साधक पित्‍त

From hiwiki
Jump to navigation Jump to search

== साधक पित्‍त: == शरीर में सबसे महत्वपूर्ण स्थान हृदय में साधक पित्त का स्थान है

जो पित्त ह्रदय में स्थित रहता है उसकी साधकाग्नि संज्ञा है।। वह इच्छित मनोरथो का साधन करने वाला होता है आचार्य डलहण ने इसका स्पष्टीकरण करते हुए लिखा है- हृदय में जो पित्त या द्रव्य विशेष होता है, वह धर्म,अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थ का साधन करने वाला होने से ,उसे साधक पित्त या साधकाग्नि की संज्ञा दी गई है ।

मेधा और धारण शक्ति को बढाता है।

सन्‍दर्भ ग्रन्‍थ:

चरक संहिता

सुश्रुत संहिता

वाग्‍भट्ट

भाव प्रकाश

चिकित्‍सा चन्‍द्रोदय



इन्हें भी देखें

आयुर्वेद


बाहरी कडियां