सूफ़ीवाद

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६ सूफ़ी उस्ताद, १७६०

सूफ़ीवाद या तसव्वुफ़[१] (अरबी : الْتَّصَوُّف}; صُوفِيّ} सूफ़ी / सुफ़फ़ी, مُتَصَوِّف मुतसवविफ़),, इस्लाम का एक रहस्यवादी पंथ है।[२] इसके पंथियों को सूफ़ी(सूफ़ी संत) कहते हैं। इनका लक्ष्य अपने पंथ की प्रगति एवं सूफीवाद की सेवा रहा है। सूफ़ी राजाओं से दान-उपहार स्वीकार नही करते थे और सादगी भरा जीवन बिताना पसन्द करते थे। इनके कई तरीक़े या घराने हैं जिनमें सोहरावर्दी (सुहरवर्दी), नक्शवंदिया, क़ादरिया, चिष्तिया, कलंदरिया और शुत्तारिया के नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

माना जाता है कि सूफ़ीवाद ईराक़ के बसरा नगर में क़रीब एक हज़ार साल पहले जन्मा। राबिया, अल अदहम, मंसूर हल्लाज जैसे शख़्सियतों को इनका प्रणेता कहा जाता है - ये अपने समकालीनों के आदर्श थे लेकिन इनको अपने जीवनकाल में आम जनता की अवहेलना और तिरस्कार झेलनी पड़ी। सूफ़ियों को पहचान अल ग़ज़ाली के समय (सन् ११००) से ही मिली। बाद में अत्तार, रूमी और हाफ़िज़ जैसे कवि इस श्रेणी में गिने जाते हैं, इन सबों ने शायरी को तसव्वुफ़ का माध्यम बनाया। भारत में इसके पहुंचने की सही-सही समयावधि के बारे में आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी में ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती बाक़ायदा सूफ़ीवाद के प्रचार-प्रसार में जुट गए थे।[३]

सूफी लोगो सुन्नी को कहा जाता हैं और सुन्नी इस्लाम में हर फिरके से अलग और असल क़ुरान हदीस पर चलने वाले मोमिन होते हैं इस्लाम को अगर समझना हैं तो क़ुरान हदीस से समजा जा सकता हैं और क़ुरान हदीस को जो समजे वो असल मोमीन होता हैं जो हज़रात मोहम्मद और सहाबा के तौर तरीके को अपनाता हैं और दुनिया को भूल कर अल्लाह के रह में ज़िन्दगी बसर यानि गुजरता हैं वही सूफी होता हैं अपनी सारी ज़िन्दगी अल्लाह और उसके रसूल के नाम पर करने के बाद वो अल्लाह वाला हो जाता हैं जिससे हर मोमीन मुस्लमान उन से फैज़ पता हैं और अपने दुनिया के सरे गम और परेशानिया लेके उस सूफी बाबा के कदम पोषी के लिए हाज़िर होता हैं सूफी वो होता हैं जो ज़िंदा रहते ही लोगो के बड़े काम आता हैं पर इस दुनिया से पर्दा करने यानि इन्तेकाल के बाद भी वो अपने क़बर से अल्लाह के हुकुम से लोगो के काम आता हैं

व्युत्पत्ति

सूफ़ी नाम के स्रोत को लेकर अनेक मत है। कुछ लोग इसे यूनानी सोफ़स (sophos, ज्ञान) से निकला मानते हैं। इस मूल से फिलोसफ़ी, थियोसफ़ी इत्यादि शब्द निकले हैं। कई इसको अरबी सफ़ः (पवित्र) से निकला मानते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि ये सूफ़ (ऊन) से आया है क्योंकि कई सूफ़ी दरवेश ऊन का चोंगा पहनते थे। सूफी का मूल अर्थ "एक जो ऊन (ṣūf) पहनता है") है, और इस्लाम का विश्वकोश अन्य व्युत्पन्न परिकल्पनाओं को "अस्थिर" कहता है। ऊनी कपड़े पारंपरिक रूप से तपस्वियों और मनीषियों से जुड़े थे। अल-कुशायरी और इब्न खल्दुन दोनों ने भाषाई आधार पर onf के अलावा सभी संभावनाओं को खारिज कर दिया।[४]

एक अन्य स्पष्टीकरण शब्द के शब्द की जड़ को उफान से पता चलता है, जिसका अरबी में अर्थ है "पवित्रता", और इस संदर्भ में तसव्वुफ का एक और समान विचार जैसा कि इस्लाम में माना जाता है तज़किह (تزكية, जिसका अर्थ है: आत्म-शुद्धि), जो है व्यापक रूप से सूफीवाद में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है। इन दोनों स्पष्टीकरणों को सूफी अल-रुदाबारी द्वारा संयुक्त किया गया था, जिन्होंने कहा, "सूफी वह है जो पवित्रता के ऊपर ऊन पहनता है"।

सूफ़ी मानते हैं कि उनका स्रोत खुद पैग़म्बर मुहम्मद हैं।[५]

सूफ़ी तरीके

कादरी, नक्शबंदी, सुहवर्दी, अशरफी, अत्तारी, ताजी, और चिश्ती सूफी आदेश प्रमुख सूफी आदेश हैं| शतारी सूफी आदेश, सुहरावर्दी सूफी आदेश की शाखा है |[६]

सूफी प्रथाएँ

ज़िक्र

ज़िक्र अल्लाह के 99 नामों का जाप करके अल्लाह को याद करने की प्रथा है। [७]

सूफी त्यौहार

ईद ई मिलदुन्नबी[८], ग्यारवी शारिफ,[९] शब ई मेरज आम सूफी त्योहार हैं। इस्लाम में होने वाले वो हर दिन जो इस्लाम को फयदा या अल्ल्हा का कोई नेक इस दुनिया से जाता हैं तो उसके इसले सवाब के लिए होने वाले करना इस्लाम का पहला महीना जिसमे मुहर्रम से लेके हर इस्लामी महीने में बेशुमार अल्लाह और रसूले के नाम पर लूटाना और अल्लाह के ने बन्दों को याद करना ये सूफी सुन्नी का किरदार होता हैं जिसे आप सूफी त्यौहार भी कहसकते हैः जैसे की मुहर्रम।ग्यारवी शरीफ, मेराज शरीफ, शब् ऐ बारात, शबे ऐ कदर, ईद उल अज़हा ईद उल फ़ित्र, ईद ऐ मिलाद शरीफ, साहब के दीं सहादत और विलादत के, हर वाली के विलादत का जशन (फातिया देना), हर वाली का उरुस शरीफ मानना

यह भी देखें

सन्दर्भ

  1. साँचा:citation
  2. Martin Lings, What is Sufism? (Lahore: Suhail Academy, 2005; first imp. 1983, second imp. 1999), p.15
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