सिद्धान्तकौमुदी
सिद्धान्तकौमुदी संस्कृत व्याकरण का ग्रन्थ है जिसके रचयिता भट्टोजि दीक्षित हैं। इसका पूरा नाम "वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी" है। भट्टोजि दीक्षित ने प्रक्रियाकौमुदी के आधार पर सिद्धांत कौमुदी की रचना की। इस ग्रंथ पर उन्होंने स्वयं प्रौढ़ मनोरमा टीका लिखी। भट्टोजिदीक्षित के शिष्य वरदराज भी व्याकरण के महान पण्डित हुए। उन्होने लघुसिद्धान्तकौमुदी की रचना की।
पाणिनीय व्याकरण के अध्ययन की प्राचीन परिपाटी में पाणिनीय सूत्रपाठ के क्रम को आधार माना जाता था। यह क्रम प्रयोगसिद्धि की दृष्टि से कठिन था क्योंकि एक ही प्रयोग का साधन करने के लिए विभिन्न अध्यायों के सूत्र लगाने पड़ते थे। इस कठिनाई को देखकर ऐसी पद्धति के आविष्कार की आवश्यकता पड़ी जिसमें प्रयोगविशेष की सिद्धि के लिए आवश्यक सभी सूत्र एक जगह उपलब्ध हों।
ग्रन्थ का स्वरूप
सिद्धान्तकौमुदी, अष्टाध्यायी से अधिक लोकप्रिय है। अष्टाध्यायी के सूत्रों का क्रमपरिवर्तन करते हुए उपयुक्त शीर्षकों के अन्तर्गत एकत्र किया गया है और उनकी व्याख्या की गयी है। इस प्रकार सिद्धान्तकौमुदी अधिक व्यवस्थित है तथा सरलता से समझी जा सकती है। सिद्धान्तकौमुदी बहुत बड़ा ग्रन्थ है, संस्कृत भाषा का व्याकरण इसमें पूर्ण रूप से आ गया है।
इसमें कई प्रकरण हैं, जैसे-
- (1) संज्ञाप्रकरणम्
- (2) परिभाषाप्रकरणम्
- (3) अच्सन्धिप्रकरणम्
- (4) प्रकृतिभावसन्धिप्रकरणम्
- (5) हल्सन्धिप्रकरणम्
- (6) विसर्गसन्धिप्रकरणम्
- (7) स्वादिसन्धिप्रकरणम्
सभी प्रतिसूत्रों की व्याख्या की गयी है, जैसे-
- अदेड्. गुणः /१/१/२.
- इदं ह्रस्वस्य अकारस्य एकार-ओकारयोश्च गुणसञ्ज्ञाविधायकम् सूत्रम्। अस्य सूत्रस्य वृत्तिः एवमस्ति, अद् एड्. च गुणसंज्ञः स्यात्।
सिद्धान्तकौमुदी भट्टोजिदीक्षित की कीर्ति का प्रसार करने वाला मुख्य ग्रन्थ है। यह ‘शब्द कौस्तुभ’ के पश्चात् लिखा गया था। भट्टोजिदीक्षित ने स्वयं ही इस पर प्रौढ़मनोरमा नाम की टीका लिखी है। सिद्धान्त-कौमुदी को प्रक्रिया-पद्धति का सर्वोत्तम ग्रन्थ समझा जाता है। इससे पूर्व जो प्रक्रिया गन्थ लिखे गये थे उनमें अष्टाध्यायी के सभी सूत्रों का समावेश नहीं था। भट्टोजिदीक्षित ने सिद्धान्तकौमुदी में अष्टाध्यायी के सभी सूत्रों को विविध प्रकरणों में व्यवस्थित किया है, इसी के अन्तर्गत समस्त धातुओं के रूपों का विवरण दे दिया है तथा लौकिक संस्कृत के व्याकरण का विश्लेषण करके वैदिक-प्रक्रिया एवं स्वर-प्रक्रिया को अन्त में रख दिया है।
भट्टोजिदीक्षित ने काशिका, न्यास एवं पदमञ्जरी आदि सूत्राक्रमानुसारिणी व्याख्याओं तथा प्रक्रियाकौमुदी और उसकी टीकाओं के मतों की समीक्षा करते हुए प्रक्रिया-पद्धति के अनुसार पाणिनीय व्याकरण का सर्वांगीण रूप प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। उन्होंने आवश्यकतानुसार परिभाषाओं, वार्त्तिकों तथा भाष्येष्टियों का भी उल्लेख किया है। उन्होंने मुनित्रय के मन्तव्यों का सामंजस्य दिखाया है तथा महाभाष्य का आधार लेकर कुछ स्वकीय मत भी स्थापित किये हैं। साथ ही प्रसिद्ध कवियों (कालिदास आदि)द्वारा प्रयुक्त किन्हीं विवादास्पद प्रयोगों (सोSहमाजन्मशुद्धानाम्) की साधुता पर भी विचार किया है।
मध्ययुग में सिद्धान्तकौमुदी का इतना प्रचार एवं प्रसार हुआ कि पाणिनि व्याकरण की प्राचीन पद्धति एवं मुग्धबोध आदि व्याकरण पद्धतियाँ विलीन होती चली गई। कालान्तर में प्रक्रिया-पद्धति तथा सिद्धान्तकौमुदी के दोषों की ओर भी विद्वानों की दृष्टि गई किन्तु वे इसे न छोड़ सके।
पाणिनीय व्याकरण में भट्टेजिदीक्षित का महत्त्वपूर्ण स्थान है। पाणिनि-व्याकरण पर उनका ऐसा अनूठा प्रभाव पड़ा है कि महाभाष्य का महत्त्व भी भुला दिया गया है। यह समझा जाने लगा है कि सिद्धान्तकौमुदी महाभाष्य का द्वार ही नहीं है अपितु महाभाष्य का संक्षिप्त किन्तु विशद सार है। इसी हेतु यह उक्ति प्रचलित हैः-
- कौमुदी यदि कण्ठस्था वृथा भाष्ये परिश्रमः।
- कौमुदी यद्यकण्ठस्था वृथा भाष्ये परिश्रमः॥
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सिद्धान्तकौमुदी की टीकाएँ
- बालमनोरमा (वासुदेव दीक्षित)
- प्रौढ़मनोरमा (भट्टोजिदीक्षित, स्वयं)
- तत्त्वबोधिनी (ज्ञानेन्द्र सरस्वती)
इन्हें भी देखें
- लघुसिद्धान्तकौमुदी (वरदराज द्वारा रचित)
बाहरी कड़ियाँ
- सिद्धान्तकौमुदी (संस्कृत विकिस्रोतम्)
- वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी कारक प्रकरण हिन्दी व्याख्या सहित (गूगल पुस्तक ; हिन्दी व्याख्याकार : श्रीधरानन्द घिल्डियाल)
- वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी चतुर्थ भाग (गूगल पुस्तक ; गिरिधरशर्मा चतुर्वेदः)
- वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी हिन्दीव्याख्यानुवादरूपसिद्धिसूत्रव्याख्यासमेता (स्त्रीप्रकरणम्) (गूगल पुस्तक ; रामकरण शर्म्मा)
- Siddhanta Kaumudi Sanskrit & English Commentaries
- The Siddhanta kaumudi of Bhattoji Dikshita (1904) (आर्काइव_डॉट_ओआरजी)
- The Siddhanta kaumudi of Bhattoji Dikshita