हिमालयी भूगर्भशास्त्र
हिमालयी भूगर्भशास्त्र (अंग्रेज़ी: Geology of the Himalaya) हिमालय पर्वत तंत्र की भूगर्भशास्त्रीय व्याख्या करता है। इसके अन्तर्गत हिमालय पर्वत के उद्भव और विकास की, तथा इसकी भूगर्भिक संरचना और यहाँ पायी जाने वाली शैल समूहों और क्रमों की व्याख्या की जाती है।
हिमालय का उद्भव
प्री कैम्ब्रियई काल के अंतिम समय में और पैलियोजोइक काल में भारतीय भूखण्ड गोंडवानालैण्ड का हिस्सा था। यह विशाल गोंडवाना भूभाग, यूरेशियाई भूभाग से पुरा-टीथीज सागर के द्वारा अलग किया जाता था (चित्र देखें)।
इस काल में एक पर्वत-निर्माण की घटना हुई जिसे पैन-अफ्रीकन पर्वतनिमार्ण कहा जाता है। कर्बनिफेरस के शुरूआती काल में एक भ्रंशन शृंखला का निर्माण हुआ जिसने भारतीय भूखण्ड को सिमरियन भू भाग से अलग कर नए सागर नव टीथीज का निर्माण किया।
करीब २१० मिलियन वर्ष पूर्व नोरियन भ्रंशन के द्वारा भारतीय और आस्ट्रेलियाई तथा अंटार्कटिक भूखण्ड पूर्वी गोंडवानालैंड के रूप में अलग हुए। बाद में (१६०-१५५ मा) कोलोवियन में नई बेसाल्टिक भूपर्पटी निर्माण द्वारा भारतीय प्लेट अफ्रीकी प्लेट से अलग हुई।
१३०-१२५ मिलियन वर्ष पूर्व सुरुआती क्रीटैशियस काल में "दक्षिणी हिन्द महासागरीय" खुलन के रूप में भारतीय प्लेट अंटार्कटिक और आस्ट्रेलियाई प्लेटों से विलग हो गयी और इसका प्रवाह उत्तर की ओर होने लगा।[१] ऊपरी क्रीटैशियस काल में (840 लाख वर्ष पूर्व) भारतीय प्लेट ने तेजी से उत्तर की ओर गति प्रारंभ की और तकरीबन 6000 कि॰मी॰ की दूरी तय की।साँचा:sfn यूरेशियाई और भारतीय प्लेटों के बीच यह टकराव समुद्री प्लेट के निमज्जित हो जाने के बाद यह समुदी-समुद्री टकराव अब महाद्वीपीय-महाद्वीपीय टकराव में बदल गया और (650 लाख वर्ष पूर्व) केन्द्रीय हिमालय की रचना हुई।साँचा:sfn
तब से लेकर अब तक तकरीबन 2500 किमी की भूपर्पटीय लघुकरण की घटना हो चुकी है।साँचा:sfnसाँचा:sfnसाँचा:sfnसाँचा:sfn साथ ही भारतीय प्लेट का उत्तरी पूर्वी हिस्सा 45 अंश के आसपास घड़ी की सुइयों के विपरीत दिशा में घूम चुका है।साँचा:sfn
इस टकराव के कारण हिमालय की तीन श्रेणियों की रचना अलग-अलग काल में हुई जिसका क्रम उत्तर से दक्षिण की ओर है। अर्थात पहले महान हिमालय, फिर मध्य हिमालय और सबसे अंत में शिवालिक की रचना हुई।[२]
हिमालय की संरचना
हिमालय पर्वत तन्त्र की चार श्रेणियाँ हैं- (क) परा-हिमालय (ख) महान हिमालय (ग) मध्य हिमालय और (घ) शिवालिक।[४]
परा हिमालय, जिसे ट्रांस हिमालय या टेथीज हिमालय भी कहते हैं, हिमालय की सबसे प्राचीन श्रेणी है। यह कराकोरम श्रेणी, लद्दाख श्रेणी और कैलाश श्रेणी के रूप में हिमालय की मुख्य श्रेणियों और तिब्बत के बीच स्थित है। इसका निर्माण टेथीज सागर के अवसादों से हुआ है। इसकी औसत चौड़ाई लगभग 40 किमी है। यह श्रेणी इण्डस-सांपू-शटर-ज़ोन नामक भ्रंश द्वारा तिब्बत के पठार से अलग है।
महान हिमालय, जिसे हिमाद्रि भी कहा जाता है हिमालय की सबसे ऊँची श्रेणी है। इसके क्रोड में आग्नेय शैलें पायी जाती है जो ग्रेनाइट तथा गैब्रो नामक चट्टानों के रूप में हैं। पार्श्वों और शिखरों पर अवसादी शैलों का विस्तार है। कश्मीर की जांस्कर श्रेणी भी इसी का हिस्सा मानी जाती है। हिमालय की सर्वोच्च चोटियाँ मकालू, कंचनजंघा, एवरेस्ट, अन्नपूर्ण और नामचा बरवा इत्यादि इसी श्रेणी का हिस्सा हैं। यह श्रेणी मुख्य केन्द्रीय क्षेप द्वारा मध्य हिमालय से अलग है। हालांकि पूर्वी नेपाल में हिमालय की तीनों श्रेणियाँ एक दूसरे से सटी हुई हैं।
मध्य हिमालय, महान हिमालय के दक्षिण में स्थित है। महान हिमालय और मध्य हिमालय के बीच दो बड़ी और खुली घाटियाँ पायी जाती है - पश्चिम में कश्मीर घाटी और पूर्व में काठमाण्डू घाटी। जम्मू-कश्मीर में इसे पीर पंजाल, हिमाचल में धौलाधार तथा नेपाल में महाभारत श्रेणी के रूप में जाना जाता है।
शिवालिक श्रेणी, को बाह्य हिमालय या उप हिमालय भी कहते हैं। यहाँ सबसे नयी और कम ऊँची चोटी है। पश्चिम बंगाल और भूटान के बीच यह विलुप्त है बाकी पूरे हिमालय के साथ समानांतर पायी जाती है। अरुणाचल में मिरी, मिश्मी और अभोर पहाड़ियां शिवालिक का ही रूप हैं। शिवालिक और मध्य हिमालय के बीच दून घाटियाँ पायी जाती हैं।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ शेष गोपाल मिश्र, पृथ्वी की रोचक बातें स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, गूगल पुस्तक, (अभिगमन तिथि 21-07-2014)।
- ↑ माजिद हुसैन, स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। भातर का भूगोल], गूगल पुस्तक, (अभिगमन तिथि 21-07-2014)।
- ↑ चार विवर्तनिक भागों में विभाजन Blanford & Medlicott (1879) और Heim & Gansser (1939) के अनुसार
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।