स्वामी आत्मानन्द
स्वामी आत्मानन्द (६ अक्टूबर १९२९ -- २७ अगस्त १९८९) रामकृष्ण मिशन के एक सन्त, समाजसुधारक तथा शिक्षाविद थे। उन्होने वनवासियों के उत्थान के लिए नारायणपुर आश्रम में उच्च स्तरीय शिक्षा केंद्र की स्थापना की तथा रामकृष्ण परमहंस की भावधारा को छत्तीसगढ़ की धरा पर साकार किया। छत्तीसगढ़ सरकार जिला मुख्यालयों और विकासखंडों में 'स्वामी आत्मानन्द विद्यालय' चालू कर रही है जिससे गरीब और दूरस्थ क्षेत्र के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ आगे बढ़ने के सभी अवसर उपलब्ध हो सकें।[१] इनके अथक प्रयासों से रायपुर स्थित विवेकानन्द आश्रम की स्थापना की गई जो आज भी है। इसी आश्रम के वे पहले सचिव थे।
स्वामी आत्मानन्द का मूल नाम तुलेन्द्र था। उनका जन्म 6 अक्टूबर 1929 को बरबन्दा गाँव में हुआ था[२] जो अब छत्तीसगढ के रायपुर जिले में है। आपके पिता धनीराम वर्मा रायपुर के पास मांढर स्कूल में एक अध्यापक थे। अध्यापक के तौर पर उन्हें उच्च प्रशिक्षण लिये सपरिवार वर्धा गये। वहीं सेवाग्राम में बालक तुलेन्द्र महात्मा गांधी से मिले। वे भजन अच्छा गाते थे, धीरे-धारे बालक तुलेन्द्र महात्मा गांधी के चेहते बन गए।
इसके बाद 1943 में उनके पिता वापस रायपुर लौट आए और श्री राम स्टोर नामक दुकान चलाने लगे। इसके बाद तुलेन्द्र ने रायपुर के सेंटपाॅल स्कूल से हाई स्कूल की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया और आगे की पढ़ाई के लिए नागपुर के साईंस कालेज में प्रवेश लिया। चूंकि रहने को हाॅस्टल में जगह नहीं थी, अतः वे रामकृष्ण आश्रम में रहने लगे और और अपनी पढ़ाई पूरी की। आश्रम में रहते हुए स्वामी विवेकानन्द दर्शन से वे काफी प्रभावित हुए और प्रतिदिन आश्रम की आरती और अन्य कामों में वे बढ़-चढ़ हिस्सा लेते रहे। [३]
यहीं से वैराग्य और सेवा की भावना उनमें आई वे वे धीरे-धीरे स्वामीजी के विचारों को अपने निजी जीवन में भी अपनाने लगे। एमएससी गणित की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास करने के बाद मित्रों की सलाह पर वे सिविल सेवा परीक्षा में बैठे और प्रथम दस में अपना स्थान बनाया। लेकिन मानवसेवा और वैराग्य की भावना के चलते आईएएस की मुख्य परीक्षा में सम्मिलित नहीं हुए और दूसरा ही मार्ग धर लिया ।
भारत की स्वतंत्रता के बाद वे रामकृष्ण मिशन से जुड़ गए। 1957 में उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर स्वामी शंकरानंद ने उन्हें ब्रम्हचर्य की दीक्षा दी और नाम दिया 'स्वामी तेज चैतन्य'। इसके बाद हिमालय स्वार्गाश्रम में एस साल कठोर साधना कर रायपुर आए और स्वामी भाष्करेश्वरानन्द से संस्कार की शिक्षा ली। यहीं से उन्हें नया नाम मिला - स्वामी आत्मानंद।
1877 से 79 के बीच स्वामी विवेकानन्द रायपुर में थे उनके इस आगमन की स्मृति मेंरायपुर में स्वामी आत्मानन्द के प्रयासों से अप्रेल 1962 रामकृष्ण आश्रम की स्थापना हुई।
स्वामी विवेकानन्द के विचारों का भी स्वामी आत्मानन्द पर गहरा असर हुआ, जिससे उन्होंने अपना पूरा जीवन दीन-दुखियों की सेवा में बिता दिया। मठ और आश्रम स्थापित करने के लिए एकत्र की गई राशि उन्होंने अकाल पीडि़तों की सेवा और राहत काम के लिए खर्च कर दी। उन्होंने वनवासियों के उत्थान के लिए नारायणपुर आश्रम में उच्च स्तरीय शिक्षा केन्द्र की स्थापना की। उन्होंने आदिवासियों के सम्मान एवं उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए अबुझमाड़ प्रकल्प की स्थापना की। नारायणपुर में वनवासी सेवा केंद्र प्रारम्भ कर वनवासियों की दशा और दिशा सुधारने के प्रयास किए। एक संत में जो गुण होने चाहिए वे सभी आत्मानंद में थे।
उन्होंने बचपन से ही संस्कारों की दीक्षा ली। जबकि वे आज की तरह भौतिक सुख, सुविधाओं का आनंद प्राप्त कर सकते थे। स्वामी अन्य मानव की पीड़ा देखकर व्यथित हो जाते थे। 1974 में छग में अकाल की स्थिति आई, तब स्वामी ने आश्रम के लिए एकत्रित राशि को जनमानस के लिए समर्पित किया।
27 अगस्त 1989 को भोपाल से रायपुर लौटते समय सड़क हादसे में आपका निधन हो गया।