सारागढ़ी का युद्ध
सारागढ़ी का युद्ध | |||||||
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तिराह अभियान युद्ध का भाग | |||||||
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योद्धा | |||||||
साँचा:flagicon ब्रिटिश साम्राज्य | पठान (अफ़्रीदी/ओराक्ज़ई) | ||||||
सेनानायक | |||||||
साँचा:flagicon हवलदार ईशर सिंह † | गिल बादशाह | ||||||
शक्ति/क्षमता | |||||||
21[१] | 12000[२][३] | ||||||
मृत्यु एवं हानि | |||||||
21 मारे गये (१००%)[१] | 180 मारे गये (अफ़गान दावा)[४] ~४५० मारे गये[५] (ब्रितानी भारतीय प्राक्कलन)* विभिन्न घायल[६] (संख्या अज्ञात) | ||||||
* युद्धक्षेत्र में 600 अफ़गान शव प्राप्त हुये। इनमें से अधिकतर लोग किले पर पुनः कब्ज़ा करने वाली ब्रिटिश भारतीय राहत दल के तोपखानों की आग से मारे गये।[७][८] |
सारागढ़ी युद्ध 12 सितम्बर 1897 को ब्रिटिश भारतीय सेना और अफ़गान ओराक्जजातियों के मध्य तिराह अभियान से पहले लड़ा गया। यह उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रान्त (वर्तमान खैबर-पखतुन्खवा, पाकिस्तान में) में हुआ।
ब्रिटिश सैन्यदल में ३६ सिख (सिख रेजिमेंट की चौथी बटालियन) के 21 जाट सिख थे जिन पर 12000 अफ़गानों ने हमला किया। अंग्रेज सेना का नेतृत्व कर रहे हवलदार ईशर सिंह ने मृत्यु पर्यन्त युद्ध करने का निर्णय लिया। इसे सैन्य इतिहास में इतिहास के सबसे बडे अन्त वाले युद्धों में से एक माना जाता है।[९] युद्ध के दो दिन बाद अन्य ब्रिटिश सेना द्वारा उस स्थान पर पुनः अधिकार प्राप्त किया गया।
सारागढ़ी का निर्माण
सारागढ़ी समाना रेंज पर स्थित कोहाट जिले का सीमावर्ती इलाके का एक छोटा सा गाँव है और इस समय वर्तमान पाकिस्तान में है । इस किले को 21 अप्रैल 1894 को ब्रिटिश सेना के 36वीं सिख रेजिमेंट के कर्नल जे कुक की कमान में बनाया गया था। अगस्त 1897 में लेफ्टिनेंट कर्नल जॉन हैटन की कमान में 36वीं सिख रेजिमेंट की पांच कंपनियों को ब्रिटिश-इंडिया (वर्तमान में खैबर पख्तूनख्वा) के उत्तरपश्चिमी सीमा पर भेजा गया था और समाना हिल्स, कुराग, संगर, सहटॉप धर और सारागढ़ी में उनकी तैनाती की गई।
अंग्रेज इस अस्थिर और अशांत क्षेत्र पर नियंत्रण पाने में आंशिक रूप से तो सफल रहे, लेकिन वहाँ के मूल निवासी पश्तूनों ने समय-समय पर ब्रिटिश सैनिकों पर हमला करना जारी रखा। इस लिए ब्रिटिश राज ने किलों की एक श्रृंखला को मरम्मत करके अपनी स्थिति मजबूत करनी चाही , ये वो किले थे जो मूल रूप से सिख साम्राज्य के शासक महाराजा रंजीत सिंह द्वारा बनाए गए थे। इनमें से दो किले फोर्ट लॉकहार्ट (हिंदू कुश पहाड़ों की समाना रेंज पर) और फोर्ट गुलिस्तान (सुलेमान रेंज) ऐसे थे जो एक-दूसरे से कुछ मील की दूरी पर स्थित थे। इन किलों को एक-दूसरे से दिखाई नहीं देने के कारण सारागढ़ी को इन किलों के मध्य में बनाया गया था और इसका प्रयोग एक हेलिओोग्राफ़िक संचार पोस्ट के रूप में किया जाने लगा। सारागढ़ी पोस्ट को एक चट्टानी पहाड़ी की चोटी पर बनाया गया, जिसमें एक छोटा सा ब्लॉक हाउस, किले की दीवार और एक सिग्नलिंग टॉवर का निर्माण किया गया ।
२१ सिख जवानों के नाम
- हवलदार ईशर सिंह
- नायक लाल सिंह
- लांस नायक चन्दा सिंह
- सिपाही राम सिंह
- सिपाही भगवान सिंह
- सिपाही भगवान सिंह
- सिपाही बूटा सिंह
- सिपाही नन्द सिंह
- सिपाही नारायण सिंह
- सिपाही गुरमुख सिंह
- सिपाही गुरमुख सिंह
- सिपाही सुन्दर सिंह
- सिपाही जीवन सिंह
- सिपाही जीवन सिंह
- सिपाही साहिब सिंह
- सिपाही उत्तम सिंह
- सिपाही हीरा सिंह
- सिपाही राम सिंह
- सिपाही दया सिंह
- सिपाही भोला सिंह
- सिपाही जीवन सिंह
विद्रोह
1897 में अफगान आक्रान्ता द्वार भारत को लूटने के प्रयास में विद्रोह शुरू हुआ और 27 अगस्त से 11 सितंबर के बीच पश्तूनों द्वारा किलों को कब्ज़ा करने के कई जोरदार प्रयासों को ब्रिटिश सेना की 36वीं सिख रेजिमेंट द्वारा विफल कर दिया गया। 1897 में भारत मे अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह और आकस्मिक गतिविधियां बढ़ गई थीं जिसका फायदा उठाकर अफगान लूटेरे भारत में लूट करना चाहते थे और 3 तथा 9 सितंबर को अफरीदी आदिवासियों ने अफगानों के साथ मिल कर अंग्रेज सेना पर फोर्ट गुलिस्तान पर हमला किया। दोनों हमलों को नाकाम कर दिया गया था। पश्तूनों और अफगानों नेतृत्व गुल बादशाह कर रहा था।
युद्ध
सारागढ़ी की लड़ाई के विवरण को काफी सटीक माना जाता है, क्योंकि ब्रिटिश सिपाही गुरमुख सिंह ने युद्ध के दौरान फोर्ट लॉकहार्ट को हेलियोग्राफ़ संकेतों के रूप में किले में होने वाली घटनाओं का संकेत दिया था।
सारागढ़ी युद्ध का विवरण, गुरमुख सिंह हेलीकॉफ से फोर्ट लॉकहार्ट की संकेतों के अनुसार यथार्थता से ज्ञात माना जाता है।[१०]
- सुबह 9:00 के लगभग, लगभग 10000 अफ़गान विद्रोहियों ने सारागढ़ी चौकी पर पहुँचने का संकेत दिया।
- गुरमुख सिंह के अनुसार लोकहार्ट किले में कर्नल हौथटन को सूचना मिली की उन पर हमला हुआ है।
- कर्नल हौथटन के अनुसार सारागढ़ी में तुरन्त सहायता नहीं भेज सकते थे।
- ब्रिटिश ऑफिसर ने सैनिको को पीछे हटने को कहा।
- भारतीय सैनिको ने ब्रिटिश हुकुम को नही माना।
- सैनिकों ने अन्तिम साँस तक लड़ने का निर्णय लिया।
- भारतीय जवान भगवान सिंह सबसे पहले घायल हुये और लाल सिंह गम्भीर रूप से घायल हुए।
- सैनिक लाल सिंह और जिवा सिंह कथित तौर पर भगवान सिंह के शरीर को पोस्ट के अन्दर लेकर आये।
- विद्रोहियों ने घेरे की दीवार के एक भाग को तोड़ दिया।
- अंग्रेज कर्नल हौथटन ने संकेत दिया कि उसके अनुमानों के अनुसार सारागढ़ी पर 10000 से 14000 पश्तों ने हमला किया है।
- विद्रोही अफ़गान सेना का अधिनायक ब्रिटिश सैनिकों को आत्मसमर्पण करने के लिए लुभाता रहा।
- कथित तौर पर मुख्य द्वार को खोलने के लिए दो बार प्रयास किया गया लेकिन असफल रहे।
- उसके बाद दीवार टूट गयी।
- उसके बाद आमने-सामने की भयंकर लड़ाई हुई।
- असाधारण बहादुरी दिखाते हुये भारतीय सेना के ईशर सिंह ने अपने सैनिकों को पीछे की तरफ हटने का आदेश दिया जिससे लड़ाई को जारी रखा जा सके। हालाँकि इसमें बाकी सभी सैनिक अन्दर की तरफ चले गये लेकिन एक पश्तों के साथ एक सैनिक मारा गया।
- गुरमुख सिंह, जो कर्नल हौथटन को साथ युद्ध समाचारों से अवगत करवा रहे थे, अन्तिम सिख रक्षक थे। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने २० अफ़गान विद्रोही शहीद हुए, पश्तों ने उसको मारने के लिए आग के गोलों से हमला किया। उन्होंने मरते दम तक लगातार "जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल" बोलते रहे।साँचा:cn
सारागढ़ी को तबाह करने के पश्चात अफ़गान विद्रोहियों ने अंग्रेजों के गुलिस्तां किले पर निगाहें डाली, लेकिन इसमें उन्होंने काफी देरी कर दी और 13-14 सितम्बर की रात्रि में अंग्रेजों ने अतिरिक्त सेना वहाँ पहुँच गयी और किले पर पुनः कब्जा कर लिया।[१] इसके बाद पश्तों ने स्वीकार किया कि 21 सिखों के साथ युद्ध में उनके 180 सैनिक मारे गये[४] और बहुत से सैनिक घायल हुये[६] लेकिन बचाव दल के वहाँ पहुँचने पर तबाह जगह पर वहाँ ६०० शव मिले।[८] (हालाँकि १४ सितम्बर को बड़ी मात्रा में तोपखानों से आग लगाकर किले पर पुनः कब्जा कर लिया,[७] जिसके कारण जनहानि हो सकती है)। इस युद्ध में कुल 4800 लोग मारे गये।
सारागढ़ी दिवस
सारागढ़ी दिवस एक सिख सैन्य स्मरण दिवस है जो हर साल 12 सितंबर को सारागढ़ी की लड़ाई की याद में मनाया जाता है। ब्रिटिश सिख सैन्यकर्मी और नागरिक 12 सितंबर को हर साल दुनिया भर में लड़ाई की याद करते हैं। ब्रिटिश सिख रेजिमेंट की सभी टुकड़ियां हर साल सारागढ़ी दिवस को रेजिमेंटल बैटल ऑनर्स डे के रूप में मनाती हैं। ब्रिटेन और दुनिया में आज भी भारतियों खासकर सिखों द्वारा सारागढ़ी दिवस बड़े गर्व से मनाया जाता है।
सन्दर्भ
- ↑ अ आ इ London Gazette: no. 26937, p. ८६३, ११ फ़रवरी १९९८. Retrieved २० अप्रैल २०१७.
- ↑ साँचा:cite news
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- ↑ अ आ Maj. Gen. Jaswant Singh Letter to H.M. Queen Elizabeth II साँचा:webarchive Institute of Sikh Studies (1999) - accessed 2008-03-30
- ↑ साँचा:cite book
- ↑ अ आ सुब्रमण्यम, एल॰एम॰ (२००६), Defending Saragarhi (सारागढ़ी प्रतिवाद), १२ सितम्बर १८९७ स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, भारत रक्षक, अभिगमन तिथि: २० अप्रैल २०१७
- ↑ अ आ "The Frontier War," Daily News, London (16 Sep 1897)
- ↑ अ आ गौतम शर्मा, Valour and Sacrifice: Famous Regiments of the Indian Army स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, India, Allied Publishers (1990) ISBN 81-7023-140-X, via Google Books - accessed 2008-01-25
- ↑ साँचा:cite news
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