त्रिपुरा
भारत का राज्य | |
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राजधानी | अगरतला |
सबसे बड़ा शहर | अगरतला |
जनसंख्या | 36,73,917 |
- घनत्व | 350 /किमी² |
क्षेत्रफल | 10,492 किमी² |
- ज़िले | 8 |
राजभाषा | बंगाली, ककबरक, अंग्रेज़ी[१] |
गठन | 21 जनवरी 1972 |
सरकार | त्रिपुरा सरकार |
- राज्यपाल | रमेश बैस |
- मुख्यमंत्री | विप्लव कुमार देव (भाजपा) |
- विधानमण्डल | एकसदनीय विधान सभा (60 सीटें) |
- भारतीय संसद | राज्य सभा (1 सीट) लोक सभा (2 सीटें) |
- उच्च न्यायालय | त्रिपुरा उच्च न्यायालय |
डाक सूचक संख्या | 799 |
वाहन अक्षर | TR |
आइएसओ 3166-2 | IN-TR |
tripura |
त्रिपुरा उत्तर-पूर्वी सीमा पर स्थित भारत का एक राज्य है।[२]यह भारत का तीसरा सबसे छोटा राज्य है जिसका क्षेत्रफल 10,491 वर्ग किमी है। इसके उत्तर, पश्चिम और दक्षिण में बांग्लादेश स्थित है जबकि पूर्व में असम और मिजोरम स्थित हैं।[३]सन 2012 में इस राज्य की जनसंख्या लगभग 36 लाख 71 हजार थी। अगरतला त्रिपुरा की राजधानी है। बंगाली और त्रिपुरी भाषा (कोक बोरोक) यहाँ की मुख्य भाषायें हैं।
आधुनिक त्रिपुरा क्षेत्र पर कई शताब्दियों तक त्रिपुरी राजवंश ने राज किया।
त्रिपुरा की स्थापना 14वीं शताब्दी में माणिक्य नामक इण्डो-मंगोलियन आदिवासी मुखिया ने की थी, जिसने हिंदू धर्म अपनाया था। 1808 में इसे ब्रिटिश साम्राज्य ने जीता, यह स्व-शासित शाही राज्य बना।[४][५]1956 में यह भारतीय गणराज्य में शामिल हुआ और 1972 में इसे राज्य का दर्जा मिला। त्रिपुरा का आधे से अधिक भाग जंगलों से घिरा है, जो प्रकृति-प्रेमी पर्यटकों को आकर्षित करता है, किन्तु दुर्भाग्यवश यहाँ कई आतंकवादी संगठन पनप चुके हैं जो अलग राज्य की माँग के लिए समय-समय पर राज्य प्रशासन से लड़ते रहते हैं। हैण्डलूम बुनाई यहाँ का मुख्य उद्योग है।
नाम
- ऐसा कहा जाता है कि राजा त्रिपुर, जो ययाति वंश का 39वाँ राजा था के नाम पर इस राज्य का नाम त्रिपुरा पड़ा।जिसके वंशज अहीरो ने यहाँ प्राचीन काल में शासन किया था![६]एक मत के मुताबिक स्थानीय देवी त्रिपुर सुन्दरी के नाम पर यहाँ का नाम त्रिपुरा पड़ा। यह हिन्दू पन्थ के 51 शक्ति पीठों में से एक है।[७]इतिहासकार कैलाश चन्द्र सिंह के मुताबिक यह शब्द स्थानीय कोकबोरोक भाषा के दो शब्दों का मिश्रण है - त्वि और प्रा। त्वि का अर्थ होता है पानी और प्रा का अर्थ निकट। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में यह समुद्र (बंगाल की खाड़ी) के इतने निकट तक फैला था कि इसे इस नाम से बुलाया जाने लगा।[८]
उल्लेख
त्रिपुरा का उल्लेख महाभारत, पुराणों तथा अशोक के शिलालेखों में मिलता है। आज़ादी के बाद भारतीय गणराज्य में विलय के पूर्व यह एक राजशाही थी। उदयपुर इसकी राजधानी थी जिसे अठारहवीं सदी में पुराने अगरतला में लाया गया और उन्नीसवीं सदी में नये अगरतला में। राजा वीर चन्द्र माणिक्य महादुर देववर्मा ने अपने राज्य का शासन ब्रिटिश भारत की तर्ज पर चलाया। गणमुक्ति परिषद द्वारा चलाए गए आन्दोलनों से यह सन् 1949 में भारतीय गणराज्य में शामिल हुआ।
सन् 1971 में बांग्लादेश के निर्माण के बाद यहाँ सशस्त्र संघर्ष आरम्भ हो गया। त्रिपुरा नेशनल वॉलेंटियर्स, नेशनल लिबरेशन फ़्रण्ट ऑफ़ त्रिपुरा जैसे संगठनों ने स्थानीय बंगाली लोगों को निकालने के लिए मुहिम छेड़ रखी है।
इतिहास

त्रिपुरा का बड़ा पुराना और लम्बा इतिहास है। इसकी अपनी अनोखी जनजातीय संस्कृति तथा दिलचस्प लोकगाथाएँ है। इसके इतिहास को त्रिपुरा नरेश के बारे में ‘राजमाला’ गाथाओं तथा मुसलमान इतिहासकारों के वर्णनों से जाना जा सकता है। महाभारत और पुराणों में भी त्रिपुरा का उल्लेख मिलता है। राजमाला के अनुसार त्रिपुरा के शासकों को ‘फा’ उपनाम से पुकारा जाता था जिसका अर्थ ‘पिता’ होता है।[९]
14वीं शताब्दी में बंगाल के शासकों द्वारा त्रिपुरा नरेश की मदद किए जाने का भी उल्लेख मिलता है।[१०] त्रिपुरा के शासकों को मुगलों के बार-बार आक्रमण का भी सामना करना पड़ा जिसमें आक्रमणकारियों को कमोबेश सफलता मिलती रहती थी। कई लड़ाइयों में त्रिपुरा के शासकों ने बंगाल के सुल्तानों कों हराया।
19वीं शताब्दी में महाराजा वीरचन्द्र किशोर माणिक्य बहादुर के शासनकाल में त्रिपुरा में नए युग का सूत्रपात हुआ। उन्होने अपने प्रशासनिक ढांचे को ब्रिटिश भारत के नमूने पर बनाया और कई सुधार लागू किए। उनके उत्तराधिकारों ने 15 अक्टूबर, 1949 तक त्रिपुरा पर शासन किया। इसके बाद त्रिपुरा भारत संघ में शामिल हो गया।[११] शुरू में यह भाग-सी के अन्तर्गत आने वाला राज्य था और 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद यह केन्द्र शासित प्रदेश बना। 1972 में इसने पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त किया। त्रिपुरा बांग्लादेश तथा म्यांमार की नदी घाटियों के बीच स्थित है। इसके तीन तरफ बांग्लादेश है और केवल उत्तर-पूर्व में यह असम और मिजोरम से जुड़ा हुआ है।
भारत में विलय
मुख्य भाषा
बंगाली और त्रिपुरी भाषा (कोक बोरोक) यहां मुख्य रूप से बोली जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि राजा त्रिपुर, जो ययाति वंश का 39 वें राजा थे, उनके नाम पर ही इस राज्य का नाम त्रिपुरा पड़ा। इसके साथ ही एक मत के अनुसार स्थानीय देवी त्रिपुर सुन्दरी के नाम पर इसका नाम त्रिपुरा पड़ा। यह हिन्दू धर्म की 51 शक्ति पीठों में से एक है। इस राज्य के इतिहास को 'राजमाला' गाथाओं और मुसलमान इतिहासकारों के वर्णनों से जाना जा सकता है।
महाभारत और पुराणों में भी मिलता है उल्लेख
महाभारत और पुराणों में भी त्रिपुरा का उल्लेख मिलता है। आज़ादी के बाद भारतीय गणराज्य में विलय के पूर्व यह एक राजशाही थी। उदयपुर इसकी राजधानी थी जिसे 18 वीं सदी में पुराने अगरतला में लाया गया और 19 वीं सदी में नये अगरतला में। राजा वीर चन्द्र माणिक्य महादुर देववर्मा ने अपने राज्य का शासन ब्रिटिश भारत की तर्ज पर चलाया।
पूर्वी पाक में विलय चाहता था त्रिपुरा
गणमुक्ति परिषद द्वारा चलाए गए आन्दोलनों से यह सन् 1949 में भारतीय गणराज्य में शामिल हुआ। लेकिन इतिहासकारों के मुताबिक भी त्रिपुरा शाही परिवार का एक धड़ा राज्य का विलय पूर्वी पाकिस्तान के साथ चाहता था। लेकिन त्रिपुरा के आखिरी राजा बीर बिक्रम किशोर माणिक्य (1923-1947) ने अपने मौत के पहले भारत में विलय की इच्छा जाहिर की थी। जिसके बाद भारत सरकार ने त्रिपुरा को अपने कब्जे में ले लिया।
संघर्ष का आरंभ
लेकिन सन् 1971 में बांग्लादेश के निर्माण के बाद यहां सशस्त्र संघर्ष आरंभ हो गया। त्रिपुरा नेशनल वॉलेंटियर्स, नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ़ त्रिपुरा जैसे संगठनों ने स्थानीय बंगाली लोगों को निकालने के लिए मुहिम छेड़ रखी है। 14वीं शताब्दी में बंगाल के शासकों द्वारा त्रिपुरा नरेश की मदद किए जाने का भी उल्लेख मिलता है। त्रिपुरा के शासकों को मुगलों के बार-बार आक्रमण का भी सामना करना पडा जिसमें आक्रमणकारियों को कमोबेश सफलता मिलती रहती थी। कई लड़ाइयों में त्रिपुरा के शासकों ने बंगाल के सुल्तानों कों हराया।
त्रिपुरा में नए युग की शुरूवात
19वीं शताब्दी में महाराजा वीरचंद्र किशोर माणिक्य बहादुर के शासनकाल में त्रिपुरा में नए युग की शुरूवात हुई। उन्होने अपने प्रशासनिक ढांचे को ब्रिटिश भारत के नमूने पर बनाया और कई सुधार लागू किए। उनके उत्तराधिकारों ने 15 अक्तूबर, 1949 तक त्रिपुरा पर शासन किया। इसके बाद त्रिपुरा भारत संघ में शामिल हो गया। शुरू में यह भाग-सी के अंतर्गत आने वाला राज्य था और 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद यह केंद्रशासित प्रदेश बना और इसके बाद 1972 में इसे पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ। आपको बता दें त्रिपुरा बांग्लादेश तथा म्यांमार की नदी घाटियों के बीच स्थित है। इसके तीन तरफ बांग्लादेश है और उत्तर-पूर्व में यह असम और मिजोरम से जुड़ा हुआ है।
सिंचाई और बिजली
त्रिपुरा राज्य का भौगोलिक क्षेत्र 10,49,169 हेक्टेयर है। अनुमान है कि 2,80,000 हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य है। 31 मार्च 2005 तक 82,005 हेक्टेयर भूमि क्षेत्र में लिफ्ट सिंचाई, गहरे नलकूप, दिशा परिवर्तन, मध्यम सिंचाई व्यवस्था, शैलो ट्यूबवैल और पम्पसेटों के जरिए सुनिश्चित सिंचाई के प्रबन्ध किए गए हैं। यह राज्य की कृषि योग्य भूमि का लगभग 29.29 प्रतिशत है। 1,269 एल.आई. स्कीम, 160 गहरे नलकूप, 27 डाइवर्जन स्कीमें पूरी हो चुकी हैं तथा 3 मध्यम सिंचाई योजनाओं (i) गुमती (ii) खोवई और (iii) मनु के जरिए कमान एरिया के कुछ भाग को सिंचाई का पानी उपलब्ध कराया जा रहा है क्योंकि नहर प्रणाली का कार्य पूरा नहीं हुआ है।
इस समय राज्य की व्यस्त समय की बिजली की माँग लगभग 162 मेगावाट है। राज्य में अपनी परियोजनाओं से 70 मेगावाट बिजली पैदा की जा रही है। लगभग 50 मेगावाट बिजली पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थित केन्द्रीय क्षेत्र के विद्युत उत्पादन केन्द्रों से राज्य के लिए आवण्टित हिस्से से प्राप्त की जाती है। इस प्रकार कुल उपलब्ध बिजली लगभग 120 मेगावाट है और व्यस्त समय में 42 मेगावाट बिजली की कमी पड़ जाती है। इस कमी की वजह से पूरे राज्य में शाम को डेढ़ घण्टे क्रमिक रूप से बिजली की आपूर्ति बन्द कर दी जाती है।
परिवहन
- सडकें
त्रिपुरा में विभिन्न प्रकार की सड़कों की कुल लम्बाई 15,227 कि॰मी॰ है, जिसमें से मुख्य जिला सड़कें 454 कि.मी., अन्य जिला सड़कें 1,538 कि॰मी॰ हैं।
- रेलवे
राज्य में रेल मार्गो की कुल लम्बाई 66 कि॰मी॰ है। रेलवे लाइन मानूघाट तक बढा दी गई है तथा अगरतला तक रेलमार्ग पहुँचाने का काम पूरा किया जा च्हुका है। मानू अगरतला रेल लाइन (88 कि.मी.) को राष्ट्रीय परियोजना घोषित कर दिया गया था।
पर्यटन
महत्वपूर्ण पर्यटन केंद्र इस प्रकार हैं :
- पश्चिमी-दक्षिणी त्रिपुरा पर्यटन-मण्डल
- अगरतला,
- कमल सागर
- सेफाजाला
- नील महल
- उदयपुर
- पिलक
- महामुनि
- पश्चिमी-उत्तरी त्रिपुरा पर्यटन-मण्डल
- अगरतला,
- उनोकोटि
- जामपुई हिल
त्रिपुर सुन्दरी मन्दिर
त्रिपुरा सुन्दरी मन्दिर - तलवाडा ग्राम से 5 किलोमीटर दूर स्थित भव्य प्राचीन त्रिपुरा सुन्दरी का मन्दिर हैं, जिसमें सिंह पर सवार भगवती अष्टादश भुजा की मूर्ति स्थित हैं। मूर्ति की भुजाओं में अठारह प्रकार के आयुध हैं। इस मन्दिर की गिनती प्राचीन शक्तिपीठों में होती हैं। मन्दिर में खण्डित मूर्तियों का संग्रहालय भी बना हुआ हैं जिनकी शिल्पकला अद्वितीय हैं। मन्दिर में प्रतिदिन दर्शनार्थियों का ताँता लगा रहता हैं। प्रतिवर्ष नवरात्र में यहाँ भारी मेला भी लगता हैं।
पर्यटन समारोह
- आरेंज एण्ड टूरिज्म फ़ेस्टिवल वांगमुन
- उनोकेटि टूरिज्म फ़ेस्टिवल
- नीरमहल टूरिज्म फ़ेस्टिवल
- पिलक टुरिज्म फ़ेस्टिवल।
जिले
त्रिपुरा में पहले केवल 4 जनपद थे;
बाद में इनसे निकालकर 4 और जिले बनाये गये। इस प्रकार त्रिपुरा में अब कुल 8 जनपद हैं।
संस्कृति

त्रिपुरा में हिन्दुओं की संख्या लगभग 84 प्रतिशत है। दुर्गापूजा यहाँ का प्रमुख त्यौहार है। बांग्ला यहाँ की प्रमुख भाषा है।[१२]