सामाजिक समूह
समूह' के अमन्य उपयोगों के लिए देखें समूह (बहुविकल्पी)
सामाजिक समूह (social group) किसी भी दो या दो से अधिक व्यक्तियों के ऐसे समूह को कहते हैं जो एक-दूसरे से सम्पर्क व लेनदेन रखें, जिनमें एक-दूसरे से कुछ सामानताएँ हों और जो आपस में एकता की भावना रखें।[१] कुछ समाजशास्त्रियों के अनुसार किसी गुट का 'सामाजिक समुदाय' कहलाने से पहले यह ज़रूरी है कि उसके सदस्य अपने-आप को उस समुदाय का भाग समझें, जबकि अन्य के हिसाब से अगर उनमें समानता है और वे एक-दूसरे से परस्पर सम्बन्ध रखते है तो वे एक सामाजिक समुदाय हैं, चाहे वे स्वयं यह पहचाने या नहीं।[२][३]
समूहों का वर्गीकरण
समन्दर वर्गीकरण=== सामाजिक समूहों को अनेक प्रकार से वर्गीकृत किया गया है। कुछ लेखकों ने साधारण वर्गीकरण किया है तो अन्य लेखकों ने व्यापक वर्गीकरण किया है।
जर्मन समाजशास्त्री सिमेल (Simmel) ने आकार (size) को समूह के वर्गीकरण का आधार माना है। चूँकि समाजीकृत व्यक्ति समाजशास्त्र की मूलभूत इकाई है, इसलिए उसने “एकक" (Monad)—एकल व्यक्ति को समूह-संबंधों का केंद्र मानकर आरम्भ किया तथा अपने वर्गीकरण में द्वैत (Dyad), त्रैत (Triad) तथा अन्य छोटे समूहों एवं विशाल-स्तरीय समूहों को सम्मिलित किया।'
ड्वाइट सैंडरसन (Dwight Sanderson) ने संरचना के आधार पर समूहों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया है। उसने समूहों को अनैच्छिक (Involuntary), ऐच्छिक (Voluntary) एवं प्रतिनिधिक (Delegate) में विभाजित किया। अनैच्छिक समूह नातेदारी (Kinship) पर आधारित होता है यथा परिवार मनुष्य अपनी इच्छा से अपने परिवार का चयन नहीं करता। उसका तो इसमें जन्म होता है। ऐच्छिक समूह वह होता है जिसमें मनुष्य अपनी इच्छा से शामिल होता है। वह अपनी इच्छा से इसका सदस्य बनता है तथा जब उसकी इच्छा हो, वह इससे अलग भी हो सकता है। प्रतिनिधि समूह में मनुष्य कुछ लोगों के प्रतिनिधि के रूप में, भले ही लोगों ने उसे स्वंय निर्वाचित किया हो अथवा उसका किसी सत्ता द्वारा नामांकन हुआ हो, शामिल होता है। संसद एक प्रतिनिधि समूह है।
टानीज (Tonnies) ने समूहों को समुदायों (Communities) एवं समितियों (Associations) में वर्गीकृत किया है।
कूले (Cooley) ने संपर्क के प्रकार के आधार पर समूहों को प्राथमिक (Primary) एवं गौण (Secondary) में विभक्त किया है। प्राथमिक समूह में आमने-सामने के तथा घनिष्ठ संबंध होते हैं; यथा-परिवार। गौण समूह; यथा-राज्य अथवा राजनीतिक दल में संबंध परोक्ष, गौण अथवा अवैयक्तिक होते हैं।
एफ०एच० गिडिंग्स (E.H. Giddings) ने समूहों को जननिक (Genetic) एवं इकट्ठे (Congregate) में वर्गीकृत किया है। जननिक समूह परिवार है जिसमें मनुष्य का अनैच्छिक जन्म होता है। इकट्ठा समूह ऐच्छिक समूह है जिसमें मनुष्य स्वेच्छा से शामिल होता है। सामाजिक समूह 'वियोजक' (Distinctive) अथवा 'सम्मिश्रित' (Overlapping) भी हो सकते है। वियोजक समूह अपने सदस्यों को एक ही समय अन्य समूहों का सदस्य बनने की अनुमति नही देता। उदाहरणतया, एक महाविद्यालय अथवा राष्ट्र क्रमशः अपने विद्यार्थियों अथवा नागरिकों को अन्य मतहाविद्यालयों या राष्ट्रों के सदस्य बनने की अनुमति नहीं देता। सम्मिश्रित समूह के सदस्य एक से अधिक समूहों के सदस्य होते है; यथा भारतीय राजनीति विज्ञान समिति।
जार्ज हासन (George Hasen) ने समूहों का वर्गीकरण दूसरे समूहों के साथ उनके संबंधों के आधार पर किया है। इस प्रकार उसने असामाजिक (Unsocial), आभासी-समाज (Pseudo-social), समाज-विरोधी (Anti-social) अथवा समाज-पक्षीय (Pro-social) समूहों का उल्लेख किया है। असामाजिक समूह वह समूह है जो अधिकतर अपने लिए ही जीवित रहता है तथा उस विशाल समाज जिसका वह भाग है, के कार्यों में कोई रुचि नहीं लेता। यह अन्य समूहों के साथ कोई सम्पर्क नहीं रखता तथा उनसे अलग रहता है। एक आभासी-सामाजिक समूह विशालतर सामाजिक जीवन में भाग लेता है, परंतु केवल अपने हित के लिए, सामाजिक हित के लिए नहीं। समाज-विरोधी समूह समाज के हितों के विरुद्ध कार्य करता है। विद्यार्थियों का समूह जो सार्वजनिक सम्पत्ति को आग लगाता है, समाज-विरोधी समूह है। इसी प्रकार, मजदूर-संघ जो राष्ट्रीय हड़ताल का नारा देता है, समाज-विरोधी समूह है। राजनीतिक दल जो लोकप्रिय सरकार का तख्ता उलटने की योजना बनाता है, समाज-विरोधी समूह है। समाज-पक्षीय समूह समाज-विरोधी समूह का विपरीत रूप हैं यह समाज के हितों के लिए कार्य करता है। वह निर्माणकारी कार्य करता है तथा लोगों के कल्याण के बारे में चिंतित रहता है।
मिलर (Miller) ने सामाजिक समूहों को क्षैतिज (Horizontal) एवं उदग्र (Vertical) में विभक्त किया है। पहले प्रकार के समूह विशाल एवं अन्तर्मुखी समूह होते हैं; यथा—राष्ट्र, धार्मिक संगठन एवं राजनीतिक दल। दूसरे प्रकार के समूह छोटे उपविभाग होते हैं; यथा—आर्थिक वर्ग। चूँकि उदग्र समूह क्षैतिज समूहों का भाग है, अतएव व्यक्ति दोनों का ही सदस्य होता है।
चार्ल्स ए० एलवुड ने समूहों को (1) ऐच्छिक एवं अनैच्छिक, (2) संस्थागत एवं असंस्थागत तथा (3) अस्थायी एवं स्थायी समूहों में विभेदित किया है।
ल्योपाल्ड (Leopold) ने समूहों को (1) भीड़ (Crowds), (2) समूहों (Groups) तथा (3) अमूर्त संग्रहों (Abstract Collectivities) में बाँटा है।
पार्क एवं बर्गेस (Park and Burgess) में समूहों को (1) प्रादेशिक एवं (2) गैर-प्रादेशिक समूहों में विभेदित किया है।
गिलिन एवं गिलिन (Gillin and Gillin) ने (1) खून का रिश्ता, (2) शारीरिक विशेषतायें, (3) भौतिक सामीप्य, एवं (4) सांस्कृतिक रूप से व्युत्पन्न हितों के आधार पर समूहों का वर्गीकरण किया है।
समनर (Summer) ने समूहों को (1) अन्त:समूह (In-group) एवं (2) बाह्य समूह (Out-group) में अन्तरित किया है। वे समूह जिनके साथ व्यक्ति तादात्म्य स्थापित कर लेता है, उसके अन्तःसमूह होते हैं। उसका परिवार या कबीला या लिंग अथवा कालेज अथवा व्यवसाय अथवा धर्म आदि ऐसे समूह हैं जिनके बारे में वह समानता की जागरूकता अथवा एक ही प्रकार की चेतना से सजग होता है।' अन्तःसमूह अपने अस्तित्व की चेतना इस तथ्य से ग्रहण करता है कि कुछ व्यक्ति तो उस समूह से अलग हैं तथा अन्य उसके सदस्य हैं। इसमें 'हम' की भावना होती है। अन्त:समूह के दृष्टिकोणों से समूह के दूसरे सदस्य के प्रति सहानुभूति का तत्त्व एवं संलग्नता की भावना होती है। बाह्य समूह की परिभाषा अन्त:समूह के सम्बन्ध को ध्यान में रखकर की जाती है। सामान्यतया, इसे 'हम' और 'वे' के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। प्रत्येक समूह को यह ज्ञात होता है कि 'वे' हमारे साथ नही है। हम लोकतंत्रीय हैं, वे साम्यवादी हैं, हम हिंदू हैं, वे मुसलमान हैं, हम ब्राह्मण हैं, वे हरिजन हैं। ऐसे दृष्टिकोण कि 'ये मेरे आदमी हैं' एवं 'वे मेरे आदमी नहीं हैं' अन्त:समूह के सदस्यों के प्रति संलग्नता के भाव को जन्म देते हैं, जबकि बाह्य समूह के सदस्यों के प्रति विमुखता एवं शत्रुता की भावना उत्पन्न करते हैं।
इस प्रकार समाजशास्त्रियों ने समूहों का वर्गीकरण अपने-अपने दृष्टिकोण के अनुसार अलग-अलग ढंग से किया है। उन्होंने उनका वर्गीकरण आकार, हितों के स्वरूप, संगठन की मात्रा, स्थायित्व की सीमा, सम्पर्क के प्रकार या इनमें से किसी के मिश्रण के आधार पर किया है। इस सम्बंध में क्यूबर (Cuber) ने लिखा है, 'समाजशास्त्रियों ने समूहों का वर्गीकरण करने में काफी समय एवं प्रयत्न लगाया है। यद्यपि आरम्भ में तो ऐसा करना सुगम प्रतीत होगा, परन्तु आगे सोचने पर इसमें बहुत-सी कठिनाइयाँ महसूस होगी। वास्तव में ये कठिनाईयाँ इतनी अधिक है कि अभी तक हमारे पास समूहों का कोई क्रमबद्ध वर्गीकरण नहीं है जो सभी समाजशास्त्रियों को पूर्णतया मान्य हो।' [४]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- ↑ "Social Groups." स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। Cliffsnotes.com स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।. Accessed June 2011.
- ↑ साँचा:cite journal
- ↑ साँचा:cite journal
- ↑ समाजशास्त्र , पृष्ठ ६५-६६ ; लेखक-विद्याभूषण और सचदेव