स्वामी ब्रह्मानन्द (सांसद)

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

स्वामी ब्रह्मानन्द (04 दिसम्बर 1894 - 13 सितम्बर 1984) भारत के एक परोपकारी, समाजसुधारक, स्वतंत्रता-सेनानी एवं राजनेता थे। उनका मूल नाम शिवदयाल था। स्वामी ब्रह्मानन्द ने बचपन से ही समाज में फैले हुए अंधविश्वास और अशिक्षा जैसी कुरूतियों का डटकर विरोध किया।[१] गौ-हत्या निषेध लागू करवाने के लिए आन्दोलन करने वालों में भी उनका प्रमुख स्थान है।

जीवनी

स्वामी ब्रह्मानन्द का जन्म 04 दिसम्बर 1894 को उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले की राठ तहसील के बरहरा नामक गांव के एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम मातादीन लोधी राजपूत तथा माता का नाम जशोदाबाई था। स्वामी ब्रह्मानन्द के बचपन का नाम शिवदयाल था। [२]

स्वामी ब्रह्मानन्द जी की प्रारम्भिक शिक्षा हमीरपुर में ही हुई। इसके पश्चात् उन्होने घर पर ही रामायण, महाभारत, गीता, उपनिषद और अन्य शास्त्रों का अध्ययन किया। इसी समय से लोग उन्हें 'स्वामी ब्रह्मानन्द' कहकर बुलाने लगे। पिता मातादीन लोधी राजपूत को डर सताने लगा कि कहीं उनका पुत्र साधु न बन जाए। इस डर से उन्होने स्वामी ब्रह्मानंद जी का विवाह सात वर्ष की उम्र में हमीरपुर के ही गोपाल महतो की पुत्री राधाबाई से करा दिया। आगे चलकर राधाबाई ने एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म दिया। लेकिन स्वामी जी का चित्त अब भी आध्यात्मिकता की तरफ था।

स्वामी ब्रह्मानन्द जी ने 24 वर्ष की आयु में पुत्र और पत्नी का मोह त्याग गेरूए वस्त्र धारण कर हरिद्वार में भागीरथी के तट पर ‘‘हर की पेड़ी’’ पर संन्यास कि दीक्षा ली। संन्यास के बाद शिवदयाल लोधी संसार में ‘‘स्वामी ब्रह्मानन्द’’ के रूप में प्रख्यात हुए। संन्यास ग्रहण करने के बाद उन्होने सम्पूर्ण भारत के तीर्थ स्थानों का भ्रमण किया। इसी बीच उनका अनेक महान साधु संतों से संपर्क हुआ। इसी बीच उन्हें गीता रहस्य प्राप्त हुआ। पंजाब के भटिंडा में उनकी महात्मा गाँधी जी से भेट हुई। गाँधी जी ने उनसे मिलकर कहा कि अगर आप जैसे 100 लोग आ जायें तो स्वतंत्रता अविलम्ब प्राप्त की जा सकती है।

गीता रहस्य प्राप्त कर स्वामी ब्रह्मानन्द ने पंजाब में अनेक हिंदी पाठशालाएं खुलवायीं और गोवध बंदी के लिए आन्दोलन चलाये। इसी बीच स्वामी जी ने अनेक सामजिक कार्य किये। 1956 में उनको अखिल भारतीय साधु संतों के अधिवेशन में आजीवन सदस्य बनाया गया और उन्हें कार्यकारिणी में भी शामिल किया गया। इस अवसर पर देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद सम्मिलित हुए। स्वामी जी सन् 1921 में गाँधी जी के संपर्क में आकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े और बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।

1928 में स्वामी ब्रह्मानंद के प्रयासों से गाँधी जी राठ पधारे। 1930 में स्वामी जी ने नमक आन्दोलन में भाग लिया। इस बीच उन्हें दो वर्ष का कारावास हुआ। उन्हें हमीरपुर, हरदोई और कानपुर की जेलों में रखा गया। स्वामी ब्रह्मानंद जी ने पूरे उत्तर भारत में अग्रेजों के खिलाफ लोगों में अलख जगाई। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय स्वामी जी का नारा था "उठो! वीरो उठो!! दासता की जंजीरों को तोड़ फेंको। उखाड़ फेंको इस शासन को। एक साथ उठो, आज भारत माता बलिदान चाहती है।" जेल से छूटकर स्वामी ब्रह्मानन्द शिक्षा प्रचार में जुट गए। 1942 में स्वामी जी को पुनः भारत छोड़ो आन्दोलन में जेल जाना पड़ा।

स्वामी जी ने सम्पूर्ण बुन्देलखण्ड में शिक्षा की अलख जगाई । उन्होने हमीरपुर के राठ में वर्ष 1938 में ब्रह्मानंद इंटर कॉलेज़, 1943 में ब्रह्मानन्द संस्कृत महाविद्यालय तथा 1960 में ब्रह्मानन्द महाविद्यालय की स्थापना की। इसके अलावा शिक्षा प्रचार के लिए अन्य कई शैक्षणिक संस्थाओं के प्रेरक और सहायक रहे हैं। वर्तमान में बुंदेलखण्ड के भीतर उनके नाम पर कई कॉलेज और अनेक स्कूल संचालित किये जा रहे हैं।

स्वामी ब्रह्मानन्द अपने समय में गौ-हत्या को लेकर चिंतित रहने वालों में सबसे आगे थे। वर्ष 1966 में हुये अब तक के सबसे बड़े गौ-हत्या निषेध आन्दोलन के ये जनक और नेता थे, जिसमें प्रयाग से दिल्ली के लिए इन्होंने पैदल ही प्रस्थान कर दिया था, जिसमें इनके साथ कुछ और भी साधु-महात्मा थे। इनके नेतृत्व में गौ-रक्षा आंदोलन के लिए निकले जत्थे ने सन् 1966 की राम नवमी को दिल्ली में सत्याग्रह किया। सत्याग्रह के समय तक इनके साथ सत्तर के दशक में 10-12 लाख लोगों का हुजूम जुट गया था, जिससे तत्कालीन सरकार घबरा गयी और फिर स्वामी ब्रह्मानन्द को गिरप्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया गया था। तब स्वामी ब्रह्मानंद ने प्रण लिया कि अगली बार चुनाव लड़कर ही संसद में आएंगे। जेल से मुक्त होकर स्वामी जी ने हमीरपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस से 1967 में चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीतकर संसद भवन पहुंचे। वे भारत के पहले सन्यासी थे जो आजाद भारत में सांसद बने। स्वामी जी 1967 से 1977 तक हमीरपुर से सांसद रहे।[३]

भारत की संसद में स्वामी ब्रह्मानंद जी पहले वक्ता थे जिन्होंंने गौवंश की रक्षा और गौवध का विरोध करते हुए संसद में करीब एक घंटे तक अपना ऐतहासिक भाषण दिया था। 1971 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के आग्रह पर स्वामी जी कांग्रेस से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और राष्ट्रपति वी वी गिरि से स्वामी ब्रह्मानंद के काफी निकट संबंध थे।

स्वामी ब्रह्मानन्द की निजी संपत्ति नहीं थी। संन्यास ग्रहण करने के बाद उन्होंंने पैसा न छूने का प्रण लिया था और इस प्रण का पालन मरते दम तक किया। वे अपनी पेंशन छात्र-छात्राओं के हित में दान कर दिया करते थे। समाज सुधार और शिक्षा के प्रसार के लिए उन्होने अपना जीवन अर्पित कर दिया। वह कहा करते थे मेरी निजी संपत्ति नहीं है, यह तो सब जनता की है।

हमेशा गरीबों की लड़ाई लड़ने वाले, 'बुन्देलखण्ड के मालवीय' नाम से प्रख्यात, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, त्यागमूर्ति, सन्त प्रवर, स्वामी ब्रह्मानंद जी 13 सितम्बर 1984 को ब्रह्मलीन हो गए।

स्वतंत्रता सेनानी स्वामी ब्रह्मानंद से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां

अद्वितीय सांसद

स्वतंत्र भारत के पहले भगवा धारी संत सांसद ।

लोधी राजपूत समाज के पहले सांसद ।

गोरक्षा आंदोलन के प्रणेता।

हमीरपुर लोकसभा से पहले गैर कांग्रेसी सांसद( जनसंघ से १९६७)। इंदिरा जी के अनुरोध पर दूसरी बार कांग्रेस से हमीरपुर लोकसभा से चुने गये । गोरक्षा , दलित शोषण,भ्रष्टाचार, जातिवाद, छुआ छूत कुरीति पर भारतीय संसद में आजतक के सबसे अक्खड़ वक्ता।

पार्टीगत संविधान को हमेशा तिलांजलि देकर जनहितकारी मुद्दों को संसद में रखने का माद्दा रखने वाले इकलौते सांसद।

स्वतंत्र भारत के सांसद जिन्होंने कभी मुद्रा ( द्रव्य) को हाथ नहीं लगाया।

इकलौते सांसद जिनकी कोई निज संपत्ति नहीं थी।

ब्रह्मानंद डाक टिकट

भारत सरकार ने त्यागमूर्ति स्वामी ब्रह्मानंद जी पर १४ सितंबर १९९७ को भारतीय डाक टिकट जारी किया।

स्वामी ब्रह्मानंद द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थान

स्वामी ब्रह्मानंद जी द्वारा स्थापित ब्रह्मानंद इंटर कॉलेज (१९३८) ब्रह्मानंद संस्कृत महाविद्यालय (१९४३)ब्रह्मानंद महाविद्यालय (१९६०) राठ हमीरपुर यूपी । ब्रह्मानंद महाविद्यालय राठ , क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का अग्रणी कालेज है।यह कृषि स्नातक,परास्नातक शिक्षा के लिए भारत प्रसिद्ध है।

स्वामी ब्रह्मानंद वनस्थली

स्वामी ब्रह्मानंद जी द्वारा स्थापित यह वनस्थली धनौरी राठ हमीरपुर में अवस्थित है। सन् १९८३ में ३६४ एकड़ बंजर भूमि को समतल करके एक लाख पौधे रोपित किए गये थे,जिसे सन् १९८९ में इंदिरा गांधी प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र पुरस्कार के लिए चुना गया,। सन् १९८९ में ततत्कालीन प्रधानमंत्री वी पी सिंह ने महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ गोपीनाथ लोधी को यह पुरस्कार दिया था।

स्वामी ब्रह्मानंद जन्म स्थली

स्वामी ब्रह्मानंद की जन्म स्थली ग्राम बरहरा, तहसील सरीला जिला हमीरपुर यूपी में हुआ था, जिस मकान में स्वामी जी का जन्म हुआ था वह अभी जीर्ण-शीर्ण हालत में है।गांव मे स्वामी ब्रह्मानंद मंदिर बना हुआ है जो आस्था का केंद्र है।

स्वामी ब्रह्मानंद बांध

हमीरपुर जिले में यह बांध स्वामी ब्रह्मानंद जी के नाम पर विरमा नदी में बनाया गया है।

स्वामी ब्रह्मानंद जी की विश्व स्तरीय प्रतिमा

यह प्रतिमा राठ शहर के लोधेश्वर धाम में स्थापित है।यह प्रतिमा अनाज द्वारा निर्मित है जो कि विश्व की इकलौती प्रतिमा है।इसकी स्थापना स्वामी ब्रह्मानंद की १२५ वीं जयंती पर लक्ष्य परिवार द्वारा करवाई गई है।

स्वामी ब्रह्मानंद समाधि स्थल

स्वामी ब्रह्मानंद जी की समाधि महाविद्यालय परिसर में अखंड मंदिर के सामने विशाल स्टेच्यू के साथ स्थापित है।

स्वामी ब्रह्मानंद पुरस्कार

यह पुरस्कार स्वामी ब्रह्मानंद जी की १२५ वीं जयंती पर स्वामी ब्रह्मानंद पुरस्कार समिति द्वारा शुरू किया गया है।यह पुरस्कार प्रत्येक वर्ष शिक्षा एवं गोसेवा ( प्रत्येक वर्ष किसी एक क्षेत्र में) विशेष कार्य करने वाले भारतीय व गैर भारतीय लोगों को दिया जाता है।इसकी जानकारी के लिए लाग इन करें www.thesbaward.com पुरस्कार विजेता : 1-फ्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग (मूल निवासी बर्लिन जर्मनी)-2019 ( गोसेवा) 2-डाॅ अरुण कुमार पाण्डेय, शिक्षाविद्, बहराइच -2020 ( शिक्षा) 3-आनंद कुमार , शिक्षाविद्, समाजसेवी,पटना बिहार -2021( शिक्षा )

स्वामी ब्रह्मानंद जी से संबंधित साहित्य

ब्रह्मानंद तरंगिणी- यह स्वामी ब्रह्मानंद के मुखारबिंद से उच्चरित काव्य का संकलन है। त्यागमूर्ति स्वामी ब्रह्मानंद- यह ब्रह्मानंद महाविद्यालय राठ द्वारा प्रकाशित

स्मृति विशेषांक - ब्रह्मानंद महाविद्यालय

त्यागमूर्ति स्वामी ब्रह्मानंद कल्पतरु महाकाव्य- संत कवि बहादुर सिंह निर्दोषी द्वारा रचित

राष्ट्र की ज्योतिर्मय विभूति स्वामी ब्रह्मानंद- यह पुस्तक डॉ जय सिंह सरोज द्वारा रचित है।

सन्दर्भ