एड्स

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उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण (एड्स)
वर्गीकरण एवं बाह्य साधन
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लाल फीता: एड्स का अंतर्राष्ट्रीय चिह्न
आईसीडी-१० B24.
आईसीडी- 042
डिज़ीज़-डीबी 5938
मेडलाइन प्लस 000594
ईमेडिसिन emerg/253 
एम.ईएसएच D000163
एड्स संबंधित लघुनाम

AIDS: एक्वायर्ड एम्युनोडेफ़िशियेंसी सिंड्रोम
HIV: मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाण
CD4+: CD4+ टी सहायक कोशिकाएं
CCR5: चेमोकिन (C-C मोटिफ़) रिसेप्टर ५
CDC: रोग रोकथाम एवं निवारण केंद्र
WHO: विश्व स्वास्थ्य संगठन
PCP: न्यूमोसिस्टिस निमोनिया
TB: तपेदिक
MTCT: मां-से-संतान प्रसार
HAART: उच्च सक्रिय एंटीरिट्रोवियल चिकित्सा
STI/STD: यौन प्रसारित संक्रमण/रोग

उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण या एड्स (अंग्रेज़ी:एड्स) मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु [मा.प्र.अ.स.] (एच.आई.वी) संक्रमण के बाद की स्थिति है, जिसमें मानव अपने प्राकृतिक प्रतिरक्षण क्षमता खो देता है। एड्स स्वयं कोई बीमारी नही है, पर एड्स से पीड़ित मानव शरीर संक्रामक बीमारियों, जो कि जीवाणु और विषाणु आदि से होती हैं, के प्रति अपनी प्राकृतिक प्रतिरोधी शक्ति खो बैठता है क्योंकि एच.आई.वी (वह वायरस जिससे कि एड्स होता है) रक्त में उपस्थित प्रतिरोधी पदार्थ लसीका-कोशो पर आक्रमण करता है। एड्स पीड़ित के शरीर में प्रतिरोधक क्षमता के क्रमशः क्षय होने से कोई भी अवसरवादी संक्रमण, यानि आम सर्दी जुकाम से ले कर क्षय रोग जैसे रोग तक सहजता से हो जाते हैं और उनका इलाज करना कठिन हो जाता हैं। एच.आई.वी. संक्रमण को एड्स की स्थिति तक पहुंचने में ८ से १० वर्ष या इससे भी अधिक समय लग सकता है। एच.आई.वी से ग्रस्त व्यक्ति अनेक वर्षों तक बिना किसी विशेष लक्षणों के बिना रह सकते हैं।

एड्स वर्तमान युग की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है यानी कि यह एक महामारी है। एड्स के संक्रमण के तीन मुख्य कारण हैं - असुरक्षित यौन संबंधो, रक्त के आदान-प्रदान तथा माँ से शिशु में संक्रमण द्वारा। राष्ट्रीय उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण नियंत्रण कार्यक्रम और [१] संयुक्त राष्ट्रसंघ उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण] दोनों ही यह मानते हैं कि भारत में ८० से ८५ प्रतिशत संक्रमण असुरक्षित विषमलिंगी/विषमलैंगिक यौन संबंधों से फैल रहा है[१]। माना जाता है कि सबसे पहले इस रोग का विषाणु: एच.आई.वी, अफ्रीका के खास प्राजाति की बंदर में पाया गया और वहीं से ये पूरी दुनिया में फैला। अभी तक इसे लाइलाज माना जाता है लेकिन दुनिया भर में इसका इलाज पर शोधकार्य चल रहे हैं। १९८१ में एड्स की खोज से अब तक इससे लगभग ३० करोड़ लोग जान गंवा बैठे हैं।

एड्स और एच.आई.वी में अंतर

एच.आई.वी एक अतिसूक्षम रोग विषाणु हैं जिसकी वजह से एड्स हो सकता है। एड्स स्वयं में कोई रोग नहीं है बल्कि एक संलक्षण है। यह मनुष्य की अन्य रोगों से लड़ने की नैसर्गिक प्रतिरोधक क्षमता को घटा देता हैं। प्रतिरोधक क्षमता के क्रमशः क्षय होने से कोई भी अवसरवादी संक्रमण, यानि आम सर्दी जुकाम से ले कर फुफ्फुस प्रदाह, टीबी, क्षय रोग, कर्क रोग जैसे रोग तक सहजता से हो जाते हैं और उनका इलाज करना कठिन हो जाता हैं और मरीज़ की मृत्यु भी हो सकती है। यही कारण है की एड्स परीक्षण महत्वपूर्ण है। सिर्फ एड्स परीक्षण से ही निश्चित रूप से संक्रमण का पता लगाया जा सकता है। एड्स एक तरह का संक्रामक यानी की एक से दुसरे को और दुसरे से तीसरे को होने वाली एक गंभीर बीमारी है. एड्स का पूरा नाम ‘एक्वायर्ड इम्यूलनो डेफिसिएंशी सिंड्रोम’ (acquired immune deficiency syndrome) है और यह एक तरह के विषाणु जिसका नाम HIV (Human immunodeficiency virus) है, से फैलती है. अगर किसीको HIV है तो ये जरुरी नहीं की उसको एड्स भी है. HIV वायरस की वजह से एड्स होता है अगर समय रहते वायरस का इलाज़ कर दिया गया तो एड्स होने का खतरा कम हो जाता है.

भारत में एड्स

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में हाल के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में लगभग 14-16 लाख लोग एचआईवी / एड्स से प्रभावित है[२]. हालांकि २००५ में मूल रूप से यह अनुमान लगाया गया था कि भारत में लगभग 55 लाख एचआईवी / एड्स से संक्रमित हो सकते थे। २००७ में और अधिक सटीक अनुमान भारत में एचआईवी / एड्स से प्रभावित लोगों कि संख्या को 25 लाख के आस-पास दर्शाती है। ये नए आंकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन और यू.एन.एड्स द्वारा समर्थित हैं[३]. संयुक्त राष्ट्र कि 2011 के एड्स रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 10 वर्षों भारत में नए एचआईवी संक्रमणों की संख्या में 50% तक की गिरावट आई है[४].

भारत में एड्स से प्रभावित लोगों की बढ़ती संख्या के संभावित कारण

  • आम जनता को एड्स के विषय में सही जानकारी न होना
  • एड्स तथा यौन रोगों के विषयों को कलंकित समझा जाना
  • शिक्षा में यौन शिक्षण व जागरूकता बढ़ाने वाले पाठ्यक्रम का अभाव
  • कई धार्मिक संगठनों का गर्भ निरोधक् के प्रयोग को अनुचित ठहराना आदि।

एड्स के लक्षण

ई.वी से संक्रमित लोगों में लम्बे समय तक एड्स के कोई लक्षण नहीं दिखते। दीर्घ समय तक (3, 6 महीने या अधिक) एच.आई.वी भी औषधिक परीक्षा में नहीं उभरते। अक्सर एच.आधिकांशतः एड्स के मरीज़ों को ज़ुकाम या विषाणु बुखार हो जाता है पर इससे एड्स होने की पहचान नहीं होती। एड्स के कुछ प्रारम्भिक लक्षण हैं:[५]

  • हैजाथकानबुखार
  • सिरदर्द
  • मतली व भोजन से अरुचि
  • लसीकाओं में सूजन

ध्यान रहे कि ये समस्त लक्षण साधारण बुखार या अन्य सामान्य रोगों के भी हो सकते हैं। अतः एड्स की निश्चित रूप से पहचान केवल और केवल, औषधीय परीक्षण से ही की जा सकती है व की जानी चाहिये। एचआईवी संक्रमण के तीन मुख्य चरण हैं: तीव्र संक्रमण, नैदानिक ​​विलंबता एवं एड्स.

तीव्र संक्रमण

एचआईवी की प्रारंभिक अवधि जो कि उसके संक्रमण के बाद प्रारंभ होती है उसे तीव्र एच.आई.वी या प्राथमिक एच.आई.वी या तीव्र रेट्रोवायरल सिंड्रोम कहते हैं[६].कई व्यक्तियों में २ से ४ सप्ताह में इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी या मोनोंयुक्लिओसिस जैसी बीमारी के लक्षण दिखने लगते हैं और कुछ व्यक्तियों में ऐसे कोई विशेष लक्षण नहीं दिखते. ४०% से ९०% मामलों में इस बीमारी के लक्षण दिखने लगते हैं जिसमे सबसे प्रमुख लक्षण बुखार, बड़ी निविदा लिम्फ नोड्स, गले की सूजन, चक्कते, सिर दर्द या मुँह और जननांगों के घाव आदि हैं[७]. चक्कते २०%-५०% मामलों में दिखते हैं[८]. कुछ लोगों में इस स्तर पर अवसरवादी संक्रमण भी विकसित हो जाता है। कुछ लोगों में जठरांत्र कि बीमारियाँ जैसे उल्टी, मिचली या दस्त और कुछ में परिधीय न्यूरोपैथी के स्नायविक लक्षण और जुल्लैन बर्रे सिंड्रोम जैसी बीमारियों के लक्षण दिखते हैं। लक्षण कि अवधि आम तौर पर एक या दो सप्ताह होती है। अपने विशिष्ट लक्षण न दिखने के कारण लोग इन्हें अक्सर एचआईवी का संक्रमण नहीं मानते. कई सामान्य संक्रामक रोगों के लक्षण इस बीमारी में दिखने के कारण अक्सर डॉक्टर और हॉस्पिटल में भी इस बीमारी का गलत निदान कर देते हैं। इसलिए यदि किसी रोगी को बिना किसी वजह के बार बार बुखार आता हो तो उसका एचआईवी परीक्षण करा लिया जाना चाहिए क्योकि या एच.आई.वी. संक्रमण का एक लक्षण हो सकता है[९].

नैदानिक विलंबता

इस रोग के प्रारंभिक लक्षण के अगले चरण को नैदानिक विलंबता, स्पर्शोन्मुख एचआईवी या पुरानी एचआईवी कहते हैं[१०]. उपचार के बिना एचआईवी संक्रमण का दूसरा चरण ३ साल से २० साल तक रह सकता है (औसतन ८ साल)[११][१२][१३]. आम तौर पर इस चरान में कुछ या कोई लक्षण नहीं दिखते है जबकि इस चरण के अंत के कई लोगों को बुखार, वजन घटना, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं और मांसपेशियों में दर्द अनुभव होता है[१४]. लगभग ५०-७०% लोगों में ३-६ महीने के भीतर लासीका ग्रंथियों (जांघ कि बगल वाली लसीका ग्रंथियों के आलावा) में सूजन या विस्तार भी देखा जाता है[१५]. हालाँकि HIV-1 से संक्रमित अधिकतर व्यक्तियों में पता लगाने योग्य एक वायरल लोड होता है लेकिन इलाज के आभाव में वह अंततः बढ़ कर एड्स में बदल जाता है जबकि कुछ मामलो (लगभग ५%) में बिना एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (एड्स कि चिकित्सा पद्यति) के CD4+ T-कोशिकाएं ५ साल से अधिक शरीर में बनी रहती हैं[१६][१७]. जिन व्यक्तियों में इस प्रकार के मामले सामने आते है उन्हें एचआईवी नियंत्रक या लंबी अवधि वृधिविहीन के रूप में वर्गीकृत किया जाता है और जिन व्यक्तियों में बिना रेट्रोवायरल विरोधी चिकित्सा के वायरल लोड कम या नहीं पता लगाने योग्य स्तर तक बना रहता है उन्हें अभिजात वर्ग का नियंत्रक या अभिजात वर्ग का दमन करने वाला कहते हैं[१८].

एड्स

एड्स को दो प्रकार से परिभाषित किया गया है या तो जब CD4+ टी कोशिकाओं कि संख्या जब २०० कोशिकाएं प्रति μL से कम होती हैं या तो तब जबकि एचआईवी संक्रमण के कारण कोई रोग व्यक्ति के शरीर में उत्पन्न हो जाता है[१९]. विशिष्ट उपचार के अभाव में एचआईवी से संक्रमित आधे लोगों के अन्दर दस साल में एड्स विकसित हो जाता है[२०]. सबसे आम प्रारंभिक स्थिति जो कि एड्स की उपस्थिति को इंगित करती है वो है न्युमोसाईतिस निमोनिया (40%), कमजोरी जैसे कि वजन घटना, मांसपेशियों में खिचाव, थकान, भूख में कमी इत्यादि (२०%) और सोफागेल कैंडिडिआसिस (ग्रास नली का संक्रमण) होती है। इसके आलावा आम लक्षण में श्वास नलिका में कई बार संक्रमण होना भी है[२१]. अवसरवादी संक्रमण बैक्टीरिया, वायरस, कवक और परजीवी के कारण हो सकते हैं जो कि आम तौर पर हमारे प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा नियंत्रित हो जाते हैं[२२]. भिन्न भिन्न व्यक्तियों में भिन्न भिन्न प्रकार के संक्रमण होते है जो कि इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति के आस पास वातावरण में कौन से जीव या संक्रमण आम रूप से पाए जाते है[२३]. ये संक्रमण शरीर के हर अंग प्रणाली को प्रभावित कर सकते हैं[२४].

एच.आई.वी. का प्रसार

दुनिया भर में इस समय लगभग चार करोड़ 20 लाख लोग एच.आई.वी का शिकार हैं। इनमें से दो तिहाई सहारा से लगे अफ़्रीकी देशों में रहते हैं और उस क्षेत्र में भी जिन देशों में इसका संक्रमण सबसे ज़्यादा है वहाँ हर तीन में से एक वयस्क इसका शिकार है। दुनिया भर में लगभग 14,000 लोगों के प्रतिदिन इसका शिकार होने के साथ ही यह डर बन गया है कि ये बहुत जल्दी ही एशिया को भी पूरी तरह चपेट में ले लेगा। जब तक कारगर इलाज खोजा नहीं जाता, एड्स से बचना ही एड्स का सर्वोत्तम उपचार है।

एच.आई.वी. तीन मुख्य मार्गों से फैलता है

  • मैथुन या सम्भोग द्वारा (गुदा, योनिक या मौखिक)
  • शरीर के संक्रमित तरल पदार्थ या ऊतकों द्वारा (रक्त संक्रमण या संक्रमित सुइयों के आदान-प्रदान)
  • माता से शीशु मे (गर्भावस्था, प्रसव या स्तनपान द्वारा)

मल, नाक स्रावों, लार, थूक, पसीना, आँसू, मूत्र, या उल्टी से एच. आई. वी. संक्रमित होने का खतरा तबतक नहीं होता जबतक कि ये एच. आई. वी संक्रमित रक्त के साथ दूषित न हो[२५].

मैथुन या सम्भोग द्वारा एच. आई. वी. संक्रमण

एचआईवी संक्रमण की सबसे ज्यादा विधा संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संपर्क के माध्यम से है। दुनिया भर में एच. आई. वी. प्रसार के मामलों के सबसे अधिक मामले विषमलैंगिक संपर्क (यानी विपरीत लिंग के लोगों के बीच यौन संपर्क जैसे कि पुरुष एवं स्त्री के बीच) के माध्यम से होते हैं। हालांकि, एच. आई. वी. प्रसार भिन्न भिन्न देशों में भिन्न भिन्न तरीकों से हुआ है। संयुक्त राज्य अमेरिका में 2009 तक[२६], सबसे अधिक एच. आई. वी. प्रसार उन समलैंगिक पुरुषों में हुआ जो कि सभी नए मामलों की 64% आबादी के बराबर थी[२७]. असुरक्षित विषमलिंगी यौन संबंधो के मालमे में अनुमानतः प्रत्येक यौन सम्बन्ध में एचआईवी संक्रमण का जोखिम कम आय वाले देशों में उच्च आय वाले देशों कि तुलना से चार से दस गुना ज्यादा होता है[२८]. कम आय वाले देशों में संक्रमित महिला से पुरुष में संक्रमण का जोखिम ०.३८% है जबकि पुरुषों से महिला में संक्रमण का जोखिम ०.३०% है। उच्चा आय वाले देशो में यही जोखिम महिला से पुरुष में ०.०४% तथा पुरुष से महिला में ०.०८% है। गुदा सम्भोग द्वारा एच. आई. वी. संक्रमण का जोखिम विशेष रूप से ज्यादा होता है जो कि विषमलिंगी तथा समलिंगी दोनों प्रकार के यौन संबंधों में १.४-१.७% तक होता है[२९][३०]. मुख मैथुन के द्वारा एच. आई. वी. संक्रमण का खतरा थोडा कम होता है लेकिन खत्म नहीं होता[३१].

शरीर के संक्रमित तरल पदार्थ या ऊतकों द्वारा (रक्त संक्रमण या संक्रमित सुइयों के आदान-प्रदान)

एचआईवी के संक्रमण का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत रक्त और रक्त उत्पाद के द्वारा हैं[३२]. रक्त के द्वारा संक्रमण नशीली दवाओ के सेवन के दौरान सुइयों के साझा प्रयोग के द्वारा, संक्रमित सुई से चोट लगने पर, दूषित रक्त या रक्त उत्पाद के माध्यम से या उन मेडिकल सुइयों के माध्यम से जो एच. आई. वी. संक्रमित उपकरणों के साथ होते हैं। दवा के इंजेक्शन आपस में बाँट कर लगाने से इसके फ़ैलाने का जोखिम ०.६३-२.४% होता है, जोकि औसतन ०.८% होता है[३३]. एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के द्वारा इस्तेमाल की हुई सुई के माध्यम से एचआईवी होने का जोखिम 0.3% प्रतिशत होता है (३३३ में १) और श्लेष्मा झिल्ली के खून से संक्रमित होने का जोखिम ०.०९% होता है (१००० में १). संयुक्त राज्य अमेरिका में २००९ में १२% मामले ऐसे लोगों के आए हैं जो कि नसों में नशीली दवाओं का उपयोग करते थे[३४] और कुछ क्षेत्रों में नशीली दवाओं का सेवन करने वालों में से ८०% से ज्यादा लोग एचआईवी पोजिटिव मिले[३५]. एच. आई. वी. संक्रमित रक्त का प्रयोग करने से संक्रमण का जोखिम ९३% तक होता है[३६]. विकसित देशों में संक्रिमित रक्त से एचआईवी प्रसार का जोखिम बहुत ही कम है (५,००,००० बार में से १ बार से भी कम) क्योकि वह रक्त देने वाले व्यक्ति कि एच. आई. वी. जांच उसका रक्त लेने के पहले कि जाती है[३७]. ब्रिटेन में जोखिम औसतन पचास लाख में से १ से भी कम की है[३८]. हालांकि, कम आय वाले देशों में रक्त का इस्तेमाल करने के पहले केवल आधे रक्त कि उचित रूप से जाँच होती है (२००८ के रिपोर्ट के अनुसार)[३९]. यह अनुमान है कि इन क्षेत्रों में १५% एचआईवी संक्रमण का आधार रक्त या रक्त उत्पादों से होता है, जो कि वैश्विक संक्रमण का ५-१०% है[४०][४१]. उप सहारा अफ्रीका में एचआईवी के प्रसार में एक महत्वपूर्ण भूमिका असुरक्षित चिकित्सा सुइयां निभाते हैं। २००७ में इस क्षेत्र में संक्रमण (१२-१७%) का कारण असुरक्षित चिकित्सा सुइयां ही थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार चिकित्सा सुइयों के द्वारा एच. आई. वी. संक्रमण का जोखिम अफ्रीका में १.२% मामलों में होता है[४२]. टैटू बनाने या बनवाने, खुरचने से भी सैद्धांतिक रूप संक्रमण का जोखिम बना रहता है लेकिन अभी तक किसी भी ऐसे मामले के पुष्टि नहीं हुई है। मच्छर या अन्य कीड़े कभी एचआईवी संचारित नहीं कर सकते हैं[४३].

माँ से बच्चे में एच. आई. वी. संक्रमण

एचआईवी माँ से बच्चे को गर्भावस्था के दौरान, प्रसव के दौरान और स्तनपान के दौरान प्रेषित हो सकता है[४४][४५]. एचआईवी दुनिया भर में फैलने का यह तीसरा सबसे आम कारण है[४६]. इलाज के आभाव में जन्म के पहले या जन्म के समय इसके संक्रमण का जोखिम २०% तक होता है और स्तनपान के द्वारा यही जोखिम ३५% तक होता है[४७]. वर्ष २००८ तक बच्चो में एचआईवी का संक्रमण ९०% मामलों में माँ के द्वारा हुआ। उचित उपचार होने पर माँ से बच्च्चे को होने वाले संक्रमण को कम कर के यह जोखिम ९०% से १% तक लाया जा सकता है[४८]. माँ को गर्भावस्था और प्रसव के दौरान एंटीरेट्रोवाइरल दवा दे कर, वैकल्पिक शल्यक्रिया (आपरेशन) द्वारा प्रसव करके, नवजात शिशु को स्तनपान से न करा के तथा नवजात शिशु को भी एंटीरिट्रोवाइरल औषधियों कि खुराक देकर माँ से बच्चे में एच. आई. वी. का संक्रमण रोका जाता है[४९]. हलांकि इनमें से कई उपाय अभी भी विकासशील देशों में नहीं हैं। यदि भोजन चबाने के दौरान संक्रमित रक्त भोजन को दूषित कर देता है तो यह भी एच. आई. वी. संचरण का जोखिम पैदा कर सकता है[५०].

एड्स से बचने के उपाए

  • अपने जीवनसाथी के प्रति वफादार रहें। एक से अधिक व्यक्ति से यौनसंबंध ना रखें।
  • यौन संबंध (मैथुन) के समय कंडोम का सदैव प्रयोग करें।
  • यदि आप एच.आई.वी संक्रमित या एड्स ग्रसित हैं तो अपने जीवनसाथी से इस बात का खुलासा अवश्य करें। बात छुपाये रखनें तथा इसी स्थिती में यौन संबंध जारी रखनें से आपका साथी भी संक्रमित हो सकता है और आपकी संतान पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है[५१]
  • यदि आप एच.आई.वी संक्रमित या एड्स ग्रसित हैं तो रक्तदान कभी ना करें।
  • रक्त ग्रहण करने से पहले रक्त का एच.आई.वी परीक्षण कराने पर ज़ोर दें।
  • यदि आप को एच.आई.वी संक्रमण होने का संदेह हो तो तुरंत अपना एच.आई.वी परीक्षण करा लें। उल्लेखनीय है कि अक्सर एच.आई.वी के कीटाणु, संक्रमण होने के 3 से 6 महीनों बाद भी, एच.आई.वी परीक्षण द्वारा पता नहीं लगाये जा पाते। अतः तीसरे और छठे महीने के बाद एच.आई.वी परीक्षण अवश्य दोहरायें।

यौन संपर्क

यौन संपर्क के दौरान कंडोम का लगातार इस्तेमाल एचआईवी संक्रमण के जोखिम को लगभग ८०% तक कम कर देता है[५२]. जब जोड़ी में से एक साथी एचआईवी से संक्रमित है तब कंडोम का लगातार इस्तेमाल करने से असंक्रमित व्यक्ति को एचआईवी संक्रमण होने कि संभावना प्रति वर्ष १% से कम हो जाती है[५३]. इन बातों के भी प्रमाण मिले है कि महिलाओं का कंडोम इस्तेमाल करना भी पुरूषों के कंडोम इस्तेमाल करने के सामान सुरक्षा प्रदान करता है[५४]. एक अध्ययन के अनुसार अफ्रीकी महिलाओं में सेक्स के तुरंत पहले तेनोफोविर नामक जेल का योनि पर इस्तेमाल करने से एच. आई. वी संक्रमण का जोखिम ४०% तक कम हुआ[५५]. जबकि इसके विपरीत स्पेर्मिसईद नोंओक्स्य्नोल ९ (spermicide nonoxynol 9) सक्रमण के जोखिम को बढ़ा देते हैं क्योंकि योनि और गुदा में जलन बढ़ाना इसकी अपनी प्रवृत्ति है[५६]. उप सहारा अफ्रीका में सुन्नत विषमलैंगिक पुरुषों में एच.आई.वी संक्रमण के दर को ३८%-६६% मामलों में २४ महीनों तक कम कर देता है[५७]. इन अध्यनों के आधार पर वर्ष २००७ में विश्व स्वास्थ्य संगठन और यू.एन.एड्स ने महिला से पुरुष में एचआईवी संक्रमण से बचने का उपाय पुरुष खतना बताया था[५८]. यधपि इससे पुरुष से महिला में संक्रमण को रोका जा सकता है यह विवादस्पद है[५९][६०] और पुरुष खतना विकसित देशों में कारगर होगा या नहीं एवं समलैंगिक पुरुषों में इसका कोई प्रभाव पड़ेगा या नहीं ये बात अभी अनिर्धारित है[६१][६२][६३]. कुछ विशेषज्ञों को डर है कि खतना पुरुषों के बीच असुरक्षा कि कम धारणा यौन जोखिम को बढ़ावा दे सकती है जो कि अपने निवारक प्रभाव को कम कर देती है[६४]. जिन महिलाओं का मादा जननांग कट चुका होता है उनमें एचआईवी कि वृद्धि का जोखिम बढ़ जाता है[६५]. यौन संयम को बताने वाले कार्यक्रम भी एचआईवी के बढते जोखिम प्रभावित करते नहीं दिखाई देते[६६]. स्कूल में व्यापक रूप से यौन शिक्षा देने पर इसके व्यापकता में कमी आ सकती है[६७]. युवा लोगों का एक बड़ा समूह एचआईवी / एड्स के बारे में जानकारी होने के बावजूद भी इस प्रथा में संलग्न है कि वह खुद अपने को एचआईवी से संक्रमित होने के जोखिम को ये कम आँकता है[६८].

एड्स इन कारणों से नहीं फैलता

  • एच.आई.वी संक्रमित या एड्स ग्रसित व्यक्ति से हाथ मिलाने से
  • एच.आई.वी संक्रमित या एड्स ग्रसित व्यक्ति के साथ रहने से या उनके साथ खाना खाने से।
  • एक ही बर्तन या रसोई में स्वस्थ और एच.आई.वी संक्रमित या एड्स ग्रसित व्यक्ति के खाना बनाने से।

प्रारंभिक अवस्था में एड्स के लक्षण

  • तेज़ी से अत्याधिक वजन घटना
  • सूखी खांसी
  • लगातार ज्वर या रात के समय अत्यधिक/असाधारण मात्रा में पसीने छूटना
  • जंघाना, कक्षे और गर्दन में लम्बे समय तक सूजी हुई लसिकायें
  • एक हफ्ते से अधिक समय तक दस्त होना। लम्बे समय तक गंभीर हैजा।
  • फुफ्फुस प्रदाह
  • चमड़ी के नीचे, मुँह, पलकों के नीचे या नाक में लाल, भूरे, गुलाबी या बैंगनी रंग के धब्बे।
  • निरंतर भुलक्कड़पन,

एड्स रोग का उपचार

औषधी विज्ञान में एड्स के इलाज पर निरंतर संशोधन जारी हैं। भारत, जापान, अमेरिका, यूरोपीय देश और अन्य देशों में इस के इलाज व इससे बचने के टीकों की खोज जारी है। हालांकी एड्स के मरीज़ों को इससे लड़ने और एड्स होने के बावजूद कुछ समय तक साधारण जीवन जीने में सक्षम हैं परंतु आगे चल कर ये खतरा पैदा कर सकता हैं। एड्स का इलाज के लिए शोध जारी है। हैं। आज यह भारत में एक महामारी का रूप हासिल कर चुका है। भारत में एड्स रोग की चिकित्सा महंगी है, एड्स की दवाईयों की कीमत आम आदमी की आर्थिक पहुँच के परे है। कुछ विरल मरीजों में सही चिकित्सा से 10-12 वर्ष तक एड्स के साथ जीना संभव पाया गया है, किंतु यह आम बात नही है।

ऐसी दवाईयाँ अब उपलब्ध हैं जिन्हें प्रति उत्त्क्रम-प्रतिलिपि-किण्वक विषाणु चिकित्सा [anti reverse transcript enzyme viral therapy or anti-retroviral therapy] दवाईयों के नाम से जाना जाता है। सिपला की ट्रायोम्यून जैसी यह दवाईयाँ महँगी हैं, प्रति व्यक्ति सालाना खर्च तकरीबन 150000 रुपये होता है और ये हर जगह आसानी से भी नहीं मिलती। इनके सेवन से बीमारी थम जाती है पर समाप्त नहीं होती। अगर इन दवाओं को लेना रोक दिया जाये तो बीमारी फ़िर से बढ़ जाती है, इसलिए एक बार बीमारी होने के बाद इन्हें जीवन भर लेना पड़ता है। अगर दवा न ली जायें तो बीमारी के लक्षण बढ़ते जाते हैं और एड्स से ग्रस्त व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है।

एक अच्छी खबर यह है कि सिपला और हेटेरो जैसे प्रमुख भारतीय दवा निर्माता एच.आई.वी पीड़ितों के लिये शीघ्र ही पहली एक में तीन मिश्रित निधिक अंशगोलियाँ बनाने जा रहे हैं जो इलाज आसान बना सकेगा (सिपला इसे वाईराडे के नाम से पुकारेगा)। इन्हें आहार व औषध मंत्रि-मण्डल [FDA] से भी मंजूरी मिल गई है। इन दवाईयों पर प्रति व्यक्ति सालाना खर्च तकरीबन 1 लाख रुपये होगा, संबल यही है कि वैश्विक कीमत से यह 80-85 प्रतिशत सस्ती होंगी।

एड्स ग्रस्त लोगों के प्रति व्यवहार

एड्स का एक बड़ा दुष्प्रभाव है कि समाज को भी संदेह और भय का रोग लग जाता है। यौन विषयों पर बात करना हमारे समाज में वर्जना का विषय रहा है। निःसंदेह शतुरमुर्ग की नाई इस संवेदनशील मसले पर रेत में सर गाड़े रख अनजान बने रहना कोई हल नहीं है। इस भयावह स्थिति से निपटने का एक महत्वपूर्ण पक्ष सामाजिक बदलाव लाना भी है। एड्स पर प्रस्तावित विधेयक[६९] को अगर भारतीय संसद कानून की शक्ल दे सके तो यह भारत ही नहीं विश्व के लिये भी एड्स के खिलाफ छिड़ी जंग में महती सामरिक कदम सिद्ध होगा।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite web
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  4. www.hindustantimes.com/India-sees-50-decline-in-new-hiv-infections-un-report/Article1-680333.aspx
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  9. Mandell, Bennett, and Dolan (2010). Chapter 118.
  10. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  11. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
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  14. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  15. Mandell, Bennett, and Dolan (2010). Chapter 121
  16. Mandell, Bennett, and Dolan (2010). Chapter 118.
  17. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  18. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
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  21. Mandell, Bennett, and Dolan (2010). Chapter 118.
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  23. Mandell, Bennett, and Dolan (2010). Chapter 118.
  24. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
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  26. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  27. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  28. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  29. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
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  34. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  35. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  36. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
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  45. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  46. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  47. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  48. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  49. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  50. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  51. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  52. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  53. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
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  60. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
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  69. साँचा:cite web

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