सिद्धगिरि ग्रामजीवन संग्रहालय
सिद्धगिरि ग्रामजीवन संग्रहालय | |
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कनेरी मठ | |
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स्थान | कोल्हापुर, महाराष्ट्र, भारत |
सिद्धगिरि ग्रामजीवन संग्रहालय महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में स्थित है। जो कनेरी मठ के नाम से भी लोकप्रिय है। यह एक ऐसा गाँव है जहाँ किसान हल और बैल के साथ खड़े मिलेंगे। गाँव की औरतें कुँए में पानी भरने जाती हुई दिखेंगी। बच्चे पेड़ के नीचे गुरुकुल शैली में पढ़ाई कर रहे हैं, किसान खेत में भोजन कर रहे हैं और आस-पास पशु चारा चर रहे हैं। गाँव के घरों का घर-आँगन और विभिन्न कार्य करते लोग, लेकिन सब कुछ स्थिर ठहरा हुआ फिर भी एकदम सजीव, जीवंत।[१]
संग्रहालय की जानकारी
महाराष्ट्र में कोल्हापुर को न सिर्फ दक्षिण की काशी, बल्कि महालक्ष्मी मंदिर भी है जो काफी प्रसिद्ध है। साथ ही यहां के प्राचीन मंदिर देश-विदेश के पर्यटकों के आकर्षण का विषय हैं। कोल्हापुर से केवल दस किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा-सा शांत गांव है। सिद्धगिरि ग्रामजीवन संग्रहालय जिसे कनेरी मठ के नाम से भी जाना जाता है जो देश के प्राचीनतम मठों में गिना जाने वाला है।[२]
सिद्धगिरी मठ के 27वें मठाधिपति काड़सिद्धेश्वर महाराज के शुभ हाथों से सिद्धगिरी संग्रहालय की नींव रखी गई। जुलाई २००७ में इसका उद्घाटन किया गया था। आठ एकड़ के खुले क्षेत्र में फैली यह जगह गांव की दुनिया की झलक दिखलाती है। आज पूरे देश में अपने आप में इकलौता और अनूठा संग्रहालय कहलाता है। यहाँ ग्रामीण जिंदगी की छवियों को मूतिर्यो में समेटने की कोशिश की गई है। इस संग्रहालय की स्थापना लंदन के मैडम तुसाद मोम संग्रहालय से प्रेरित होकर की गई है।[३]
संग्रहालय की स्थापना करने वाले सिद्धगिरि गुरुकुल के प्रमुख काड़सिद्धेश्वर स्वामी के अनुसार-
इस संग्रहालय में कई प्राचीन संतों की मूर्तियां हैं। उदाहरण के लिए एक पेड़ के नीचे महर्षि पतंजलि को प्राचीन शैली में कक्षा लेते दिखाया गया है। कुछ ही मीटर की दूरी पर महर्षि कश्यप को एक रोगी का इलाज करते दिखाया गया है। यहां महर्षि कणाद को वैज्ञानिक शोध में लीन देखा जा सकता है, वहीं महर्षि वराह मिहिर ग्रह-नक्षत्रों की दुनिया से अपने शिष्यों को अवगत कराते नजर आते हैं। ईंट, पत्थरों से निर्मित इस संग्रहालय में प्रतिमाओं का निर्माण सीमेंट से किया गया है। इसके लिए करीब ८० कुशल मूर्तिकारों की सेवा ली गई।