स्वरूपाचार्य अनुभूति

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स्वरूपाचार्य अनुभूति को सारस्वत व्याकरण का निर्माता माना जाता है। बहुत से वैयाकरण इनको सारस्वत का टीकाकार ही मानते हैं। इसकी पुष्टि में जो तथ्यपूर्ण प्रमाण मिलते हैं उनमें क्षेमेंद्र का प्रमाण सर्वोपरि है। मूल सारस्वतकार कौन थे इसका पता नहीं चलता।

सारस्वत पर क्षेमेंद्र की प्रचीनतम टीका मिलती है। उसमें सारस्वत का निर्माता "नरेंद्र" माना गया है। क्षेमेंद्र सं. 1250 के आसपास वर्तमान थे। उसके बाद अनुभूति स्वरूपाचार्यकृत "सारस्वतप्रक्रिया" नामक ग्रंथ पाया जाता है। ग्रंथ के नामकरण से ही मूल ग्रंथकार का खंडन हो जाता है। फिर भी आज तक पूरा वैयाकरण समाज अनुभूतिस्वरूपाचार्य को ही सारस्वतकार मानता आ रहा है।

पाणिनि व्याकरण की प्रसिद्धि का स्थान लेने के लिए स्यात् "सारस्वतप्रक्रिया" का निर्माण किया गया था। सचमुच यह उद्देश्य अत्यंत सफल रहा। देश के कोने कोने में "सारस्वतप्रक्रिया" का पठनपाठन चल पड़ा। अतएव अनुभूति स्वरूपाचार्य की टीकाकार तक ही सीमित न रखकर मूलकार के रूप में भी प्रतिष्ठापित किया गया।

अनुभूति स्वरूपाचार्य की प्रक्रिया के अनुकरण पर अनेक टीका ग्रंथों का निर्माणप्रवाह चल पड़ा। परिणामत: सारस्वत व्याकरण पर 18 टीकाग्रंथ बनाए गए, परंतु अनुभूति स्वरूपाचार्य की प्रक्रिया टीका के आगे सभी टीकाएँ फीकी पड़ गईं। इन्होंने सं. 1300 के लगभग "सारस्वत प्रक्रिया" का निर्माण किया था। लोकश्रुति है कि सरस्वती की कृपा से व्याकरण के सूत्र मिले थे। अतएव "सारस्वत" नाम सार्थक माना गया।

सारस्वत प्रक्रिया का प्रभाव उत्तरवर्ती टीकाग्रंथों में स्वीकार किया गया है।

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