हैली धूमकेतु

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1P/Halley (हैली का धूमकेतु)
A color image of comet Halley, shown flying to the left aligned flat against the sky
8 मार्च 1986 को हैली का धूमकेतु
खोज
खोज कर्ता prehistoric (observation);
Edmond Halley (recognition of periodicity)
युग 2449400.5
(17 फ़रवरी 1994)
उपसौर35.1 AU
(9 दिसम्बर 2023)[२]
अपसौर 0.586 AU
last perihelion: 9 फ़रवरी 1986
next perihelion: 28 जुलाई 2061[२]
अर्ध मुख्य अक्ष 17.8 AU
विकेन्द्रता 0.967
परिक्रमण काल 75.3 a[१]
झुकाव 162.3°
भौतिक विशेषताएँ
परिमाण 15×8 km,[३] 11 km (mean)[१]
द्रव्यमान 2.2साँचा:e kg[४]
माध्य घनत्व 0.6[५] (estimates range from 0.2 to 1.5 g/cm3[६])
पलायन वेग~साँचा:v2 km/s
नाक्षत्र घूर्णन
काल
2.2 d (52.8 h) (?)[७]
अल्बेडो0.04[८]
सापेक्ष कांतिमान 28.2 (in 2003)[९]

(विकिपीडिया अंग्रेजी से अनुवादित)

हैली धूमकेतु (आधिकारिक तौर पर नामित 1P/Halley) को एक लघु-अवधि धूमकेतु के रूप में बेहतर जाना जाता है। यह प्रत्येक ७५ से ७६ वर्ष के अंतराल में पृथ्वी से नजर आता है। हैली ही एक मात्र लघु-अवधि धूमकेतु है जिसे पृथ्वी से नग्न आँखों से साफ़-साफ़ देखा जा सकता है और यह नग्न आँखों से देखे जाने वाला एक मात्र धूमकेतु है जो मानव जीवन में दो बार दिखाई देता है। नग्न आँखों से दिखाई देने वाले अन्य धूमकेतु चमकदार और अधिक दर्शनीय हो सकते है लेकिन वह हजारों वर्षों में केवल एक बार दिखाई देते है।

हैली के भीतरी सौरमंडल में लौटने पर इसका खगोलविज्ञानियों द्वारा २४० इ.पू. के बाद से अवलोकन और रिकार्ड दर्ज किया जाता रहा है। इस धूमकेतु के दिखने के स्पष्ट रिकॉर्ड चीनी, बेबीलोनियन और मध्यकालीन यूरोपीय शासकों द्वारा दर्ज किए गए थे परन्तु उस समय इसे आवर्ती धूमकेतु के रूप में नहीं पहचाना जा सका था। इसे आवर्ती धूमकेतु के रूप में सर्वप्रथम सन् १७०५ में अंग्रेज खगोलविज्ञानी एडमंड हैली द्वारा पहचाना गया था तथा बाद में उनके नाम पर इसका नाम हैली धूमकेतु रखा गया था। हैली धूमकेतु भीतरी सौरमंडल में आखरी बार सन् १९८६ में दिखाई दिया था और यह अगली बार सन् २०६१ के मध्य में दिखाई देगा।

सन् १९८६ में प्रवेश के दौरान हैली प्रथम धूमकेतु बना जिसका अंतरिक्ष यान द्वारा बारीकी से और विस्तार से अध्ययन किया गया। इसने हैली की नाभि की संरचना तथा कोमा और पूंछ के गठन के तंत्र का सबसे पहला अवलोकन डाटा उपलब्ध कराया। इस अवलोकन ने धूमकेतु की संरचना के बारे में लम्बे समय से चली आ रही अवधारणाओं को, विशेष रूप से फ्रेड व्हिपल के ' डर्टी स्नो बॉल ' मॉडल को आधार प्रदान किया। उन्होंने हैली की संरचना का सही अनुमान लगाया था कि यह अस्थिर पदार्थों के मिश्रण से बना है जैसे कि - पानी, कार्बन डाईआक्साइड, अमोनिया और धूल। इस मिशन ने जो डाटा उपलब्ध कराया है, उससे हैली के बारे में हमारे विचारो में काफी सुधार हुआ है। उदाहरण के लिए हमें अब यह समझ में आ रहा है कि हैली की सतह मोटे तौर पर धूल और गैर वाष्पशील पदार्थों से बनी है तथा उसका मात्र छोटा सा हिस्सा ही बर्फ या अस्थिर पदार्थ से बना हुआ है।

कक्षा की गणना

हैली पहला धूमकेतु है जिसे आवर्ती धूमकेतु के रूप में मान्यता मिली थी। धूमकेतु की प्रकृति पर अरस्तू की धारणा की तत्कालीन दार्शनिकों में आम सहमति थी कि धूमकेतु पृथ्वी के वायुमंडल में गड़बड़ी का नतीजा है। अरस्तू का यह विचार सन् १५७७ में टाइको ब्राहे ने गलत साबित कर दिया था। टाइको ने लंबन मापन का इस्तेमाल कर दिखाया कि धूमकेतु का अस्तित्व चन्द्रमा से भी परे है। कई लोग अभी भी इस बात से असहमत थे कि धूमकेतु वास्तव में सूर्य की परिक्रमा करते है और वें मानते थे कि धुमकेतू सीधे पथ का पालन करते हुए सौरमंडल से होकर गुजरते है।

सन् १६८७ में सर आइजैक न्यूटन ने अपनी ' प्रिन्सिपिया ' प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने गुरुत्व और गति के अपने नियमों को रेखांकित किया। धूमकेतु पर उनका काम निश्चित रूप से अधूरा था हालांकि उन्हें शंका थी कि सन् १६८० और १६८१ में पहले दिखने वाला और सूर्य के पीछे से गुजर जाने के बाद दिखाई देने वाला धुमकेतू एक ही था। उनकी यह धारणा बाद में सही पायी गई थी। वें अपने मॉडल में धूमकेतुओं का सामंजस्य करने में पूरी तरह से असमर्थ थे। आखिरकार न्यूटन के मित्र, संपादक और प्रकाशक एडमंड हैली ने सन् १७०५ में अपनी 'Synopsis of the Astronomy of Comets, ' में धूमकेतु की कक्षाओं पर बृहस्पति और शनि के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव की गणना के लिए न्यूटन के नए नियमों का उपयोग किया। इस गणना ने उन्हें इस योग्य बनाया कि वें ऐतिहासिक रिकार्डो की जांच कर कक्षीय तत्वों का निर्धारण कर सकें। उन्होंने पाया कि सन् १६८२ में दिखाई देने वाला दूसरा धुमकेतू करीब-करीब वहीँ दो धुमकेतू है जो आज से पहले सन् १५३१ (पेट्रस एपियानस द्वारा अवलोकित) और सन् १६०७ (योहानेस केप्लर द्वारा अवलोकित) में दिखाई दिए थे। इस प्रकार हैली ने निष्कर्ष निकाला कि तीनों धुमकेतू वास्तव में एक ही है जो प्रत्येक ७६ वर्ष में वापस लौटते है। इस अवधि को बाद में संशोधित कर प्रत्येक ७५-७६ वर्ष कर दिया गया। धूमकेतुओं पर पड़ने वाले ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव को ध्यान में रखते हुए एक मोटे अनुमान के बाद भविष्यवाणी की गई कि हैली सन् १७५८ में फिर से वापसी करेगा।

हैली धूमकेतु वापसी की भविष्यवाणी सही साबित हुई। इसे २५ दिसम्बर सन् १७५८ में एक जर्मन किसान और शौकिया खगोल विज्ञानी जोहान जॉर्ज पेलिज्स्क द्वारा देखा गया था। खुद हैली अपने जीवनकाल में इस धूमकेतु की वापसी नहीं देख पाए थे क्योंकि सन् १७४२ में उनकी मृत्यु हो गई.थी। इस धुमकेतू वापसी की पुष्टि ने पहली बार यह दिखाया कि ग्रहों के अलावा भी अन्य निकायों का अस्तित्व है जों सूर्य की परिक्रमा करतें है। यह वापसी पूर्व न्यूटोनियन भौतिकी का एक सफल परीक्षण था और साथ ही उसकी व्याख्यात्मक शक्ति का एक स्पष्ट प्रदर्शन भी था। इस धुमकेतू का नामकरण हैली के सम्मान में सर्वप्रथम फ्रेंच खगोलविद निकोलस लुई डी लासेले द्वारा सन् १७५९ में किया गया था।

कक्षा और उत्पत्ति

The orbital paths of Halley, outlined in blue, against the orbits of Jupiter, Saturn, Uranus and Neptune, outlined in red
हैली धूमकेतु की कक्षा (नीली) का बाहरी ग्रह की कक्षाओं (लाल) के खिलाफ निर्धारण

हैली की कक्षीय अवधि पिछली तीन शताब्दियों से ७५ और ७६ वर्ष के बीच रही है। हालांकि २४० ई.पू. के बाद से इसकी कक्षीय अवधि ७४ और ७९ वर्ष के बीच विविधता लिए हुए है। सूर्य के ईर्दगिर्द हैली की कक्षा ०.९६७ विकेन्द्रता के साथ अत्यधिक अण्डाकार है।

हैली, २०० वर्ष या उससे कम कक्षीय अवधि के साथ एक आवर्ती या लघु-अवधि धूमकेतु के रूप में वर्गीकृत है। इसके विपरीत दीर्घ-अवधि धूमकेतु अपनी परिक्रमा हजारों वर्षों में पूरी करते है। आवर्ती धूमकेतुओं का क्रांतिवृत्त से औसत झुकाव केवल १० डिग्री है और इसकी औसत कक्षीय अवधि सिर्फ ६.५ वर्ष है। इस प्रकार हैली की कक्षा कुछ अप्रारूपिक है। सर्वाधिक लघु अवधि धूमकेतु जिसकी कक्षीय अवधि २० वर्ष से कम और क्रांतिवृत्त से झुकाव २०-३० डिग्री या उससे कम होता है ' बृहस्पति परिवार धूमकेतु ' कहलाते हैं। हैली के जैसे वें आवर्ती धूमकेतु जिनकी कक्षीय अवधि २० और २०० वर्ष के बीच है और जिनके क्रांतिवृत्त से झुकाव का विस्तार ० डिग्री से ९० डिग्री या उससे अधिक है ' हैली- टाइप धूमकेतु ' कहलाते है। आज दिन तक पहचाने गए करीबन ४०० बृहस्पति परिवार धूमकेतुओं में से केवल ५४ हैली- टाइप धूमकेतु ही अवलोकित किये जा सके है।

हैली -प्रकार धूमकेतुओं की कक्षाओं को देखकर लगता है कि वें मूलतः दीर्ध -अवधि धूमकेतु थे जिनकी कक्षाओं को विशाल ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण के द्वारा प्रभावित किया गया और साथ ही आतंरिक सौर मंडल में उन्हें निर्देशित किया गया। यदि हैली कभी दीर्ध-अवधि धूमकेतु था तो संभावना है कि इसकी उत्पत्ति ऊर्ट बादल में हुई है जो कि धूमकेतु निकायों का एक विशाल गोलाकार क्षेत्र है जिसका आंतरिक किनारा सूर्य से २०,००० -५०,००० खगोलीय एकक दूरी पर है। इसके विपरीत बृहस्पति परिवार धूमकेतुओं की उत्पत्ति कुइपर बेल्ट में मानी जाती है जो बर्फीले मलबे की एक सपाट चकती है जो सूर्य से ३० खगोलीय एकक (नेप्च्यून की कक्षा) और ५० खगोलीय एकक के बीच स्थित है। सन् २००८ में हैली-प्रकार धूमकेतुओं की उत्पत्ति के लिए एक अन्य नए बिंदु ट्रांस-नेप्चुनियन वस्तु का प्रस्ताव किया गया जिसकी कक्षा का विस्तार युरेनस के बाहरी भाग से शुरू होकर प्लूटो से दोगुनी दूरी तक है। हो सकता है यह सौरमंडल के छोटे निकायों की एक नयी आबादी का एक सदस्य हो जों हैली-प्रकार धूमकेतुओं के स्रोत के रूप में कार्य करता है।

दर्शन

हैली की गणनाएं ऐतिहासिक दस्तावेजों में दर्ज धूमकेतुओं के पूर्व के दर्शनों को खोजने में सक्षम है। निम्नलिखित सारणी २४० ईपू के बाद से अब तक की हैली धूमकेतु के प्रत्येक दर्शन को खगोलीय पदनाम के साथ दर्शाती है। साँचा:col-begin साँचा:col-break

  • 1P/−239 K1, −239 (25 मई 240 ईपू)
  • 1P/−163 U1, −163 (12 नवम्बर 164 ईपू)
  • 1P/−86 Q1, −86 (6 अगस्त 87 ईपू)
  • 1P/−11 Q1, −11 (10 अक्टूबर 12 ईपू)
  • 1P/66 B1, 66 (25 जनवरी 66 AD)
  • 1P/141 F1, 141 (22 मार्च 141)
  • 1P/218 H1, 218 (17 मई 218)
  • 1P/295 J1, 295 (20 अप्रैल 295)
  • 1P/374 E1, 374 (16 फ़रवरी 374)
  • 1P/451 L1, 451 (28 जून 451)
  • 1P/530 Q1, 530 (27 सितंबर 530)
  • 1P/607 H1, 607 (15 मार्च 607)
  • 1P/684 R1, 684 (2 अक्टूबर 684)
  • 1P/760 K1, 760 (20 मई 760)
  • 1P/837 F1, 837 (28 फ़रवरी 837)
  • 1P/912 J1, 912 (18 जुलाई 912)

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  • 1P/989 N1, 989 (5 सितंबर 989)
  • 1P/1066 G1, 1066 (20 मार्च 1066)
  • 1P/1145 G1, 1145 (18 अप्रैल 1145)
  • 1P/1222 R1, 1222 (28 सितंबर 1222)
  • 1P/1301 R1, 1301 (25 अक्टूबर 1301)
  • 1P/1378 S1, 1378 (10 नवम्बर 1378)
  • 1P/1456 K1, 1456 (9 जून 1456)
  • 1P/1531 P1, 1531 (26 अगस्त 1531)
  • 1P/1607 S1, 1607 (27 अक्टूबर 1607)
  • 1P/1682 Q1, 1682 (15 सितंबर 1682)
  • 1P/1758 Y1, 1759 I (13 मार्च 1759, हैली के होने की संभावना)
  • 1P/1835 P1, 1835 III (16 नवम्बर 1835)
  • 1P/1909 R1, 1910 II, 1909c (20 अप्रैल 1910)
  • 1P/1982 U1, 1986 III, 1982i (9 फ़रवरी 1986)
  • अगला संभावित दर्शन 28 जुलाई 2061

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सन्दर्भ

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  5. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; density नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  6. S. J. Peale (1989). "On the density of Halley's comet". Icarus. 82 (1): 36–49. Bibcode:1989Icar...82...36P. doi:10.1016/0019-1035(89)90021-3. densities obtained by this procedure are in reasonable agreement with intuitive expectations of densities near 1 g/cm3, the uncertainties in several parameters and assumptions expand the error bars so far as to make the constraints on the density uniformative ... suggestion that cometary nuclei tend to by very fluffy, ... should not yet be adopted as a paradigm of cometary physics.
  7. S. J. Peale, J. J. Lissauer (1989). "Rotation of Halley's Comet". Icarus. 79 (2): 396–430. Bibcode:1989Icar...79..396P. doi:10.1016/0019-1035(89)90085-7.
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