स्किजोफ्रीनिया

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स्किज़ोफ्रीनिया (Schizophrenia) मनोदशा में मनुष्य को अपने व्यक्तित्व का कुछ ज्ञान ही नहीं रह जाता। उसके जीवन में न तो उल्लास का प्रश्न रहता है, न विषाद का। अतएव इस मनोदशा को दूसरा बचपन कहा जा सकता है। इस मनोदशा में आने पर रोगी में अपने आपको सँभालने की कोई शक्ति नहीं रहती। वह मलमूत्र के नित्य कार्य भी नहीं कर पाता। बिछावन पर ही वह मलमूत्र कर देता है। उसके हँसने और रोने में कोई विचार ही नहीं रहता। वह किस समय क्या कर डालेगा, इसके विषय में कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता। दो चार मिनट तर्कयुक्त बातें करते हुए वह कोई ऐसी बात कह सकता है जो बिल्कुल अनर्गल हो। वह हँसते हँसते अपने सामने खड़े बालक का गला घोट सकता है।



स्किजोफ्रीनिया

स्किजोफ्रीनिया के रोगी अंधविश्‍वासी होते हैं वे न केवल ईश्‍वर को देखते हैं बल्कि उनसे वार्तालाप भी करते हैं और कई बार उनके आदेशों को मानकर बलि देने जैसे कामों को भी अंजाम दे देते हैं। भारत में एक स्किजोफ्रीनिया के रोगी ने एक रात में लोहे की रॉड से सड़क के किनारे सो रहे इकतालीस लोगों की हत्‍या की और शांति से अपने घर में जाकर बैठ गया। पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उस समय में उस रोगी के चेहरे पर असीम शांति थी। क्‍योंकि यह सब उसने सूर्य भगवान के निर्देश पर किया था। सूर्य भगवान रोज उससे बातें किया करते थे। यह रोगी दिल्‍ली की तिहाड़ जेल में है।

लक्षण

स्‍पष्‍ट तौर पर सिर्फ एक संदेह। हर किसी पर, हर परिस्थिति पर और हर कोण से। बाकी बातें बाद में आती हैं।

कैसे होता है

इसे साइको सोमेटिक डिसऑर्डर कह सकते हैं। यानि शारीरिक क्षति का भुगतान मानसिक अवस्‍था करती है।

आम बोलचाल में

दिमाग के दो हिस्‍से हैं। दांया और बायां। इन दोनों हिस्‍सों में या कह दें कि दिमाग में ऑक्‍सीजन पहुंचाने के लिए लाल रक्‍त कणिकाओं का इस्‍तेमाल नहीं होता। इसके लिए अलग से ऑक्‍सीजन कैरियर्स होते हैं। ये कैरियर दिमाग के पिछले हिस्‍से में जाकर ऑक्‍सीजन को आरबीसी से ले लेते हैं और फिर दिमाग के अलग-अलग हिस्‍सों में चलते जाते हैं। वहां ऑक्‍सीजन की सप्‍लाई हो जाती है। दिमाग के हर हिस्‍से के लिए कैरियर पहले से तय हैं। इनमें बदलाव नहीं होता।

अब चाहे किसी बाहरी चोट से, किसी मेंटल डिसऑर्डर से या वंशानुगत कारणों से ये ऑक्‍सीजन के वाहक बनना बंद हो जाते हैं। अब दिमाग का एक हिस्‍सा बिना ऑक्‍सीजन की अवस्‍था में आ जाता है। तो उस हिस्‍से के न्‍यूरॉन मरने के संदेश भेजने लगते हैं। इसे नीयर डेथ एक्‍सपीरियंसेज कहते हैं। मौत को बहुत करीब से देखने वाले बहुत से लोगों को चमक, भगवान और कई तरह की चीजें दिखाई देने लगती हैं। दायां मस्तिष्‍क इस कल्‍पना को जन्‍म देता है और बायां भाग उसे जस्टिफाई करता है। अब स्‍कीजोफ्रीनिया में अंतर यह होता है कि दिन के चौबीस घण्‍टे, सातों दिन और सालों तक यह प्रक्रिया चलती है। ऐसे में रोगी संदेह करने लगता है। हर तथ्‍य पर जो सामने आता है। इसी अवस्‍था में ईश्‍वर उसे एकमात्र सहायक के रूप में नजर आने लगते हैं और वह छद्म विश्‍वास बना लेता है कि ईश्‍वर उससे बात कर रहे हैं या ईश्‍वर उसके कांटेक्‍ट में है।

इन लोगों के केवल ईश्‍वर ही नहीं बल्कि अन्‍य ऐसी कई चीजों के प्रति छद्म विश्‍वास होता है जो आमतौर पर होती ही नहीं हैं। जैसे एक रोगी को लगता था कि उसके सामने रखे शीशे में दो ड्रेगन हैं, एक अन्‍य रोगी को दूसरों द्वारा की जा रही साजिश दीवार पर चित्रों के रूप में दिखाई देती है। एक अन्‍य दूसरों पर अनैतिक लांछन लगता है।

प्रभाव

इस सबका असर यह होता है कि रोगी के परिवार के लोग ही एक-दूसरे को गलत समझने लगते हैं और रोगी के रोग की वजह बताने लगते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि रोगी और भी अकेला पड़ जाता है। वह खुद यह डिसाइड नहीं कर पाता है कि कौन उसके पक्ष में है और कौन विरोध में।

लक्षण एवं उपचार

सालों पहले तक इस रोग के बारे में चिकित्‍सकों की स्‍पष्‍ट राय नहीं होने के कारण पहले रोगी को संदमित करने की दवाएं दी जाती रहीं बाद में इलेक्ट्रिक शॉक की सहायता भी लगी गई लेकिन ये रोगी अनपेक्षित रूप से कभी भी ठीक हो जाते हैं और कभी भी गड़बड़। अब साइको सोमेटिक डिसऑर्डर कब होगा और कब नहीं कोई नहीं कह सकता। ऐसे में रोगी का व्‍यवहार की उसके ईलाज में आड़े आता है। यानि कभी पूर्ण संयत होता तो भी पूर्ण मैनिक होना। इस बीमारी में पारिवारिक सहयोग के साथ साथ अच्छा इलाज भी मिलना चाहिए। जो सबसे जरूरी ह यह बीमारी जितनी ज्यादा पुरानी होगी उतनी ही खतरनाक होती चली जायेगी। इसीलिए इस बीमारी का उचित समय पर पता लगने बेहद जरूरी ह। यदि हम इसका उचित समय पर पता चल जाता ह तो इसका इलाज संभव है। मेरे द्वारा देखे गए लछन जो निम्न ह:-

  • 1,इसका मने सबसे बड़ा लछन ये देखा कि इसमें मरीज बहुत ज्यादा अन्धविस्वशि हो जाता ह।
  • 2, जो लोग उसको या उसके परिवार की मदद करते ह तो उनको गलत नजर से देखना।
  • 3,उनको दुश्मन समझना
  • 4,वो अपने ओर अपने परिवार वालो ओर अपने आसपास के लोगो को गलत तरीके से बोलना उनके साथ गलत व्यहार करना।
  • 5, जो उसकी देखभाल करता ह उसको अपना दुश्मन समझना।
  • 6, वो अपने परिवार को अपना दुश्मन समझता ह।
  • 7, उसे केवल परिवार के एक या दो सदस्य ही अछे लगेगे जिसकी वह बात मानेगा।
  • 8, जिसके साथ वो गलत करने वाला ह उसको लगातार देखना।
  • 9,आंखे लाल होना।
  • 10,खाना पीना अच्छा नही लगना।
  • 11, नित्य किरिययाओ पर ध्यान नही देना जैसे नाखून नही काटना बाल नही कटवाना इत्यादि।
  • 12,हर बात को अपने तरीके से अर्थ निकलना।
  • या ऐसे कहे कि हर बात में नकारात्मकता खोजना।
  • 13,वह छोटा बच्चा हो या 60 साल का हो किसी को भी अपना दुश्मन मान सकता ह।
  • 14, वह किसी भी वस्तु से हमला कर सकता ह।
  • 15, उसके सामने कभी नकारात्मक बातें न करे।
  • 16, उसका वास्तविकता को छोड़ कर काल्पनिकता पर ज्यादा विस्वाश करता ह।
  • 17, जैसे उसे भगवान दिखते ह।

क्या करे या क्या ना करे:-

  • 1, इस बीमारी को कई लोग अंडविश्वश समझकर बाबा के या मंदिर या डोंगियों के चक्र में पड़ जाते ह जिससे उनकी तकलीफे काम नही होती बल्कि बड़ जाती ह।
  • 2, इस तरीके उनका ओर मरीज का शारीरिक और मानसिक आर्थिक रूप से ज्यादा परेशान होता ह जिसे तकलीफ कम नही बड़ जाती ह।
  • 3, सब आपकी मजबूरी का फायदा उठाएंगे।
  • 4,उसे अपनी पसंद का काम करने दे।
  • 5, उसे कभीभी एकेला महसूस न होने दे और न ही उसे अकेला छोडे।
  • 6, उसके सामने सकारात्मक बातें उससे उसके पास्ट की अछि बाते बतयो के बारे में चर्चा करें।

दवाएं

पिछले कुछ समय में कम संदमन करने वाली और ऑक्‍सीजन कैरियर की कमी की पूर्ति करने वाली दवाएं बाजार में आई हैं। इससे रोगियों को बहुत हद तक आराम भी मिला है।

बाहरी कड़ियाँ

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