साहित्यिक यथार्थवाद
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साहित्यिक यथार्थवाद एक साहित्यिक शैली है, कला में व्यापक यथार्थवाद का हिस्सा है, जो सट्टा कथा और अलौकिक तत्वों से परहेज करते हुए विषय वस्तु को सच्चाई से प्रस्तुत करने का प्रयास करता है।[१] इसकी शुरुआत यथार्थवादी कला आंदोलन से हुई जो उन्नीसवीं सदी के मध्य में फ्रांसीसी साहित्य (स्टेंडल) और रूसी साहित्य (अलेक्जेंडर पुश्किन) के साथ शुरू हुआ।[२][३] साहित्यिक यथार्थवाद परिचित चीजों का प्रतिनिधित्व करने का प्रयास करता है जैसे वे हैं। यथार्थवादी लेखकों ने रोजमर्रा और सामान्य गतिविधियों और अनुभवों को चित्रित करना चुना।
यथार्थवाद के प्रवर्त्तक हंगरी के प्रसिद्ध दार्शनिक और साहित्यिक आलोचक जॉर्ज लुकाच माने जाते हैं। यथार्थवाद मुख्य रूप से सत्य पर बल देने वाली विचारधारा है। इस विचारधारा के अंतर्गत यथार्थवाद के कई रूप देखने को मिलते हैं। जैसे-