हरेकृष्ण महताब
हरेकृष्ण महताब | |
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पद बहाल २३ अप्रैल १९४६ – १२ मई १९५० | |
पूर्वा धिकारी | विश्वनाथ दास |
उत्तरा धिकारी | नवकृष्ण चौधरी |
बम्बई के गर्वनर
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पद बहाल २ मार्च १९५५ – १४ अक्टूबर १९५६ | |
पूर्वा धिकारी | गिरिजा शंकर बाजपाई |
उत्तरा धिकारी | श्री प्रकाश |
ओडिशा के मुख्यमंत्री
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पद बहाल १९ अक्टूबर १९५६ – २५ फ़रवरी १९६१ | |
पूर्वा धिकारी | नवकृष्ण चौधरी |
उत्तरा धिकारी | बीजू पटनायक |
जन्म | साँचा:br separated entries |
मृत्यु | साँचा:br separated entries |
जन्म का नाम | हरेकृष्ण महताब |
राजनीतिक दल | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
जीवन संगी | सुभद्रा महताब |
बच्चे | भर्तृहरि महताब |
शैक्षिक सम्बद्धता | रावेनशॉ कॉलेज |
धर्म | हिन्दू धर्म |
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हरेकृष्ण महताब (ओड़िया : ହରେକୃଷ୍ଣ ମହତାବ ; 21 नवम्बर 1899 – 2 जनवरी 1987) वह एक भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख सेनानी, संविधान सभा के सदस्य तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उल्लेखनीय राजनेताओं में से एक थे। वो 1946 से 1950 तक ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे।[१] वह लोकप्रिय उपाधि उत्कल केसरी से जाने जाते थे।
प्रारंभिक जीवन
महताब का जन्म ओडिशा के भद्रक जिले में अगारपडा गांव में हुआ था। उनके माता पिता का नाम कृष्ण चरण दास और तोहफा देबी था। भद्रक हाई स्कूल से अपनी मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद, वह रावेनशॉ कॉलेज, कटक में दाखील हो गए। लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए १९२१ में उन्होंने पढ़ाई छोड़ दिए।[२][३][४]
कृतियाँ
- उपन्यास
- नूतन धर्म
- टाउटर
- अब्यापार
- प्रतिभा-१९४६
- तृतीय पर्ब
- गल्प संकलन
- स्वर्गरे एमर्जेन्सी
- कविता संकलन
- चारि चक्षु
- पलासी अबसाने
- शेष अशृ
- नन्दिका
- ललिता
- राजाराणी
- छायापतर यात्री
- आत्मकथा
- साधनार पथे
- शिशु साहित्य
- बिष्णुपुरर भितिरिकथा
- गणेशङ्क पाठपढा
- अन्यान्य
- आत्मदान
- रूपान्तर
- इतिहासर परिहास
- प्रबचन
- गुप्त प्रणय
- उत्तरोतर
- शम्भुङ्कर तपस्या
- अन्धयुग
- युगसंकेत
- ओड़िशा इतिहास (३ खण्ड)
- साहित्य आलोचना
- गान्धी धर्म
- अहिंसार उपयोग
- भारतीय संस्कृति
- नेता ओ जनता
- दश बर्षर ओड़िशा
- गान्धीजी ओ ओड़िशा
- आरब सागररु चिलिका
- गाँ मजलिस (४ खण्ड)
- आधुनिकता
ओडिशा इतिहास : डॉ. हरेकृष्ण महताब भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख सेनानी थे। उन्होंने अहमद नगर किला जेल में ‘ओडिशा इतिहास' पुस्तक लिखी, जहां उन्हें 1942-1945 के दौरान दो वर्ष से अधिक समय तक बन्दी रखा गया था। यह पुस्तक ओड़िया और अंग्रेजी और हिन्दी में उपलब्ध है। हिंदी में अनुवाद शंकरलाल पुरोहित द्वारा किया गया है।
पुरस्कार और सम्मान
वह उड़ीसा साहित्य अकादमी और संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष थे।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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