सुत्तविभंग
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सुत्तविभंग बौद्ध धर्म के थेरवादी मत के ग्रंथ विनय पिटक का एक खंड है। विनय पिटक स्वयं थेरवाद के प्रसिद्ध ग्रंथ त्रिपिटक का हिस्सा है।[१] इस ग्रंथ में बौद्ध समुदाय (संघ) के नियमों पर टीका है, ग्रंथ की रचना कुछ इस तरीके की है कि प्रत्येक नियम को समझाने से पूर्व एक कथा दी गयी है कि बुद्ध कैसे इस नियम को स्थापित करने तक पहुँचे, तत्पशचात नियम दिया गया है और नियम की व्याख्या की गयी है। यह ग्रंथ विनय पिटक का पहला खंड है, ध्यातव्य है कि विनय पिटक में बौद्धों के आचरण संबंधी नियम संग्रहीत हैं।
शाब्दिक रूप से सुत्त का अर्थ सूत्र अथवा नियम से है और विभंग का अर्थ व्याख्या और विश्लेषण से है। इस ग्रंथ के भी दो भाग हैं: पाराजिक तथा पाचित्तिय।[२]
अनुक्रम
- पाराजिकपाळि
- वेरञ्जकण्डं
- पाराजिककण्डं
- सङ्घादिसेसकण्डं
- अनियतकण्डं
- निस्सग्गियकण्डं
- पाचित्तियपाळि
- पाचित्तियकण्डं
- पाटिदेसनीयकण्डं
- सेखियकण्डं
- अधिकरणसमथा
- पाराजिककण्डं (भिक्खुनीविभङ्गो)
- सङ्घादिसेसकण्डं (भिक्खुनीविभङ्गो)
- निस्सग्गियकण्डं (भिक्खुनीविभङ्गो)
- पाचित्तियकण्डं (भिक्खुनीविभङ्गो)
- पाटिदेसनीयकण्डं (भिक्खुनीविभङ्गो)
- सेखियकण्डं (भिक्खुनीविभङ्गो)
- अधिकरणसमथा (भिक्खुनीविभङ्गो)