साँचा:दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी

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गांधी दक्षिण अफ्रीका में (१८९५ )
( १९०६ )]]

दक्षिण अफ्रीका में गांधी को भारतीयों पर भेदभाव का सामना करना पड़ा।आरंभ में उसे प्रथम श्रेणी कोच की वैध टिकट होने के बाद तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इन्कार करने के लिए में ट्रेन से बाहर फैंक दिया गया था। पायदान पर शेष यात्रा करते हुए एक यूरोपियन यात्री के अंदर आने के लिए उसे चालक द्वारा पिटाई भी झेलनी पड़ी थी। उन्होंने अपनी इस यात्रा7 में अन्य कठिनाइयों का सामना किया जिसमें कई होटलों को उनके लिए वर्जित कर दिया गया। इसी तरह ही बहुत सी घटनाओं मे की एक अदालत के न्यायाधीश ने गांधी जी को अपनी पगड़ी|पगड़ी उतारने के लिए आदेश दिया था जिसे गांधी जी ने नहीं माना। ये सारी घटनाएं गांधी जी के जीवन में एक मोड़ बन गई और विद्ध्‍मान सामाजिक अन्याय के प्रति जागरूकता का कारण बना तथा सामाजिक सक्रियता की व्याख्या करने में मदद की। दक्षिण अफ्रीका में पहली नज़र में ही भारतीयों पर और अन्याय को देखते हुए गांधी जी ने अंग्रजी साम्राज्य के अंतर्गत अपने लोगों के सम्मान तथा देश में स्वयं अपनी स्थिति के लिए प्रश्न उठाएं।

अवधि बढ़ाई

गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में रहने की अपनी अवधि बढा दी ताकि भारतीयों को वोट न देने वाले एक विधेयक में वे उनकी मदद कर सकें। हालांकि वे विधेयक को पारित करने से रोक नहीं सके फिर भी दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों की शिकायतों के प्रति वे जनता का ध्यान आकर्षित करने में सफल रहे। उन्होंने १८९४ में नेटाल इंडियन कांग्रेस स्थापना की और इस संगठन के माध्यम से, उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय को एक सजातीय राजनीतिक शक्ति के रूप में परिवर्तित कर दिया1 जनवरी १८९७ में , जब गांधी भारत की संक्षिप्त यात्रा के बाद वापस लौटे तब गौरे रंग के लोगों ने उन पर हमला कर उन्हें घायल कर दिया। .बाद में उसके अभियानों को साकार करने वाले उसके निजी मूल्यों की प्रारंभिक पहचान के चलते उसने भीड़ के किसी भी सदस्य को आरोपित करने से इंकार कर दिया और कहा कि स्वयं की गलती का निवारण करने के लिए अदालत में जाना उनके सिद्धांतों में एक सिद्धांत है।

नए कानून का विरोध

१९०६ में , सरकार ने एक नया कानून बनाया भारतीय मूल की आबादी को पंजीकृत कराना अनिवार्य किया गया था। उस साल ११ सितंबर को जाहान्सबर्ग में हुई एक बैठक में भारी विरोध प्रकट किया गया जिसमें गांधी जी ने अभी तक विकसित सत्याग्रह

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सत्य के प्रति समर्पण), अथवा अहिंसा विरोध की विचारधारा को पहली बार अपनाया तथा अपने साथी भारतीयों को नए कानून की अवज्ञा करने तथा इसकी सजा भुगतने के लिए आह्वाहन किया न कि वे हिंसात्मक साधनों का उपयोग करें। इस योजना को अपनाया गया और इस संघर्ष में सात साल लगे जिसमें गांधी सहित हजारों भारतीयों को हड़ताल करने, पंजीकरण से इंकार करने, पंजीकरण कार्ड जलाने अथवा अहिंसक प्रदर्शन करने वाले अन्य रूपों में संलिप्त होने के लिए जेल भेज दिया गया, कोड़े मारे गए।जब सरकार भारतीय विरोधियों का दमन करने में सफल रही तब शांतिप्रिय भारतीय विरोध प्रदर्शनकारियों के सामने दक्षिण अफ्रीकी सरकार द्वारा नियुक्त कठोर उपायों से जनता चिल्ला उठी तब अंतत: दक्षिण अफ्रीकी जनरल ने गांधी जी के साथ एक समझौते पर विचार विमर्श किया। गाँधी जी के विचारों को मूर्त रूप मिला और अपने संघर्ष के दौरान सत्याग्रह की अवधारणा को परिपक्वता प्रदान की।