हीरा डोम

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

हीरा डोम (जन्म- 1885 ई॰ के आसपास) उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में विद्यमान प्रथम दलित कवि के रूप में विख्यात हैं जिनकी एकमात्र उपलब्ध भोजपुरी कविता सुप्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका सरस्वती में छपी थी और जिसमें तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक विसंगतियों-विडम्बनाओं की विवेकपूर्ण अभिव्यक्ति मार्मिक रूप में हुई है।

जीवन-परिचय

हीरा डोम का जन्म बिहार राज्य के पटना जिले के दानापुर में सन् 1885 के लगभग हुआ था।[१] इनका जीवन-विवरण प्रायः अनुपलब्ध है। डॉ॰ माताप्रसाद ने इन्हें वाराणसी का निवासी बताया है, परन्तु डॉ॰ रामविलास शर्मा[२] से लेकर रमणिका गुप्ता तक इन्हें पटना का निवासी ही मानते हैं।[३]

रचना

इनकी लिखी हुई एकमात्र कविता 'अछूत की शिकायत' उपलब्ध है। यह कविता महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा संपादित ‘सरस्वती’ (सितंबर 1914, भाग 15, खंड 2, पृष्ठ संख्या 512-513) में प्रकाशित हुई थी।[४] कवि-समीक्षक मदन कश्यप के अनुसार "हालांकि, सरस्वती में प्रकाशित होना ही इस बात का सुबूत है कि इस कविता को उस समय भी महत्व दिया गया था। फिर भी, समय रहते हिन्दी संसार ने हीरा डोम की खोज खबर नहीं ली अन्यथा उनकी कुछ और रचनाएं, उनके बारे में कुछ और सूचनाएं-- हमारे सामने होतीं।"[५]

अछूत की शिकायत

हीरा डोम तथा उनकी कविता 'अछूत की शिकायत' को प्रकाशन के लम्बे समय बाद व्यापक हिन्दी संसार में चर्चित करने का श्रेय डॉ॰ रामविलास शर्मा को है। "1977 में प्रकाशित अपनी पुस्तक 'महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण' में डॉ॰ रामविलास शर्मा ने इस कविता को उद्धृत किया। उसके बाद ही इसकी ओर लोगों का ध्यान गया।"[५]

डॉ॰ शर्मा ने इस कविता का परिचय देते हुए लिखा था कि "सितम्बर १९१४ की सरस्वती में पटना के हीरा डोम की कविता 'अछूत की शिकायत' प्रकाशित हुई। यह भोजपुरी में है और सम्भवतः उस भाषा में लिखी हुई यह एकमात्र कविता है जो द्विवेदी जी की सरस्वती में प्रकाशित हुई थी। यह कविता उनके पास भेजी गई थी क्योंकि कविता के ऊपर कोष्ठकों में छपा है-- 'प्राप्त'। हिन्दी में इससे पहले (और बाद को भी) किसी डोम-बन्धु की लिखी कविता मेरे देखने में नहीं आई।"[२]

आगे पूरी कविता उद्धृत करने के बाद डॉ॰ शर्मा की टिप्पणी है कि "हीरा डोम ने किसी से सरस्वती का नाम सुना होगा। मैथिलीशरण गुप्त की तरह सरस्वती में कविता प्रकाशित कराके प्रसिद्ध कवि बनने का स्वप्न तो उन्होंने न देखा होगा पर अपनी शिकायत सरस्वती के माध्यम से शिक्षितजनों तक उन्हें जरूर पहुँचानी थी। द्विवेदी जी ने साहसपूर्वक वह कविता अपनी उस पत्रिका में छापी जिसमें बड़े-बड़े लोग रचनाएँ छपाने को तरसते थे।"[६]

यह कविता पहली दलित कविता के रूप में प्रतिष्ठित है। इसमें निहित गहरी वैचारिकता इसका रचनात्मक वैशिष्ट्य है। सुप्रसिद्ध दलित साहित्यकार शरणकुमार लिंबाले के अनुसार "इसे दलित सोच की वर्तमान धारा की पहली रचना कहा जा सकता है चूँकि इसमें केवल दलितों की शिकायत या व्यथा ही दर्ज नहीं की गई बल्कि आक्रोश और विरोध भी जताया गया है।"[७]

महत्त्व

मदन कश्यप के अनुसार "इस कविता को पढ़ने से स्पष्ट हो जाता है कि यह रात-दिन दुख भोगने वाले जन की करुणा नहीं ताकत की अभिव्यक्ति है और इसका शीर्षक 'अछूत की शिकायत' निश्चित रूप से सम्पादक अथवा किसी अन्य व्यक्ति का दिया हुआ है। अन्यथा इसका शीर्षक 'अछूत की हुंकार' होना चाहिए था।"[८]

डॉ॰ रामविलास शर्मा के अनुसार: साँचा:quote

मदन कश्यप के अनुसार: साँचा:quote

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

  1. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  2. महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण, डॉ॰ रामविलास शर्मा, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-357.
  3. दलित साहित्य के प्रतिमान, डॉ॰ एन॰ सिंह, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, पेपरबैक संस्करण-2012, पृष्ठ-91.
  4. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  5. कविता के सौ बरस, संपादक- लीलाधर मंडलोई, शिल्पायन, शाहदरा (दिल्ली), संस्करण-2013, पृष्ठ-43.
  6. महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण, डॉ॰ रामविलास शर्मा, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-358-59.
  7. दलित साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र, शरणकुमार लिंबाले, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, पेपरबैक संस्करण-2016, पृष्ठ-17.
  8. कविता के सौ बरस, संपादक- लीलाधर मंडलोई, शिल्पायन, शाहदरा (दिल्ली), संस्करण-2013, पृष्ठ-44.