह भी एक बहुत बड़ा कारण था कि आप इन अशुद्धियों को दूर तो करेंगें ही शायद हमारा मार्गदर्शन भी हो जाएगा पर आप तो गुंजन जी की अशुद्धियों पर व्यंग कर रहे हैं। विकि पर गुंजन जी तो कृपा कर ही रहे हैं आप भी थोड़ा बहुत कृपा बीच-बीच में करते रहिए।--Munita Prasadवार्ता ०८:११, २२ नवंबर २००९ (UTC)
यह लेख 'तालाबंद' क्यों है?
विकिपीडिया:देवनागरी में कैसे टाइप करें तालाबन्द होने के कारण पुराना पड़ा हुआ है। मेरे एक मित्र (सुरेश शुक्ल) इसमें कुछ परिवर्तन-परिवर्धन करने के इच्छुक हैं। मेरा विचार है कि यह लेख सम्पादन के लिये खोल दिया जाय जिससे इसे अद्यतन किया जा सके। यदि इसे खोलना सही लगता हो तो कृपया मुनिता जी या कोई अन्य प्रबन्धक इसे खोल दें । -- अनुनाद सिंहवार्ता ०८:२७, २४ नवंबर २००९ (UTC)
- अनुनाद जी मैंने यह पृष्ठ खोल दिया है। कृपया कार्य प्रारम्भ करें एवं हो जाने के बाद बता दीजिएगा जिससे कि उसे फिर से सुरक्षित किया जा सके।--Munita Prasadवार्ता १२:०६, २४ नवंबर २००९ (UTC)
- मुनिता जी एवं अन्य प्रबंधक ! आज का लेख के अन्तर्गत आज दिनांक २४ नवम्बर को घनानंद लगना था पर लगा नहीं है।--आलोचक १२:३४, २४ नवंबर २००९ (UTC)
- घनानंद तो लगा हुआ है आलोचक जी। शायद आपके ब्राउजर पर आ नहीं रहा है कृपया उसे रिफ्रेश कीजिए या कैश साफ कीजिए दिखने लगेगा।--Munita Prasadवार्ता १२:३८, २४ नवंबर २००९ (UTC)
- मुनिता जी एवं अन्य प्रबंधक ! आज का लेख के अन्तर्गत आज दिनांक २४ नवम्बर को घनानंद लगना था पर लगा नहीं है।--आलोचक १२:३४, २४ नवंबर २००९ (UTC)
भारतीय राष्ट्रपति की सुखोई ३० में उड़ान को समाचार खंड में जोड़ा जाए
नमस्कार,
आप शायाद जानते होंगे व अगर नहीं तो बड़ी ख़ुशी के साथ बताना चाहूँगा की हमारी माननीय राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल जी ने आज २५-११-२००९ को लोहेगाँव एयरबेस से लड़ाकू विमान सुखोई ३० में यात्रा करके विश्व इतिहास रचा है. वे ७४ साल की उम्र में पहली महिला राष्ट्राध्यक्ष बन गयी जिन्होंने इस जैसी उड़ान भरी.
में निवेदन करना चाहूँगा व आशा करता हूँ की हिंदी विकी के मुख्पूष्ट पर समाचार खंड में यह समाचार लिख कर जोड़ा जाये. यह बड़े ही गर्व की खबर है व महिला शशक्तिकरण के लिए उदहारण है.
धन्यवाद --सिद्धार्थ गौड़ वार्ता २०:५८, २५ नवंबर २००९ (UTC)
यूजर पेज बनाने मै क्या प्रोब्लम है
मेने पिछ्ले कुच्ह दिनो मे युजर पेज बनाना का काम जारी रखा हुआ है और इससे इस विकेपेदिया की गहराई ज्यादा होकर १७ हो च्हुकि है। लेकिन दुसरि विकिपेदिया के युजर से मुझे मेसेज मिल रहे है कि मे इन्को बनाना बन्द करु। मुझे यह समझ नहि आता कि हिन्दी पर यूजर पेज बनाने से उन विकि के लोगो को क्या परेशानि हो सकती है। कोई एड्मिन मेरेको सही रास्त बताए की क्या इससे कोई परेशानि दूसरी विकिपेदिया के लोगो को हो सकती है। आप मेरे यूजर पेज बनाने के काम को रोकने के बहुत सारा मेसेज मेरे संवाद पेज पर देख सकते है। हिन्दी १६:१५, २६ नवंबर २००९ (UTC)
- ये परिचय के पन्ने क्यों बना रहे हैं आप...... इसका कोई लाभ नहीं है बेकार में समय खराब कर रहे हो..... और फिर किसी दूसरे के परिचय पन्ने बनाना वैसे भी गलत है..... ।--122.177.193.187 १७:४७, २६ नवंबर २००९ (UTC)
- आपका प्रश्न एकदम सही है, और इसका उत्तर एकदम सटीक है। इसका साक्ष्य अन्य विकी से प्राप्त हो रहे संदेश हैं।
- प्रथम तो किसी अन्य सदस्य का पृष्ठ बनाना गलत ही होता है।
- दूसरे अनावश्यक सदस्य संख्या बढ़ाकर हिन्दी विकी की कार्य-क्षमता को कम ही कर रहे हैं।
- इससे शायद कुछ गहरायी बढ़े किन्तु अनावश्यक अंधी दौड़ से गहरायी बढ़ाने से क्या लाभ जबकि उस गहरायी से हिन्दी विकी को कुछ नहीं मिलता बल्कि कार्य-क्षमता ही घटती है, कि हिन्दी विकी में इतने हजारों सदस्य हैं, फिर भी काम कितना कम होता है।
- कुछ प्रबंधकों ने बिना सोचे ही आपको इस बारे में बधाई चाहे दे दी हो, किन्तु अधिकांश सदस्य एवं प्रबंधक इस काम से असहमत ही होंगे।
- विकीपीडिया सदस्यों के नाम के लिए नहीं बना है, बल्कि ज्ञानस्रोत है, जानकारी का स्रोत बनाना चाहिये, जो उद्देश्य इस काम से दूर ही होता जा रहा है। शायद भविष्य में कोई ऐसा अभियान चले जिसमें अकार्यशील सदस्यों को हटाया जाये, तब ये सभी नाम हटाये जायेंगे, जो एक अलग से काम बढ़ायेगा। इसका उदाहरण अनावश्यक और अकार्यशील प्रबंधक सूची है। इस सूची को घटने में सभी सदस्यों ने हामी भारी है।
- इस प्रकार से मेरी राय में इन पृष्ठों को बनाने के स्थान पर आप कोई अन्य काम, जैसे श्रेणियां लगाना, श्रेणियामों के पृष्ठ बनाना, जैसे श्रेणी:कंप्यूटर घटक को श्रेणी:कंप्यूटर में और फिर उसे श्रेणी:सूचना प्रौद्योगिकी में डालना, आदि। इस प्रकार आपका संपादन भी बढेगा, विकी को लाभ भी होगा और कोई उंगली भी नहीं उठा पायेगा। शेष आपकी इच्छा: हमारी शुभकामनाएं सदा आपके साथ हैं:--प्र:आशीष भटनागर वार्ता ०३:१५, २७ नवंबर २००९ (UTC)
- मेरा भी विचार बिलकुल आशीष जी के ही समान है। अब हिन्दी विकिपिडिया इस स्थिति में आ पहुँची है कि इसे 'भारी-भरकम' बनाने के बजाय 'दक्ष' (efficient) बनाया जाय। इसमें अधिकाधिक 'ज्ञान' जोड़ा जाय न कि बेकार की चीजें। -- अनुनाद सिंहवार्ता ०४:०८, २७ नवंबर २००९ (UTC)
- आपका प्रश्न एकदम सही है, और इसका उत्तर एकदम सटीक है। इसका साक्ष्य अन्य विकी से प्राप्त हो रहे संदेश हैं।
सदस्य हिन्दी महोदय, चौपाल पर हुई चर्चा एवं आपको प्राप्त संदेशों से यह स्पष्ट होता है कि किसी दूसरे का सदस्य पृष्ठ बनाना उचित नहीं है। मैंने आपकी लगन को देखकर आपको बधाई दी थी एवं यह आपकी लगन का ही परिणाम है कि हिन्दी विकि की गहराई पीछले कुछ दिनों में दो अंक बढ़ी है। मेरा आपसे निवेदन है कि जनमत का सम्मान करते हुए आप सदस्य पृष्ठ बनाने बंद कर दीजिए तथा वार्ता पृष्ठ पर स्वागत साँचा लगाना शूरू कीजिए। इस पर आपत्ति किसी को नहीं होनी चाहिए यदि होती भी है तो उसका जवाब मैं एवं अन्य प्रबंधक गण दे देंगे। यहाँ विकिपीडिया कम्यूनिटी में बिना गहराई के ज्ञान का भंडार रखने वाली भाषाओं की विकिपीडिया का कोई सम्मान नहीं है। गहराई एक सम्मानित स्तर पर रहनी ही चाहिए एवं आपके प्रयास से यह बढ़ेगी ऐसी उम्मीद आपने जगाई है।--Munita Prasadवार्ता ११:२६, २७ नवंबर २००९ (UTC)
डायनासोर
इतने महत्वपूर्ण विषयों पर तक ऐसे घटिया दर्जे के लेख बने हैं. उर्दू और पंजाबी जैसी भाषाओँ वाले लेखो तक में इससे अच्छा लिखा हुआ है. मुझे तो यह पृष्ठ खोलते ही हंसी आ गयी थी. इससे अच्छे तो सभी लोग पुराने लेखो को देखे और उनपर लिखने का काम करे.59.177.70.231 १२:०५, २८ नवंबर २००९ (UTC)
- हँसना तो बहुत अच्छी बात है जी। मैंने तो सुना है कि बड़े शहरों में हँसने के लिए क्लब हैं और लोग पैसा देकर हँसने जाते हैं। चलिए अच्छा है जो विकि का कोई लेख आपके हँसने के तो काम आया। आपका धन्यवाद इस लेख पर ध्यान आकर्षित करने के लिए परन्तु महाशय विकि तो आपकी भी उतनी है जितनी किसी भी अन्य सदस्य की इसलिए यदि आपका हँसने हो गया हो तो इस लेख को सुधारने में मेरी मदद कर दें तो क्या ही अच्छा होता। धन्यवाद--Munita Prasadवार्ता १४:३२, २८ नवंबर २००९ (UTC)
- नमस्कार,
श्रीमान मुझे तो इस लेख में हसने जैसी कोई बात नहीं लगी, हां पर आप की यह बात सही है की यह लेख कई अन्य विकी के मुकाबले उतने स्तर का नहीं बन पाया है व कुछ भाषा सम्बंधित त्रुटिया है जिसे की सही करा जाना चाहिए व किया जायेगा. आप भी मदद करे.
धन्यवाद --सिद्धार्थ गौड़ वार्ता १५:०८, २८ नवंबर २००९ (UTC)- वैसे इसमें हंसना वाजिब ही है। और बिल्कुल इनके हंसने की ही बात है।
- या तो इन्हें डायनोसॉर के बारे में ज्ञान ही नहीं है, तब ये स्वयं पर हंसें।
- या फिर इन्हें ज्ञान है, और स्वयं पर ही हंस रहे हैं, कि अरे मैंने यहां कोई योगदान ही नहीं किया, कैसा ***(स्वयं ही सोच लें) हूं मैं।
- या फिर ये बाकी योगदानकर्त्ताओं पर हंस रहे हैं, जो इनसे आशा लगा रहे हैं, कि ये योगदान कर पायेंगे।
- खैर जो भी हो, लेख को सुधारा जायेगा, किंतु कुछ समय अवश्य लगेगा। स्वयंसेवकों की अपेक्षा है।--प्र:आशीष भटनागर वार्ता १५:५०, २८ नवंबर २००९ (UTC)
- वैसे इसमें हंसना वाजिब ही है। और बिल्कुल इनके हंसने की ही बात है।
- नमस्कार,