सामाजिक दर्शन
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समाज कार्य दर्शन:
सामाजिक दर्शन जीवन के मौलिक सिद्धांतों और धारणाओं की व्याख्या करता है। दर्शन सामाजिक संबंधों के सर्वोच्च आदर्शों का निरूपण करता है। समाज कार्य मानवजीवन को अधिक सुखमय तथा प्रकार्यात्मक बनाने का संकल्प रखता है। इसलिए समाज कार्य को वास्तविक होने के लिए दार्शनिक होना आवश्यक है-(Butrym)।
समाज कार्य के दर्शन का तात्पर्य है कि इसके अर्थ और ज्ञान का वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुतिकरण करते हुए इसके आदर्शों और मूल्यों का सही ढंग से निरूपण किया जाय। दर्शन शब्द का अंग्रेजी रूपांतर “फ़िलासफ़ी” शब्द ग्रीक भाषा का शब्द है। “फिला” का अर्थ है प्रेम और “सोफिया” का अर्थ है बुद्धिमत्ता। इस प्रकार फ़िलासफ़ी का अर्थ हुआ “बुद्धिमत्ता से प्रेम”। बुद्धिमत्ता का तात्पर्य सत्य और ज्ञान के अनवरत खोज से है। इसलिए दर्शन का तात्पर्य किसी भी विषय विशेष के संदर्भ में सत्या और ज्ञान के निरंतर खोज और इस संबंध में प्राप्त तथ्यों को वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुतिकरण से है। समाज कार्य व्यक्तियों (व्यक्ति, समूह और समुदाय) के बीच समानता चाहता है। हालांकि व्यक्ति के जीवन संबंधी अनेक मतभेदों के कारण समाजकार्य दर्शन के संबंध में भी मतभेद हैं क्योंकि विभिन्न देशों में जीवन की दशाएँ भी भिन्न-भिन्न हैं चाहे वह सामाजिक, आर्थिक हों या भौतिक और स्वास्थ्य संबंधी दशाएँ। इन्हीं सब कारणों से समाज कार्य दर्शन पर कोई सर्वसम्मति नहीं बन सकी है। जैसे समाज कार्य की कोई एक परिभाषा नहीं दी जा सकती जो सभी देश, काल, और समाज में समान रूप से लागू हो सके उसी तरह समाज कार्य का दर्शन भी किसी देश व समाज में समान रूप से लागू नहीं हो सकता। इसका एक प्रमुख कारण संस्कृतियों के रूपों में परिवर्तन भी है क्योंकि दर्शन में संस्कृति की स्पष्ट छाप रहती है। इसीलिए किसी भी देश का समाज कार्य दर्शन उस देश की जीवन संबंधी वास्तविकताओं और आवश्यकताओं पर आधारित दर्शन होगा। हर्बर्ट बिस्नो ने समाज कार्य द्वारा अपना एक दर्शन न प्रतिपादित करने के 3 प्रमुख कारण बताएँ हैं- 1- समाज कार्य व्यवसाय का नवीन होना। 2- सेवार्थी, सेवार्थी समूह के समक्ष अपनी कार्य पद्धतियों व प्रविधियों का विवरण प्रस्तुत करने में समाज कार्यकर्ता द्वारा कठिनाई महसूस किया जाना। 3- सामाजिक कार्यकर्ताओं और समाज कार्य के प्रयोजितों (प्रायोजकों) में समाज कार्य की दार्शनिक दिशा के संबंध में मतभेद का होना।
समाज कार्य व्यवसाय के अंतर्गत कार्य करने वाला सामाजिक कार्यकर्ता अपने कार्य अनुभव से कुछ आदर्श और मूल्यों को विकसित करता है। समाज कार्य के अर्थ में जब इन आदर्शों व मूल्यों को एक तर्क संगत प्रणाली के तहत स्थापित किया जाता है तो वह समाज कार्य दर्शन बन जाता है।