सुरिन्दर कौर
सुरिन्दर कौर | |
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पृष्ठभूमि की जानकारी | |
जन्मनाम | सुरिन्दर कौर |
अन्य नाम | पंजाब की कोकिला |
जन्म | साँचा:br separated entries |
मृत्यु | साँचा:br separated entries |
शैलियां | साँचा:hlist |
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सक्रिय वर्ष | 1943–2006 |
संबंधित कार्य | प्रकाश कौर (बहन), |
सुरिन्दर कौर (साँचा:lang-pa; 25 नवंबर 1929 - 14 जून 2006) भारतीय गायिका और गीतकार थीं। हालांकि उन्होंने अधिकतर पंजाबी लोक गीत गाये जहाँ उन्हें इस शैली को आगे बढ़ाने और लोकप्रिय बनाने का श्रेय दिया जाता है। कौर ने 1948 और 1952 के बीच कई हिंदी फिल्मों के लिए पार्श्व गायिका के रूप में गीत भी गाये है। उन्हें पंजाबी संगीत में उनके योगदान के लिए पंजाब की कोकिला नाम दिया गया, 1984 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और 2006 में पद्मश्री पुरुस्कार से सम्मानित किया गया।[१][२][३]
लगभग छह दशकों के करियर में उनके प्रदर्शनों में बुल्ले शाह की पंजाबी सूफी काफियां शामिल थीं। साथ ही नंद लाल नूरपुरी, अमृता प्रीतम, मोहन सिंह और शिव कुमार बटालवी जैसे समकालीन कवियों की कविताएँ से उन्होंने "मावन 'ते धीन", "जुती" जैसे यादगार गीतों को दिया। समय के साथ, उनके विवाह गीत विशेष रूप से "लट्ठे दी चढ़ार", "सुहे वे चीज लहरिया" और "काला डोरिया" पंजाबी संस्कृति का एक अमिट हिस्सा बन गए हैं।[४]
कौर की शादी दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर जोगिंदर सिंह सोढ़ी से हुई थी। दंपति की तीन बेटियां थीं, जिनमें से सबसे बड़ी एक पंजाबी लोक गायिका है। कौर का 2006 में लंबी बीमारी के बाद न्यू जर्सी में निधन हो गया।
प्रारंभिक जीवन
सुरिन्दर कौर का जन्म ब्रिटिश भारत में पंजाब की राजधानी लाहौर में सिख परिवार में हुआ था। वह प्रकाश कौर की बहन और डॉली गुलेरिया की मां थी। दोनों ही पंजाबी गायिका हैं। उनकी तीन बेटियाँ हैं जिनमें से डॉली सबसे बड़ी है।[५]
करियर
सुरिन्दर कौर ने अगस्त 1943 में लाहौर रेडियो पर एक लाइव प्रदर्शन के साथ अपनी पेशेवर शुरुआत की। अगले साल 31 अगस्त 1943 को उन्होंने और उनकी बड़ी बहन, प्रकाश कौर ने अपना पहला गीत, "मावन 'ते ढीन रेन बैथियन" रिकॉर्ड किया। इसे HMV लेबल पे जारी किया गया था और इसने उन्हें भारतीय उपमहाद्वीप में सुपरस्टार के रूप में उभार दिया।[६][४]
1947 में भारत के विभाजन के बाद कौर और उनके माता-पिता गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थानांतरित हो गए। 1948 में, उन्होंने प्रोफेसर जोगिंदर सिंह सोढ़ी से शादी की जो दिल्ली विश्वविद्यालय में पंजाबी साहित्य के व्याख्याता थे।[५] उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए सुरिन्दर के पति उनकी सहायता प्रणाली बन गए और जल्द ही उन्होंने बॉम्बे में हिंदी फिल्म उद्योग में पार्श्व गायिका के रूप में अपना कैरियर शुरू किया। उनकी सहायता इसमें संगीत निर्देशक गुलाम हैदर ने की। उनके तहत उन्होंने 1948 की फ़िल्म शहीद में तीन गाने गाए, जिनमें बदनाम ना हो जाए मोहब्बत का फ़साना, आना है तो आ जाओ, तक़दीर की आंधी… हम कहाँ और तुम कहाँ शामिल हैं। हालांकि उनकी सच्ची रुचि मंचीय प्रदर्शनों और पंजाबी लोक गीतों को पुनर्जीवित करने में थी और अंततः वे 1952 में दिल्ली वापस आ गईं।[४]
1948 में, पुराने ब्रिटिश पंजाब के 1947 के विभाजन के बाद उन्होंने शादी कर ली।[५] उनके पति ने उनके गायन करियर का मार्गदर्शन करना जारी रखा। "वही थे जिन्होंने मुझे स्टार बनाया," उन्होंने बाद में याद किया। "उन्होंने मेरे द्वारा गाए गए सभी गीतों को चुना और हम दोनों ने हर रचनाओं पर सहयोग किया।" सोढ़ी ने उनके लिए पंजाबी लोक क्लासिक्स जैसे चैन कित्थे गुजारी रात, लट्ठे दी चढ़ार, शोंकन मेले दी, गोरी दियां झांझरन और सरके-सरके जंडिये मुटियारे के गाने की व्यवस्था की। ये गीत विभिन्न प्रसिद्ध पंजाबी कवियों द्वारा लिखे गए थे, लेकिन गायिका सुरिन्दर कौर ने इन्हें लोकप्रिय बनाया। दंपति ने पंजाब में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की एक शाखा भारतीय जन नाट्य संघ (IPTA) के सार्वजनिक चेहरे के रूप में भी काम किया। यह पूर्वी पंजाब के सबसे दूरदराज के गांवों में शांति और प्रेम का संदेश फैलाता है। उन्होंने तेजी से लोकप्रियता हासिल करते हुए दुनिया के कई हिस्सों में पंजाबी लोक गीतों के प्रदर्शन किये।
उन्होंने 2,000 से भी अधिक गाने रिकॉर्ड किए जिनमें आसा सिंह मस्ताना, करनैल गिल, हरचरण ग्रेवाल, रंगीला जट्ट और दीदार संधू के साथ युगल शामिल थे। हालाँकि 1976 में अपने शिक्षक पति की मृत्यु के साथ ही उनका सहयोगी और जीवनसाथी समाप्त हो गया। लेकिन उन्होंने अपनी बेटी और अन्य छात्रों के साथ परिवार की रचनात्मक परंपरा को जारी रखा। उनकी बेटी, रुपिंदर कौर गुलेरिया जिसे डॉली गुलेरिया के नाम से जाना जाता है और पोती सुनैनी ने 1995 में एलपी, 'सुरिंदर कौर - द थ्री जेनरेशन' में युगल रिकॉर्ड किया था।[७]
पुरस्कार और मान्यता
उन्हें 1984 में पंजाबी लोक संगीत के लिए भारत की राष्ट्रीय संगीत, नृत्य और रंगमंच अकादमी, संगीत नाटक अकादमी द्वारा संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। [८] 2006 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 2002 में सुरिन्दर को कला में उनके योगदान के लिए गुरु नानक देव विश्वविद्यालय से वर्ष 2002 में डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया।
बीमारी और मृत्यु
सुरिन्दर अपने जीवन के आखिरी पड़ाव के दौरान अपनी मिट्टी के करीब जाना चाहती थी। इसलिए वह 2004 में पंचकुला में बस गईं जिसका उद्देश्य चंडीगढ़ के पास ज़ीरकपुर में एक घर बनाने का था। इसके बाद 22 दिसंबर 2005 को उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उन्हें पंचकुला के जनरल अस्पताल में भर्ती कराया गया। हालांकि, बाद में वह ठीक हो गईं और व्यक्तिगत रूप से जनवरी 2006 में प्रतिष्ठित पद्म श्री पुरस्कार प्राप्त करने के लिए दिल्ली चली गईं। यह एक और बात है कि वह उन घटनाओं से परिचित थीं जिसके कारण पंजाबी संगीत में उनके अद्वितीय योगदान के बावजूद उन्हें ये पुरस्कार पाने में इतना लंबा समय लगा। लेकिन जब उन्हें यह पुरस्कार मिला तो वह दुखी थीं कि उसके लिए नामांकन हरियाणा से आया था, न कि पंजाब से जिसके लिए उन्होंने पाँच दशकों से अधिक समय तक अथक परिश्रम किया।
2006 में लंबी बीमारी ने उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका में इलाज कराने के लिए प्रेरित किया। 14 जून, 2006 को 77 साल की उम्र में न्यू जर्सी के एक अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी तीन बेटियां हैं पंचकुला में रहने वाली गायिका डॉली गुलेरिया जो सबसे बड़ी हैं। बाक़ी दो नंदिनी सिंह और प्रमोद सिंह जग्गी हैं जो दोनों न्यू जर्सी में बस गईं। उनकी मृत्यु पर, भारत के प्रधान मंत्री, डॉ. मनमोहन सिंह ने उन्हें "पंजाब की कोकिला" के रूप में वर्णित किया और कहा, "मुझे उम्मीद है कि उनकी अमर आवाज अन्य कलाकारों को सही पंजाबी लोक संगीत परंपरा का अभ्यास करने के लिए प्रेरित करेगी"।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ साँचा:cite web, Retrieved 18 Aug 2016
- ↑ साँचा:cite web, Retrieved 18 Aug 2016
- ↑ अ आ इ साँचा:cite web, Retrieved 18 Aug 2016
- ↑ अ आ इ साँचा:cite web
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- ↑ http://www.sangeetnatak.gov.in/sna/SNA-Awards.php स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, Sangeet Natak Academy website, Retrieved 18 Aug 2016