स्वामी रामनरेशाचार्यजी महाराज

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अयोधया

स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज- स्वामीजी सगुण एवं निर्गुण रामभक्ति परंपरा और रामानंद सम्प्रदाय के मूल आचार्यपीठ-श्रीमठ, काशी के वर्तमान पीठाधीश्वर हैं। वर्ष १९८८ में उन्हें जगदगुरु रामानंदाचार्य के पद पर प्रतिष्ठित किया गया। इनका जन्म वसंत पंचमी के दिन बिहार के भोजपुर जिलान्तर्गत परसियां गांव में एक सप्रतिष्ठित भूमिहार ब्राह्मण परिवार मे हुआ था । आरंभिक शिक्षा गांव में पायी और 12 साल की उम्र में घर छोड़कर वाराणसी चले गये। तब से आजतक घर वापस नहीं लौटे.

स्वामीजी, वेद-पुराणों के मर्मज्ञ हैं और छह दर्शनशास्त्रों में इन्होंने सर्वोच्च उपाधियां अर्जित की है। इन्हें देश में न्यायशास्त्र का आधिकारिक विद्वान माना जाता है। रामानंदाचार्य पद पर प्रतिष्ठित होने से पहले इन्होंने हरिद्वार के उस कैलास आश्रम में वर्षों तक अध्यापन का कार्य किया, जिसे संस्कृत विद्वानों की पाठशाला कहा जाता है। इनके पढ़ाये हुए अनेक लोग देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में संस्कृत के प्राध्यापक हैं और कई लोग मठ-मंदिरों में प्रधान की हैसियत से देश-धर्म की सेवा में संलग्न हैं। अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए स्वामीजी ने देशभर में पद यात्राएं की और आंदोलन के अगुवा संतों में रहे। पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव ने जब अयोध्या का मुद्दा सुलझाने के लिए रामालय ट्रस्ट का गठन किया तो स्वामी रामनरेशाचार्य को उसका प्रमुख संयोजक बनाया गया। द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंदजी महाराज और श्रृंगेरीपीठ के शंकराचार्य स्वामी भारती तीर्थ भी रामालय ट्रस्ट में थे। स्वामी रामनरेशाचार्य हर साल विधिपूर्वक चातुर्मास व्रत का अनुष्ठान करते हैं। इस दौरान पड़ने वाले तमाम व्रत-त्यौहारों के मौके पर भव्य आयोजन होते हैं। तुलसी जयंती, नंद उत्सव और सावन में हरेक सोमवार को भगवान शंकर का विधि-विधान से अभिषेक किया जाता है। चातुर्मास के दौरान संत सम्मेलन, सामूहिक भंड़ारा और पधरावनी जैसे कार्यक्रम चलते रहते हैं। श्रीमठ आने के तुरंत बाद उन्होंने स्वामी रामानंदाचार्य के नाम पर एक राष्ट्रीय पुरस्कार आरंभ किया जिसके तहत हर साल हिन्दी -संस्कृत के एक जाने-माने विद्वान को एक लाख रुपया और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है।


[[चित्र:]]आचार्यश्री के पहल और प्रयास से आद्य जगद्गुरु स्वामी रामानंद के नाम पर डाक टिकट भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायणन ने जारी किया। वे साल के अघिकांश समय सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार और रामानंद सम्प्रदाय को संगठित करने के लिए यात्राएं करते रहते हैं।

श्रीमठ के वर्तमान पीठासीन आचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी भी स्वामी रामानंदाचार्च की प्रतिमूर्ति जान पड़ते हैं। उनकी कल्पनाएं, उनका ज्ञान, उनकी वग्मिता और सबसे अच्छी उनकी उदारता और संयोजन चेतना ऐसी है कि यह विश्वास किया जाता है कि स्वामी रामानंद का व्यक्तित्व कैसा रहा होगा। वर्तमान जगद्गुरू रामानंदाचार्च पद प्रतिष्ठित स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज के सत्प्रयासों का नतीजा है कि श्रीमठ से कभी अलग हो चुकी कबीरदासीय, रविदासीय, रामस्नेही, प्रभृति परंपराएं वैष्णवता के सूत्र में बंधकर श्रीमठ से एकरूपता स्थापित कर रही है। कई परंपरावादी मठ -मंदिरों की इकाईयां श्रीमठ में विलीन हो रही हैं। तीर्थराज प्रयाग के दारागंज स्थित आद्य जगद्गुरू रामनंदाचार्य का प्राकट्यधाम भी इनकी प्रेरणा से फिर भव्य स्वरूप में प्रकट हुआ है। देवभूमि हरिद्वार में दुनिया का सबसे बड़ा श्रीराममंदिर निर्माणाधीन है। उनकी योजना ऐसे हीं राम मंदिर भारत के चारो कोनों और सभी रामतीर्थों में बनाने की है।

महाराज ने राम भाव को बढ़ावा देते हुए कई लोगो को मोक्ष का मार्गदर्शन दिखाते हुए अनेक रामभावी कार्य किये है इनका इस पावन भूमि पर जन्म रामभव को विकसित करने हेतु हुआ अगर हर व्यक्ति मन