समाज मनोविज्ञान
सामाजिक मनोविज्ञान (Social Psychology) मनोविज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत इस तथ्य का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है कि किसी दूसरे व्यक्ति की वास्तविक, काल्पनिक, अथवा प्रच्छन्न उपस्थिति हमारे विचार, संवेग, अथवा व्यवहार को किस प्रकार से प्रभावित करती है।[१]। यहाँ 'वैज्ञानिक' का अर्थ है 'अनुभवजन्य विधि'। इस सन्दर्भ मे विचार, भावना तथा व्यवहार मनोविज्ञान के उन चरों (वैरिएबल्स) से सम्बन्ध रखते हैं जो नापने योग्य हैं। udeshya likho
परिचय
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अपनी विविध आवश्यकताओं के लिए मनुष्य दूसरे व्यक्तियों से, समूहों से, समुदायों से अन्तःक्रियात्मक सम्बन्ध स्थापित करता है। व्यक्ति के व्यवहार एवं समाज में गहरा सम्बन्ध होता है। सदस्यों के बीच आपसी सम्बन्ध उनके परस्पर व्यवहार पर निर्भर करते हैं। मनुष्य के विचारों, व्यवहारों एवं क्रियाओं का प्रभाव एक दूसरे पर पड़ता है। व्यक्ति का व्यवहार सर्वदा एक समान नही होता है। एक ही व्यक्ति कई रूपों में व्यवहार करता हुआ पाया जाता है। उसके विचार, भाव तथा व्यवहार विविध परिस्थितियों में प्रभावित भी होते रहते हैं। स्पष्ट है कि मानव व्यवहार के विविध पक्ष होते हैं। मनुष्य दूसरों के बारे में अलग-अलग तरह से सोचता तथा प्रभावित होता है। सामाजिक मनोविज्ञान व्यक्ति के व्यवहारों का वैज्ञानिक अध्ययन है। ऐतिहासिक रूप से इसके विकास में समाजशास्त्र और मनोविज्ञान दोनों का ही योगदान है।
सामाजिक मनोविज्ञान का अर्थ एवं परिभाषाएँ
सामाजिक मनोविज्ञान में हम जीवन के सामाजिक पक्षों से सम्बन्धित अनेकानेक प्रश्नों के उत्तरों को खोजने का प्रयास करते हैं। इसीलिए सामाजिक मनोविज्ञान को परिभाषित करना सामान्य कार्य नही है। राबर्ट ए. बैरन तथा जॉन बायर्न (2004:5) ने ठीक ही लिखा है कि, ‘सामाजिक मनोविज्ञान में यह कठिनाई दो कारणों से बढ़ जाती है : विषय क्षेत्र की व्यापकता एवं इसमें तेजी से बदलाव।’ सामाजिक मनोविज्ञान को परिभाषित करते हुए उन्होंने लिखा है कि, ‘‘सामाजिक मनोविज्ञान वह विज्ञान है जो सामाजिक परिस्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार और विचार के स्वरूप व कारणों का अध्ययन करता है।’’ ऐसा ही कुछ किम्बॉल यंग (1962:1) का भी मानना है। उन्होनें सामाजिक मनोविज्ञान को परिभाषित करते हुए लिखा है कि, ‘‘सामाजिक मनोविज्ञान व्यक्तियों की पारस्परिक अन्तक्रियाओं का अध्ययन करता है, और इस सन्दर्भ में कि इन अन्तःक्रियाओं का व्यक्ति विशेष के विचारों, भावनाओं संवेगो और आदतों पर क्या प्रभाव पड़ता है।’’
शेरिफ और शेरिफ (1969:8) के अनुसार, ‘‘सामाजिक मनोविज्ञान सामाजिक उत्तेजना-परिस्थिति के सन्दर्भ में व्यक्ति के अनुभव तथा व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन है।’’
मैकडूगल ने सामाजिक मनोविज्ञान को परिभाषित करते हुए लिखा है कि, ‘‘सामाजिक मनोविज्ञान वह विज्ञान है, जो समूहों के मानसिक जीवन का और व्यक्ति के विकास तथा क्रियाओं पर समूह के प्रभावों का वर्णन करता और उसका विवरण प्रस्तुत करता है।’’
विलियम मैकडूगल, (1919:2) ओटो क्लाइनबर्ग (1957:3) का कहना है कि, ‘‘सामाजिक मनोविज्ञान को दूसरे व्यक्तियों द्वारा प्रभावित व्यक्ति की क्रियाओं को वैज्ञानिक अध्ययन कहकर परिभाषित किया जा सकता है।’’
उपरोक्त परिभाषाओं को देखते हुए हम स्पष्टतः कह सकते हैं कि सामाजिक मनोवैज्ञानिक यह जानने का प्रयास करते हैं कि व्यक्ति एक दूसरे के बारे में कैसे सोचते हैं तथा कैसे एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।
सामाजिक मनोविज्ञान की प्रकृति
सामाजिक मनोविज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक है। जब हम किसी भी विषय को वैज्ञानिक कहते हैं, तो उसकी कुछ विशेषताएँ (मूल्य) होती हैं, और उन विशेषताओं के साथ ही साथ उस विषय के अध्ययन के अन्तर्गत विभिन्न विधियाँ होती हैं, जिनका प्रयोग सम्बन्धित विषयों के अध्ययन में किया जाता है रौबर्ट ए. बैरन तथा डॉन बायर्न (2004:6) ने इन विशेषताओं या विजकोष मूल्यों को इस प्रकार बताया है, किसी भी विषय के वैज्ञानिक होने के लिए वे आवश्यक हैं-
(1) यथार्थता
(2) विषयपरकता
(3) संशयवादिता और
(4) तटस्थता।
इन चारों को स्पष्ट करते हुए उनका कहना है कि - यथार्थता से अभिप्राय दुनिया (जिसके अन्तर्गत सामाजिक व्यवहार व विचार आता है) के बारे में यथासम्भव सावधानीपूर्वक, स्पष्ट व त्रुटिरहित तरीके से जानकारी हासिल करने एवं मूल्याँकन करने के प्रति वचनबद्धता से है।
विषयपरकता से तात्पर्य यथासम्भव पूर्वाग्रहरहित जानकारी प्राप्त करने एवं मूल्यांकन करने के प्रति वचनबद्धता से है।
संशयवादिता से तात्पर्य तथ्यों का सही रूप में स्वीकार करने के प्रति वचनबद्धता ताकि उसे बार-बार सत्यापित किया जा सके, से है।
तटस्थता का अभिप्राय अपने दृष्टिकोण, चाहे वो कितना भी दृढ़ हो, को बदलने के प्रति वचनबद्धता से है, यदि मौजूदा साक्ष्य यह बताता है कि ये दृष्टिकोण गलत है। सामाजिक मनोविज्ञान एक विषय के रूप में उपरोक्त मूल्यों से गहन रूप से सम्बद्ध है। विविध विषयों से सम्बन्धित अध्ययनों के लिए इसमें वैज्ञानिक तरीकों को अपनाया जाता है।
हमने शुरू में सामाजिक मनोविज्ञान की परिभाषाएँ दी हैं, उनसे स्पष्ट होता है कि यह विज्ञान समाजशास्त्र और मनोविज्ञान दोनों ही की विशेषताओं से युक्त है। वास्तव में व्यक्ति के व्यवहारों का अध्ययन करने वाला यह एक महत्वपूर्ण विज्ञान है। इस सन्दर्भ में क्रच और क्रचफील्ड (1948 : 7) के अनुसार,
- ‘‘समाज का अध्ययन करने वाले विज्ञानों में केवल सामाजिक मनोविज्ञान ही मुख्यतया सम्पूर्ण व्यक्ति का अध्ययन करता है। अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र तथा अन्य सामाजिक विज्ञानों की अध्ययन वस्तु सामाजिक संगठन की संरचना एवं प्रकार्य तथा सीमित एवं विशिष्ट प्रकार की संस्थाओं के अन्तर्गत लोगों द्वारा प्रदर्शित संस्थागत व्यवहार ही है। दूसरी ओर सामाजिक मनोविज्ञान का सम्बन्ध समाज में व्यक्ति के व्यवहार के प्रत्येक पक्ष से है। अतः मोटे तौर पर सामाजिक मनोविज्ञान को समाज में व्यक्ति के व्यवहार का विज्ञान कहकर परिभाषित किया जा सकता है।’’
इसकी वास्तविक प्रकृति और वैज्ञानिकता की पुष्टि शेरिफ और शेरिफ (1956:5) के इस कथन से होती है कि,
- ‘‘सामाजिक मनोविज्ञान केवल विभिन्न प्रकार की अवधारणाओं को अपना लेने के कारण ही ‘सामाजिक’ नही हो गया है, अपितु वास्तविकता तो यह है कि सामान्य मनोविज्ञान की प्रामाणिक अवधारणाओं को सामाजिक क्षेत्र में विस्तृत करके या उपयोग में लाकर ही सामाजिक मनोविज्ञान ‘सामाजिक’ विज्ञान बन पाया है।’’
वास्तव में देखा जाये तो सामाजिक मनोविज्ञान में विज्ञान की सभी अवधारणाएँ, शर्ते या विशेषताएँ पायी जाती है, जैसे इसमें विषय वस्तु का क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित तरीके से वैज्ञानिक पद्धति से अध्ययन किया जाता है। आवश्यकतानुसार प्रयोशाला अध्ययन, क्षेत्रीय अध्ययन या क्षेत्रीय प्रयो ग किया जाता है। इसमें कार्य-कारण सम्बन्धों की खोज की जाती है। वस्तुगतता के स्थान पर वस्तुनिष्ठता पर जोर दिया जाता है। सम्बन्धित उपकल्पनाओं को निर्मित किया जाता है तथा उसकी सत्यता की जाँच प्राप्त तथ्यों के आधार पर की जाती है तथा उसी के आधार पर वैज्ञानिक सिद्धान्त का निर्माण किया जाता है तथा उसका प्रमाणीकरण भी होता है।
इस तरह से स्पष्ट है कि सामाजिक मनोविज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक प्रकृति है, क्योंकि यह विज्ञान के अन्य विषयों की तरह ही मूल्यों एवं विधियों को अपनाता हैं। यह एक आनुभविक विज्ञान (इम्पीरिकल साइंस) है। सामाजिक मनोविज्ञान शोध के चार मुख्य लक्ष्य होते हैं (टेलर तथा अन्य 2006:15)
- (1) कारक
- (2) कार्य-कारण विश्लेषण
- (3) सिद्धान्त निर्माण, और
- (4) उपयोग (एप्लीकेशन)।
सामाजिक मनोविज्ञान का क्षेत्र
सामाजिक मनोविज्ञान का विषय-क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। इसमें हम न केवल वैज्ञानिक व्यवहार, अन्तर्वैयक्तिक व्यवहार अपितु समूह व्यवहार का भी अध्ययन करते हैं।
एक सामाजिक मनोवैज्ञानिक व्यवहार के सभी पक्षों के साथ-साथ उससे सम्बन्धित समस्याओं का भी अध्ययन करता है।
लैपियर और फार्न्सवर्थ (1949:7) का कहना है कि, ‘‘सामाजिक मनोविज्ञान, सामाजिक विज्ञानों के सामान्य क्षेत्र के अन्तर्गत एक विशेषीकृत विज्ञान है, और उसके विषय-क्षेत्र को सुनिश्चित रूप से परिभाषित नहीं किया जा सकता है; क्योंकि ज्ञान में वृद्धि होने के साथ-साथ उसमें भी परिवर्तन होगा ही। एक समय विशेष में जिन समस्याओं का अध्ययन सामाजिक मनोविज्ञान करता है, उन्हीं के आधार पर इसके अध्ययन के सामान्य क्षेत्र को सम्भवतः सबसे अच्छी तरह उजागर किया जा सकता है।’’
वर्ष 1908 में मैकडूगल ने ‘सोशल साइकोलॉजी’ नामक पुस्तक लिखी थी, तभी से यह माना जाता है कि इसका इतिहास प्रारम्भ हुआ है। स्पष्ट है कि इसका एक विज्ञान के रूप में इतिहास ज्यादा पुराना नही हैं, फिर भी यह देखा गया है कि इसके क्षेत्र में न केवल तीव्र वृद्धि हुई है अपितु विविध बदलाव भी आए हैं। इसके क्षेत्र के अन्तर्गत मनोविज्ञान की दूसरी विशिष्ट शाखाओं जैसे विकासात्मक मनोविज्ञान, असमान्य मनोविज्ञान, तुलनात्मक मनोविज्ञान, शिक्षा मनोविज्ञान, बाल मनोविज्ञान प्रयोगात्मक मनोविज्ञान इत्यादि की भी बहुत सी सामगियाँ समाहित हैं। साथ ही, अन्य सामाजिक विज्ञानों विशेषकर समाजशास्त्र तथा मानवशास्त्र और अर्थशास्त्र इत्यादि की भी कुछ सामग्रियाँ इसमें सम्बन्धित हैं। ओटो क्लाइनबर्ग (1957 : 15-16) ने सामाजिक मनोविज्ञान के विषय क्षेत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित विषयों के अध्ययन को सम्मिलित किया है-
- (1) सामान्य मनोविज्ञान और सामाजिक मनोविज्ञान की व्याख्या
इसके अन्तर्गत अभिप्रेरणा, उद्वेगात्मक व्यवहार, प्रत्यक्षीकरण, स्मरण शक्ति इत्यादि पर सामाजिक कारकों के प्रभाव का अध्ययन करने के साथ ही साथ अनुकरण, सुझाव, पक्षपात इत्यादि परम्परागत सामाजिक मनोवैज्ञानिक अवधारणाओं के प्रभाव की भी अध्ययन करने की काशिश की जाती है।
- (2) बच्चे का सामाजीकरण, संस्कृति एवं व्यक्तित्व
एक जैवकीय प्राणी किस प्रकार सामाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा सामाजिक प्राणी बनता है, यह इसके अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है। संस्कृति और व्यक्तित्व के सम्बन्धों को भी ज्ञात किया जाता है। व्यक्तित्व के विकास में सामाजीकरण की प्रक्रिया महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। सामाजीकरण के विविध पक्षों एवं स्वरूपों का अध्ययन सामाजिक मनोविज्ञान का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
- (3) वैयक्तिक एवं समूह भेद
दो मनुष्य एक समान नहीं होते वैसे ही समूह में भी भेद पाया जाता है। वैयक्तिक भिन्नता तथा समूह भिन्नता के सामाजिक-मनोवैज्ञानिक कारणों का अध्ययन सामाजिक मनोविज्ञान का एक विषय क्षेत्र है।
- (4) मनोवृत्ति तथा मत, सम्प्रेषण शोध, अन्तर्वस्तु विश्लेषण एवं प्रचार
मनोवृत्ति या अभिवृत्ति का निर्माण, मनोवृत्ति बनाम क्रिया, कैसे मनोवृत्ति व्यवहार को प्रभावित करती है? कब मनोवृत्तियाँ व्यवहार को प्रभावित करती है? इत्यादि के साथ साथ जनमत निर्माण, विचारों के आदान-प्रदान के माध्यमों, सम्प्रेषण अनुसंधानों, अन्तर्वस्तु विश्लेषण तथा प्रचार के विविध स्वरूपों एवं प्रभावों इत्यादि को इसके अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता है। समाज मनोविज्ञान सम्प्रेषण के विविध साधनों तरीकों, एवं प्रभावों का अध्ययन करता है।
- (5) सामाजिक अन्तर्क्रिया, समूह गत्यात्मकता और नेतृत्व
सामाजिक मनोविज्ञान का क्षेत्र सामाजिक अन्तर्क्रिया, समूह गत्यात्मकता तथा नेतृत्व के विविध पक्षों एवं प्रकारों को भी अपने में सम्मिलित करता है।
- (6) सामाजिक व्याधिकी (सोशल मेडिसिन)
समाज है तो समाजिक समस्याओं का होना भी स्वाभाविक है। सामाजिक मनोविज्ञान के अन्तर्गत सामाजिक व्याधिकी के विविध पक्षों एवं स्वरूपों का गहन एवं विस्तृत अध्ययन किया जाता है, जैसे बाल अपराधी, मानसिक असामान्यता, सामान्य अपराधी, औद्योगिक संघर्ष, आत्महत्या इत्यादि इत्यादि।
- (7) घरेलू तथा अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति
सामाजिक मनोविज्ञान में राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय राजनैतिक व्यवहारों का भी विशद अध्ययन किया जाने लगा है।
समाज मनोविज्ञान के क्षेत्र के अन्तर्गत अनेकानेक क्षेत्र आते हैं। समय के साथ-साथ नये-नये क्षेत्र इसमें समाहित होते जा रहे हैं। नेता-अनुयायी सम्बन्धों की गत्यात्मकता, सामाजिक प्रत्यक्षीकरण, समूह निर्माण तथा विकास का अध्ययन, पारिवारिक समायोजन की गत्यात्मकता का अध्ययन, अध्यापन सीख प्रक्रिया की गत्यात्मकता इत्यादि, विविध क्षेत्र इसके अन्तर्गत आते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सामाजिक मनोविज्ञान के विषय क्षेत्र के अन्तर्गत वह सब कुछ आता है, जिसका कि कोई न कोई सामाजिक-मनोवैज्ञानिक आधार हैं। रॉस (1925:7) का कहना है कि, ‘‘सामाजिक मनोविज्ञान उन मानसिक अवस्थाओं एवं प्रवाहों का अध्ययन करता है जो मनुष्यों में उनके पारस्परिक सम्पर्क के कारण उत्पन्न होते हैं। यह विज्ञान मनुष्यों की उन भावनाओं, विश्वासों और कार्यों में पाये जाने वाले उन समानताओं को समझने और वर्णन करने का प्रयत्न करता है जिनके मूल में मनुष्यों के अन्दर होने वाली अन्तःक्रियाएं अर्थात् सामाजिक कारण रहते हैं।’’
सामाजिक मनोविज्ञान का महत्व
सामाजिक मनोविज्ञान का महत्व वैश्वीकरण के इस दौर में निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है। उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण ने जो सामाजिक आर्थिक प्रभाव उत्पन्न किए हैं, उनके परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो हम यह पाते हैं कि सामाजिक मनोविज्ञान उस समस्त परिस्थितियों, घटनाओं एवं समस्याओं का अध्ययन करता है, जो इनके कारण उत्पन्न हुई है।
सामाजिक मनोविज्ञान के महत्व को उसकी अध्ययन वस्तु के आधार पर अलग-अलग रूप से प्रस्तुत करके स्पष्ट किया जा सकता है।
व्यक्ति को समझने में सहायक
सामाजिक मनोविज्ञान व्यक्ति के सम्बन्ध में वास्तविक और वैज्ञानिक ज्ञान करवाता है। सामाजिक मनोविज्ञान के द्वारा ही संस्कृति और व्यक्तित्व में सम्बन्ध, सामाजीकरण, सीखने की प्रक्रिया, सामाजिक व्यवहार, वैयक्तिक विभिन्नताएँ, उद्वेगात्मक व्यवहार, स्मरण शक्ति, प्रत्यक्षीकरण, नेतृत्व क्षमता इत्यादि से सम्बन्धित वास्तविक जानकारी प्राप्त होती है। व्यक्ति से सम्बन्धित अनेकों भ्रान्त धारणाएँ इसके द्वारा समाप्त हो गई। समाज और व्यक्ति के अन्तर्सम्बन्धों तथा अन्तर्निर्भरता को उजागर करके सामाजिक मनोविज्ञान ने यह प्रमाणित कर दिया कि दोनों की पारस्परिक अन्तर्क्रियाओं के आधार पर ही व्यक्ति के व्यवहारों का निर्धारण होता है। समाज विरोधी व्यवहार के सामाजिक तथा मानसिक कारणों को उजागर करके उन व्यक्तियों के उपचार को सामाजिक मनोविज्ञान ने सम्भव बनाया है। वैयक्तिक विघटन से सम्बन्धित विविध पक्षों की जानकारी भी इसके द्वारा प्राप्त होती है। इतना ही नहीं उपयुक्त सामाजीकरण तथा व्यक्ति और समाज के सम्बन्धों के महत्व को भी सामाजिक मनोविज्ञान ने अभिव्यक्त करके योगदान किया है। सामाजिक मनोविज्ञान व्यक्तित्व के अलग-अलग प्रकारों तथा व्यक्ति विशेष के व्यवहार को समझने में योगदान करता है। अच्छे व्यक्तित्व का विकास कैसे हो, सकारात्मक सोच कैसे आये, जीवन में आयी निराशा तथा कुण्ठा कैसे दूर हो और इन सभी परिस्थितियों के क्या कारण हैं, को सामाजिक मनोविज्ञान द्वारा ही जाना जा सकता है और परिवर्तित किया जा सकता है। तनाव से बचाने में भी इसका योगदान है।
माता-पिता की दृष्टि से महत्व
माता-पिता का संसार ही बच्चे होते हैं। प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चों को संस्कारवान तथा स्वस्थ व्यक्तित्व वाला बनाना चाहता है। बच्चों के पालन-पोषण में, समाजीकरण में तथा व्यक्तित्व के विकास में किस प्रकार की परिस्थितियाँ ज्यादा उपयुक्त होंगी और इनके तरीके क्या हैं, कि वैज्ञानिक जानकारी सामाजिक मनोविज्ञान के द्वारा होती हैं। इसका यथेष्ट ज्ञान बच्चों को बाल अपराधी, कुसंग, मादक द्रव्य व्यसन, अवसाद इत्यादि से बचा सकता है।
शिक्षकों के लिए महत्व
सामाजिक मनोविज्ञान के अध्ययन द्वारा शिक्षकों को अपने विद्यार्थियों को समझने तथा उनको पढ़ाने के उचित तरीकों को जानने में मदद मिलती है। सामाजिक-मनोवैज्ञानिक तरीकों के प्रयोग द्वारा शिक्षक छात्रों में शिक्षा के प्रति रूचि पैदा कर सकता है। वही सामाजिक-मनोवैज्ञानिक दृष्टि से स्वस्थ व्यक्ति ही सक्षम शिक्षक की भूमिका में खरा उतर सकता है। परिवार सामाजिकरण की प्रथम पाठशाला है, वही विद्यालय द्वैतीयक सामाजीकरण की भूमिका अदा करता है। आज मानव विकास में शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है। प्राथमिक शिक्षा के लिए सरकार विविध प्रावधानों के द्वारा व्यापक प्रयास कर रही है। शिक्षा के अधिकार अधिनियम द्वारा अधिक से अधिक बच्चों को विद्यालयी शिक्षा प्रदान करने की कोशिश की जा रही है। शिक्षकों से अधिकांश छात्रों के पंजीकरण, उनसे समुचित व्यवहार, उचित अध्यापन इत्यादि अपे क्षाएँ हैं। सामाजिक मनोविज्ञान द्वारा शिक्षा क्षेत्र की समस्याओं तथा उनके निदान के उपायों की व्यापक जानकारी प्राप्त होती है।
समाज सुधारकों एवं प्रशासकों के लिए
सामाजिक मनोविज्ञान के अध्ययन द्वारा समाज सुधारकों को तो लाभ प्राप्त होता ही है, यह प्रशासकों को भी विविध तरह से लाभ पहुँचाता है। समाज में व्याप्त विविध कुरीतियों, बुराईयों, विचलित व्यवहारों एवं आपराधिक गतिविधियों, समस्याओं, सामाजिक तनावों, साम्प्रदायिक दंगों, जातिगत दंगो, वर्ग संघर्षों इत्यादि के कारणों तथा उनको रोकने के उपायों की जानकारी सामाजिक मनोविज्ञान के अध्ययन के द्वारा समाज सुधारकों तथा प्रशासकों को होती है, जिसके द्वारा उन्हें इन समस्याओं को दूर करने में सहायता मिलती है।
अक्सर अफवाहों के चलते न केवल सामाजिक तनाव फैल जाता है अपितु कानून और व्यवस्था की गंभीर समस्या पैदा हो जाती है। सामाजिक मनोविज्ञान का अध्ययन अफवाहों को समझने तथा उसके कारगर उपायों को अपनाने का ज्ञान प्रदान करता है।
विज्ञापन एवं प्रचार की दृष्टि से महत्व
आज धन का महत्व बढ़ता ही चला जा रहा है। उद्योगपति अपने उत्पादों को जनसंचार के माध्यमों से विज्ञापनों द्वारा अधिक से अधिक प्रचारित प्रसारित कर रहे हैं। लोगों के मनोविज्ञान को समझकर न केवल उपभोक्तावाद को बढ़ावा दे रहे हैं अपितु उपभोक्ताओं पर मनोवैज्ञानिक दबाव भी डाल रहे हैं ताकि उनका उत्पाद अधिकाधिक बिके।
जनमत के महत्व को समझकर सरकार एवं राजनीतिज्ञ सक्रिय हैं। हाल ही में जनमत के चलते कई शासकों को सत्ता से बेदखल होना पड़ा है। सामाजिक मनोविज्ञान का ज्ञान विविध सरकारी योजनाओं की जानकारी जन-जन तक पहुंचाने में सम्भव हो रहा है। प्रचार के महत्व को आज हम सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनैतिक जीवन के सभी पक्षों में महसूस कर रहे हैं।
सम्पूर्ण राष्ट्र की दृष्टि से महत्व
सामाजिक मनोविज्ञान का सम्पूर्ण राष्ट्र की दृष्टि से भी खासा महत्व है। वैयक्तिक विघटन से लेकर युद्ध एवं क्रान्ति जैसी स्थितियाँ किसी भी राष्ट्र के लिए चिन्ताजनक हो सकती हैं। सामाजिक मनोविज्ञान का अध्ययन न केवल व्यक्ति को अपितु समूह एवं समाज को तथा राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय जीवन को खतरा करने वाली विविध स्थितियों एवं कारकों का ज्ञान कराता है और उनके परिणामों के सन्दर्भ में सचेत करता है। सामाजिक मनोविज्ञान के अनुसन्धानों द्वारा व्यापक नीति-निर्माण में मदद मिलती है। व्यक्ति-व्यक्ति के बीच विभेदों, कटुता एवं कलुषता को दूर करने में सहायता मिलती है, वहीं युद्ध, क्रान्ति, पक्षपात, अफवाह एवं विविध प्रकार के तनाव को रोकने में भी मदद मिलती है। सम्पूर्ण राष्ट्र की भलाई की दृष्टि से सामाजिक मनोविज्ञान के महत्व को नकारा नहीं जा सकता है।
आज उद्योगों में भी सामाजिक मनोविज्ञान के विविध पक्षों के जानकारों को रखा जा रहा है ताकि औद्योगिक सम्बन्ध शान्त तथा सौहार्द्रपूर्ण बना रहें श्रमिकों तथा कर्मचारियों की समस्याओं का भी सामाजिक-मनोवैज्ञानिक तरीकों से समाधान किया जा रहा है। सामाजिक मनोवैज्ञानिक तकनीकों एवं प्रविधियों के प्रयोग द्वारा औद्योगिक उत्पादन को बढ़ाने में सफलता प्राप्त की जा रही है। नौकरशाहों में, प्रबन्धकों में तथा नेताओं में नेतृत्व की क्षमता वृद्धि के लिए भी इसका विशेष महत्व स्वीकार किया जा रहा है। यह कहना कदापि अनुचित न होगा कि मानवीय क्रियाकलापों की पहेली को मनोवैज्ञानिक दृष्टि से सुलझाना आज की अनिवार्यता है।
इतिहास
समाजिक मनोविज्ञान एक अनुशासन के तौर पर २०वीं शताब्दी में अमरीका में पैदा हुआ, लेकिन इस अनुशासन की पहले से ही एक महत्वपूर्ण स्थापना हो गयी थी। १८वीं के बाद, उभरते समाज मनोविज्ञान से जुडे लोग मानव प्रकृति के विभिन्न पहलुओं के स्पष्टीकरण से सम्बन्धित थे। इनकी इच्छा थी की वे समाज व्यवहार के प्रभाव का महत्वपूर्ण कारण खोजें। यह साकार करने के लिये उन्हे लगा हकी सबसे उत्तम तरीका माना वैज्ञानिक विधि को, वे मानते थे की वैज्ञानिक, अनुभवजन्य और नापनीय रीति को वे मानव व्यवहार पर लागू कर सकते थे।
सामाजिक मनोविज्ञान एक अन्तर-अनुशासनात्मक क्षेत्र है जो मनोविज्ञान तथा समाज विज्ञान का मेल है। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात के समय में मनोविज्ञान और समाजविज्ञान के बीच लगातार सहयोग बना रहा। परन्तु, इस्के बाद यह दोनो क्षेत्र अलग होकर तेजी से विशेषीकृत होने लगे और समाज मनोविज्ञान ने अपना ध्यान मैक्रो चर पर कर दिया। फिर भी समाज मनोविज्ञान का दृष्टिकोण आज भी मनोविज्ञान के इस क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण हैl
सन्दर्भ
- ↑ [Allport, G. W (1985). "The historical background of social psychology". In Lindzey, G; Aronson, E. The Handbook of Social Psychology. New York: McGraw Hill.p.5]
इन्हें भी देखें
- चिकित्सापरक मनोविज्ञान (Medical psychology)
बाहरी कड़ियाँ
- समाज मनोविज्ञान की रूपरेखा (गूगल पुस्तक ; लेखक - अरुण कुमार)
- सामाजिक मनोविज्ञान (गूगल पुस्तक)
- Sewell, W. H (1989). "Some reflections on the golden age of interdisciplinary social psychology". Annual Review of Sociology 15.