स्वामी विष्णु तीर्थ

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

साँचा:ambox स्वामी विष्णु तीर्थ एक महान लेखक, संन्यासी एवं सिद्धयोग की शक्तिपात परम्परा के उच्च स्थान प्राप्त गुरु थे। उनका जन्म हिंदुस्तान के हरियाणा प्रदेश के झज्जर नामक स्थान पर हुआ था। स्वामीजी बचपन से ही अत्यन्त मेघावी थे। उन्होंने अपने चाचा के साथ रहकर अपनी स्नातक की पढ़ाई पुरी की। उसके बाद उनकी शादी हो गई और उन्होंने छतीसगढ़ के बिलासपुर जिले में शिक्षक की नौकरी कर ली। इसके बाद उन्होंने अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से स्नातकोत्तर की पढ़ाई की और कानून में उपाधि प्राप्त की। कानून की उपाधि लेने के बाद वह गाजियाबाद आकर वकालत करने लगे।

स्वामी विष्णुतीर्थ का सन्यास पूर्व नाम मुनिलाल शर्मा था। उनके एक बेटा और एक बेटी थे। बच्चों की शादी और पत्नी की मृत्यु के बाद मुनिलाल ने अध्यात्म ज्ञान की प्राप्ति के लिए ऋषिकेश की यात्रा की। सन १९३३ में, ऋषिकेश के स्वर्गाश्रम में उन्होंने सिद्ध योग के महान गुरु श्री योगानंद विज्ञानी जी महाराज से शक्तिपात की दीक्षा ली। हिमालय में बद्रीनाथ, केदारनाथ आदि अनेक स्थानों की यात्रा के बाद सन १९३९ में मुनिलाल ने अपने गुरु से सन्यास की दीक्षा लेने की इच्छा ज़ाहिर की। उनके गुरु श्री योगानंद जी ने उन्हें बनारस में स्वामी शंकर पुरषोत्तम तीर्थ जी के पास भेज दिया। स्वामी शंकर पुरषोत्तम तीर्थ जी ने उन्हें हरिद्वार में गंगा नदी के निकट मोहन आश्रम में सन्यास की दीक्षा दी। सन्यास के बाद हिंदू परम्परा के अनुसार उनका नाम स्वामी विष्णु तीर्थ रखा गया। श्री योगानंद विज्ञानी जी महाराज के निर्देश पर स्वामीजी ने मध्यप्रदेश में इंदौर की तरफ़ प्रस्थान किया। वहां उन्होंने देवास नामक स्थान पर नारायण कुटी सन्यास आश्रम की स्थापना की।

विष्णु तीर्थ जी ने अनेक साधकों के शक्तिपात परम्परा में दीक्षित किया। स्वामी शिवोम् तीर्थ उनके सबसे प्यारे शिष्य थे। विष्णु तीर्थ जी ने अनेकों पुस्तकें भी लिखी. देवात्म शक्ति उनके सबसे प्रसिद्ध रचना है। इस पुस्तक में उन्होंने शक्तिपात विज्ञान एवं कुंडलिनी शक्ति जैसे गूढ़ विषय को अपने प्रत्यक्ष अनुभव के आधार पर समझाया है।

स्वामी विष्णु तीर्थ जी महाराज को गंगा नदी से बहुत प्यार था। वह वर्ष में दो महीने गंगा नदी के किनारे स्थित योग श्री पीठ आश्रम में बिताया करते थे। आजकल इस आश्रम का संचालन स्वामी गोविंदानंद तीर्थ जी महाराज द्वारा होता है। विष्णु तीर्थ जी सन १९६९ में महासमाधी लेकर परमब्रह्म में विलीन हो गए।

रचनाएँ

  • Devatma Shakti (Kundalini) Divine Power
  • अध्यात्म विकास
  • आत्म प्रबोध
  • गीतातात्वामृतं
  • प्राण तत्त्व
  • प्रत्याभिज्ञाह्रदयं
  • साधन संकेत
  • सौन्दर्य लहरी
  • शक्तिपात
  • शिव सूत्र प्रबोधिनी
  • उपनिषद् वाणी

स्वामी विष्णु तीर्थ महाराज के पावन साहित्य के संपर्क में आने से जीवन में बहुत बदलाव आया। आपसे नम्र निवेदन हे स्वामी महाराज के साहित्य का या प्रकाशन करे। विक्रमादित्य दाजी पणशीकर

'Links:

External Links